वर्तमान में भारतीय नारी की शिक्षा की स्थिति का एक विवेचनात्मक अध्ययन
 
डॉ. चेतना1*, ज्योति भारद्वाज2
1 पर्यवेक्षक, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्‍वविद्यालय, जयपुर-राजस्थान
2 शोधार्थी, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्‍वविद्यालय, जयपुर-राजस्थान
सार -
‘‘यत्र नार्यस्ति पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रौस्तास्तु न पूज्यन्ते, सवस्तित्राफलः क्रिया।।’’
नारी की की सुदृढ़ व सम्मानजनक स्थिति एक उन्नत, समृद्ध व मजबूत समाज की द्योतक है, प्राचीन धर्मग्रन्थों में ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ सूत्र वाक्य द्वारा इसे स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। हमारे देमें अनेक दार्शनिक और विदुशी महिलाऐं हुई हैं जिन्हें ‘ब्राह्मणवादिनी’ कहा जाता था। इन्होंने शिक्षा के लिये ही अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। मैत्रेयी, गार्गी, लोपामुन्दा, अपाला तथा उर्वशी आदि ऐसी ही विदुशी महिलाऐं थीं। हमारे देमें जहाँ एक ओर लक्ष्मी, सीता, दुर्गा, पार्वती के रूप में नारी को देवतुल्य बताया जाता है वहीं उसे अबला बताकर परम्परा एवं रूढ़ियों की बेड़ी में भी जकड़ा जाता रहा है।
कीवर्ड : भारतीय नारी, शिक्षा की स्थिति
प्रस्तावना
वर्तमान काल में भी नारी शिक्षा की अत्यन्त महत्ता परिलक्षित होती है। नारी शिक्षा के द्वारा ही पूर्ण नारी बन सकती है। नारी परिवार की आदरणीय सदस्या है वह अद्र्धांगिनी है। परिवार, समाज तथा विश्‍व के कल्याण के लिये यह महत्वपूर्ण है कि नारी की पर्याप्त एवं समुचित शिक्षा की व्यवस्था हो ताकि वह परिवार, समाज व राष्‍ट्र के प्रति सम्मानपूर्ण स्थान पा सके। प्रतिभावान, गुणवान, सर्वगुणसम्पन्न सन्तान की प्राप्ति हेतु नारी वर्ग को समुन्नत उपयुक्त शिक्षा का ही दायित्व है।
यह सर्वज्ञात तथ्य है कि सर्वप्रथम स्त्री ने ही पुरूष को घर बसाकर रहने की प्रेरणा दी। आज उसी घर में त्याग, तपस्या, सहिष्णुता, कोमल एवं उदार हृदय की स्वामिनी स्त्री को शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक इत्यादि स्वरूपों में घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा हैं परिणामस्वरूप स्त्री का अस्तित्व न केवल परिवार में वरन् परिवार के बाहर भी कमजोर हुआ है। अतः हमें आज शिक्षा के द्वारा नारी को उसके दायित्वों से अवगत कराना है जिससे कौषल्या, देवकी, सुभद्रा, अत्रानि जैसी माताओं को पुनः प्राप्त करने का समाज को सौभाग्य मिल सके।
वर्तमान में नारी शिक्षा का प्रभाव आप देख ही रहे हैं। नारी आज शिक्षा के कारण हर क्षेत्र में आगे बढ़ती नजर आ रही है पर उसमें अभी और सुधार करना बाकी है। आचार्य चाणक्य ने नारी शिक्षा के महत्व को बताते हुए कहा है- ‘‘मानव समाज की रचना ही इस प्रकार हुयी है कि नर और नारी की महत्ता समान है। दोनों में से एक के बिना समाज के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। दोनों का संयोग ही आत्मा को पूर्णता प्रदान करता है। तभी नारी परिवार की एक सम्मानित सदस्या है।’’
