राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: नीतिगत भविष्य एवं चुनौतियॉ
 
मुकेश कुमार ठाकुर*
सहायक प्राध्यापक, हिदीं, शासकीय महाविद्यालय चैरई, जिला- छिदवाडा म.प्र.
ईमेल thakur.mukeshexam@gmail.com
सांराश- शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करने व भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने के उद्देश्य से देश में 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति 2020 लागू की गई। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारत केन्द्रित शिक्षा प्रणाली की परिकल्पना की गई है जो परम्परा, संस्कृति, मूल्यों में परिवर्तन लाये बिना, बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ-साथ कौशल विकसित करने के लिए तत्पर है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पिछली शिक्षा नीति से कई अर्थो में अलग है। जिसमें शिक्षा की पहुँच, समानता, गुणवत्ता, वहनीयता और उत्तरदायित्व जैसे पांच स्तम्भ रखे गये। नई शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक आवश्यक बदलाव किए गये है । नई शिक्षा नीति 2020 को लागू करने वाला प्रथम राज्य मध्य प्रदेश है।नई शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख उद्देश्यों, विशेषताओं व इसे लागू होने से शिक्षा व्यवस्था में होने वाले लाभ अपेक्षित लक्ष्य की पूर्ति व इसमें आने चुनौतियों का अध्ययन एवं विश्लेषण की आवश्यकता है। शोध आलेख नई शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख प्रावधानों का विवरणात्मक प्रस्तुतिकरण है।
कीवर्ड - राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, भाषा, शिक्षा, संस्कृति, मातृभाषा।
प्रस्‍तावना
स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार ने देश की शिक्षा को सुनियोजित और सुसंगठित करने का निश्चय किया, माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53), भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968 एवं 1986) एवं विभिन्न योजनाओं के साथ लगातार शिक्षा के विकास के क्षेत्र में प्रयासरत है, गौरतलब है कि स्वतंत्रता पश्चात् भारत में (1951) सारक्षरता दर 19.39 प्रतिशत थी, जो बढकर आज 2021 में भारत 77.7 प्रतिशत साक्षरता दर को पा चुका है जो अभी भी लक्ष्य से दूर है। साक्षरता दर ठराव कौशल आधारित ज्ञान, मूल्य शिक्षा, स्कूली शिक्षा के प्रमुख बिन्दु रहे हैं वहीं उच्च शिक्षा में विभिन्न क्षेत्रों जैसे:- तकनीकी शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, भाषा इत्यादि पर भी देश ने उत्तरोत्तर वृद्धि की है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारत का भविष्य
इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वह सब कुछ वर्णित है जिससे बालक को न केवल भारत बोध होगा, वरन् वह सच्चा मनुष्य बनकर भारत माता के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होगा। इस पूरी शिक्षा नीति में ज्ञान आधारित सृजनात्मकता व रचनात्मकता के साथ प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा का खाका है। इस नीति में न केवल शिक्षा के ढांचे को आमूल-चूल बदला गया है, बल्कि शिक्षा पद्धति में सुधार, नवाचार व अनुसंधान के साथ मनुष्य निर्माण पर जोर दिया गया है। यह शिक्षा नीति भारत केंद्रित एवं विद्यार्थी केंद्रित है। यह पूरी तरह भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित है। इसमें त्रिभाषा सूत्र के साथ निज भाषा उन्नति अहैकी बात पर जोर दिया गया है। सही मायने में यह शिक्षा नीति छात्र, अध्यापक व भाषा के बीच का त्रिकोण है।
