हिंदी भक्तिकाल के वैचारिक परिदृशय का अध्ययन
A Study of Intellectual Perspectives in Hindi Bhaktikaal
by राजेन्द्र कुमार पिवहरे*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 19, Issue No. 1, Jan 2022, Pages 169 - 173 (5)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
भक्तिकालीन साहित्य भारतीय समाज के साथ सम्पूर्ण विश्व समाज को यह प्रेरणा देता है कि हम मनुष्य हैं और हमें इस दुनिया को मानवीय दुनिया बनाने का अनवरत् प्रयोग करते रहना है, जिसका प्रमुख सूत्र है प्रेम। यह प्रेम ही वह आध्यात्मिक तत्व है, जो मनुष्य को देह में रहते हुए उससे विस्तृत और महामानव बना देता है। कबीर का सामाजिक समानता का भाव, सूफी साहित्य का चरम आध्यात्मिक मानवीय प्रेम, राम और कृष्ण के लोकरक्षक रूप से जिस वैचारिक प्रतिबद्धता का प्रस्फुटन होता है वह सम्पूर्ण विश्व को एक प्राकृतिक मानवीय विश्व में बदलने में सक्षम है। अतः स्पष्ट है कि हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल को क्यों स्वर्ण युग कहा गया है। स्वर्ण युग का तात्पर्य है कि इस काल की रचनाओं में जो वैचारिक उदात्तता है, मानवीयता है, समानता और सामाजिक समरसता की भावना है, सभी प्रकार के भेदभाव से मुक्ति का मार्ग है। इसोलिए इस समूचे कालखण्ड को स्वर्ण युग की संज्ञा दी गई है। मानव से मानव बने रहने का जैसा आग्रह भक्तिकालीन साहित्य की विविध धाराए अपने-अपने स्तर पर करती हैं, विश्व की किसी भाषा में एसा समूचा काल देखने को नहीं मिलता।
KEYWORD
भक्तिकाल, साहित्य, भारतीय समाज, विश्व समाज, प्रेम, आध्यात्मिक तत्व, कबीर, सूफी साहित्य, राम, कृष्ण, वैचारिक प्रतिबद्धता, समाजिक समरसता, हिन्दी साहित्य, स्वर्ण युग, भेदभाव