मन्नू भंडारी के कथा-साहित्य में यथार्थबोध
Exploring the Realities of Life in the Stories of Mannu Bhandari
by Deepak Kumar*, Dr. Anand Kumar Ray,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 19, Issue No. 1, Jan 2022, Pages 51 - 56 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
मन्नू् जी ने अपने कथा-साहित्य में जिन समस्याओं को उठाया है, उनका कोई स्पष्ट हल उन्होंने प्रस्तुत नहीं किया, परन्तु उन समस्याओं पर जिस एकाग्रता से दृष्टि रखकर उन्हें प्रस्तुत किया है, वह वर्तमान जीवन के विभीषिका का निदर्शन करने में पूर्णतः सफल है। इतना निर्विवाद रूप में सत्य है कि मन्नू जी ने जो भी लिखा है, वह उनका देखा-परखा और भोगा हुआ यथार्थ है। इन सबसे ही जीवन का अनुभव प्राप्त करके उन्होंने जिन प्रश्नों का, विसंगतियों और भ्रष्टताओं का चित्रण अपने लेखन द्वारा करने का प्रयास किया है, वे ही उनके साहित्य में प्रस्तुत विभिन्न समस्याएँ है। यथार्थबोध का परिचय मन्नू जी के कथा साहित्य में चित्रित जीवन स्थितियों से भी होता है, जो मुख्यतः स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज और जीवन से संबंधित है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारतीय समाज में और जीवन-मूल्यों में जितने भी परिवर्तन हुए हैं, या समाज और राष्ट्र जितने भी परिस्थितियों से गुजरा है, उन सबका आभास मन्नू जी के साहित्य में यत्र-तत्र द्रष्टव्य है। स्वातंत्र्योत्तर भारतीय जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है, उसके जीवन-दर्शन का बदलाव। हमारे समाज में पहले समधष्टिगत मूल्यों को अधिक महत्त्व प्राप्त था। परन्तु पाश्चात्य जगत के व्यक्तिवादी जीवन-दर्शन का प्रभाव इस पर भी पड़ने लगा। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व ही जीवन-दर्शन में इस परिवर्तन के आसार सीखने लगे थे, परन्तु स्वतन्त्रता के बाद तो यह दर्शन शीघ्रता से जन मानस में फैलने लगा।
KEYWORD
मन्नू भंडारी, कथा-साहित्य, यथार्थबोध, समस्याएँ, विभीषिका, जीवन स्थितियाँ, स्वतंत्रता-प्राप्ति, महत्त्वपूर्ण परिवर्तन, व्यक्तिवादी जीवन-दर्शन, समाज परिस्थितियाँ, आभास, जन मानस