ग्रामीण विकास में ग्रंथालय की भूमिका झारखण्ड के सन्दर्भ में

ग्रामीण विकास में ग्रंथालय: जगत के भंडारगृह

by Priyanka Kumari*, Dr. Y. Meena Bai,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 17, Issue No. 1, Apr 2020, Pages 298 - 306 (9)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

पुस्तकालयों के इतिहास का आधुनिक युग 17 सदी से माना जाता है। इस नव निर्माण काल का प्रभाव युगान्तर कारी सिध्द हुए। इस समय अनेक मध्य कालीन पुस्तकालयों का अस्तित्व समाप्त हो गया तथा अन्य प्रकार के पुस्तकालयों का जन्म हुआ मठों तथा धार्मिक संस्थाओं के समाप्त होने के साथ-साथ वहाँ किए गए पुस्तकों के संग्रह भी नष्ट होते चले गए। वहीं मानवतावाद, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं शैक्षणिक जागरण के प्रभाव से आधुनिक विज्ञान और अन्य विषयों का उद्भव और विकास होने लगा, तब विद्वानों और शिक्षित वर्ग में पुस्तकालयों के प्रति झुकाव बढ़ा और उसके सार्वजनिक उपयोग हेतु खोले जाने पर जोर दिया जाने लगा। इन सब घटनाओं के फलस्वरुप सर्व प्रथम आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से संबध्द बोडिल एन पुस्तकालय, जो कि अर्ध व्यक्तिगत ग्रंथालय था को सन् 1602 में समाप्त कर लोगों के लिए खोल दिया गया।

KEYWORD

ग्रामीण विकास, ग्रंथालय, पुस्तकालय, अध्ययन, विज्ञान