बिहार में पंचायती राज व्यवस्था एवं स्थानीय स्वशासन का उद्देश्य
प्रो० डॉ० मो० शहाब उद्दीन1*, इंजमाम उल अहमद अंसारी2
1 हेड एण्ड एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष, जगजीवन कॉलेज, आरा, बिहार, भारत
Email: inzamamhtw@gmail.com
2 शोधार्थी, डिपार्टमेंट आफ पोलिटिकल, साईंस रिसर्च स्कालर, वीर कुवंर सिंह विश्वविधालय, आरा, बिहार, भारत
सारांश – बिहार के स्थापित सव्शासन के प्रति बिहार की राजनितिक में उत्सुकता देखा जाता है। और जीता जगता परिदृश्य बिहार की पंचायतो से सर्वभोमिक समाज का निर्माण करता है। पुरे बिहार में राजनितिक भूचाल पैदा करने वाला आसनी से रास्ता पंचायती राज व्यवस्था को परिकल्पना से मिलता है। आज के दौर में बिहार जहा खड़ा है वह पंच्याती राज व्यवस्था एवं स्थानीय स्वशासन से पुनर्विकाश आर्थिक, समाजक शोषित, नस्लीय जाती ,धार्मिक, शिक्षित, महिला एवं स्प्रशयता का अंत हुआ है। जो कि आपसी लोक कल्याण के लीए पंच्यातो के माध्यम से सक्रिय प्रभाव देखते हुए समाज के भलाई के उपरांत ही संगठन होकर अपने – अपने कर्तव्य को निर्वाहन करते है पंचायतो के विधि व्यवस्था को बनाए रखने के लिएया स्थानीय स्वशासन के निर्माण करके किसी तरह के समस्याओ के निपटारा किया जा सके चाहे वह गाव- मोहल्ला हो या पंचयत ,ब्लाक ,जिला स्टार के परल पर रखकर पंच्याती राज व्यवस्था एवं स्थानीय स्वभासन से हल कर लिया जाता है समाज के कोई भी जाती – विधि यानि की चोरी ,दकेअती ,महिला ,जाती धार्मिक एवं आर्थिक जातीरोध को आसानी से संगठन होकर विधि व्यवस्था को साथ लचीला परिका अपनाकर समाधान से हल कर दिया जाता है। स्थानीय स्वशासन को अपने आप में सफल न्यालय कहा जाता है। एक ऐसा समाज को देखा गया की आर्थिक रूप से कमजोर परिवार को उच्च न्यालय ने अपने विधि व्यवस्था से न्याय नहीं कर सका जोकि वह समाज ने पंचयत स्तर पर बैठकर बहुत कम समय में उस परिवार को आसानी से आर्थिक बचत करके न्याय देने का कार्य किया जा सका है। बिहार सरकार ने पंच्याती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने में पंचायती राज व्यवस्था विधेश 2006 को विधेयक लाकर मजबूती प्रदान किया। जससे की नयायपूर्ण विधि व्यवस्था स्थापित किया। और पयांचायती राज व्यवस्था में बदलाव करके महिला अनुसूचित जाती एवं जनजाति ,समाजक भलाई के लिए अलग से आरक्षण में बदलाव करके आज आने का मोका दिया। जो की श्री नीतिस कुमार ने ५०% महिलाओ को आरक्षण से समाजक कु प्रथा को समाप्त कर दिया है। चाहे वह बिहार के पंचायती नोकरी एवं शिक्षण सस्थानो में कोटा के द्वारा कर दिया जब की महलाओ को यह देखा जाता था की शायद महिला वर्ग को चुलहै -चोकी करने का जन्मजात वरदान मिला है। जब से पंचायती स्तर पर श्री लालू प्रसाद के द्वारा 2003 में शिक्षक बहाली आया जिसका नाम शिक्षा मित्र दिया वेतनमान 1500/रूपये था। तब महिलाओ का दौर शरू हुआ और अब महिला वर्ग पुरुषो से चार कदम आगे निकलकर मंगलयान को सफल बनायीं है बिहार शिक्षा में जान फुक दिया। बिहार के विकास में अहम् भूमिका निभाकर पंचायत गौरवन्वीत कर रही है। बिहार के महिलाओ के प्रति बहुत ही बेकार प्रवृति की मानसिकता पल गई थी की समाजिक स्तर पर महिलाओ को शोषण होता था। अब बहुत ही महिलाओ के प्रति सपना संजोया जा रहा है और इसको सफल करने में महिलाओ को ही अहम् भागेदारी रही है। परिवार में बेटिया जन्म लेती है तो उसकी माँ को शोषण झेलना पड़ता था। और दुख की बात यह समाज के ताना बाना को बर्दास्त करना पड़ता था जबकि शादी के नाम पर उत्पीडन सहन करना पड़ता है। दहेज़ के नाम पर बेटियों को शिकार करा जाता है जिससे की अब देखने को मिलता है की समाजिक बदलाव से लड्किया सपने को साकार करते देखा जा रहा है। बिहार के एक्स- रेलमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने अपनी जान के बजी लगाकर किडनी देने की कम किया। पूरा दुनिया में मिशल स्थापित कर दी।
की वार्ड –पंचायती राज व्यवस्था एक ऐसा संस्था है जो की समाज को संगदित करता है। और निमं स्टार लोकतंत्रता विधि व्यवस्था को स्थापित करता है। स्वतंत्रता के पश्चात आर्थिक ,राजनातिक ,शोषित ,छुआछुत , स्समजिक ,एवं धार्मिक को आगे आने के लिए अवसर प्रदान करता है। समाज की थोपा गामा कुतियो का समाप्त करने के लिए जाना जाता है।
परिचय
हम यह पाते हैं की ऐतिहासिक दृष्टि से देखने को यह मिलता है कि ग्रामीण और समाज में संस्थागत होने के कारण वहां की समाज को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रति स्थापित किया गया है लोकतंत्र विकेंद्रीकरण में पंचायती राज संस्थाओं अपनी महत्वाकांक्षी है पंचायत की परिकल्पना अपने देश में कोई नया नहीं है यह तो प्राचीन काल से ही मानव समाज के ऊधार करने के लिए अभिन्न हिस्सा रही है पंचायती राज व्यवस्था से भारत के दूर दराज इलाकों को विकसित करने के लिए संस्थागत स्थापना कर दिया गया स्वत स्पष्ट हो गया और यह महात्मा गांधी जी की सपना को साकार करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने ठान ली भारत सरकार ने एकरूपता लाने के लिए पंचायती राज व्यवस्था को संस्था बनाने की प्रयत्न किया और आगे चलकर कुछ ऐसा ही देखने को मिला वर्तमान रूप से उनको संगठित एवं प्रभावी बनाने के लिए उद्देश्य से भारतीय संविधान में संशोधन करके पंचायती राज में पंच प्रमेश्वर की अवधारणा से निवेदित किया गया है पंचायत संस्थाओं की भारत में एक सतह और सहस्त्र परम्परा स्वाभाविक सी रही है यदि उनमें क्षेत्रीय तथा ग्राम की रक्षा एवं मालगुजारी वसूलने का कार्य भी ग्रामीण एवं पंचायत की जिम्मेदारी होती थी यह ग्राम संस्थाएं काफी प्राचीन काल की मानी जाती है उन्होंने यह जिक्र किया है कि उनका उल्लेख रामायण एवं महाभारत कथा में भी प्रति स्थापित किया गया था स्थानीय संस्थाओं का विस्तृत जानकारी मनु स्मृति में मिलता हैं मनुस्मृति के अनुसार ग्रामीण शासन के लिए प्रशासन करने की स्थापित संस्था होती थी मुख्य कार्य ग्रामीण निवासियों से करो की उगाही के लिए उपस्थित सभी वरिष्ट पुरुषो के द्वारा एक व्यक्ति को चुनकर जिम्मेदारी होती थी। यही ग्राम में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी होती थी। मौर्यकालीन भारत में पंचायती राज की दशा एवं दिशा पर कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में वृहद् रूप से जानकारी को उल्लेख किया है। इसमें 800 गावो का समूह द्रोह्मुख 