नई शिक्षा नीति 2020 और उच्च शिक्षा का स्वरूप
 
सौरभ कुमार शर्मा1*, डॉ. ओम प्रकाश द्विवेदी2
1 मुख्य लेखक, हिंदी शोधार्थी, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा (मध्य प्रदेश)
ईमेल - saurabhprakash051092@gmail.com
2 सह लेखक, प्राचार्य, शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरमौर, रीवा (मध्य प्रदेश)
सारंाश - जिसमें हमारी प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति, शिक्षण, अनुसंधान, नवाचार तथा बहुविषयक संस्था के केन्द्र रूप में सम्पूर्ण विश्व में अग्रणी थी तथा शिक्षा का लक्ष्य सांसारिक जीवन अथवा स्कूल के पश्चात् के जीवन की तैयारी के रूप में ज्ञान अर्जन नहीं अपितु पूर्ण आत्म-ज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और बल्लभी जैसे प्राचीन भारत के विश्वस्तरीय संस्थानों ने अध्ययन के विविध क्षेत्र में शिक्षण और शोध के ऊँचे मापदण्ड स्थापित किये गये थे। वर्तमान में नई शिक्षा नीति 2020 और उच्च शिक्षा के स्वरूप को लागू कर दिया गया है सम्पूर्ण देश में इसका कैसा स्वरूप होगा इस शोध पत्र में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
कीवर्ड - नई शिक्षा, नीति,त्र 2020, उच्च, शिक्षा, स्वरूप, शिक्षण, विश्वस्तरीय, संस्थान विश्वविद्यालय आदि।
प्रस्तावना
स्वतंत्रता पूर्व भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली 1823 के माउंट स्टुअर्ट के रिपोर्ट से प्रारंभ होकर 1835 की मैकाले शिक्षा पद्धति तत्पश्चात् 1854 के चाल्र्स वुडस डिस्पैच (भारत में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का मेग्नाकार्टा) तक का सफर तय किया है। इन सभी में भारत केन्द्रित शिक्षण व्यवस्था की परिकल्पना दूर-दूर तक नहीं थी। अंग्रेज शासकों का मूल उद्देश्य शिक्षा में अपनी सरकार की भावना एवं एजेण्डा को आगे बढ़ाना था। भारत में शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली हेतु 1944 में सर्जेण्ट रिपोर्ट ने विश्वविद्यालय अनुदान समिति के गठन की सिफारिश की थी। स्वतंत्रता पश्चात् 1948 में डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय अनुदान समिति के पुनर्गठन की सिफारिश की गयी। तत्पश्चात् उच्च शिक्षा में शिक्षण के मानक निर्धारण, परीक्षा, अनुसंधान तथा शिक्षा के अन्य आयामों के साथ-साथ केन्द्र और राज्य सरकारों को समय-समय पर शिक्षा के विस्तार के लिए आवश्यक सलाह देने हेतु 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का गठन किया गया। इसके स्थापना से लेकर वर्तमान समय तक शैक्षणिक संस्थानों में कई गुना वृद्धि होने के कारण इस संस्था पर कार्य का बोझ बहुत अधिक बढ़ गया था। परिणामस्वरूप यह अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति में आवश्यकतानुसार सफल नहीं हो पा रहा था। इसके अतिरिक्त नियमन और वित्तीय कार्यों में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। उक्त के सुधार हेतु भारत सरकार द्वारा समय-समय पर ज्ञान आयोग (2009), यशपाल समिति (2010), हरिसिंह गौतम समिति (2014) का गठन किया गया।
इन सभी समितियों द्वारा दिये गये सुझावों को ध्यान में रखकर भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग निरसन अधिनियम) विधेयक 2018 के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के स्थान पर भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया। यह आयोग शिक्षा प्रणाली के समग्र विकास, उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, अनुसंधान, अकादमिक मानकों तथा शिक्षण संसथानों को अधिक स्वायत्तता देने हेतु प्रयास करेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उल्लेख है कि भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग (एचईसीआई) के तहत चार स्वतंत्र व्यवस्थाओं को स्थापित किया जायेगा। एचईसीआई का पहला अंग राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद (एनएचईआरसी) होगा।
