‘बोलो मेरे राम’ दोहा-संग्रह में राजनीतिक यथार्थ

Exploring the Changing Landscape of Politics in the Doha Collection 'बोलो मेरे राम'

by Santosh Kumari*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 200 - 204 (5)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

साहित्यकार समाज का दीपक होता है जो स्वयं जलते हुए ज्ञान रूपी प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करता हैं। ऐसे ही साहित्यकारों में डॉ. रामनिवास ‘मानव’ का नाम आता है। उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य में योगदान दिया है। आधुनिक युग को राजनीति में विश्व-व्यापक गतिविधि के रूप में जाना जाता है। मानव इतिहास में एक युग वह भी था, जब जनसाधारण का राजनीति से किसी प्रकार का प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता था और राजनीति शाहोंमहलों तक ही सीमित रहती थी मगर आज राजनीति का स्वरूप बदल गया है आज के युग में शायद ही कोई व्यक्ति हो जो राजनीति से अछूता हो। डॉ. ‘मानव’ का विचार है कि राजनीति में रूचि न रखने वालों से भी राजनीति जुड़ी हुई है। आज राजनीति का क्षेत्र बहुत ही व्यापक हो गया है।

KEYWORD

बोलो मेरे राम, दोहा-संग्रह, राजनीतिक यथार्थ, साहित्यकार, डॉ. रामनिवास ‘मानव’, हिन्दी साहित्य, आधुनिक युग, राजनीति, राजनीतिक रूचि, व्यापक क्षेत्र