400 गावो का समूह खर्वातिक 200 गावो का समूह होता था। प्राचीन समय में भी यह जानकारी प्राप्त होता था गांव में पंचायत राज व्यवस्था चलती थीवैदिक काल से ही पंचायती राज व्यवस्था अपने देश में किसी न किसी रूप से चलती आ रही है वैदिक काल में पंचायत में पहुंचे को परमेश्वर माना जाता है जो उनके द्वारा लिया गया निर्णय सर्वमान या होती थी अधिकारियों में पुरोहित सेनापति और ग्रामीण प्रमुख माने जाते थे ग्रामीण ही पंचायत का प्रमुख को ही मुखिया माना जाता था वह सोनिया आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को मुख्य भूमिका निर्वहन करता था पंचायत राज व्यवस्था को ही स्थानीय स्वशासन भी बोला जाता है अब हम इस गांव की छोटी सरकार भी बोलते हैं कुंवर सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य और राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डॉक्टर अशोक सिंह ने बताया कि हरक़ल खंड में अलग-अलग स्वरूप में पंचायती राज व्यवस्था के निशान मिलते रहे हैं
बिहार और बौद्धकाल में पंचायती राज
600 ईसवी पूर्व से 400 ईसवी पूर्व के बौधकालीन भारत में भी पंचायत का स्वरूप बहुत ही सर्व्श्रेश्थम था। गांव का मुखिया इस दौरान ग्राम योजक कहलाता था। बुद्धकाल में ग्राम योजक एवं अत्यंत महत्वपूर्ण पदाधिकारी था जो गांव के सभी मुद्दों को स्वयं सुलझाता था। गांव के अभियोगों के निर्णय से लेकर मधपान,जुआ, उत्पीड़न, महिला शोषण,भेदभाव, छुआछूत, अशिक्षित ,पशु हिंसा जैसी वारदातों से प्रभावित समाज को स्वतंत्र रूप से अधिकारों को दिलाना परम कर्तव्य बना था। ऐसी हरकतों एवं कुरतियो को प्रतिबंधित करने का उसे अधिकार था। इस राज्य में गावो पूर्ण स्वाबलंबी प्रजातंत्र था। ग्रामीण स्तर पर चुनाव सभा द्वारा किया गया था 321 ईसवी पूर्व से 305 ईसवी पूर्व के चंद्रगुप्त मौर्यकाल भारत में विधमान पंचायती राज व्यवस्था का उल्लेख विवेकपूर्ण रीति रिवाज से कौटिल्य के अर्थशास्त्र में किया गया है तत्कालीन प्रशासन बिहार में ग्राम सभा द्वारा गांव के प्रशासन संभालना आसान रास्ता था। ग्राम का प्रमुख मुखिया होता था जो की पूर्णता स्वतंत्र होता था ग्रामीण की नियुक्ति सरकार करती थी इस अर्थ का अधिकारी समझा जाता था मौर्यकालीन बिहार में ग्राम सभा के रुद्रास्त्र कर्म वृद्ध एवं वरिष्ठ निर्णायक होते थे। गुप्तकालीन बिहार में ग्राम शासन की छोटी इकाई माना गया था। ग्रामीण महत्व या महत्क ग्राम का मुखिया होता था दक्षिण का चोल शासक साम्राज्यकालीन भारत में पंचायत को महासभा कहा जाता था ग्रामीण स्वभाव के क्रियाकलाएं की जानकारी उत्तरमेरुर के दो अभिलख 919 एवं 929 से पता चलता है। ग्राम वासियों द्वारा प्रत्यश निर्वाय रीति से महासभा के प्रतिनिधियों का प्रतिवर्ष निर्वाचन 3 वर्ष के लिए होता था तथा 1/3 सदस्य प्रतिवर्ष बदल दिए जाते थे महासभा का मुखिया ग्रामीण होता था। उससे कर वसूली गावो की रक्षा, सड़क, सिंचाई, मनोविज्ञान की व्यवस्था का अधिकार था। राजपूत कल की शुरुआत से ही आदिकालीन से बिहार में पंचायती राज का उद्देश्य ग्रामो को स्वायतता प्रदान करना रहता है। यदि मध्यकालीन में भी (१२००-१५२८) पर दृष्टिपात करे तो पत्ता होता है की उस दौरान भी पंचायती राज व्यवस्था विस्तृत रूप से विद्धमान थी। बौद्धकाल से ही गाव की शासन व्यवस्था को व्यवस्थित कर दिया गया था। गाव के शासक को ग्राम्योजक कहते थे। गव से जुड़े मामले सुलझाने का दायित्वा ग्राम्योजक पर ही रहता था। लिहाज़ा सरकार का दलाल भी कहा जाता है गांव के मुखिया का प्रधान के रूप में जाने जाते थे।
मध्य और मुगलकालीन पंचायती राज सल्तनत काल
सल्तनतकाल में भी सबसे छोटी इकाई गांव ही होती थी इसमें ग्राम पंचायत का प्रशासनिक स्तर बहुत उम्दा था गांव का प्रबंधन लेबर दारो पटवारी यो और चौकीदारी के जिम्मे था मुगल काल में भी गांव ही सबसे छोटी इकाई हुआ करती थी पंचायत में चार प्रमुख अधिकारी हुआ करती थी मुकदम पटवारी चौधरी और चौकीदार गुप्तकाल की सौ साहसी निकाय मुगल कालीन शासन में भी व्यवस्था क्रियाशील था समस्याओं के उत्थान के बाद परंपरागत अधिकारी मुखिया लेखाकार चौकीदार इस समय के भांति क्रियाशील थे ग्राम शासन की इकाई अभी भी है आइने अकबरी के अनुसार मुग़ल काल में परगनों के विभाजन कर गावो में कर रखा था मुकद्दम,पटवारी एवं चौधरी इसके लिए महत्वपूर्ण अधिकारी सर्वोच्या माना जाता था। गावो के मुकद्दम और चौधरी को मुखिया या प्रधान के रूप में जाने जाते थे। वही मराठा कल के दौरान भी पांच और सभा को बहुत ही तरजीह दिया गया था और शिवाजी ने अलग अलग पद को सुशोभित किया था सभा में उपस्थित विघ्नों को भी निर्णय लेने की अधिकार दिया गया था।
ब्रिटिसकाल में पंचायती राज
अठारहवीं सदी का मध्यकाल आते-आते गांव की आजादी और स्थानीय शासनिक संस्थाओं जो की लगातार बनी रही है तकरीबन यह भी मान लिया गया था कि ब्रिटिश शासन के दौरान खत्म हो गई थी शुरुआती दौरान में विशिष्ट शासको ने पंचायत को नकारात्मक विधि व्यवस्था लागू करते रहे क्योंकि उन्हें पंचायती राज विषय के बारे उनको मालूम नहीं थी लेकिन बाद में उनका पंचायती राज के संस्थानों की जानकारी हुई उन्होंने स्वयं पंचायती राज व्यवस्था संस्थाओं को मजबूती देने का कार्य किया लॉर्ड रिबन सन 1882 का प्रस्ताव को प्रमुख है जिसके जरिया ब्रिटिश शासन के अंतर्गत समस्त गांव का कानूनी रूप से स्थानीय स्वशासन का विस्तार किया गया है 1910 ई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन भारतीय नेताओं ने ब्रिटिस सरकार से मांग रखी। अन्तः अंग्रेजो ने 1920 ई.में भारत के सभी प्रान्तों में ग्राम पंचायत अधिनियम पारित कर अधिकारों के साथ इस व्यवस्था के साथ लागु किया सन १९०७ ई.सत्ता विकेंद्रीकरण आयोग ने एक संतुस्ति प्रदान की। जिसमे भारत सरकार अधिनियम १९१९ ई. में आया ,लेकिन राजनीती हस्तक्षेप के कारण स्थानीय स्वायत शासन के क्षेत्र कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हो सकती थी। सन १९३५ ई. में भारत सरकार एक्ट के अम्प्लिमेंट होने के बाद प्रांतीय स्वयायता का निर्माण किया गया। और उन्होंने स्थानीय संस्थाओ को जनता मूल प्रतिनिधि भी पंचायत राज व्यवस्था को ही धारमिला था। स्थानीय स्वशासन के इतिहास में “अंधकार का काल (डार्क पीरियड) १९३९ से १९४५ तक की अवधि को माना जाता है।
आज़ादी मिलने के पश्चात पंचायत राज की स्थिति
