अस्तित्व से जूझती राजस्थान की लोकसंगीत ख्याल विद्या ख्यालो का दांगलिक रूप कन्हैया
by Dr. Sunita Shrimali*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 3, Mar 2019, Pages 256 - 258 (3)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
राजस्थान की संस्कृति की विविेंद्यता का अपना अलग ही महत्व है। जहाँ एक ओर सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति में एकता दिखाई देती है वहां विभिन्न प्रदेश अपनी-अपनी संस्कृति व परम्पराओं में अपनी अलग-अलग पहचान रखते हैं।राजस्थान के पश्चिमांचल प्रदेश के लोक संगीत में गोरबंद, पिणिहारी मूमल मांड, कूरंजा, निम्बुड़ा आदि प्रसिद्ध है। उसी प्रकार राजस्थान के पूर्वाचल प्रदेश में तथा अन्य भागों में लोकसंगीत की कई विधाएं प्रचार में हैं इनमें तुर्रा कलंगी बैठक के ख्याल, संगीत दंगल, कन्हैया, चारबैत, नौटंकी आदि लोकसंगीत विद्या प्रचार में हैं। बदलते परिवेश में कन्हैया, लोककला का अस्तित्व खतरे में है। अपनी कला से कला प्रेमियों को अभिभूत कर देने वाले लोक कलाकार आजकल विपन्नावस्था से गुजर रहे है। ग्राम्यांचलों में निवास करने वाले ये लोक कलाकार अपनी अमूल्य कला धरोहरों को भूलकर दो वक्त की रोटी के लिये अन्य कार्यों में अपना परिश्रम करके गुजर बसर कर रहे है
KEYWORD
राजस्थान की लोकसंगीत, ख्याल विद्या, ख्यालो, दांगलिक रूप, कन्हैया