भारतीय विदेश नीति का बदलता स्वरूप (1947-2018)
भारतीय विदेश नीति की परिसंपर्क संचालन प्रक्रिया और मूल्यांकन
by Mohit .*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 236 - 239 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
विदेश नीति और राजनय को अंतराष्ट्रीय संबंधों के संचालन की प्रक्रिया के यान के दो पहिए कहा जा सकता है। आज कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है। राज्यों की एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। व्यक्तियों की भांति, राज्य भी अपने हितों की अभिवृद्धि का निरंतर प्रयास करते रहते है। इन हितो को राष्ट्रीय हित कहते है। प्रत्येक राज्य अपने राष्ट्रीय हितो की सुरक्षा के लिए विदेश नीति का निर्धारण करता है। किसी भी राज्य की विदेश नीति मुख्य रूप से कुछ सिद्धांतो, हितो एवं उद्देश्यों का समूह होता है जिनके माध्यम से वह राज्य दूसरे राष्ट्रों के साथ संबंध स्थापित करके उन सिद्धांतो की पूर्ति करने हेतु कार्यरत रहता है। भारत ने स्वतंत्रता के बाद जिस विदेश नीति का निमार्ण किया वह देश की सभ्यता, संस्कृति तथा राजनीतिक परंपरा को प्रतिबिंबित करती है। भारत की विदेश नीति निर्माताओं के समक्ष प्राचीन विद्वान कौटिल्य का दर्शन उपलब्ध था। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सम्राट अशोक के आदर्शों पर चलने का निश्चय किया और अंतराष्ट्रीय शांति तथा अंतराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान जैसे मूल्यों को संविधान में शामिल किया। तथा गुटनिरपेक्षता को अपनी विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान दिया।
KEYWORD
भारतीय विदेश नीति, स्वरूप, अंतराष्ट्रीय संबंध, राजनीति, राष्ट्रीय हितों, कार्यरत, सभ्यता, संस्कृति, राजनीतिक परंपरा, विद्वान कौटिल्य