सन १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी मिलने के पश्चात भारत में स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में नए रूप में पहल की गयी ।२६ जनवरी १९५० को नए संविधान का निर्माण कर उससे लागु किया गया संविधान में स्थानीय स्वशासन को राज्य की संस्थागत आत्मा भी मन गया है। और राज्यों के नीति निर्देशक सिद्धांतो में कहा गाया की “राज्य का कर्त्तव्य होगा की वह ग्राम पंचायतो का इस ढंग से संगठित करे की पंचायती राज व्यवस्था में स्थानीय स्वशासन कि इकाईयो के रूप में कार्य कर सके। पंचायती राज सत्ता के विकेंद्रीकरण पर आधारित एक प्रजातान्त्रिक व्यवस्था है। आधुनिक समय में पंचायती राज का प्रशासनिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है क्योकि इससे प्रांतीय एवं केन्द्रीय सरकार का कार्य हल्का होता है। इसके अलावे इसने लोकतंत्र को सफल बनाने में और आर्थिक नियोजन विकास कार्य में ,महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का कार्य किया है प्रत्येक नागरिक सर्वप्रथम लोकतंत्र की शिक्षा एवं राजनैतिक प्रशिक्षण का यही से मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इसे ग्रासरूट डेमोक्रेसी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। धरातल पर लोकतंत्र से यह प्रतीत होता है कि ऐसी राजनीति प्रशिक्षण यही से प्राप्त किया जाता है। ऐसी राजनीतिक विचार की बनावट जिसमें लोकतंत्र स्थानीय स्तर तक पहुचा सके और वह केवल राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर सीमित ना रहे आरo बीo जैन के शब्दों से जानकारी होती है की धरातल पर लोकतंत्र की अवधारणा केवल लोकतंत्र का मुख्य दर्शन मात्र नहीं है बल्कि किसी भी देश की धरती में लोकतंत्र के गहराई से बीज रोपण का निश्चय किया गया और यह सफल हो गया है।
लोकतंत्र एक जीवन का संसाधन है राजनीति में लोकतंत्र के प्रयास का मतलब केवल राज्य सप्ताह में विलीन लोगों की भागीदारी का प्रयास नहीं होता है बल्कि सरकार के दैनिक भागीदारी का प्रयास नहीं होता है बल्कि सरकार के दैनिक कामकाज के लोगों को सहभागी बनाना भी है लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण लोगों को सव्भागिता प्राप्त करने का सशक्त उपाय है लोकतांत्रिक शब्द सत्ता के विकेंद्रीकरण में लोगों के व्यापक अधिकतम और निकटतम सहयोग की आकांक्षा को अधिक स्पष्टता देता है स्वतंत्रता के बाद भारत में पंचायतो के महत्व को स्वीकार किया गया। भारत के संविधान निर्माता भी पंचायत के महत्व से परिचित थे। अतः उन्होंने 1950 के संविधान में निर्देश दिया कि ग्राम पंचायत के निर्माण के लिए राज्य कदम उठाएगा और उन्हें शक्ति और अधिकार देने का कार्य करता है। जबकि वह ग्राम पंचायत स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य कर सके। इस प्रकार पंचायत का विषय राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत 40 वे अनुच्छेद में समाविष्ट किया गया , परंतु उन्हें संवैधानिक दर्जा प्रदान नहीं किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार ने सीधे पंचायतो के स्थापना के बदले अमेरिकी सलाहकारों द्वारा सुलझाए गए। सामुदायिक विकास परियोजनाओं के प्रयोग की श्रेयास्कर समझा। ऐसे ही देखा गया की 2 अक्टूबर 1952 को महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर ऐतिहासिक सामुदायिक विकास कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। इस कार्य क्रम के दो प्रमुख लक्षण बताए गए हैं।
(क) संपूर्ण देहाती क्षेत्र के लोगों का सर्वागीण विकास
(ख) जनता की सौभाग्यता या लंबे समय तक चलते रहा था परंतु इससे वंचित परिणाम सामने नहीं आ पाया था। जिसके फल स्वरुप विकास ममता आर्थिक और राजनीतिक समस्या का एक यांत्रिक साधन था। जिससे जनता जुड़ नहीं सकी। सामुदायिक विकास कार्यक्रम से जनता को नहीं जोड़ने के कारण को पता लगाने के लिए जांच का विषय पर अध्ययन करने और समस्याओं का निपटार लिया जाता है। स्वशासन को प्रभावी ढंग से मुख्य धारा में लाकर सभी बढ़ाओ को दूर कर ली जाती है।
इसी समस्या के लिए समिति की गठन करके 1957 ईस्वी में बलवंत राय मेहता के नेतृत्व में एक समिति गठन की गई जिसमें व्यापक जांच के लिए पंचायती राज की रूपरेखा सामने रखी। अतः 12 जनवरी 1958 राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा मेहता समिति के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस समिति ने निकले स्तर और उत्तरदायित्व के साथ ही राज्य सरकार को यह सुझाव दिया कि पथ प्रदर्शन कर कार्य अपने पास सुरक्षित रखा तथा अति आवश्यक समझ कौर इस संस्थाओं को संगठित कर बिटिया सहायता प्रदान करें। मेहता समिति ने ग्रामीण स्वशासन के लिए त्रि शास्त्रीय पंचायती राज का सुझाव सुखायान। तथा 2 अक्टूबर 1959 ईस्वी में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर नामक जिले में मेहता समिति की सिफारिश के मुताबिक पंचायत राज व्यवस्था का उद्घाटन किया। इसके फल स्वरुप देश के अन्य भागों में पंचायती राज व्यवस्था के एक-एक करके अन्य क्षेत्र में भी लागू किया पंचायती राज व्यवस्था में हो रही कमियों को दूर कर करने के लिए समय-समय पर बदलाव किया गया। समय के साथ कई समितियों को गठित किया गया।
पंचायती राज्य का अर्थ होता है कि ग्रामीण स्वशासन व्यवस्था की गावो की शासन व्यवस्था का संवैधनिक किया गया। ऐसा कहना उचित नहीं होगा कि यह लोकतान्त्रिक थी कि नहीं लोकतंत्र का निर्माण करने के लिए राज्य स्तर पर विधानसभा में पेश किया गया कि ग्रामीण विकास का निर्णय किया जा सके इसका प्रमुख विषय संविधान निर्माण से उठाया गया किंतु गांधीवादी विचारधारा के लोगों ने पंचायती राज का समर्थन किया सत्ता सट्टा का विकेंद्रीकरण की छोटे-छोटे अस्त्रों पर टूटकर शक्ति हासिल हो।
“अगर हिंदुस्तान के हर गावो में कभी पंचायती राज कायम हुआ तो मै अपनी इस तस्वीर की सचाई साबित कर सकूँगा जिसमे सबसे पहला और आखरी बराबर होंगे या ये कहिये की न तो कोई पहला न आखरी होगा”।
- अंबेडकर जी का मानना है कि में पंचायती राज को समर्थन नहीं करता हूं ग्रामीण स्वशासन के खिलाफ थे।
