खाण्डेराय रासो -पौरुश की ऋचाओं का उदग्र काव्य-ग्रंथ
A Study of Early Hindi Rāso Poetry and its Significance
by जय प्रकाश शर्मा*, डॉ. विष्णु कुमार अग्रवाल,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 18, Issue No. 5, Aug 2021, Pages 368 - 374 (7)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
रासो के नाम से जानी जाने वाली हिंदी के प्रारंभिक रूप में लिखी गई कविता भाषा की प्रारंभिक अवस्था में है। उनमें से अधिकांश में बहादुर नायक शामिल हैं। लोकप्रिय हिंदी रासो कविता पृथ्वीराज रासो है। रासो ज्यादातर डिंगल भाषा में रचित महाकाव्य कविता से जुड़ा है, जबकि रास बरन परंपरा से जुड़ा है। इस लेख में हम हिंदी साहित्य के आदिकाल के अंतर्गत रासो काव्य के बारे में पढेंगे , इस टॉपिक में हम रासो का अर्थ ,प्रमुख रासो काव्य ग्रन्थ और रासो काव्य की विशेषताएँ पढेंगे।
KEYWORD
खाण्डेराय रासो, पौरुश, काव्य-ग्रंथ, रासो कविता, हिंदी साहित्य, आदिकाल, रासो काव्य, अर्थ, प्रमुख रासो काव्य, विशेषताएँ