किशोरावस्था में बालक व बालिकाओं में मोटापे बढ़ने के कारणो पर अध्ययन
 
Ruchi Pal1*, Dr. Swati Bhadhauriya2
1 Research Scholar, Department of Homescience, Arya Kanya Degree College, Jhansi, Bundelkhand University , Jhansi, UP, India
Email: ruchipal1255@gmail.com
2 Assistant Professor, Department of Homescience, Arya Kanya Degree College, Jhansi, Bundelkhand University , Jhansi, UP, India
Email: swatibh43@gmail.com
सार - यह अध्ययन किशोरावस्था में बालक और बालिकाओं में मोटापे के बढ़ते कारणों का विश्लेषण करता है। आधुनिक जीवनशैली और आहार संबंधी आदतों में तेजी से हो रहे परिवर्तनों ने मोटापे की समस्या को गंभीर बना दिया है। इस शोध का उद्देश्य मोटापे के विभिन्न कारकों को समझना और उनकी पहचान करना है, जो किशोरों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
अध्ययन में पाया गया कि मोटापे के प्रमुख कारणों में असंतुलित आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी, अत्यधिक स्क्रीन टाइम, और पारिवारिक आदतें शामिल हैं। असंतुलित आहार में उच्च कैलोरी युक्त भोजन और जंक फूड का सेवन प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसके अलावा, शारीरिक गतिविधियों की कमी और अत्यधिक स्क्रीन टाइम, जैसे कि टेलीविजन देखना, वीडियो गेम खेलना और मोबाइल फोन का उपयोग, भी मोटापे को बढ़ावा देते हैं।
यह अध्ययन किशोरावस्था में मोटापे के बढ़ते कारणों को समझने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करता है, जो नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य सेवाओं, और समुदायों को मोटापे की रोकथाम और नियंत्रण के लिए प्रभावी रणनीतियों और उपायों को विकसित करने में सहायक हो सकता है। स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने, संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने, और जागरूकता अभियान चलाने से किशोरावस्था में मोटापे की समस्या को कम किया जा सकता है।
कीवर्ड: किशोरवस्था; मोटापे; मानसिक; स्वास्थ्य

1. परिचय

1.1 अध्ययन की पृष्ठभूमि

किशोरावस्था जीवन का वह चरण है जिसमें व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से तेजी से विकास करता है। यह एक संक्रमणकालीन अवस्था है, जिसमें बचपन से वयस्कता की ओर कदम बढ़ाया जाता है। इस दौरान शरीर में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जिनमें वजन और ऊंचाई में वृद्धि प्रमुख हैं। हालांकि, आधुनिक जीवनशैली और आहार संबंधी आदतों में हो रहे परिवर्तनों के कारण किशोरावस्था में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। मोटापा न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
मोटापा आज वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पिछले चार दशकों में मोटापे की दर तीन गुना बढ़ी है। 2016 में, दुनिया भर में 1.9 बिलियन से अधिक वयस्क (18 वर्ष और उससे अधिक आयु के) अधिक वजन वाले थे, जिनमें से 650 मिलियन से अधिक मोटे थे। बच्चों और किशोरों में भी मोटापे की दर चिंताजनक रूप से बढ़ी है। 2016 में, 5 से 19 वर्ष के बीच के 340 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर अधिक वजन वाले या मोटे थे (आचार्य , 2022)
मोटापे की इस बढ़ती दर का मुख्य कारण बदलती जीवनशैली और आहार संबंधी आदतें हैं। उच्च कैलोरी, शर्करा युक्त पेय पदार्थों और जंक फूड का सेवन, शारीरिक गतिविधियों की कमी और लंबे समय तक बैठे रहने की जीवनशैली मोटापे के प्रमुख कारक हैं। इसके अलावा, वैश्विक शहरीकरण और आर्थिक विकास ने भी मोटापे की समस्या को बढ़ावा दिया है। विकसित देशों में मोटापे की दर उच्च है, लेकिन विकासशील देशों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में।
भारत में भी मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। आर्थिक विकास और शहरीकरण के साथ, भारतीय समाज में आहार संबंधी आदतों और जीवनशैली में बड़े बदलाव देखे गए हैं। पारंपरिक भारतीय आहार, जो मुख्य रूप से शाकाहारी और कम वसा युक्त होता था, अब अधिक कैलोरी, वसा और शर्करा युक्त हो गया है। इसके अलावा, शारीरिक गतिविधियों की कमी और डिजिटल युग में बैठे रहने की आदतों ने मोटापे की समस्या को और बढ़ा दिया है (मोहम्मद , 2019)
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, 2015-16 में भारत में 15-49 आयु वर्ग के 20.7% महिलाएं और 18.6% पुरुष अधिक वजन या मोटापे के शिकार थे। बच्चों और किशोरों में भी मोटापे की दर बढ़ रही है। 2016 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 14.4 मिलियन बच्चे मोटापे से ग्रस्त थे, जो इसे बच्चों के मोटापे के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर रखता है।
वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर मोटापे के बढ़ने के गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव हैं। मोटापा कई बीमारियों का प्रमुख कारण है, जैसे हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और कुछ प्रकार के कैंसर। बच्चों में मोटापा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है, जिससे आत्मसम्मान की कमी, अवसाद और सामाजिक अलगाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
मोटापे की इस वैश्विक और राष्ट्रीय समस्या से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाना शामिल है। सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों को मिलकर नीति निर्माण और कार्यक्रमों के माध्यम से मोटापे की रोकथाम और प्रबंधन के उपाय करने चाहिए। स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन, खाद्य नीति में सुधार, और सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के माध्यम से मोटापे की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है (ऑल्टमैन , 2015)
मोटापा एक गंभीर वैश्विक और राष्ट्रीय स्वास्थ्य चुनौती है, जिसका समाधान करने के लिए समर्पित प्रयासों और रणनीतियों की आवश्यकता है। जागरूकता बढ़ाने, स्वस्थ जीवनशैली को प्रोत्साहित करने और उचित नीति निर्माण के माध्यम से इस समस्या से प्रभावी रूप से निपटा जा सकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों का स्वस्थ और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

