आत्मकथा: हिन्दी साहित्य में आत्मकथा का उद्भव और विकास
भारतीय दलित समाज में आत्मकथा का योगदान और समाजिक संघर्ष
by Pankaj Kumar Singh*, Dr. Rajesh Kumar Niranjan,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 17, Issue No. 2, Oct 2020, Pages 1044 - 1049 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
साहित्य समाज का दर्पण है’, लेकिन दलित साहित्य के सन्दर्भ में इस सिद्धान्त की परिणति व्यावहारिक रूप में नहीं हुई। दलित समाज जितना उपेक्षित रहा, उतना साहित्य भी। दलित समाज और साहित्य ने अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए निरन्तर संघर्ष किया है, तथा इसी अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा के लिए दलित साहित्य प्रतिबद्ध है। इतिहास इस बात का गवाह है, कि प्राचीनकाल से अब तक शोषण और उत्पीड़न सिर्फ शूद्र एवं पिछड़ी जातियों का ही हुआ है। भारतीय समाज सदियों से वर्ण-व्यवस्था की बेड़ियों में जकड़ा रहा तथा इस वर्ण-व्यवस्था की कलुषित मानसिकता ने मनुष्य-मनुष्य के बीच अलगाव पैदा कर भारतीय समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन वर्णों में बाँट दिया। इसी व्यवस्था के चलते सबसे निकृष्ट वर्ग को शिक्षा और ज्ञान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित कर दिया गया तथा उनकी धार्मिक अनुष्ठान एवं कार्यों में उपस्थिति निषिद्ध कर दी गई।
KEYWORD
आत्मकथा, हिन्दी साहित्य, दलित साहित्य, समाज, संघर्ष, शोषण, वर्ण-व्यवस्था, ब्राह्मण, शिक्षा, ज्ञान