गावो में जातिगत आधार पर भेदभाव होता है ऐसा में गांव में पंचायती राज व्यवस्था लागू होता है तो दबे पूछ ले शोषण पिछड़ी को अधिकार तो मिलेगा ही नहीं क्योंकि शायद उनको गावो बारे में पता था। बीo आरo अंबेडकर जी का कहना था कि जब तक मैं इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाता की प्रत्येक स्वशासी संसथान में ऐसे प्रावधान हो। जो दलितों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिनिधित्व देते हो। जब तक मैं इस बिल के पहले हिस्से को सहमति नहीं दे सकता। प्रत्येक सो शासित ग्रामों में प्रावधान है दलितों के अधिकार के लिए डर था और उनको यह डर सायद गलत भी नहीं था। शुरुआती रूप में यह कहा गया की स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के द्वारा भाग चार में अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतो के गठन और उन्होंने शक्तियां प्रदान करने की बात की लेकिन संवैधानिक के दर्जा नहीं मिला। चाहे अपने स्तर पर व्यवस्था बना सकता है कि ग्रामीण स्तर पर ध्यान दें मैं आपको यह बता दूं कि DPSP( direct principal of State policy.) के तहत आया था। राज्य के नीति निर्देशक राज्य में ऐसा करने की बाध्यता नहीं थी चाहे वह बने अन्यथा नहीं बनाए।
संविधान बनने के बाद 1952 ईस्वी में सामुदायिक विकास कार्यक्रम शुरू किया।
1953 में राष्ट्रीय विस्तार सेवा की समीक्षा करने के लिए सरकार ने समिति का गठन किया था उसे समिति का नाम था बलवंत राय मेहता समिति जनवरी 1957 इसका प्रमुख थे कई जगहों पर समिति के द्वारा जाँच किया और समिति ने नवंबर 1957 में रिपोर्ट को सौंप दिया। और कुछ सिफारीसे की जो उनका सिफारिसे बहुत ही महत्वपूर्ण थ।
राज्यों में त्रिस्तरिया पंचायती राज पछति की स्थापना हो।
- गांव स्तर पर ग्राम पंचायत होनी चाहिए।
- ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति होना चाहिए।
- जिला स्तर पर जिला परिषद की व्यवस्था होनी चाहिए
यह पहली बार किसी ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की बात कही थी। आगे चलकर 73वें संविधान संशोधन के तहत चलकर अपनी गई थी। इस रिपोर्ट को 1958 में चलकर स्वीकार कर लिया गया 2 अक्टूबर 1959 राजस्थान के नागौर जिला में पहली बार अपनाई गई। सबसे ज्यादा नागौर जिला में ही अपनी गई थी। इसी को देखते हुए आंध्रप्रदेश में भी 1959 ईस्वी में पंचायती राज व्यवस्था को अपनी गई थी। आगे चलकर कई राज्यों में एक-एक कर लागू कर दिया। लेकिन निति निदेशक सिद्धांत के तहद यह लाया गया था। यह अनिवार्यता नहीं थी कि सभी राज्य को ही लागू करना है। अपने राज्य के भलाई के लिए यह पंचायती व्यवस्था को नीति निर्देशक सिद्धांत को लाया गया था। इसमें को बाध्यता नहीं थी। कोई राज्य रखे या ना रखें। संवैधानिक कारण नहीं हुआ था वह चीज करीब 20 वर्षों तक टल गई ग्रामीण क्षेत्रो को कोई फायदा नहीं हुआ।
- दिसंबर 1977 में अशोक मेहता समिति बनी इस समिति ने अगस्त 1978 में एक रिपोर्ट सौंपी इस समिति में राखी तो बहुत सारी चीजों को लेकिन राज्यों में द्विस्तरीय पंचायती राज पद्धति की सिफारिश करी
1. गांव स्तर पर ग्राम पंचायत मंडल
2. जिला स्तर जिला परिषद
जीo बीo केo राव समिति दिसंबर 1985 बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहीं की दफ्तर सही युक्त होकर पंचायत राज से विच्छेद हो गई है और पंचायती स्टार है वह अस्तर थलक रह गया है यानी कि जो विकास होता है वह दफ्तर अस्तर पर ही होता है ना कि ग्रामीण विकास भूमिगत नहीं दिखता इस तरह से पंचायती राज व्यवस्था को नीति निर्देशक तत्व को जो बनाई गई है वह कमजोर पड़ गई है वह परिणाम एवं इन्हें बिना जड़ की घास कहा गया है यह महत्वपूर्ण शब्द है कोनी के लिए संस्था बनी हुई है इससे काम कोई कुछ हो नहीं रहा है यह राव समिति थी इन्होंने पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने के इरादे से सिफारिश की थी एलo एमo सिधेवी समिति 1986 राजीव गांधी सरकार के तहत पंचायत राज व्यवस्था को सावधानी रूप से मान्यता प्रदान की जाए इसको राजनीतिक निर्देशक तत्व से बाहर निकाल कर रखा गया संवैधानिक निकाय बनाई जाए इसमें दूसरी या थी कि नया पंचायत की स्थापना तीन स्तर पर की जाए
क) सर्वोच्च न्यायालय
ख) उच्च न्यायालय
ग) जिला न्यायालय
इसमें एक छोटे स्तर पर न्याय व्यवस्था हो उसे निचले स्तर पर निपटा सके जो संवैधानिकरण करने की प्रयास यही से प्रारंभ होता है और 1989 में पहली बार लोकसभा में यह विधेयक पारित किया लेकिन राज्यसभा ने नहीं किया। उसे समय की विपक्ष ने यह बिल पर सपोट नहीं किया था। उनकी सरकार चली गई फिर आई वि० पीo सिंह की सरकार भी कोशिश करी लेकिन लागू नहीं हो पाया और सरकार फिर चली गई अभी नरसिम्हा राव की सरकार में यह विधायक पारित कर दिया गया सितंबर 1991 को लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया।
यह विधेयक 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के रूप में पारित किया गया।
24 अप्रैल 1993 को यह प्रभाव में आया। इसी दिन को पंचायत दिवस मनाया जाता है इसमें प्रावधान आया।
A) संवैधानिक होने का दर्जा मिला
B) भाग 9 सभी 11 अनुच्छेद 243 से 243G एवं अनुच्छेद (243 A – 243 0 तक)
इस अधिनियम में पंचायती राज में प्रमुख सभी विषयों को सम्मिलित किया गया है जो की निम्नलिखित है अति आवश्यक बिंदुओं को महत्व स्थान दिया गया है
1. कृषि जिसके अंतर्गत कृषि विस्तार को ध्यान में रखा गया
2. भूमि विकास भूमि सुधार का कार्य नयन चकबंदी और भूमि संरक्षण
3. लघु सिंचाई जल प्रबंधन और जल विभाजन क्षेत्र का विकास
4. पशुपालन डेरी उद्योग और कुकुट पालन
5 पालन
6. सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी
7. लघु उद्देश्य जिनके अंतर्गत खाद या प्रसंग कारण भी है
8. खादी उद्योग ग्राम उद्योग और कुटीर उद्योग
9. ग्रामीण अवसान
10. पेय जल
11. ईंधन और चार
12. सड़के पुलिया ताल फेरी जल मार्ग और अन्य संधार शासन
13. ग्रामीण विद्युतीकरण जिनके अंतर्गत विद्युत का वितरण है
14. अपरपरित उद्योग
15. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
16. शिक्षा जिनके अंतर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय
17. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा
18. पौध और अनौपचारिक शिक्षा
19. पुस्तकालय
20. संस्कृत क्रियाकलाप
21. बाजार और मेला
22. व्यवस्थापक और स्वच्छता जिनके अंतर्गत अस्पताल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय भी हो
23. परिवार कल्याण
24.महिला एवं बाल विकास
25. समाज कल्याण जिनके अंतर्गत विकलांग को और मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों के कल्याण भी हो
