स्वातंत्र्योत्तर हिंदी काव्यः सामाजिक एवं साहित्यिक सरोकार
एक समकालीन परिस्थिति में स्वातंत्र्योत्तर हिंदी काव्यः का प्रभाव
by Dr. Rajendra Singh*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 2, Feb 2019, Pages 1486 - 1491 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
साहित्यकार अपने युग परिवेश से प्रभावित होता है तथा समकालीन परिस्थितियां उस परिवेश को प्रभावित करती हैं। स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता में तत्कालीन घटनाओं व विचारधाराओं के आंतरिक एवं बाह्य दबाओं के प्रभाववश कुछ विषिष्ट प्रवृतियां भी स्वाभाविक रूप से उभरकर आयी है। इन कविताओं में समकालीन परिवेश अपनी वास्तविकता के साथ प्रतिबिंबित हुआ है। कवियों ने समाज के बदलते मानवीय चेहरे को न केवल यथार्थ रूप में अभिव्यक्ति दी है अपितु आज के भूमण्डलीकरण के कारण मनुष्य की बदलती जरूरतें, भूलते मानवीय मूल्य, समाज में व्याप्त विसंगतियों को भी चित्रित किया है। वर्तमान राजनीतिक सत्ता में फैले भ्रष्टाचार एवं दायित्वहीनता जैसी अनेक वृत्तियों को अपनी कविताओं का कथ्य बनाया है। उद्देश्य 1. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी काव्य की अन्तर्निहित चेतना और उसके सरोकारों पर प्रकाश डालना। 2. समकालीन परिदृष्य में हाषिये के वर्गों को रेखांकित कर केन्द्र में लाने का प्रयास करना। 3. समकालीन समाज के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक क्षेत्रों में हो रहे संघर्ष तथा परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया को प्रकाश में लाना। 4. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी काव्य में चित्रित जिन्दगी के यथार्थ को इंगित करना।
KEYWORD
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी काव्यः, सामाजिक, साहित्यिक, समकालीन परिस्थितियां, विचारधाराओं, दबाओं, प्रवृतियां, मानवीय चेहरे, भूमण्डलीकरण, मूल्य, विसंगतियों, राजनीतिक सत्ता, भ्रष्टाचार, दायित्वहीनता, अन्तर्निहित चेतना, सरोकारों, समकालीन परिदृष्य, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक क्षेत्रों, संघर्ष, परिवर्तन, विकास, यथार्थ