हर्षवर्धन कालीन धार्मिक स्थिति का अध्ययन
A Study of Religious Situation during the Harsha Empire
by Parsoon .*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 248 - 251 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
हर्षवर्धन काल में धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय था। इस समय ब्राह्मण, बौद्ध, जैन, शाक्त, शैव, सूर्य, कापालिक, कालमुख आदि विभिन्न संप्रदायों का प्रचलन था। इस समय शिव मुख्य आराध्य देव थे। बाणभट्ट की रचना हर्षचरित के प्रारंभ में भी शिव भक्ति का वर्णन है। ब्राह्मण, शैव, बौद्ध धर्मों में तांत्रिक क्रियाओं का चलन था। इस समय ब्राह्मण व बौद्ध धर्म दोनों में अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए प्रतिद्वंद्विता थी। ब्राह्मण धर्म में मूर्तिपूजा, यज्ञ, कर्मकांडों का बोलबाला था। परंतु धीरे-धीरे बौद्ध धर्म में भी विलासिता व तांत्रिक पद्धति के कारण पतन शुरू हो गया। हर्षवर्धन ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। प्रयाग व कन्नौज सभा हर्ष के धार्मिक होने का प्रमाण देती हैं। इन सभाओं में हर्ष ने अपना सर्वस्व दान कर दिया था। हर्ष द्वारा सभी धर्मों के लोगों को दान देने से पता चलता है कि उसके लिए सभी धर्म समान थे।
KEYWORD
हर्षवर्धन काल, धार्मिक स्थिति, धर्म, व्यक्तिगत आस्था, ब्राह्मण, बौद्ध, जैन, शाक्त, शैव, सूर्य