29 जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा की गई। इस शिक्षा नीति के विमर्श में 2 वर्ष का समय एवं 2 करोड़ से अधिक लोगों के सुझाव समाहित हैं। विमर्श में शिक्षक, विद्यार्थी, राजनेता, अभिभावकगण, जनप्रतिनिधि एवं समाजसेवी सभी के सुझाव समाहित किये गए हैं। इसलिए यह शिक्षा नीति सर्वस्पर्शी, सर्वव्यापी, सर्वसमावेशी एवं राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत है और कहा जाए कि लंबे समय की मेहनत के पश्चात निकला वह सार है जो देश के समग्र विकास में अपनी महती भूमिका अदा करेगा। इस नीति में तकनीकी के समुचित उपयोग पर बल दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य वाइब्रेंट नॉलेज सोसायटीका निर्माण, उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, मानवीय व राष्ट्रीय भाव का जागरण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति को शिक्षा का लाभ मिलने की भावना समाहित है। इस शिक्षा नीति में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम परिवर्तन कर शिक्षा मंत्रालय किया गया है। जो केवल नाम परिवर्तन ही नहीं दृष्टि परिवर्तन का सूचक है।
विद्यालयी शिक्षा में परिवर्त
यह शिक्षा नीति विद्यालयी शिक्षा में सबसे बड़े परिवर्तन की पक्षधर है। जो पूर्व की नीतियों में 10+1 या 10+2 था। वह अब 5+3+3+4 किया गया है इसका अर्थ यह है कि बालक की प्रारंभिक अवस्था जिसे फाउंडेशन स्टेज या नींव कहा जा सकता है, उसे पूर्ण रूप से मजबूत करने की बात इस नीति में कही गई है। तीन वर्ष के बालक को विद्यालय में प्रवेश देकर प्री प्राइमरी के तीन वर्ष व प्रथम एवं द्वितीय सहित कुल 8 वर्ष की आयु पूर्ण करने तक इन प्रारंभिक 5 वर्षों में बालक के खेलकूद, संगीत, कला, योग, साहित्य, गणित कौशल के साथ शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान दिया जाएगा। इन वर्षों में उसे यह सभी कुछ अपनी मातृभाषा में ही सिखाया-पढ़ाया जाएगा। बालकों के लिए मिड डे मील एवं बाल भवन की भी व्यवस्था रहेगी। कक्षा 3 से 5 तक यानी 11 वर्ष की आयु में बालक को भविष्य के लिए तैयार किया जाएगा। यह प्रिपरेटरी स्टेजकहलाएगी। इन वर्षों में उसे विभिन्न विषयों का प्रारंभिक ज्ञान अपनी मातृभाषा में ही दिया जाएगा।अंग्रेजी माध्यम की अनिवार्यता को समाप्त किया जाएगा। कक्षा 6 से 8 तक यानी मिडिल स्टेज में बालक को एक निश्चित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। साथ ही उसे इंटर्नशिप भी प्रदान की जाएगी यानी पढ़ाई के साथ-साथ वह अपनी पसंद के क्षेत्र से संबंधित उद्योग या संस्थान में अपने कौशल का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त भी कर सकेगा, जिससे वह धीरे-धीरे अपनी क्षमताओं को पहचान कर भविष्य के लिए एक निश्चित क्षेत्र का चयन भी कर सकता है। विभिन्न विषयों की पाठ्य सामग्री भी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाएगी। बालकों को एक भारत श्रेष्ठ भारतके माध्यम से भारतीय भाषाओं पर आधारित परियोजना में भागीदारी निभानी होगी।
