पं. मदन मोहन मालवीय के शैक्षिक व्यवस्था एवं आचार संहिता का विश्लेष्णात्मक अध्ययन
A Comprehensive Study of the Educational System and Code of Conduct of Pandit Madan Mohan Malaviya
by Vibha Mishra*, Dr. S. K. Mahto,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 18, Issue No. 6, Oct 2021, Pages 255 - 260 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
मालवीयजी की मान्यता थी कि विद्यार्थियों का चरित्रगठन शिक्षा का प्राथमिक लक्ष्य है। शिक्षा के माध्यम से वह राष्ट्रीय चेतना का एकीकरण और नवनिर्माण करना चाहते थे। वह स्त्री-शिक्षा के माध्यम से आने वाली भावी पीढ़ी की संततियों का इस प्रकार निर्माण चाहते थे, जो प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान से युक्त हो। वह शिक्षा के माध्यम से भारत में ऐसे व्यक्ति के निर्माण के पक्षपाती थे, जो चरित्रवान होने के साथ ही साथ आर्थिक, प्राविधिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण हो। वह इस योग्य हो कि अपनी जीविका प्राप्त करने की सामर्थ्य रखता हो। उसे जीविका प्राप्त करने के लिए दर-दर की ठोकरें न खानी पड़ें। मालवीयजी के अनुसार यदि शिक्षा द्वारा इस प्रकार के व्यक्ति का निर्माण नहीं होता तो वह शिक्षा निरर्थक है। महामना के कार्यों की मूल परिकल्पना इसी प्रवृत्ति के कारण उपजी। उन्होंने विशेष रूप से भारत वर्ष की सांस्कृतिक धरोहर की तरफ देखा, उसके गौरवमय इतिहास से प्रेरणा ग्रहण कीऔर भारतीयों के प्रति अनुराग की भावना जगाने का सदैव कार्य किया। इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर भारतीय भाषाओं को विकसित करने तथा संस्कृत के अधिकाधिक प्रयोग पर विशेष जोर दिया। महामना शिक्षा को सभी सुविधाओं का मूलाधार समझते थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनका कार्य अवश्य ही बहुत महत्वपूर्ण था। शिक्षा के सम्बन्ध में उनके विचार परिपक्व, उदात्त और परिपूर्ण है। उनके उपदेशों का अनुसरण करके शिक्षक और विद्यार्थी अपने जीवन को अवश्य ही काफी ऊँचा उठा सकते है, तथा पारस्परिक वैमनस्य का निराकरण कर एक स्वस्थ सौहार्द्रपूर्ण वातावरण प्रतिष्ठित कर सकते हैं।
KEYWORD
पं. मदन मोहन मालवीय, शैक्षिक व्यवस्था, आचार संहिता, चरित्रगठन, राष्ट्रीय चेतना, स्त्री-शिक्षा, व्यक्ति निर्माण, जीविका प्राप्ति, पारस्परिक वैमनस्य, संस्कृत के प्रयोग