राही मासूम रजा के उपन्यासों में आर्थिक संवेदना
by Hari Om*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 230 - 235 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
मानव-जीवन के प्रमुख अंगों में अर्थ आवश्यक एवं महत्वपूर्ण अंग है। किसी भी व्यक्ति, समाज और देश की उन्नति आर्थिक सम्पन्नता पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में, अर्थ व्यष्टि-समष्टि एवं राष्ट्र की रीढ़ है। भारत एक विकसनशील राष्ट्र है। अतएव इसकी अपनी आर्थिक समस्याएं हैं, जिन्हें दृष्टि में रखते हुए राही जी ने अपने साहित्य में आर्थिक बिंदुओं को स्पर्श किया है। देश में गरीबी, बेकारी, अशिक्षा, दहेज, वेश्यावृत्ति जैसी समस्याएं व्याप्त हैं। डॉ. राही मासूम रजा ने इन समस्याओं का विवेचन अपने साहित्य में किया है।
KEYWORD
आर्थिक संवेदना, राही मासूम रजा, उपन्यास, अर्थ, समस्याएं, विकसनशील राष्ट्र, गरीबी, बेकारी, अशिक्षा, दहेज, वेश्यावृत्ति