यह उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र के लिए शिक्षक शिक्षा हेतु (चिकित्सीय एवं विधिक शिक्षा के अतिरिक्त) एक साझा और सिंगल प्वाइंट रेगुलेटर की तरह काम करेगा तथा नियमों, प्रक्रियाओं में दोहराव और अव्यवस्था को समाप्त करेगा। वास्तव में वर्तमान परिदृश्य में अनेकों विनियामक संस्थान स्थित हंै। यह भारत के लचीले एवं स्वस्थ सुविधाजनक तरीके से संस्थाओं को विनियमित करने के लिए स्थापित किया जाएगा। सार्वजनिक की गई सारी सूचनाएं संबंधित हितग्राहियों तथा किसी भी शिकायत को एनएचईआरसी (राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिवार) द्वारा सुना जाकर, हल किया जाएगा। एक निश्चित समय अंतराल पर प्रत्येक उच्च शिक्षा संस्थान में रैंडम तरीके से चुने गए छात्रों के (दिव्यांग छात्रों सहित) फीडबैक ऑनलाइन माध्यम से लिए जाएंगे।
विनियमन को सक्षम बनाने की प्राथमिक प्रक्रिया प्रत्यायन होगी, इसलिए दूसरा अंग मेटा अक्क्रेडेटिंग निकाय होगा जिसको राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी) के नाम से जाना जाएगा । सभी संस्थानों का प्रत्यायन मुख्यतः कुछ बुनियादी नियम-कायदों, मजबूत गवर्नेंस और परिणामों के आधार पर होगा। इसके साथ ही इस प्रक्रिया से मान्यता देने वाले संस्थानों के स्वतंत्र समूह से संचालित होगा और एनएसी द्वारा इसकी पूरी संचालन की व्यवस्था की जाएगी। एक समुचित संख्या में संस्थानों को मान्यता देने का अधिकार कम समय में ही ग्रेडेड मान्यता देने के लिए एक मजबूत प्रणाली बनाने का काम उच्चतर शिक्षा संस्थानों द्वारा स्वायत्तता, प्रशासन और व्यवस्था को प्राप्त करने के लिए विभाग चरणबद्ध तरीके से करने का कार्य करेगा। परिणामस्वरूप सभी उच्च शिक्षा संस्थान अपनी-अपनी संस्थान विकास योजना (आईडीपी) के जरिए अगले 15 वर्षों में मान्यता के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने का लक्ष्य तय करेंगे और इस प्रकार यह संस्थान डिग्री प्रदान करने वाले संस्थानों के क्लस्टर की तरह बनने के लिए प्रतिबद्ध होंगे ।
एचईसीआई का तीसरा अंग-उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) का गठन किया जायेगा जो पारदर्शी मानदंडों के आधार पर उच्चतर शिक्षा के फंडिंग और वित्त पोषण का कार्य करेगा। जिसमें संस्थानों द्वारा विकसित संस्थान विकास योजना (आईडीपी) और इनके क्रियान्वयन के द्वारा प्राप्त की गई उन्नत शामिल है। छात्रवृत्ति के वितरण के लिए और नए फोकस क्षेत्रों को शुरू करने तथा विशेष क्षेत्रों में उच्चतर शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता कार्यक्रमों के प्रस्ताव के साथ उनके विस्तार के लिए विकासात्मक निधियों को गति देने के लिए एचईजीसी का गठन होगा।
एचईसीआई का चैथा अंग सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी) का गठन होगा। इसकी सहायता से यह उच्चतर शिक्षा कार्यक्रमों के लिए अपेक्षित परिणाम तय करेगा जिन्हें स्नातक परिणामों के नाम से जाना जाएगा । जीईसी द्वारा एक राष्ट्रीय शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) तैयार करने की योजना है। यह राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क से संगत होगा जिससे कि व्यावसायिक शिक्षा को उच्चतर शिक्षा में आसानी से समन्वित किया जा सके। यह शिक्षा योग्यता का निर्देशन होगा जो एक डिग्री, डिप्लोमा प्रमाण-पत्र के रूप में होगा। इसके अतिरिक्त जीइसी और एनएसक्यूएफ के माध्यम से क्रेडिट ट्रांसफर, समानता आदि मुद्दों के लिए समान रूप और सुविधाजनक मानदंड स्थापित करने का प्रयास होगा। विशिष्ट कौशल युक्त छात्रों की पहचान करना और उन छात्रों को प्रोत्साहित करने का भी काम भी यह करेगा।