26. दुर्लभ वर्गों का और विशिष्ट अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जाति जनजातियों काकल्याण
27. सार्वजनिक वितरण प्रणाली
28. सामुदायिक अस्थियों का अनुरक्षण
C. त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था
D. सीटो का आरक्षण महिलाओं के लिए 1/3 इससे अधिक किया जा सके जबकि बिहार सरकार ने करके सभी अन्य राज्यों को दिखाया कि 50% आरक्षण महिलाओं को देखकर पंचायत प्रतिनिधित्व संभालने की अवसर प्रदान किया । SC ST OBC महिलाओं की जनसंख्या अनुमात
E. राज्य निर्वाचन आयोग कि राज्य सरकार कराएगी
F. कार्यकाल 5 वर्ष पद त्यागने के आकस्मिक मौत एवं आयोग होने के पक्ष के 6 माह के अंदर पूर्ण निर्वाचन
G. चुनाव लड़ने की निम्न में आयु सीमा 21 वर्ष होनी चाहिए
राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग का गठन कीजिए जिम्मेदारी पंचायत को पैसा आवंटन करने के लिए संस्था गठित करने का प्रावधान है ।
७३वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम १९९२
संविधान के अनुच्छेद 40 में यह अंकित किया गया है कि राज्य ग्राम पंचायत का संगठन करने के लिए बहुत ही सही कदम उठाया और ऐसा ही शक्तियों और प्राधिकार प्रदान करने को कहा गया है। जो उन्हें स्वायत शासन की हरेक निकायों को पुनजीवित करने का कार्य किया। इकाइयों को कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो किंतु अनुच्छेद 40 में इस कार्य के लिए पूरे बिहार में ही इस पर बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि प्रतिनिधि लोकतंत्र की इकाई के रूप में स्थानीय स्वशासन के निर्वाचन कराए गए। किंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय में यह विचार किया गया कि इन स्थानीय इकाइयों के गठन के लिए संविधान में ही विनिदिर्ष्ट उपबंध कर स्थापित करवाया जाए। संविधान में ही मार्गदर्शन को क्रियान्वित करके धरातल पर उतर जा सके। विभिन्न व्यवस्था को संसाधन के लिए पंचायती राज व्यवस्था में लाने की कार्य कराया गया। राज्यों के लिए विधानमंडल में विस्तृत विधिया बनाया गया और इसी विचार को परोपकार समझकर लोगों को बदहाली से बचाया गया। इसी विचारों के फल स्वरुप 73वें संविधानिक संशोधन 1992 के रूप में विस्थापित हुआ। यह अधिनियम अप्रैल 1993 से विस्तृत हुआ। संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा से संविधान के पूर्ववर्ती भाग 8 के बाद एक नया हिस्सा भाग 9 पंचायत की शीर्षक को जोड़ा गया। हम यह जानते हैं कि संविधान में अनुच्छेद 243 के क से ण तक जोड़ने हुए भी देश देश में पंचायती राज व्यवस्था संस्थाओं से गठन आवश्यक विषय मानकर समाहित किया गया है। हर एक पहलुओं को ध्यान में रखकर तत्वों को जोड़ा गया की पंचायत की आमजन के लिए मूलभूत सुविधा से वंचित को सम्मिलित किया जाए। जिन राज्यों में जनसंख्या 20 लाख से कम है उन राज्यों में पंचायत की कई जरूरी नहीं माना गया है ऐसे ही समय-समय पर जरूरत की सुविधा को लाने के लिए संविधान में संसाधन कर के आमजन के लिए एक उपलब्धि हासिल की इसमें
1. अनुसूचित जाति आरक्षण
2. अनुसूचित जनजाति आरक्षण
3. महिला आरक्षण
4. पिछड़ वर्ग आरक्षण
यह आरक्षण जनसंख्या को देखकर के अनुपात में रहता है। यदि आरक्षण को श्रेणी क्रम में किया जाए तो अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 30% अनुसूचित जनजातियों की जनसँख्या का 21% है तो इसी क्रम में आरक्षण ऐसे ही क्रम में रखा जाता है इस प्रकार आरक्षित स्थानों में से 1/3 स्थान अनुसूचित जातियों और जनजातियों की महिलाओं के लिए क्षेत्र स्थान का प्रत्येक पंचायती राज संस्था द्वारा घोषणा कर दिया जाता है। यह भी निर्णय कर लिया जाता है कि 1/3 स्थानो को महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाता है। यह बड़ी आबादी को देखते हुए आरक्षण के स्थान को व्यवहार में लिए जाते हैं। ऐसे स्थानों की चिन्हित करके बारी-बारी से आरक्षित स्थानों को पंचायत पदाधिकारी द्वारा घोषणा किया जाता है। यह वंचित जाति समूह को मूलभूत अधिकार देकर उन्हें भी सामान भागीदारी की योग्य बनाया जा सके अपने पिछड़ेपन को अपने ही जाति समूह को विकास कर सके। राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था में विधि व्यवस्था को प्रतिस्थापित करने की योजना से किसी भी स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था कराया गया। लोकतंत्र की खूबसूरती यह है कि प्रत्येक पंचायत प्रथम अधिवेशन की तारीख से 5 वर्षों का आरक्षण एवं कार्यकाल होता है। अगर पंचायत पहले वितरित कर दी गई है तो विधतन की तारीख से 6 माह के भीतर निर्वाचन हो जाना चाहिए। किंतु बची हुई अवधि 6 माह से कम की स्थिति में निर्वाचन करना आवश्यक नहीं होगा। अनुच्छेद 243 में यह शामिल किया गया कि वे सभी प्रतिनिधियों की आयु सीमा को 21 वर्ष तक सीमित है। वही वोटर की आयु सीमा को 18 वर्ष वोट देने की अधिकार है। 243 छः 243 ज के द्वारा राज्य विधान मंडलो को यह विधायक सकती है कि वह पंचायत को ऐसी शक्ति और प्राधिकार प्रदान करने उपबंध है। बिहार की पंचायती राज व्यवस्था को वे स्वशासी संस्थाओं के रूप में कार्य कर सके। उन्हें जबकि उत्तरदायित्व 100 पे जा सकते हैं उनमें है
(क) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजनाएं तैयार करना अनुसूचित कराया गया है ।
(ख) आर्थिक और सामाजिक न्याय की स्कीमों का क्रियानवयन और
(ग) 11वीं अनुसूची में दिए गए विषय को ध्यान में रखकर 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा अंत: स्थापित की गई है। इसी तरह अनुसूची में 29विषयों को व्यवहारिक बनाया गया है। भूमि सुधार ,लघु सिंचाई, पशुपालन, मत्स्यकी, शिक्षा, महिला और बाल विकास आर्थिक 11वीं अनुसूची के द्वारा राज्य विधान मंडल और पंचायती राज की बीच का शक्ति विभाजन का कार्य इस तरह से किया गया है जैसे की अनुसूची 7 में संघ और राज्य विधान मंडल के बीच किया गया हो। यह शक्तियां स्थानीय निकायों को राज्य विधान मंडल द्वारा पूर्ण व्यवहार में लाया जाएगा। संविधान के द्वारा पंचायती राज को शुद्ध और स्वस्थ बनाने के लिए अनुसूची के माध्यम से संशोधन करके व्यवस्थित करने के कार्य किया गया है। इसी तरह विधानमंडल के द्वारा संशोधन करके जरूर के मुताबिक लाया गया है। सामाजिक उत्थान के लिए पंचायत को दुरुस्त करने की कार्यकलाप किया जाने लगा।
