भारत में हिन्दू वैवाहिक अनुतोष की संकल्पना

Emergence and Evolution of Hindu Marital Dissatisfaction in India

by Sanjay Kumar Sharma*, Dr. Kuldeep Singh,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 4, Jul 2021, Pages 1235 - 1243 (9)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

विवाह की अवधारणा सभी प्रकार के मानव समाजों में पाई जाती है। विवाह के रीति-रिवाज सभी समाजों में एक दूसरे से भिन्न हो सकते हैं। यह बहस आज भी जारी है कि विवाह कब अस्तित्व में आया और कब यह समाज का अभिन्न अंग बन गया। विवाह की संस्था मानव समाज में जैविक आवश्यकताओं से उत्पन्न हुई। इसका मूल कारण हमारी जाति को सुरक्षित रखने की चिंता है। अगर सेक्स के बाद पुरुष अलग हो जाता है, गर्भावस्था के दौरान पत्नी की देखभाल नहीं की जाती है, अगर बच्चे के जन्म के बाद वह सक्षम और बड़ी नहीं हो जाती है, तो मानव जाति अनिवार्य रूप से समाप्त हो जाएगी। अतः विवाह संस्था की उत्पत्ति आत्मसंरक्षण की दृष्टि से हुई है। यह केवल मानव समाज में ही नहीं, बल्कि मनुष्यों के पूर्वज माने जाने वाले गोरिल्ला, चिंपैंजी आदि में भी पाया जाता है। इसलिए, सेक्स के साथ विवाह की उत्पत्ति की राय अप्रमाणिक और अमान्य है। आधुनिक समाज की परिस्थितियों ने विवाह को अस्थिर बना दिया है और विवाह बंधन को तोड़ा जा सकता है और आज व्यक्ति खुशी पाने के लिए एक से अधिक विवाह करने का खतरा मोल लेने को तैयार है। माता-पिता और मित्रगण की भी इसमें सहानुभूति होती है, अतः नये युग में अनेक समाज अटूट एकल विवाह को बनाए रखने की अपेक्षा क्रमिक एकल विवाह (Serial Monogamy) की प्रवृत्ति अपना रहे हैं। इसमें एक विवाह के टूटने के बाद दूसरा विवाह संभव होता है।

KEYWORD

विवाह, हिन्दू, अनुतोष, समाज, संस्था, आवश्यकताएं, मानव, संप्रदाय, उत्पत्ति, पुरुष