कक्षा नौवीं से बारहवीं तक सेकेंडरी स्टेज में बालक में विषय के प्रति गहरी समझ का विकास किया जाएगा, जिससे उसमें अध्ययन व विश्लेषण क्षमताओं का विकास हो सके। इन 4 वर्षों के पाठ्यक्रम में सेमेस्टर सिस्टम से परीक्षाओं का आयोजन होगा। बालक को वर्ष भर सतत अध्ययन करते रहना होगा एवं सतत मूल्यांकन की भी व्यवस्था रहेगी। यहां बालक के पास अध्ययन हेतु पसंद के विषय चुनने एवं विदेशी भाषाओं के चयन की स्वतंत्रता भी रहेगी, जिससे वह विज्ञान के साथ समाजशास्त्र या संस्कृत या राजनीति शास्त्र जैसे अपने पसंद के विषयों का अध्ययन कर सकेगा जबकि पूर्व में यह व्यवस्था नहीं थी। विद्यार्थी शिक्षक अनुपात 25:1 का रहेगा। सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूह (सोशियो इकोनामिकली डिसएडवांटेज ग्रुप) जिनमें अति पिछड़ा वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, बालिकाएं,विस्थापित समूह, ग्रामीण परिवेश के विद्यार्थी शामिल हैं, उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की योजना है। अतः यह नीति कम प्रतिनिधित्व वाले समूह को लक्षित कर समग्र एवं समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
नया राष्ट्रीय आंकलन केंद्र परखएक मानक निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा। बालकों में रटने की आदत को खत्म कर उनमें विषय की गहराई की समझ विकसित करने का प्रयास किया जाएगा, जिससे विद्यार्थियों में अंक प्रतिस्पर्धा की दौड़ खत्म हो जाएगी। साथ ही शिक्षकों द्वारा, सहपाठियों द्वारा भी उनके व्यवहार, चरित्र व आचरण के आधार पर अंक दिए जाएंगे। इसमें परियोजना कार्य, अनुसंधान, समूह एक्टिविटी जैसे आवश्यक बिंदु शामिल होंगे। रिपोर्ट कार्ड में यह सभी अंकित किया जाएगा जिससे उसे मालूम हो सके कि वह कहां पर कमजोर है और भविष्य में उसे सुधारने का मौका भी मिलेगा। इस सारी प्रक्रिया के निर्माण में एनसीईआरटी की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। शिक्षकों के चयन हेतु उच्च गुणवत्ता युक्त मानदंडों का ध्यान रखा जाएगा। सोर्स शेयरिंग हेतु विद्यालयों में क्लस्टर का निर्माण किया जाएगा। राष्ट्रीय आंकलन केंद्र एनसीईआरटी व एससीईआरटी के निर्देशन में छात्रों की प्रगति रिपोर्ट तैयार की जाएंगी। भारतीय संकेत भाषा अर्थात साइन लैंग्वेज को पूरे देश में मानकीकृत कर किया जाएगा। मूक-बधिर विद्यार्थियों द्वारा उपयोग किए जाने के लिए राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय पाठ्य सामग्री विकसित की जाएगी।
उच्च शिक्षा में बदलाव
उच्च शिक्षा देश के आर्थिक विकास का आधार होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से उच्च शिक्षा हेतु पाठ्यक्रमों में समग्रता व एकरूपता लाई जाएगी। सभी पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं की प्राथमिकता रहेगी। प्रवेश हेतु स्नातक में राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसीद्वारा 12वीं के अंकों सहित उच्च गुणवत्ता वाली सामान्य योग्यता परीक्षाके अंको के योग से प्रवेश होगा। विषय चयन की पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी। संस्कृत भाषा को रूचिपूर्ण व नवाचारी तरीके से प्रारंभिक विषयों जैसे विज्ञान, गणित, दर्शन शास्त्र, मनोविज्ञान आदि के साथ जोड़ा जाएगा। भारतीय भाषाओं में प्रवीणता को रोजगार आर्हता के मानदंडों के हिस्से के रूप में शामिल किया जाएगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सबसे अच्छी बात यह है कि यदि किसी छात्र ने स्नातक में किसी कारणवश 1 या 2वर्ष की पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात छोड़ देता है तो उसकी यह पढ़ाई बेकार नहीं जाएगी एवं जितने क्रेडिट इन वर्षों में उसने अर्जित किए हैं वे सभी अर्जित क्रेडिटएकेडमिक क्रेडिट बैंकमें जमा हो जाएंगे और जब भी वह एक निश्चित समय सीमा के अंदर अपना अध्ययन या डिग्री पूरी करना चाहेगा तो यह क्रेडिट उसकी डिग्री में एकेडमिक क्रेडिट बैंक से वापस जुड़ जाएंगे। एकेडमिक क्रेडिट बैंक डिजिटल लॉकर पर आधारित होगा। इसे मल्टी एंट्री एवं मल्टी एग्जिट व्यवस्था कहा गया है। विद्यार्थी द्वारा स्नातक का प्रथम वर्ष पूर्ण करने पर सर्टिफिकेटद्वितीय वर्ष पूर्ण करने पर डिप्लोमाएवं तृतीय वर्ष पूर्ण करने पर स्नातक की डिग्री प्रदान की जाएगी। 