1.2 अनुसंधान उद्देश्य

2. किशोरावस्था में बालक और बालिकाओं में मोटापे बढ़ने के कारण

किशोरावस्था जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें बच्चे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से तेजी से विकास करते हैं। इस अवधि के दौरान, बच्चों का खान-पान और जीवनशैली उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती है। आधुनिक जीवनशैली और आहार संबंधी आदतों में हो रहे बदलावों के कारण किशोरावस्था में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इस लेख में, हम किशोरावस्था में बालक और बालिकाओं में मोटापे बढ़ने के विभिन्न कारणों का विश्लेषण करेंगे (ब्योर्क , 2020)
2.1 आहार संबंधी आदतें
किशोरावस्था में मोटापे के बढ़ने का प्रमुख कारण असंतुलित आहार है। आधुनिक युग में, जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड का सेवन बढ़ गया है। ये खाद्य पदार्थ उच्च कैलोरी और कम पोषण मूल्य वाले होते हैं, जो वजन बढ़ाने में सहायक होते हैं। उच्च शर्करा युक्त पेय पदार्थ, जैसे सोडा और एनर्जी ड्रिंक्स, भी मोटापे को बढ़ावा देते हैं। किशोरों में अनियमित भोजन का समय और भोजन छोड़ने की आदतें भी मोटापे का कारण बनती हैं। जब किशोर भोजन छोड़ते हैं, तो वे बाद में अधिक कैलोरी का सेवन करते हैं, जिससे वजन बढ़ता है।
2.2 शारीरिक गतिविधियों की कमी
शारीरिक गतिविधियों की कमी किशोरावस्था में मोटापे का एक अन्य प्रमुख कारण है। तकनीकी प्रगति और डिजिटल युग ने किशोरों की जीवनशैली को निष्क्रिय बना दिया है। टेलीविजन देखना, वीडियो गेम खेलना, और मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग शारीरिक गतिविधियों की कमी का कारण बनते हैं। लंबे समय तक बैठे रहने की आदतें, जैसे कंप्यूटर पर काम करना या ऑनलाइन क्लासेज लेना, भी मोटापे को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा, स्कूल और समुदाय में शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित नहीं किया जाता, जिससे किशोर शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहते हैं।
2.3 पारिवारिक आदतें और वातावरण
पारिवारिक आदतें और वातावरण भी किशोरावस्था में मोटापे के बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माता-पिता और परिवार के आहार संबंधी आदतें बच्चों के खाने की आदतों को प्रभावित करती हैं। यदि परिवार में अस्वास्थ्यकर भोजन का प्रचलन है, तो बच्चे भी उसी प्रकार का भोजन करना शुरू कर देते हैं। माता-पिता का वजन और उनकी जीवनशैली भी बच्चों के वजन पर प्रभाव डालती है। यदि माता-पिता मोटापे से ग्रस्त हैं, तो बच्चों में भी मोटापे की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, पारिवारिक समर्थन और सामाजिक समर्थन की कमी भी मोटापे को बढ़ावा देती है (मूला , 2021)
2.4 सामाजिक और आर्थिक कारक
सामाजिक और आर्थिक कारक किशोरावस्था में मोटापे के बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले परिवारों में जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड का सेवन अधिक होता है। वहीं, निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले परिवारों में पौष्टिक आहार की कमी और शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण मोटापे की संभावना बढ़ जाती है। शहरीकरण भी मोटापे के बढ़ने में योगदान देता है। शहरी क्षेत्रों में जीवनशैली अधिक गतिहीन हो गई है। खुली जगहों की कमी, ट्रैफिक, और सुरक्षा चिंताओं के कारण बच्चे बाहर खेलकूद नहीं कर पाते, जिससे शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है।
