बुंदेलखंड में 1857 में सिपाही विद्रोह आंदोलन का अध्ययन

An Exploration of the 1857 Sepoy Rebellion Movement in Bundelkhand

by Gunjan Saxena*, Dr. Ram Naresh Dehulia,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 17, Issue No. 1, Apr 2020, Pages 645 - 651 (7)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश में स्वतंत्रता आंदोलन क्रमशः चलता रहा। महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया गया। इस असहयोग आंदोलन में भी बुंदेलखंड की महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। झांसी की पिस्ता देवी तथा चंद्रमुखी देवी की प्रमुख भूमिका रही। इन दोनों महिलाओं ने नगर के मोतीलाल पुस्तकालय के सामने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। झांसी की ही लक्ष्मण कुमारी शर्मा, रानी राजेंद्र कुमारी, काशीबाई आदि महिलाएं भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देकर अमर हो गई। बुंदेलखंड में 1857 के आंदोलन में परिवर्तित हुई राजनीति की कई धाराओं ने दो अलग-अलग स्तरों का गठन किया। प्रत्येक स्तर के भीतर भिन्नताओं और भिन्नताओं की अनुमति देते हुए, भेद के एक प्रमुख चिह्न ने दोनों को अलग कर दिया। पहले में एक संगठित, विनियमित राजनीति शामिल थी, जिसके संचालन के नेटवर्क में बुंदेलखंड की सीमाओं की तुलना में बहुत व्यापक भौगोलिक सीमा थी। एक तरह से इसने आंदोलन की ऊपरी परत बनाई जिसके नीचे बुंदेलखंड में लोगों के विभिन्न वर्गों के विविध विरोध थे। मैं पहले को संगठित और विनियमित कहता हूं, यह सुझाव देने के लिए नहीं कि दूसरा असंगठित और स्वतःस्फूर्त था। दोनों के बीच अंतर यह था कि पूर्व की राजनीतिक दृष्टि एक विशेष क्षेत्रीय सीमा से परे और एक सीमित क्षेत्रीय शक्ति संरचना से परे थी। इसकी विशेषताएं किसी दिए गए क्षेत्र को नहीं दर्शाती हैं, न ही यह किसी एक स्थानीय सत्ता प्रमुख का समर्थन करती है। दूसरी ओर, इसने विभिन्न क्षेत्रों को अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध के व्यापक नेटवर्क में समाहित करने की कोशिश की। इसी आधार पर यह अधिक संगठित आंदोलन होने का दावा कर सकता है।

KEYWORD

बुंदेलखंड, 1857, सिपाही विद्रोह, आंदोलन, महात्मा गांधी, असहयोग, महिलाओं, राजनीति, राजेंद्र कुमारी, संगठित