प्रगतिवादी काव्य में सामाजिक यथार्थ
The Development of Progressive Poetry and its Impact on Social Reality in the Chhayavad Era
by Seema .*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 325 - 328 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
अधिकांश विद्वानों के अनुसार प्रगतिशील आंदोलन सन् 1936 में प्रारंभ हुआ। 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई जिसका प्रथम अधिवेशन प्रेमचंद के सभापतित्व में हुआ। साहित्य केवल मन बहलाव की चीज नहीं है अपितु मनोरंजन के सिवा उसमें और भी कुछ उद्देश्य है। अब वह केवल नायक-नायिका के संयोग की कहानी नहीं सुनाता है अपितु जीवन की समस्याओं पर भी विचार करता है और हल करने का सुझाव देता है। अब वह स्फूर्ति और प्रेरणा के लिए अद्भुत आश्र्चजनक घटनाएँ नहीं ढूढ़ता और किन्तु उसे उन प्रश्नों में दिलचस्पी है जिससे समाज या व्यक्ति प्रभावित होते हैं। उसकी उत्कृष्टता की वर्तमान कसौटी अनुभूति की वह तीव्रता है जिससे वह हमारे भावों और विचारों में गति पैदा करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि छायावाद की समाप्ति पर 1936 के आसपास सामाजिक चेतना को साथ लेकर प्रगतिवादी युग का आरंभ हुआ। छायावाद ने जीवन सौदंर्य के संगममरमरी ताज को बना तो दिया किन्तु वह आंखों को ही तृप्त कर सका। उसके झरोखों से मंदिर बयार तो आ सकी, पर उसका स्पर्श मात्र सिहरन पैदा कर सभा जीवन की अदृश्य शक्तियों को जागृत कर यर्थाथ को झेलने की हिम्मत न दे सका। छायावादियों का स्वप्न सत्य के ताप से झुलसने लगा और धीरे-धीरे भीतर-ही-भीतर जनमानस में एक सुगबुगाहट हुई। एक नया मानवतावाद जन्मा, जीवन यथार्थ की ठोस धरती पर आ खड़ा हुआ और इसे अभिव्यक्ति देने वाला काव्य प्रगतिवाद कहलाया। प्रगतिवादी काव्य के विकास में राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश, माक्र्सवादी दर्शन, फ्रॉयडीय चेतना और छायावाद की जीवन शून्य व्यक्तिवादी कविता के प्रति प्रतिक्रिया भाव भी सहायक रहा। प्रगतिवाद, सामाजिक यर्थाथवाद के नाम पर चलाया गया। यह वह साहित्यिक आंदोलन है जिसमें जीवन और यथार्थ के वस्तु सत्य को उतर छायावाद काल में प्रश्रय मिला और जिसने सर्वप्रथम यथार्थवाद की ओर समस्त साहित्यिक चेतना को अग्रसर होने की प्रेरणा दी। कहा जा सकता है कि इस काल में कवियों की मुख्य दृष्टि धरती और समाज की ओर रही। प्रगतिवाद ने वर्गभेद की खाई को पाटने का काम तो किया ही, मनुष्यों को सामाजिक और राजनैतिक भूमिका प्रदान की। प्रगतिवादी कवियों ने बाह्य जगत की पद्धति, रीति नीति और मानवीय समस्याओं को सही अर्थ में समाजोन्मुखी करने का काम किया है। प्रगतिवादी कवियों ने यथार्थ के धरातल पर कार्य किया।
KEYWORD
प्रगतिवादी काव्य, सामाजिक यथार्थ, प्रगतिशील आंदोलन, छायावाद, जीवन यथार्थ