महादेवी वर्मा का काव्यात्मक परिचय
A Study of Mahadevi Verma's Poetry and Literary Features
by Manju .*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 676 - 681 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
महादेवी वर्मा छायावाद की एक प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं। छायावाद का युग उथल-पुथल का युग था। राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि सभी स्तरों पर विभ्रम, द्वंद्व, संघर्ष और आंदोलन इस युग की विशेषता थी। इस पृष्ठभूमि में, अन्य संवेदनशील कवियों के समान ही, महादेवी ने भी अपनी रचनाशीलता का उपयोग किया। महादेवी अपनी काव्य रचनाओं में प्रायः अंतर्मुखी रही है। अपनी व्यथा, वेदना और रहस्य भावना को ही इन्होंने मुखरित किया है। उनकी कविता का मुख्य स्वर आध्यात्मिकता ही अधिक दिखाई देता है यद्यपि उनकी गद्य रचनाओं में उनका उदार और सामाजिक व्यक्तित्व काफी मुखर है। हम यह कह सकते हैं कि महादेवी वर्मा का काव्य प्रासाद इन चार स्तम्भों पर अवस्थित है - वेदनानुभूति, रहस्य भावना, प्रणयभावना और सौंदर्यानुभूति यदि हम यह कहे कि महादेवी वर्मा के काव्य का मूल भाव प्रणय है तो यह अतिश्योक्ति नही होगी, उनकी कविताओं में उदात प्रोम का व्यापक चित्रण मिलता है। अलौकिक प्रिय के प्रति प्रणय की भावना, नारी सुलभ संकोच और व्यक्तिगत तथा आध्यात्मिक विरह की अनुभूति उनके प्रणय के विविध आयाम हैं। महादेवी के काव्य में सौंदर्य के विविध रूपों का मनोहर चित्रण हुआ है। उनकी सौंदर्यानुभूति विलक्षण है। महादेवी वर्मा सौंदर्य को सत्य की प्राप्ति का साधन मानती है। छायावादी कवि चतुष्ठय में महादेवी वर्मा का महत्वपूर्ण स्थान है। आगामी अंशों में हम महादेवी वर्मा की काव्यात्मक विशेषताओं पर विस्तार से अध्ययन करेंगे
KEYWORD
महादेवी वर्मा, काव्यात्मक, परिचय, छायावाद, युग, रचनाशीलता, आध्यात्मिकता, सौंदर्य, गद्य, वेदनानुभूति