2.5 मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक कारक
मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक कारक भी किशोरावस्था में मोटापे के बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तनाव, अवसाद, और भावनात्मक खाने की प्रवृत्ति मोटापे को बढ़ावा देती है। जब किशोर तनाव में होते हैं, तो वे अधिक खाना खाने लगते हैं, जिसे "इमोशनल ईटिंग" कहा जाता है। इस प्रकार का खाने का व्यवहार उच्च कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन को बढ़ाता है, जिससे वजन बढ़ता है। अवसाद और चिंता भी मोटापे के कारण हो सकते हैं। किशोरों में आत्मसम्मान की कमी और सामाजिक अस्वीकृति भी मोटापे को बढ़ावा दे सकती है।
2.6 स्कूल और शिक्षा
स्कूल और शिक्षा प्रणाली भी किशोरावस्था में मोटापे के बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों की कमी और शारीरिक शिक्षा कक्षाओं का अभाव मोटापे को बढ़ावा देता है। स्कूलों में उच्च कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थों की उपलब्धता भी मोटापे का कारण बनती है। इसके अलावा, स्कूलों में प्रतिस्पर्धा और शैक्षणिक दबाव के कारण बच्चे तनाव में रहते हैं, जिससे उनका खाने का व्यवहार प्रभावित होता है।
2.7 मोटापे के दीर्घकालिक प्रभाव
किशोरावस्था में मोटापा दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। मोटापे के कारण हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। मोटे किशोरों में श्वसन समस्याएँ, जैसे अस्थमा और स्लीप एपनिया, अधिक होती हैं। मोटापे के कारण हड्डियों और जोड़ों पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे जोड़ों में दर्द और अन्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, मोटापा किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है, जिससे अवसाद, चिंता, और आत्मसम्मान की कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
2.8 समाधान और निवारक उपाय
किशोरावस्था में मोटापे की समस्या को हल करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाना शामिल है। स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन, खाद्य नीति में सुधार, और सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के माध्यम से मोटापे की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। पारिवारिक और सामाजिक समर्थन भी महत्वपूर्ण है। माता-पिता को स्वस्थ आहार और शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से किशोरों को शारीरिक गतिविधियों और खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
किशोरावस्था में मोटापे की समस्या एक गंभीर और जटिल मुद्दा है, जिसे समझने और समाधान निकालने की आवश्यकता है। मोटापे के कारणों में असंतुलित आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी, पारिवारिक आदतें, और सामाजिक-आर्थिक कारक शामिल हैं। मोटापे के प्रभाव न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाए। पारिवारिक समर्थन, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, और समाज में जागरूकता बढ़ाने से किशोरावस्था में मोटापे की समस्या को कम किया जा सकता है। इस दिशा में और अधिक अनुसंधान, नीति निर्माण, और समुदाय-आधारित हस्तक्षेप की आवश्यकता है, ताकि किशोरों का संपूर्ण विकास और कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।