इस तरह से एचईसीआई का चैथा अंग - सामान्य शिक्षा परिषद्, इसकी आत्मा के रूप में काम करेगा। इस प्रकार एचईसीआई के सहयोग से गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा संस्थानों को स्थापित करना बहुत ही आसान हो जाएगा और साथ ही साथ यह संस्थान जन सेवा भाव से दीर्घावधि के लिए वित्तीय सहायता के साथ भी स्थापित होंगे। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले उच्चतर शिक्षण संस्थान को अपने संस्थानों का विस्तार करने के लिए मदद मिलेगी, जिसमें बड़ी संख्या में छात्रों और संकायों को लाभ मिलेगा। नई शिक्षा नीति 2020 का स्वरूप संस्थानों का गुणवत्तापूर्ण एवं उच्चतर शिक्षा तक पहुंच का विस्तार करने के उद्देश्य से सार्वजनिक परोपकारी मॉडल भी शुरू करने की योजना है ।
नई शिक्षा नीति 2020 का स्वरूप मुख्य रूप से संस्थनों को न्यूनतम मानदण्डों और मानकों के अनुरूप बनाने हेतु-कड़े कदम उठाये जाने के साथ-साथ कठोर अनुपालन उपायों को निश्चित किया जायेगा जिससे अनिवार्य जानकारी के गलत प्रकटीकरण के लिए दण्ड की सिफारिश भी शामिल है। एचईसीआई सभी अंगों के मध्य किसी भी प्रकार के विवाद का निपटारा भी करेगा। यह एक स्वतंत्र निकाय होगा जो प्रासंगिक क्षेत्रों में काम कर रहे सत्यनिष्ठा, प्रतिबद्ध एवं समर्पित तथा उच्चतर श्रेणी के विशेषज्ञ होंगे जिन के पास सार्वजनिक सेवाओं में योगदान देने का विशिष्ट अनुभव होगा। एचईसीआई का भी स्वयं का अपना एवं छोटा स्वतंत्र निकाय होगा जिसमें उच्चतर शिक्षा में प्रसिद्ध सामाजिक सरोकारों वाले विशेषज्ञ शामिल होंगे जो एचइसीआई की सत्यनिष्ठा और प्रभावी कार्यकुशलता को संचालित और निगरानी करेंगे।
नई शिक्षा नीति 2020 के व्यावसीयकरण को रोकने के लिए राष्ट्रीय उच्चतर नियामक परिषद (एनएचईआरसी) का गठन किया जायेगा। सभी शिक्षण संस्थान लेखापरीक्षा और प्रकटीकरण के मानक व्यवस्था का पालन करेंगे। प्राप्त अतिरिक्त राशि को शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्निवेश किया जायेगा। सार्वजनिक और निजी उच्चतर शिक्षा संस्थानों को इस नियामक व्यवस्था में बराबर माना जायेगा। नियामक व्यवस्था शिक्षा में निजी परोपकारी प्रयासों को प्रोत्साहित करेगा । सभी विधायी अधिनियमों के लिए सामान्य राष्ट्रीय दिशा निर्देश होंगे जिनसे निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जायेगी। विभिन्न प्रकार के संस्थानों के लिए, उनके प्रत्यायन के आधार पर फीस की एक उच्चतर सीमा को तय करने के लिए एक पारदर्शी तंत्र विकसित किया जायेगा ताकि निजी संस्थानों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडे़। अधिकाधिक छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने हेतु निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित किया जायेगा। निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्धारित शुल्क में पूरी पारदर्शिता रहेगी तथा फीस में मनमानी वृद्धि नहीं की जा सकेगी।
नई शिक्षा नीति 2020 संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थान बनाने हेतु प्रभावी प्रशासन की व्यवस्था की गयी है। भारत के सभी उच्चतर शिक्षण संस्थानों को 15 वर्षों के अंदर चरणबद्ध तरीके से ग्रेडेड प्रत्यायन और ग्रेडेड स्वायत्ता प्रणाली के माध्यम से स्वतंत्र स्वाशासी संस्थान बनना होगा। उच्चतम गुणवत्ता का नेतृत्व सुनिश्चित करने और उत्कृष्टता की संस्थागत संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु सभी उच्चतर शिक्षा संस्थानों में बोर्ड आॅफ गवर्नर्स (बीओजी) की स्थापना की जायेगी। यह संस्था के प्रमुख सहित सभी नियुक्तियां करने और शासन के संबंध में समस्त निर्णय लेने के लिए अधिकृत होगा। बोर्ड के नये सदस्यों की पहचान बोर्ड द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति द्वारा की जायेगी और नये सदस्यों का चयन बीओजी द्वारा ही किया जायेगा। सभी उच्चतर शिक्षण संस्थान 2035 तक स्वायत्त बनकर सशक्त बोओजी का गठन करेंगे।