73वें संविधान संशोधन करके एक ऐसा अधिनियम के तहत पंचायत फसल बनाने की और आर्थिक व्यवस्था स्थापित किया गया है। राज विधि द्वारा पंचायत को कर शुल्क, पथकर आदि का उदग्रहण करने जुटाने की प्रयत्न किया जा सकेगा। राज्य की विधि द्वारा संचित निधि से पंचायत संस्थाओं को अनुदान देने की सर्वभौतिकता प्राप्त किया है। ऐसे संस्थानों को आर्थिक अनुदान देने व्यवस्था करी गई है। अनुच्छेद 280 में वित्त व्यवस्था के तर्ज पर 73वें संविधान संशोधन द्वारा राज्य सरकार पंचायत की वित्तीय स्थिति का पुनर्स्थापित करने के लिए एक पंचायत वित्त आयोग की स्थापना होना अति आवश्यक माना गया है।
अनुच्छेद 243 के तहत पंचायतो के लिए राज्य निर्वाचन आयोग के गठन का प्रावधान प्राप्त है। जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयोग की गठन करने का भी प्रावधान है जिसके कर कमलो से राज्यपाल के द्वारा किया जाना संवैधिक है। आयोग स्वतंत्र बना रहे इसके लिए राज्य निर्वाचन आयुक्त को पूर्व से चली आ रही परंपरागत है इस तहत के रीति रिवाज से हटाया जा सकता है जिस तरीके से विधि के समक्ष उच्च न्यायालय के रीती रिवाज से हटाया जा सकता है। जिस तरीके से विधि के समक्ष उच्च न्यायलय के न्यायाधीश को हटाया जा सकता है। फलस्वरुप या देखा गया है कि अनुच्छेद 329 के तहत कहा गया है कि निर्वाचन की प्रक्रिया शुरू हो जाने में न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। इस तहत 73वीं संविधान संशोधन अधिनियम 1992 संवैधानिक अधिनियम के द्वारा सामाजिक भलाई की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण संशोधन साबित हुआ है।
बिहार में पंचायती राज एवं सामाजिक न्यायाधीक व्यवस्था
बिहार में पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास कभी आधा नहीं रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1910 ई० के अधिवेशन में ग्राम पंचायतो की स्थापना की मांग रखी गई। ब्रिटिश सरकार से पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना एक अपने आप में महत्वाकांक्षी संस्थान की मांग की इसके भांति अन्य राज्य की तहत बिहार सरकार अधिनियम 1920 में पारित करके प्रतिस्थापित किया गया। किंतु आजादी के बाद बिहार में पंचायतो की स्थापना के लिए बिहार सरकार के द्वारा बिहार पंचायती राज अधिनियम 1947 पारित किया गया था। इसके फलस्वरुप से एक साहसिक कदम पूरे राज्य में 1949 ईस्वी में ग्राम पंचायत की स्थापना की जाने लगी। अक्टूबर 1959ई० को राजस्थान के नागौर जिला में पंचायती राज कानून अखिल विधिवत लागू होने के बाद बिहार में भी 1959 ईस्वी में इसी कानून में संशोधन करके चौंका दिया बिहार सरकार ने 1961 सपा में पंचायत समिति एवं जिला परिषद अधिनियम बनाकर बिहार में त्रिस्त्ररीय पंचायती राज की व्यवस्था की गई। 73वें संविधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 के बाद पूर्व के पंचायत समिति एवं जिला परिषद अधिनियम को निरस्त कर दिया गया तथा 23 अगस्त 1993 को 73वें संविधानिक संशोधन के तर्क पर बिहार के कुछेक जनजाति क्षेत्रो को छोड़कर संपूर्ण बिहार राज्य में पंचायती राज कानून विद्युत रूप से लागू कर दिया गया राज्य सरकार के इस अधिनियम के अनुसार कई गांवों को मिलाकर एक ग्राम पंचायत या एक बड़े गांव में एक से अधिक ग्राम पंचायतो की स्थापना कर सकती है राज्य सरकार 7000 की औसतन आबादी वाली ग्राम पंचायत की स्थापना का प्राथमिकता मानी जाती है प्रत्येक 500 आबादी की जनसंख्या वाली ग्राम पंचायत के लिए 110 की प्रत्यक्ष चुनाव का प्रावधान है। अतः इन चुनाव में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति को उनके आबादी के अनुपात मैं आरक्षण का लाभ देने की बात करी गई है। पहले महिलाओं के लिए संपूर्ण सीटों में 1/3 प्रावधान किया गया है। किंतु वर्तमान में बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के समान सभी एकल पद समेत सभी स्तर के पदों पर महिलाओं को 50% आरक्षण दिया गया है। इस तहत बिहार में पंचायती राज व्यवस्था में सामाजिक न्याय को प्रमुखता प्रदान किया गया है कि समाज के विभिन्न वर्ग शोषित वंचित, पिछड़ा, महिला, महिलाएं, भेदभाव, आर्थिक रूप से भिन्न है उन्हें बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने पंचायती राज अधिनियम 2006 को विधानमंडल में प्रस्तुत करके समाज को नया बिहार की निर्माण कर दिया। जिससे समाज के प्रत्येक वर्ग की इच्छा शक्ति को उजलीत कर दिया। आज के दौर में देखा गया कि महिलाओं को अपना भी प्रतिमा दिखने में कहीं पीछा नहीं रही है। बिहार के पंचायत चुनाव में अपना बहुमूल्य वोट, हक की बात करने लगी। महिलाएं उस दौर से बाहर निकाल कर अपने आरक्षण के तहत पंचायत सदस्य हो या अफसर बिटिया तक पहुंचने में कामयाबी हासिल कर लिया है। मैं 2006 से पहले देखा था कि महिलाओं को कोई मुख्यदायित्व नहीं होती थी बल्कि चूल्हा चौकी के अलावा अब यह प्रस्तुति रही की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, एवं वैज्ञानिक की रूप रेखा तैयार करने की जिम्मेदारी में मुख्य भूमिका देखा गया है। अब उसे सामाजिक परिवर्तन को बिहार में पंचायती राज व्यवस्था में सामाजिक कुरीतियों को समाप्त कर अब कीर्तियां स्थापित किया जा रहा है जाति से पीड़ित समाज को परिवर्तन हवा मिल गया है और अपने आप से ऊपर उठकर अपने हिस्सेदारी को प्रबलता से वहन कर रही है। चाहे वह शिक्षा एवं रोजगार हो या मूलभूत सुविधा से चूक गया हो, उन्हें भी अपने इच्छा अनुसार संसाधन का उपयोग में ले सकते हैं। पंचायती के द्वारा न्यायालय से ज्यादा गति से न्याय करने की संभावना होती है।
बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 का महत्वाकांक्षा
भारत में पंचायती राज के इतिहास में सबसे सफल कदम बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 लाकर प्रथम स्थान हासिल किया देश का पहला राज्य है। जो बिहार के पंचायत में सामाजिक परिवर्तन लाकर सभी राज्यों को चौंका दिया था। जिसने बिहार पंचायतो एवं शहरी निकायों अर्थात स्थानीय स्वशासन में आम लोगो की सौभाग्यता बढ़ाने, पारदर्शिता लाने, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातीय, समाज के विकलांग, अत्यंत पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं (शीर्षक, वंचित, आर्थिक, भेदभाव, एवं मृत समाज) शिक्षित वर्ग समानजनक प्रिसिथिति में लाने के लिए उनकी भागीदारी भी अहम रही है। और अपनी भागीदारी से सुनिश्चित करने सार्थक प्रयास किया है। इस अधिनियम के तहत त्रिस्तरीय पंचायतो के सभी कोटियों में एकल पदों सहित सब पदों पर वंचित वर्ग को (SC को 16% ST को 1%) उचित प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से उनकी अपने जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान कर “सब की सर्व की” का अहबन किया गया है। उचित प्रतिनिधित्व देने के उदेश्य से उनकी अपने जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान कर “सब की सर्व की” अहबान किया गया है। उचित प्रतिनिधित्व के सहारा लेकर आरक्षण का व्यवस्था शांति पूर्ण एवं निष्पक्ष चुनाव के द्वारा इन वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है।
