वर्तमान भारतीय शिक्षा की समस्यायें एवं उनके समाधान में परम्परागत भारतीय शिक्षण पद्धतियों की प्रासंगिकता

Relevance of Traditional Indian Teaching Methods in Solving Problems of Contemporary Indian Education System

by Dr. S. K. Mahto*, Dr. Rani Mahto,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 4, Jul 2021, Pages 325 - 331 (7)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

भारतीय संस्कृति का प्रवाह पूर्व वैदिक काल से लेकर आज तक निरन्तर गतिमान है। समय-समय पर विजातीय संस्कृतियों की चुनौती अवश्य खड़ी होती रही है। जैसे मौर्यो के पतन के बाद 400 वर्षो का विदेशी शासन, हिन्दू राजाओं के पतन के बाद 600 वर्षो का इस्लामी शासन तथा इस्लामी शासन के पतन के बाद दौ सौ वर्षो का अंग्रेजी शासन। लेकिन इतने दीर्घकालीन आक्रमणों के बावजूद भारतीय सांस्कृतिक अस्मिता पर कभी पहचान का संकट नहीं आया। यह स्वयं प्रमाणित करता है कि भारतीय परम्परा के मूल आधार शाश्वत तत्वों से ओत-प्रोत है। इन्हीं शाश्वत तत्वों की अभिव्यक्ति परम्परागत भारतीय शिक्षण पद्धतियों में परिलक्षित होती है। यद्यपि देशकाल की परिस्थितियों के अनुसार कुछ प्रथायें आज के सन्दर्भ में निरर्थक एवं अप्रासंगिक है। लेकिन फिर भी, कुछ को नये सन्दर्भो के अनुरूप पुनर्व्याख्यायित करने की आवश्यकता है।इस प्रकार से भारतीय परम्परा में प्रचलित शिक्षा प्रणालियों की अवधारणा अत्यन्त प्रासंगिक है। तत्कालीन शिक्षा को उपभोक्ता वस्तु कभी नहीं बनाया गया, उस पर धन का वर्चस्व कभी स्वीकार नहीं किया गया। हिन्दू शिक्षा पद्धति के गुरूकुल परम्परा में निःशुल्क शिक्षा के साथ ही छात्र को अपने भोजन, निवास, वस्त्रादि पर भी कुछ व्यय नहीं करना पड़ता था। भोजन के लिये छात्र भिक्षाटन करता था। विद्यार्थियों द्वारा भिक्षाटन उस समय की सम्मिानित प्रथा थी तथा गृहस्थ अपना परम सौभाग्य समझता था कि उसके यहाँ कोई विद्यार्थी भिक्षाटन के लिये आये। अभिभावकों को अपने बालकों की शिक्षा के लिये विशेष चिन्तित नहीं रहना पड़ता था। शिक्षा प्रदान करना एक तरह से समाज की जिम्मेदारी थी। इन आदर्शों को अपनाकर यदि हम वंचित वर्गो की शिक्षा में बाधक तत्त्वों, रोटी, कपड़ा और निवास आदि को उपलब्ध करा दें तो निश्चित रूप से उनकी शिक्षा का विकास होगा और वे शिक्षा प्राप्ति के लिये अग्रसर होंगे। आज आवश्यकता इस बात की है कि वंचितों को आरक्षण के बजाय सामाजिक संरक्षण प्रदान किया जाय। इस दृष्टिकोण से प्राचीन भारतीय परम्पराओं में प्रचलित शिक्षण पद्धति की प्रासंगिकता आज भी है।

KEYWORD

वर्तमान भारतीय शिक्षा, संस्कृति, प्रणालियाँ, अभिभावकों, वंचित वर्ग, शिक्षा प्राप्ति, आरक्षण, सामाजिक संरक्षण, परम्परागत भारतीय शिक्षण पद्धतियाँ