भारत में मानवाधिकार संरक्षण: यथार्थपरक अनुचिंतन
भारत में मानवाधिकार संरक्षण: एक वैश्विक एवं राष्ट्रीय पहल
by डॉ. अविनाश शर्मा*, डॉ. गरिमा सिहाग,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 20, Issue No. 2, Apr 2023, Pages 326 - 329 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
सम्प्रति वैष्विक परिदृष्य में मानवाधिकार आंदोलन ने अपनी सशक्त उपस्थिति के साथ-साथ एक यथार्थपरक अनुचिंतन भी प्रस्तुत किया है। 10 दिसम्बर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र की विष्वव्यापी मानवाधिकारों की घोषणा को भारत सहित सदस्य देशों ने स्वीकारा, किन्तु 20वीं सदी के अंतिम दशक में मानवाधिकारों के प्रति वास्तविक हलचल परिलक्षित हुई है। यदि हम भारतीय संदर्भ में देखें तो यहां मानवाधिकारों का हनन होना एक सामान्य परिघटना है। भारत में सन् 1993 में निर्मित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा विभिन्न राज्यों में गठित राज्य मानवाधिकार आयोगों के माध्यम से देश में आम नागरिक के उन अधिकारों की सुरक्षा एवं संवर्द्धन करना है जो किसी व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन जीने हेतु अपरिहार्य है। सारतः मानवाधिकारों से आशय उन नैसर्गिक एवं मौलिक मानवीय अधिकारों से है, जो किसी व्यक्ति के सम्मानजनक जीवन जीने के लिए नितांत आवष्यक है, अतः मानवाधिकार हनन को रोकने हेतु विविध एवं बहुआयामी संरक्षण की दिशा में अनुचिंतन किया जाना अपेक्षित है।
KEYWORD
मानवाधिकार संरक्षण, यथार्थपरक अनुचिंतन, भारत, मानवाधिकारों, वैष्विक परिदृष्य