हिंदी साहित्य में आधुनिक दलित विमर्श के साहित्य की अवधारणा का अध्ययन

Exploring the Notion of Dalit Literature in Modern Hindi Literature

by Meenakshi .*, Dr. Navita Rani,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 4, Jul 2021, Pages 1014 - 1020 (7)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

प्रेमचंद की विशेषता यह है कि वह वर्ग के आर्थिक शोषण के पक्ष को कभी अपनी नजर से ओझल नहीं होने देते। आखिर इस शोषण को बरकरार करने के लिए ही जो जात-पात, धर्म-अधर्म और ऊॅच-नीच का तामझाम तैयार किया है।प्रेमचंद नेएक अछूत जाति के पात्र को नायक बनाकर क्रांतिकारी कार्य किया, सूरदास में गांधी की छविउतारकर और भी बड़ा काम किया और धर्म-न्याय-सत्य की लड़ाई लड़ने के कारण उसे भारत केवीर-त्यागी महापुरुषों की परंपरा से जोड़ दिया। वह अंधा है, भिखारी है, पर उसकी अंतर्दृष्टि प्रबलहै। उपन्यास के सभी सवर्ण पात्रा-राजा-महाराजा, शासक, उद्योगपति आदि सभी उसके सम्मुख श्रद्धासे झुकते हैं तथा उसकी श्रेष्ठता को स्वीकार करते हैं। उपन्यास के अंत में उसका बलिदान गांधी के बलिदान से कम नहीं है। अतः ‘रंगभूमि’ तो दलित जाति के नायक को गांधी का प्रतीकबनाकर उसे समाज के शिखर पर स्थापित करती है, न कि किसी जाति का अपमान करती है।सूरदास प्रेमचंद की महान एवं कालजयी सृष्टि है और दलित जाति के लिए तो वह गौरव का केंद्रहै। भारतीय समाज में व्याप्त वर्ण-व्यवस्था, जाति, अस्पृश्यता शोषण, दमन, उत्पीडन के खिलाफ संघर्ष की लंबी प्रक्रिया रही है। प्राचीन समय से लेकर आज तक अन्याय और वर्चस्व के विरूद्ध सामाजिक परिवर्तन के लिए धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलन चलते रहते हैं। समय और काल परिवेश के अपने दबावों के फलस्वरूप यह आंदोलन तीव्रता और ठहराव से गुजरते हुए नया आकार पाता रहा है। सामाजिक परिवर्तनों की प्रक्रिया को अग्रसर करते हुए तथा तमाम आयामों से गुजरते हुए दलित वर्ण-व्यवस्था के बस एक सशक्त आंदोलन और ग़़़भीर चिंतन है।

KEYWORD

हिंदी साहित्य, आधुनिक दलित विमर्श, प्रेमचंद, धर्म-अधर्म, ऊंच-नीच, सूरदास, वर्ण-व्यवस्था, जाति, अस्पृश्यता, सामाजिक परिवर्तन