ऋतुसंहारम् एवं किष्किन्धाकाण्डम् (वर्षा एवं शरद ऋतु के संबंध में)

by Dr. Gopesh Kumar Tiwari*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 17, Issue No. 2, Oct 2020, Pages 360 - 363 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

“रामायणं नाम परं तु काव्यम्” (1) “वरं वरेण्यं तु काव्यम्” (2)“संकल्पितार्थप्रदमादिकाव्यम्” (3) रामाणमादिकाव्य स्वर्गमोक्षप्रदायकम्”(4) इस प्रकार रामायण की गाथा अमित है। रामायण के पठन-मनन मात्र से धर्म- अर्थ काम-मोक्ष चारों की सिद्धी हो जाती है। रामायण को सामाजिक मर्यादा का अनुपम नीति मानकर चलने वाले या मत प्रस्तुत करने वालों की संख्या तो वहीं आध्यात्मिक आधार मानकर चलने वाले सज्जनों की संख्या पर्याप्त है, तो वहीं कुछ विद्वान साहित्य का अनुपम आदर्श मानकर उसकी सतत् साधान में तल्लीन रहते है। यहीं परम्परा अनेक कालों से अनवरत चलती रहीं है।

KEYWORD

रामायणं, गाथा, दीति, उसकी, अनुपम