21वीं सदी के उपन्यासों में नारी

by Surender Kumar*, Dr. Espak Ali,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 16, Issue No. 6, May 2019, Pages 858 - 861 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

हिन्दी उपन्यास सामाजिक सरोकार को अपने में लिए हुए हैं समाज की भावनाओं को समझकर ही कोई उपन्यासकार उपन्यास की रचना करता है। इक्कीसवीं सदी का उपन्यासकार उपन्यास के केन्द्रिय पात्रों को आम आदमी से जोड़कर मंच पर प्रस्तुत करता है। इससे उपन्यास के मूलभाव को जन-मानस तक स्पष्ट किया जा सकता है। उपन्यासों का प्रदर्शन भी वर्तमान समय में बढ़ता जा रहा है। भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, बेरोजगारी, अपहरण, लूटपाट, जात-पात और समसामयिक मुद्दे के बारे में उपन्यासों के माध्यम से जन-समाज को जागरूक करते हैं। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के समाप्त होने और एक साल और गुजर जाने पर जहाँ नई पीढ़ी के उपन्यास सृजकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, वहाँ पुरानी पीढ़ी के उपन्यास सृजकों ने अपनी उपस्थिति बरकरार रखी है। भारतीय समाज में नारी और पुरुष दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों को गाड़ी के दो पहियों के समान माना गया है। यानि की एक-दूजे के बिना दोनों अधूरे हैं।

KEYWORD

हिन्दी उपन्यास, सामाजिक सरोकार, उपन्यासकार, उपन्यास, माध्यम