आज की लाखों करोड़ों महिलायें गरीबी, शोषण एवं उत्पीड़न का शिकार हैं। देमें लाखों परिवार घोर गरीबी में जी रहे हैं। आधा पेट भोजन, घर की आय बढ़ाने के लिये घर या घर के बाहर अथक श्रम, बार-बार गर्भधारण, गर्भावस्था में भी पोष्टिक भोजन का अभाव आदि कारणों से गरीब परिवारों की महिलायें जवानी में ही बूढ़ी नजर आने लगती हैं। न जाने कितनी महिलायें उचित उपचार और आहार के अभाव में अकाल मृत्यु का शिकार हो जाती हैं।
परिवार के बाहर काम करने वाली महिलाओं का शोषण बराबर जारी है। निजी शिक्षक संस्थाओं में भी महिलायें शोषण की शिकार हैं। घर परिवार के भीतर महिला उत्पीड़न का एक प्रमुख कारण दहेज लोलुपता हैं। घर आई बहू को नौकरानी समझने की मनोवृत्ति, बहू द्वारा लड़के के बजाय लडकी को जन्म दिया जाना, उसका गर्भधारण करने योग्य न होना, अषिक्षा या असुन्दर पत्नी के चरित्र पर अकारण सन्देह आदि महिला उत्पीड़न के अन्य अंग हैं। ये सब शिक्षा की कमी के कारण उत्पन्न हुये हैं। शिक्षा राष्ट्र की प्रगति, संस्कृति, भावना एवं संस्कार का प्रतीक है। अतः महिला को उत्पीड़न से बचाने के लिये नारी शिक्षा की विशेष आवष्यकता है।
भारत में नारी की शिक्षा की आवष्यकता-
निष्कर्षः-
भारत में नारी षिक्षा की समस्यायें एवं समाधानः
सुलभ गुण, शालीन व्यवहार और सात्विक विचारों की नारी को प्राचीन काल में बहुत गौरव प्राप्त था। अथर्ववेद, शतपथ, ब्राह्मण, सत्यार्थ प्रकामें नारी शिक्षा के महत्व को स्वीकारा है। स्त्रोत सूत्रादि में शिक्षाविहीन नारी को नारीत्वविहीन माना है। वैदिक काल में तो नारी के लिए साहित्य का अध्ययन और वैदिक कर्मकाण्ड करने की स्वतन्त्रता थी। ऋग्वेद के श्लोक तो नारियों ने लिखे थे। अपाला, धोबा, उर्वशी ऐसी 20 विदुषियाँ थीं जिन्होंने अनेकों की रचना की थी लेकिन 200 . से नारियों के लिए वेदों का ज्ञान विदुध हाता गया। फलतः नारी शिक्षा का पतन प्रारम्भ हो गया। 1050 ई. से मुस्लिम युग में नारी शिक्षा का पतन होता गया। इसी युग में बाल विवाह की कुप्रथायें प्रचलित हो गयी। जिससे शिक्षा का और पतन होता गया। मुस्लिम को नारी शिक्षा के प्रति ‘‘अंधकार का युग’’ कहा जाय तो कोई अतिष्योक्ति नहीं होगी। सन् 1700 ई. के पश्‍चात् कुछ अंग्रेजी मिनरियों ने कन्या विद्यालयों की स्थापना की। 1854 में वुड के घोषणापत्र में सर्वप्रथम नारी शिक्षा के महत्व को आकार किया गया। 1882 में हण्टर कमीन ने नारी शिक्षा का प्रसार करने की घोषणा प्रदान की। 1904 में ऐनी बेसेण्ट ने नारी शिक्षा के प्रति अपना अतिस्मर्णीय प्रदान किया। 1925 तक भारतीय समाज में नारी शिक्षा का अभूतपूर्व विकास हो चुका था। 1947 के पष्चात् आधुनिक भारत में नारी शिक्षा के प्रति अनोखी धूम मची 1958 में नारी शिक्षा विकास के लिए ‘‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति’’ गठित हुई। 1959 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् गठित हुई। 1977 के पश्‍चात् जनता सरकार ने महिला वर्ग के उत्थान के लिए सराहनीय प्रयास किये। 1980 के पश्‍चात् महिलाओं की शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में अग्रसारित होने के लिए उनकी अलग संस्थायें खोली गयीं। प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने महिलाओं को और ऊँचा उठाने के लिए मई 1989 से 30 प्रतित महिला कोटा को आरक्षित कर दिया।