‘बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 का महत्व यह है कि बिहार की पिछले समाज को पूर्णनिर्माण में अहम भूमिका है। इसलिए पूरे देश में पहली बार राज्य सरकार द्वारा 73वें मूल संवैधानिक संशोधन द्वारा पिछले वर्ग को पंचायती राज में आरक्षण के प्रधान से बिहार के जनता को हिम्मत देने का कार्य किया है। फलस्वरुप राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से अपेक्षित अत्यंत पिछड़ा वर्ग को बिहार पंचायती राज के सभी स्तर के पदों पर 20% का आरक्षण लागू किया है। जब तत्कालीन सरकार द्वारा पंचायती राज में अत्यंत पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया जाने लगा तब सामाजिक न्याय की दिशा में बहुत बड़ा और साहसिक कदम उठाए जाने लगा। यह अब आरक्षण बिहार के अति पिछड़े वर्ग को राजनीतिक एवं सामाजिक सशकित्करण में निल का पत्थर साबित हुआ है। और समाज के अंदर राजनीतिक भूख और नेतृत्व की कसमसाहर देखी जा सकती है। यह अलग-अलग बात है की जनसंख्या के अनुपात अत्यंत पिछड़े वर्ग की आबादी लगभग 35% में इस वर्ग को पंचायतो में प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका। इस समाज को मुख्य धारा में लाने के लिए यह कदम बहुत ही साहसिक माने जाने लगा EBC की बड़ी तादाद को कोई स्थान नहीं होता है। ऐसे ही चली आ रही परंपरागत की आखिरी समय का अंत हुआ। बल्कि आसामान समाज को बराबरी के हक देने के लिए श्री नीतीश कुमार ने अपनी कार्यकाल के दौरान एक बड़ी समाज को निकालने की कार्य किया। ऐसे समाज जो कि अपनी कोई स्थान प्राप्त नहीं थी उन्हें समाज में हक दिलाए एवं ऊपर करने के लिए वंचित समाज से बाहर निकाल दिया वैसे उसका परिणाम भी देखने को मिला है।
बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के तहत ग्राम स्तर पर विवादों को आपसी सौहादत पूर्व वातावरण में निपटने तथा उचित एवं त्वरित न्याय दिलाने हेतु ‘ग्राम कचहरी’ का गठन किया गया है। ग्राम कचहरी को कानूनी मदद के लिए न्याय मित्रों की नियुक्ति का निर्णय लिया गया है जिसमें 50% महिलाओं को आरक्षण दिया गया है। हमारे बिहार में एक ऐसा समाज था जो की महिलाओं के महत्वाकांक्षा को दबाने की कार्य करती थी। उसकी वजह यह होता था कि महिलाएं अपने सपनों को पूर्ण नहीं कर सकती थी। अपने सपनों को छोड़कर घर की कार्य में व्यस्त हो जाती थी।
बिहार की एक दौर 2001 से प्रारंभ हुआ कि बिहार में शिक्षा मित्र की बहाली में कुछ महिला मेधावी हुई और उनको समाज के द्वारा काफी सराहनीय सामान्य स्तर होने से दंपति भी आकर्वित होकर लड़का लड़की की समानता को समझने लगा। निर्वाचित पंचायत महिला प्रतिनिधियों की राजनैतिक जागरूकता में वृद्धि कर समस्याओं की अभिव्यक्त समझने लगा। पंचायत महिला प्रतिनिधियों को देखने से यह प्रतीत हुआ कि समाज में शक्ति के रूप में उभरने लगी है। आज की दौड़ में महिला भी शक्तिशाली निकल रही है। महिलाओं को जागृत करने के लिए तरह-तरह की योजनाओं के द्वारा महाशक्ति बनाने की कार्य कर रही है साथ ही त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं एवं ग्राम कचहरी के निर्वाचित प्रतिनिधियों, जिला परिषद के अध्यक्ष /उपाध्यक्ष, पंचायत समिति के प्रमुख /उपमुखिया, ग्राम पंचायत के मुखिया /उपमुखिया, ग्राम पंचायत के ग्राम कचहरी के सरपंच /उपसरपंच, को प्रोत्साहित करने के लिए नियम वेतन प्रतिमाह, भते, दैनिक भत्ते एवं यात्रा भक्तों तथा अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्यंत पिछड़ा वर्ग के पुरुष एवं महिला तथा अन्य वर्ग की महिला जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले को विशेष मानदेय का प्रावधान किया गया था। इस मद मैं 2008-9 और 2009-10 के कुल 151. 79 करोड़ स्वीकृत हुआ। यह एक ऐसा सामाजिक बदलाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण निर्णय होता है।
बिहार देश का प्रथम ऐसा राज्य है जिसमें पंचायत एवं शहरी निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण दिया । 73वें संवैधानिक संशोधन और अधिनियम 1973, अनुच्छेद 243 के तहत पंचायत के कुल स्थान का 1/3 स्थान महिलाओं को आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है। कि मुझे इसी आधार पर बिहार के पंचायत में पंचायती राज अधिनियम 2006 के तहत बिहार में चुनाव सम्मान हुआ। यह चुनाव 15 मई से 11 जून 2006 के दौरान छः चरणों में हुआ। बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 के तहत त्रिस्तरीय पंचायतो के सभी कोटियों के एकल पदों सहित सभी पदों पर महिलाओं को 50% आरक्षण देकर लाभवंचित स्थानीय स्वशासन में नीति निर्णय एवं क्रियावयन में महिलाओं की सम्मानजनक भागीदारी का रास्ता खुला। पहली बार सभी स्तरों पर 54.73% महिलाएं निर्वाचित हुई जो की एक इकाई दर्ज हुआ है। राज्य की विभिन्न पंचायत में 3784 महिलाएं मुखिया, 237 महिलाएं प्रमुख, 18 महिलाएं जिला परिषद की अध्यक्ष 568 महिलाएं जिला परिषद सदस्य 5371 महिलाएं पंचायत समिति सदस्य 54. 260 महिलाएं ग्राम पंचायत सदस्य 4013 महिलाएं ग्राम कचहरी सरपंच और 54448 महिला जाती कर आदि भी वही अब 2021 की चुनाव में पंचायत के सभी स्तर के पदों पर सुनुचित जाति जनजाति अत्यंत पिछडे स्त्री पुरुष तथा सामान्य महिलाओं का प्रतिनिधित्व पहले के तरह अब के भाटी बदलने के अवसर दिखा है। प्रदेश द्वारा महिलाओं के हित में बना हुआ कानून से न केवल महिलाओ के अंदर आत्मसम्मान की भावना आने लगा था जबकि महिला स्वावलमलंबी की दिशा में एक कारगर हथियार साबित हुआ। यह सामाजिक न्याय एवं महिला सशक्तिकरण की दिशा में ठोस कदम साबित हुआ है। अब यह देखा गया कि पंचायत की प्रत्येक पदों में महिलाओं को अपने प्रतिभा दिखने में सक्षम देखा जाता है। महिला वास्तविक अपने जीवन में कुछ करने की जज्बा है और कुछ ऐसा ही देखा गया है। महिलाओं को आशावानवित हुआ है कि चूल्हा चौकी को छोड़कर अपने आजाद जिंदगी को प्रस्तुत किया है। शिक्षा में भी रही जब वह महिला जिसने भी शिक्षित होने के बाद भी कोई महत्व नहीं थी। और यही समाज में दूसरे महिला देखकर प्रभावित हो जाती थी अपने आप को एक ऐसा समाज की हिस्सा बन जाती है कि कुछ करने की जज्बा को वही समेट लेती है। अनुष्का कुमारी कुशहर पंचायत शिवहर के युवा मुखिया बिहार सबसे कम उम्र की जित हासिल किया है। यह ऐसा कारनामा करने वाली महिला सबसे कम उम्र 21 वर्ष की युवती ने बिहार कि लोकतंत्र में इतिहास रच दिया। ठकुरी पंचायत की मुखिया बनी 23 साल की मोनिका कुमारी भोजपुरी से लोकतंत्र की उम्मीद जगा दिया।