बोर्ड आफ गवर्नर्स (बोओजी) सभी संगत रिकार्ड के पारदर्शी स्व-प्रकटन के माध्यम से हितधारकों के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह होगा। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद के माध्यम से एचईसीआई द्वारा अनिवार्य सभी नियामक दिशा निर्देशों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होगा। संस्थानों में सभी नेतृत्व पदों और संस्थान प्रमुखों के लिए उच्चतर शैक्षणिक योग्यता वाले व्यक्तियों को चुना जायेगा जिनमें जटिल परिस्थितियों के प्रबंधन करने के साथ प्रशासनिक और नेतृत्व क्षमता हो। संस्थान के प्रमुख का चयन बोजोजी द्वारा एक प्रख्यात विशेषज्ञ समिति (ईईसी) के नेतृत्व में एक कठोर निष्पक्ष, योग्यता और क्षमता आधारित प्रक्रिया के माध्यम से किया जायेगा। नेतृत्व के उत्तराधिकार की योजना तैयार की जायेगी एवं सुचारू बदलाव सुनिश्चित करने के लिए पद खाली नहीं रहेंगे। उत्कृष्ट नेतृत्वकत्र्ताओं की पहचान की जाकर और नेतृत्व की भूमिका में सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ते रहेंगे। चरणबद्ध तरीके से पर्याप्त धन, वैधानिक सशक्तीकरण और स्वायत्ता प्रदान किये जाने के साथ सभी उच्चतर शिक्षण संस्थान, संस्थागत उत्कृष्टता, अपने स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ाव वित्तीय इमानदारी और जवाबदेही के उच्चतम मानकों के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करेंगे। प्रत्येक संस्थान एक कार्यनीतिक संस्थागत विकास योजना बनायेगा जिसके आधार पर संस्थान अपनी पहलों को विकसित करेंगे तथा प्रगति का आकलन कर निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचेगे।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है तथा युगानुकूल प्रासंगिक बने रहने हेतु समय देश, काल तथा परिस्थिति के अनुसार, परिवर्तन अनिवार्य आवश्यकता भी है। विश्वविद्यालय अनुदान आयेाग नेे अपनी स्थापना से लेकर निश्चित रूप से कई वर्षों तक नई शिक्षा नीति 2020 का स्वरूप के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। किन्तु वर्तमान समय में पूर्व की अपेक्षा विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों की संख्या में कई गुना वृद्धि होने से यह संस्था कार्य के बढ़ते अधिक भार के कारण उच्चतर शिक्षा के चहुँमुखी विकास में कहीं न कहीं पीछे रह जा रही थी। इसके अतिरिक्त अत्यधिक केन्द्रीकृत व्यवस्था तथा कठोर नियामक प्रणाली के कारण उच्चतर शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता कई वर्षों से महसूस की जा रही थी। इस व्यवस्था को विकेन्द्रीकृत एवं सरलीकरण कर पारदर्शी बनाने हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयेाग के स्थान पर भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग की स्थापना का उल्लेख है। इससे निश्चित रूप से नई शिक्षा नीति 2020 के क्षेत्र में मूलभूत परिवर्तन होने की संभावना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उल्लिखित भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग तथा इससे संबंधित अन्य तंत्रों को मजबूत करना समय की अनिवार्य आवश्यकता है। वास्तव में यदि यह अपने मूल स्वरूप में क्रियान्वित हुआ तो भारत के नई शिक्षा नीति 2020 शिक्षा के क्षेत्र में स्वर्णिम दिन पुनः लौटेंगे और भारत उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में संपूर्ण विश्व का नेतृत्व करने में सफल होगा।
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