हिन्दी भाषा: कल आज और कल

भाषा, देश और स्वाधीनता: भारत में हिन्दी की भूमिका

by Sonam .*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 712 - 714 (3)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

राष्ट्रभाषा के मामले को, जो इस देश में बेहद उलझ गया है और उस पर लिखना या बात करना औसत दर्जे के प्रचारकों का काम समझा जाने लगा है, अगर मैं भी टाल देता तो शायद मेरे हित में ही होता। आज अपनी भाषा में लिखने पर भी लोग भाषा पर बात करना अवांछित समझते हैं देश में रहकर देश पर बात करने में शरमाने लगे हैं – उन्होंने कोई ऊँची बात ही सोची होगी, जो मैं नहीं सोच पाया-शायद इसीलिए यह पुस्तक आ सकी है। भाषा का प्रश्न मानवीय है, खासकर भारत में, जहाँ साम्राज्यवादी भाषा जनता को जनतंत्र से अलग कर रही है। हिन्दी और अंग्रेजी की स्पर्द्धा देशी भाषाओं और राष्ट्रभाषा के द्वंद्व में बदल गई है, मनों को जोड़ने वाला सूत्र तलवार करार दे दिया गया है, पराधीनता की भाषा स्वाधीनता का गर्व हो गई है। निश्चय ही इसके पीछे दास मन की सक्रियता है। कैसा अजब लगता है, जब कोई इसलिए आंदोलन करे कि हमें दासता दो, बेड़ियाँ पहनाओ

KEYWORD

हिन्दी भाषा, राष्ट्रभाषा, भाषा प्रचारक, जनतंत्र, भाषाओं की स्पर्द्धा