4 वर्षीय स्नातक डिग्री शोध आधारित होगी। स्नातकोत्तर हेतु जिन्होंने 3 वर्ष की स्नातक डिग्री प्राप्त की है, उन्हें 2 वर्ष का पाठ्यक्रम जिसमें 1 वर्ष शोध पर आधारित होगा एवं 4 वर्षीय शोध आधारित डिग्री धारी विद्यार्थियों को 1 वर्ष में स्नातकोत्तर की डिग्री दी जाएगी। स्नातकोत्तर के बाद विद्यार्थी पीएच.डी में प्रवेश ले सकेंगे। इस शिक्षा नीति में एमफिल की डिग्री को समाप्त करने का प्रावधान रखा गया है।
उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 27 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाएगा। उच्च शिक्षा में संकाय सदस्यों को अपने स्वयं के पाठ्यक्रम एवं शैक्षिक प्रक्रियाओं का निर्माण करने की स्वतंत्रता रहेगी। सभी उच्च शिक्षण संस्थान स्वच्छता का पालन करने के साथ-साथ आवश्यक सुविधाएं जैसे पीने हेतु स्वच्छ पानी, साफ-सुथरे शौचालय, पुस्तकालय, आईसीटी आधारित प्रयोगशाला एवं तकनीक युक्त कक्षा- कक्षा जैसे संसाधनों से पूरित होंगे। इस नीति में नीति निर्माण, विनिमय, प्रचालन तथा अकादमिक मामलों के लिए एक स्पष्ट प्रथक प्रणाली का प्रावधान रखा गया है। इस हेतु राज्य या केंद्र शासित प्रदेश स्वतंत्र स्टेट स्कूल स्टैंडर्ड अथॉरिटीका गठन करेंगे।
उच्च शिक्षा के पारदर्शी संचालन हेतु एक स्वतंत्र निकाय भारतीय उच्च शिक्षा आयोग‘ (एचइसीआई)के गठन की बात यह शिक्षा नीति करती है। जो उच्च शिक्षा के विनिमय, प्रत्ययन, फंडिंग एवं शैक्षिक मानकों के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।उच्च शिक्षा के विनिमय हेतु राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा विनियामक परिषद‘ (एनएचईआरसी), प्रत्यायन के लिए राष्ट्रीय प्रत्ययन परिषद‘(एनएसी), अनुदान हेतु उच्च शिक्षा अनुदान परिषद‘ (एचईजीसी)एवं मानक निर्धारण हेतु सामान्य शिक्षा परिषद‘(जीईसी) का गठन किया जाएगा, जो उच्च शिक्षा में आधारभूत सुधार का काम करेंगे। उच्च शिक्षण संस्थानों को 2040 तक विस्तृत एवं बहुविषयक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थान क्लस्टर के रूप में रूपांतरित करके खंड-खंड की उच्च शिक्षा को समाप्त किया जाएगा। इस नीति में तीन तरह के उच्च शिक्षण संस्थान जिनमें अनुसंधान केंद्रित विश्वविद्यालय, शिक्षण केंद्रित विश्वविद्यालय एवं स्वायत्तशासी डिग्री प्रदान करने वाले महाविद्यालय शामिल है। जिससे न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा बल्कि विदेशी लोग भारत में शिक्षा ग्रहण करेंगे और देख पाएंगे कि भारत कितना वैभव पूर्ण एवं समृद्धशाली देश है। विश्वविद्यालय भारतोन्मुखी एवं समाजोन्मुखी अनुसंधान करेंगे, जिससे देश और समाज को अनुसंधानों का लाभ मिल सके। शोध में ट्रांसडिसीप्लिनरी शोध को बढ़ावा दिया जाएगा। गुणवत्तापूर्ण शोध हेतु नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना की जाएगी, जिसके लिए 2200 करोड़ रुपए का प्रावधान है। एसा माना गया है कि बालक में शिक्षा नीति के माध्यम से राष्ट्रीय मूल्यों का विकास कर देश के टैलेंट को देश में ही रहकर काम करने की प्रेरणा मिलेगी।
शिक्षा नीति संबंधित चुनौतियाँ
