अभी। दिल्ली दूर है................. (हनोज़। दिल्ली दूरअस्त.......)

by Dr. Ramkumar Singh*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 17, Issue No. 2, Oct 2020, Pages 55 - 57 (3)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

लार्ड बेकन की एक प्रसिद्ध उक्ति है कि किसी राष्ट्र की प्रतिभा, विदग्धता तथा उसकी अन्तरात्मा का दर्षन उसकी कहावतों से ही होता है। किसी देश विशेष की कहावतों (लोकोक्तियों) से उस देश के इतिहास रीति-रिवाज धारणाए, विष्वास, जीवन-पद्धति आदि का ज्ञान हमें होता है। कहावतों के अध्ययन से हमें यह भी जानकारी मिलती है कि उस देश का कितना अधिक सम्बन्ध दंतकथा, इतिहास और काव्य से है। देवी-देवताओं की पौराणिक गाथाओं के असंख्य प्रसंग तथा इतिहास की अनेक घटनाओं की जानकारी हमें इन लोकोक्तियों से मिलती है। ऐसी बहुत सी लोकोक्तियाँ हैं, जिनका सम्बन्ध इतिहास की प्रसिद्ध घटनाओं से है जो बाद में साहित्य, इतिहास और लोगों की जुबान पर चढ़कर लोक में प्रचलित हो गई। ऐसी ही एक कहावत है “अभी दिल्ली दूर है.......” इसका अर्थ है कि अभी तो मंजिल दूर है। इस कहावत का रोचक इतिहास है जो दिल्ली के बादशाह गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु से जुड़ी हुई है। घटनाक्रम इस प्रकार है – सन् 1316 ई. में सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के छोटे पुत्र कुत्बुद्दीन मुबारकशाह खिलजी ने विद्रोह करके दिल्ली का तख्त हथिया लिया और अपने भाइयों को बंदी बनाकर, अंधा करके, ग्वालियर के किले में मार डाला। सन् 1320 ई. में बादशाह कुत्बुद्दीन मुबारकशाह के एक खास हिन्दूमंत्री खुसरों खाँ गुजराती ने उसको मार डाला और स्वयं दिल्ली का बादशाह बन गया। कुछ महिनों बाद पंजाब के गर्वनर 70 वर्षीय गाजी खाँ उर्फ गयासुद्दीन तुगलक (सन् 1321 ई.) ने खुसरो खाँ को मारकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। 40 अमीरों की काउन्सिल ने इस तुगलक अमीर को सुलतान बना दिया। इसी से तुगलक वंश की शुरूआत हुई।

KEYWORD

लार्ड बेकन, उक्ति, राष्ट्र, प्रतिभा, विदग्धता, अन्तरात्मा, लोकोक्तियाँ, इतिहास, काव्य