दुष्यंत कुमार के काव्य में प्रतीक विधान

दुष्यंत कुमार के काव्य में प्रतीक विधान: एक अध्ययन

by Maya .*, Dr. Meenu .,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 16, Issue No. 9, Jun 2019, Pages 587 - 590 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

प्रतीक मूलतः लाक्षणिक शब्द शक्ति है। प्रतीक में एक मूर्तिकला तथा चित्रात्मकता रहती है, जिसके कारण इसमें प्रयोजनवती लक्षणा का भाव अधिक विद्यमान होता है। प्रतीक ऐसे शब्द चिह्नों या वस्तु को कहा जाता है, जिसके माध्यम से किसी अन्य वस्तु का बोध होता है। परन्तु अन्य वस्तु के साथ-साथ इसमें इस वस्तु की निजता तथा वस्तु का स्वरूप भी यथावत् विद्यमान रहता है। साहित्य के क्षेत्र में प्रतीक एक प्राचीन अवधारणा है। साहित्य में जिन शब्दों के समुच्चय से साहित्य का सर्जन किया जाता है, वे शब्द किसी एक भाव को प्रकट न करके किसी अन्य भाव, संवेगों या मनः स्थितियों का प्रतीक बन जाते है। वस्तुतः एक शब्द के भीतर ही एक अन्य अर्थ भी सूप्त अवस्था में विद्यमान रहता है, या दूसरा अर्थ भी विद्यमान रहता है। यह दूसरा अर्थ ही प्रतीक का कार्य करता हैं।

KEYWORD

प्रतीक, लाक्षणिक शब्द शक्ति, मूर्तिकला, चित्रात्मकता, शब्द चिह्न, प्रयोजनवती लक्षणा, साहित्य, संवेगों, मनः स्थितियों