लोकतंत्र में जनता ने युवाओं पर भरोसा जताया। बूथ पर जनता ने भरोसा करके पंचायती राज से लोकतंत्र के माध्यम से विकास की राह को आसान बना दिया जनता ने युवा वर्ग पर भरोसा किया तो युवा प्रतिनिधियों ने यहाँ तक कह डाला कि जनता की भरोसा को टूटने नहीं देंगे। भरोसा, व्यवस्था सुविधाओं पर रहेगा फॉक्स जनता के हित में कार्य करने की भरोसा करेंगे। बिहार के पंचायती राज चुनाव में युवाओं का सवाल आया और विकास उम्मीद जगी। तब ही बिहार के पंचायत चुनाव से विकास की नायेया पार करने की आह्वान किया। और युवा पंचायत प्रतिनिधियों के तूफान में पुराने प्रतिनिधियों ने 80% उड़ गए। पुराने चेहरे को बाय-बाय नए लोगों पर गांव वालों ने जताया विश्वास युवाओं ने कहा कि यूपीएससी एवं बीपीएसी करना आसान है लेकिन पंचायती राज व्यवस्था और स्थानीय स्वशासन की चुनाव जीतना आसान नहीं है। हर बार की भांति इस बार पंचायत चुनाव में निष्पक्ष चुनाव देखने को मिला। पिछली बार अधिकतर जगहों पर यह देखा गया कि कोई मतदान जगहो पर गोलीबारी बूथ कैप्चर लूटपाट से प्रभावित हो जाता था बिहार राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा अपनी शक्ति से बिहार पंचायती राज व्यवस्था एवं स्थानीय स्वशासन को विपक्ष चुनाव कराके अपनी साहस का परिचय दिया। एक ऐसा व्यक्ति साधारण से परिवार के होते हुए भी दबंग, गुंडा, जमींदारी को असफल कर दिया समाज एवं पंचायती राज व्यवस्था को निष्पक्ष और स्वतंत्र कर दिया। युवा पीढ़ी ने सबको चौंका दिया कि अब हमारी बारी है नहीं किसी व्यक्ति विशेष अपराध मुक्त प्रतिनिधि विकास पर खड़ी उतर सकता है।
निष्कर्ष
यह सपस्त होता है कि पंचायती राज व्यवस्था ने बिहार समाज के विकास में अपनी विशेष एवं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को अदा किया है। पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 50% सीटों एवं (OBC,SC,ST) के लिए आरक्षण दिया जाना समाज से वंचित वर्ग की सशक्तिकरण की दिशा में काफी सराहनीय कदम है। क्योंकि ऐसे 80% आबादी वाली जनसंख्या की भागीदारी उनकी अपेक्षा कर किसी भी देश, राज्य, तथा समाज का विकास संभव नहीं है ऐसे समाज की पिछदेपन के कारण को दूर करने के लिए उनकी उपस्थिति को बढ़ाने पर बोल दिया गया है हर स्तर पर प्रतिष्ठा बढ़ेगी, भविष्य सामाजिक हिस्सेदारी की सशक्तिकरण की और संकेत दे रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आधुनिक बिहार में जातिया जनगणना से समाज को प्रभावी बनाकर एक नया सफल समाज की निर्माण होगी। महिलाओं के सशक्तिकरण में संविधान के 73वें एवं 74वें संशोधन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पंचायत प्रतिनिधियों एवं प्रखंड, जिला, अधिकारियों के बीच खाई को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाकर मतभेद की समाप्त किया जा सके। प्रखंड में आग भी भ्रष्ट आचरण वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों से शास्त्र जनता का विकास नहीं हो सकता है। उनकी परेशानी यथावत है। वह बेवशी का आशु बहाने को बिवश है।
बिहार पंचायती राज व्यवस्था 2021 की चुनावी हलचल
सन 2020 में अपनी विश्व व्यापी महामारी कोरोना के प्रभाव 2021 में भी देखा गया था जिससे बचने के लिए समाज में चेन तोड़ने की कार्य किया गया। इसी को ध्यान में रखते हुए पंचायती राज व्यवस्था की चुनाव को बिहार विधान मंडल के द्वारा 6 माह के लिए बढ़ाया गया है। यह मई 2021 से नवंबर 2021 की अवधि को बढ़ा दिया गया। समाज को सुव्यवस्थित करने के मधेनगर को बिहार सरकार ने लोकतंत्र को स्थापित करने की कार्य किया चुनावी दौर में समाज को एक समूह में बांधने की सुचिता कर दिखाया अपने शासन व्यवस्था से लोकतंत्र पर ऐसा कई तरह को दागदार नहीं होने दिया चुनावी महापर्व में ऐसा कोई घटना न हुआ कि जिसमें चुनाव के द्वारा लोकतंत्र की हरण हो चुनाव के दौरान प्रतिनिधियों को अपने रुचि दिखाने में कोई कमी नहीं दिखाई दिया महिला प्रतिनिधियों ने बढ़ चढ़कर समाज के बीच जाकर विकास की राह दिखाकर लुभावा की जिससे कि उनके सफल होने से विकास किया जा सके श्री विपिन यादव ने अपने पंचायत सलाह जिला वैशाली में जित कर लोकतंत्र को पुनः जीवित किया समाज में एक बार फिर विकास के उद्देश्य से मैथ मस्ती फाउंडर श्री विपिन यादव पर जनता ने भरोसा दिया वैसे ही श्री विजय चौहान ने धनौती पंचायत सिवान जिला के मुखिया पद पर जीत हासिल किया एक बार फिर लोकतंत्र में प्रतियोगिता रोचक बना दिया। मुआ पीडी ने लोकतंत्र को जान फूककर सफल बना दिया है।
संदर्भ ग्रंथ
- बिहार में ग्राम पंचायत एवं सुशासन डॉक्टर सीताराम सिंह बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी
- पंचायती राज व्यवस्था एवं ग्राम विकास प्रो० चंद्रिका ऊकानी रावत प्रकाशन नई दिल्ली पेज नंबर 64 2015
- ग्रामीण विकास और पंचायती राज प्रोo पुष्पा वाढेल रावत प्रकाशन नई दिल्ली पेज नंबर 103, 2017
- भारतीय स्थानीय स्वशासन चेतकर झा एवं परमेश्वर झा नोवेल्टी एंड कंपनी पटना पेज नंबर 2 2011
- बिहार पंचायती राज अधिनियम ईस्टर्न बुक एजेंसी पटना
- टॉप से नोटिस पंचायती राज बुक राज व्यवस्था सिर इनोवेशन प्रोo लीo
- इम्तियाज मोहम्मद और रजनीश कुमार मध्यकालीन भारत पेज नंबर 124
- योजना पत्रिका
- विकिपीडिया सोशल सर्विस
- बिहार पंचायती राज विभाग होम पेज
- बिहार सामाजिक एवं कल्याण विभाग होम पेज
- दृष्टि कोचिंग नोट्स बिहार के पंचायती राज संस्थाओं की कार्य वाली
- दैनिक भास्कर समाचार पत्र दिनांक 2021
- हिंदुस्तान पत्र 12 दिनांक 2021