महँगी शिक्षाः नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है, विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था महँगी होने की संभावना है। शिक्षा का संस्कृतिकरणः दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि त्रि-भाषासूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है। संसद की अवहेलनाः विपक्ष का आरोप है कि भारतीय शिक्षा की दशा व दिशा तय करने वाली इस नीति को अनुमति देने में संसद की प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया।
मानव संसाधन का अभावः वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ हैं। वर्तमान में प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में प्रशिक्षित शिक्षकों की भारी कमी है, साथ ही उपयुक्त संसाधनों का भी अभाव है। ऐसे में हाई स्कूल स्तर पर विभिन्न व्यावसायिक विषय संबंधी अपेक्षित प्रशिक्षण उपलब्ध कराना एक मुश्किल काम होगा।
उच्च शिक्षा महाविद्यालयों और छोटे विश्वविद्यालयों के मौजूदा प्रदर्शन और उनके स्तर के आधार पर शोध के लिए सहायता राशि के वितरण के समय काफी भेदभाव हो सकता है। हो सकता है कि अधिकांश राशि पहले से स्थापित संस्थानों के हिस्से चली जाए और कम सुविधा वाले महाविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को खुद को बेहतर करने का मौका ही न मिलें। अमल संबंधी चुनौतियों के बावजूद यह नई नीति संतोषजनक उम्मीदों और संभावनाओं का आसमान थमा रही है। भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए उसमें हमारे सकल घरेलू उत्पाद की 6 प्रतिशत राशि का योगदान करना होगा। कुल मिलाकर, एनईपी 2020 युवा पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य और शिक्षा प्रणाली में उल्लेखनीय बदलाव की उम्मीद लेकर आयी है। अब एक संशोधित और सुनियोजित शिक्षा नीति राष्ट्र को प्रगति के मार्ग पर ले जाने के लिए तैयार हैय आवश्यकता है तो बस उपयुक्त कार्यान्वयन की जिससे जमीनी स्तर पर इसका लाभ मिले। आज विभिन्न सरकारी एजेंसियों, राज्य सरकारों, नीति निमार्ताओं, निजी क्षेत्रों, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे बढ़कर अपना बहुमूल्य योगदान देकर एनईपी 2020 की सफलता सुनिश्चित करने में भरपूर प्रयास करना चाहिए।
नईपी 2020 का सूत्र वाक्य- नेशन फर्स्ट- करैक्टर मस्टहै अर्थात राष्ट्रीय हित के साथ चरित्र निर्माण पर जोर रहेगाप् निश्चय ही यह नीति शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त समस्याओं एवं उद्देश्यों को पूरा करने में एक विजन डॉक्यूमेंट है। भारत का जो टैलेंट है वह भारत में ही रह सके रहकर कार्य करें अर्थात भारत का दिमाग भारतीय समाज के उत्थान के लिए कार्य करें। यह नीति देश व समाज के विकास के साथ समग्रतापूर्ण वैश्विक नागरिक बनने में यह मील का पत्थर साबित होगी। इस नीति से आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल भारत बन सकेगा एवं विदेशों के लिए निर्माण कर सकने वाला एवं विश्व का नेतृत्व करने वाले मानव का निर्माण हो सकेगा। इस नीति को 2021 से प्रारंभ कर 2030 तक पूर्ण रुप से लागू किए जाने का विभिन्न चरणों में प्रावधान है। सही तरीके से यदि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होती है तो निश्चित ही भविष्य के स्वर्णिम भारत की आधारशिला साबित होगी और भारत को विश्व गुरु के शिखर तक ले जाएगी।
संदर्भ ग्रंथ
1. पुरोहित , ऐश्वर्य (2022), ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एक विहंग अवलोकन)‘‘ म.प्र. हिदीं ग्रंथ अकादमी , भोपाल ।
2. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, दृष्टि पत्र ,2020
3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 प्रतिवेदन, मानव संसाधन विकास मंत्रालय नई दिल्ली , भारत ।