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 65.38 प्रतित थी जबकि सन् 2011 में यह 74.04 प्रतित हो गयी। वर्ष 2001 में पुरूषों की साक्षरता दर 75.85 प्रतित थी जो 2011 में 82.14 प्रतित हुई। महिलाओं की साक्षरता दर 2001 में 54.16 प्रतित थी जो 2011 में 65.46 प्रतित हो गयी। सन् 2001 में निम्नतम महिला साक्षरता दर 33.57 प्रतित बिहार में अंकित की गयी जबकि 2011 में यह 53.33 प्रतित हो पायी हैं साक्षर महिलाऐं की संख्या साक्षर पुरूषों की तुलना में आधी रह गयी है।
र्ष 2011 की जनगणना के अंतिम आँकड़ों के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121,0854,977 करोड़ है। जिसमें 5,86,469,174 करोड़ स्त्रियाँ हैं। कुल जनसंख्या में 48.50 प्रतित की हिस्सेदारी रखने वाली भारतीय महिला की आर्थिक गतिविधियों में सहभागिता पुरूषों की सहभागिता 51.7 प्रतित के सापेक्ष मात्र 25.6 प्रतित है। जो किसी भी दृष्टि से संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। इसका मुख्य कारण लैंगिक विभेद और पुरूषों की सामंतवादी प्रवृत्ति है। इसी प्रवृत्ति का परिणाम हमें साक्षरता तथा लिंगानुपात संबंधी आँकड़ों में दिखाई देता है। 2001 में जहाँ भारत में प्रति 1000 पुरूषों पर 933 स्त्रियाँ थीं। वहीं 2011 में यह संख्या 940 मात्र है। इसी प्रकार 2011 की जनगणना के अनुसार जहाँ पुरूष साक्षरता दर 84.14 प्रतित है वहीं स्त्री साक्षरता दर 65.46 प्रतित है। जो कुल साक्षरता दर 74.04 से काफी कम है।
किसी भी राष्ट्र की परम्परा और संस्कृति उस राष्ट्र की महिलाओं से परिलक्षित होती है। महिलाऐं समाज की रचनात्मक शक्ति होती है। आने वाले कल को सुधारने के लिए हमें आज की महिला की स्थिति में सुधार लाना होगा। इसके लिए हमें रूढ़िवादी दृष्टिकोण से उबरकर एक नया विकासवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा। महिला अधिकारों के सरक्षण के लिए बनाए गए विभिन्न कानूनों को हमें पूरी ईमानदारी और सक्रियता से लागू करना होगा। इसके साथ-साथ हमें घरेलू तथा सामाजिक स्तर पर जागरूकता लाने का प्रयास करना होगा। शिक्षा के स्तर पर भी अभी बहुत कुछ किया जाना शेष हैं शिक्षा एक ऐसा कारगर अस्त्र है जो सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचे को बदल सकता हैं ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र मे स्त्री शिक्षा के ढांचे में अभी भी कमियाँ हैं। ठोस तथा यथार्थवादी पहल के द्वारा महिलाओं को एक उत्साहवर्धन सामाजिक वातावरण उपलब्ध कराया जा सकता हैं हमें यह ध्यान रखना होगा कि महिलाओं में अपार क्षमता निहित है। इन्हें सबल और सक्त कर हम दे को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप में सुदृढ़ बना सकेंगे। दे के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का यह कथन आज भी प्रासंगिक है कि जब महिलाऐं आगे बढ़ती हैं तो परिवार आगे बढ़ता है, समाज के आगे बढ़ता है और राष्ट्र भी अग्रसर होता है।
सुझावः
प्रस्तुत शोध निबन्ध भारत में नारी शिक्षा-स्थिति एंव समस्यायें को पूर्ण करने के पश्‍चात् शोधार्थी नारी शिखा के ऊपर आने वाले समय में निम्नलिखित क्षेत्रों पर कार्य करने के लिये अपने उपाय प्रस्तुत करता है-
