तक्षशिला कालीन पाणिनीय शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा: व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विकास का साधन
by Shashi Bala Kulshreshtha*, Dr. Abhishek Kulshreshtha,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 16, Issue No. 5, Apr 2019, Pages 623 - 626 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
आचार्य पाणिनी ने शिक्षा पद के सम्बन्ध में कहा है- ‘‘शिक्ष्यते विद्योवादीयतेऽनया इति शिक्षा’’ अर्थात् विश्व की किसी भी विद्या का ज्ञान प्राप्त कराने का साधन ही शिक्षा है। विद्या प्राप्त करा देने में ही अविद्या का निराकरण कर देना अन्तर्निहित है। प्रस्तुत शोध पत्र में तक्षशिक्षा विश्वविद्यालाय कालीन पाणिनीय शिक्षा के उद्देश्य का अध्ययन किया गया है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र का चतुर्मुखी विकास होता है। जिस प्रकार खान की गहराई से निकला खनिज ‘हीरे का पत्थर’ भालीभाँति तराशने पर ही प्रकाश की तरह चमकीले हीरे के रूप में प्रस्फुटित होता है, उसी प्रकार जड़ एवं अज्ञानी मनुष्य शिक्षा से ही परिष्कृत, सुसंस्कृत तथा परिमार्जित होकर सम्मानीय स्वरूप को प्राप्त होता है। निष्कर्षतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिक्षा से ही मानव में मानवता का आविर्भाव होता है।
KEYWORD
आचार्य पाणिनी, शिक्षा पद, विद्या, तक्षशिला कालीन, उद्देश्य