  1. भारत में नारी शिक्षा के मार्ग में अवरोध के कारणः प्राचीन समय में अब तक भारत के परिप्रेक्ष्य में नारी शिक्षा की स्थिति में कौन-कौन से अवरोध उत्पन्न होते आये हैं।
  2. नारी शिक्षा एवं सांस्कृतिक विरासत के रूप मेंः अनादि काल से नारी शिक्षा भारत में एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में रही है। इस टॉपिक पर भी शोध निबन्ध के रूप में सटीक कार्य किया जा सकता है।
  3. नारी शिक्षा राष्ट्र उन्नति की प्रतीकः एक राष्ट्र तभी ठीक प्रकार से समृद्धशाली हो सकता है जब उसके द्वारा नारी के लिए महत्वपूर्ण स्थान व शिक्षा प्रदान करने के लिए सुलभ सुविधायें की गयी हैं। इस पर भी शोध कार्य किया जा सकता है।
  4. नारी शिक्षा चरित्र निर्माण की कुंजीः प्राचीन समय से भारत में ऐसी शिक्षित नारियां हुयी हैं जिन्होंने बच्चों को चरित्रवान बनाकर उन्हें राष्ट्र के प्रति समर्पित होने के योग्य बनाया।
  5. नारी शिक्षा समृद्ध समाज की ओर एक शिक्षित नारी ही समाज के दूषित वातावरण को हटाकर अच्छे समाज का गठन करने के लिए सक्षम है। जिस समाज में अधिकाधिक स्त्रियां शिक्षित होंगी वह समाज उतना ही समृद्धशाली होगा। यह टॉपिक शोध कार्य के लिए श्रेष्ठ हो सकता है।
  6. नारी शिक्षा की अवधारणा और महत्वः भारत में नारी शिक्षा की आवष्यकता है तथा भारत जैसे धर्मप्रधान दे में नारी शिक्षा का क्या महत्व हो यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर लघु शोध प्रबंध प्रस्तुत किये जा सकते हैं जिनके परिणाम स्वरूप भारत राष्ट्र की उन्नति के लिये नारी शिक्षा का औचित्य सिद्ध हो सकेगा।
  7. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी शिक्षा की भूमिकाः वर्तमान में नारी शिक्षा, समाज, परिवार राष्ट्र के लिए क्या भूमिका निभा सकती है। इस पर भी लघु शोध श्रेष्ठ हो सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. पाण्डेय, राम शक्ल, ‘भारतीय शिक्षा की समस्यायें’’
  2. पाठक एवं त्यागी, ‘‘आधुनिक भारतीय शिखा का इतिहास और समस्यायें’’- स्वतंत्र भारत में स्त्री शिक्षा, पृष्ठ 481
  3. पाठक एवं त्यागी, ‘‘आधुनिक भारतीय शिक्षा का इतिहास और समस्यायें’’- मुस्लिम युग में स्त्री शिक्षा, पृष्ठ 476-480
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  5. पाठक एवं त्यागी, ‘‘आधुनिक भारतीय शिक्षा का इतिहास और समस्यायें’’, - पंचवर्षीय योजना में स्त्री शिक्षा, पृष्ठ 485
  6. डॉ. रस्तोगी, कृष्ण गोपाल, ‘‘भारतीय शिखाः विकास और समस्यायें’’
  7. जैन, कैलाष चन्द्र, ‘‘भारतीय समाज में शिक्षा’’ - भारत में नारी शिक्षा की अनिवार्यता
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  9. राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् 1959
  10. हंसा मेहता समिति, 1962
  11. शिक्षा आयोग- शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली, 1964-66
  12. पाण्डेय रामशक्ल, ‘भारतीय शिखा में उदीयमान प्रवृत्तियां’’
  13. चोबे, सरयू प्रसाद, ‘‘भारतीय शिक्षा संरचना और समस्यायें, विनोद पुस्तक भण्डार, आगरा, 1988
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  15. शाह, ए.वी. ‘‘हायर एजूकेन इन इण्डिया’’ लालवानी पब्लिशिंग हाउस, बम्बई, कलकत्ता, नई दिल्ली, 1967