3. शोध पद्धति

यह शोध एक गुणात्मक दृष्टिकोण का उपयोग करता है, जिसमें किशोरावस्था में बालक व बालिकाओं में मोटापे बढ़ने के कारणो पर अध्ययन करने के लिए व्यवस्थित साहित्य समीक्षा का उपयोग किया जाता है। यह व्यवस्थित समीक्षा कोक्रेन हैंडबुक फॉर सिस्टमैटिक रिव्यूर्स में बताए गए पद्धति संबंधी दिशा-निर्देशों का उपयोग करके की गई थी, और इसे सिस्टमेटिक रिव्यू और मेटा-विश्लेषण (PRISMA) प्रारूप के लिए पसंदीदा रिपोर्टिंग आइटम का उपयोग करके रिपोर्ट किया गया था। शोध प्रश्न, शोध रणनीति, शोध तकनीक और विश्लेषणात्मक योजना को परिभाषित करने के लिए, विभिन्न व्यवसायों के विशेषज्ञों का एक पैनल शामिल होगा। पद्धतिगत ढांचा शुरू में संदर्भ के ढांचे को स्थापित करने के लिए मुद्दे के क्षेत्र की परिचालन परिभाषाओं और वैचारिक सीमाओं को निर्दिष्ट करता है। व्यवस्थित समीक्षा किए बिना, यह साहित्य का एक व्यवस्थित अवलोकन (कथात्मक समीक्षा) स्थापित करता है।

4. विश्लेषण

क्रम संख्या
शीर्षक
लेखक
परिणाम
1
बच्चों और किशोरों के बीच एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में विभिन्न मनोरोग विकारों में बॉडी मास इंडेक्स की स्थिति: लिंग की भूमिका की पहचान करना
मोहम्मदी (2019)
लड़कों के उपसमूह में, अवसाद और अलगाव की चिंता ज्यादातर कम वजन वाले वर्ग में देखी गई, जबकि टिक विकार ज्यादातर मोटापे की श्रेणी में देखा गया। दूसरी ओर, लड़कियों के उपसमूह में, सामान्यीकृत चिंता ज्यादातर कम वजन वाले वर्ग में देखी गई, जबकि विपक्षी अवज्ञा विकार (ODD), अवसाद और मानसिक मंदता ज्यादातर मोटापे की श्रेणी में देखी गई। कुल मिलाकर, उच्चतम औसत बीएमआई दर शराब दुरुपयोग विकार, उन्माद और घबराहट विकार वाले बच्चों और किशोरों में थी। हालांकि, सबसे कम बीएमआई दर उन लोगों में थी जिनमें ध्यान घाटे की सक्रियता विकार (एडीएचडी), अलगाव चिंता विकार (एसएडी) और एन्यूरिसिस था। यह अध्ययन लिंग के अनुसार विभिन्न मानसिक विकारों में बीएमआई स्थिति की समग्र तस्वीर देता है।
2
बचपन और किशोरावस्था का मोटापा: एक समीक्षा
कंसरा, अलविना और लक्कुनराजा, सिंदुजा और जे, एम.. (2021)
बुनियादी विज्ञान के साथ-साथ जीएलपी-1 एगोनिस्ट का उपयोग करने वाली हस्तक्षेप दवा परीक्षणों से उभरते निष्कर्षों ने मोटे वयस्कों, किशोरों और बाल रोगियों में प्रभावी वजन घटाने में सफलता का प्रदर्शन किया है। हालांकि, बच्चों और किशोरों में अन्य वजन घटाने वाली दवाओं की प्रभावकारिता और सुरक्षा पर सीमित डेटा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 6% किशोर गंभीर रूप से मोटे हैं और उपचार के रूप में बैरिएट्रिक सर्जरी पर विचार किया जाएगा। संक्षेप में, यह पेपर पैथोफिज़ियोलॉजी, नैदानिक ​​और मनोवैज्ञानिक निहितार्थों और मोटे बाल और किशोर रोगियों के लिए उपलब्ध उपचार विकल्पों का अवलोकन करेगा।
3
भारत में किशोरों में अधिक वजन और मोटापे की व्यापकता: एक व्यवस्थित समीक्षा
शुक्ला, निरपाल और शुक्ला, मुकेश और अग्रवाल, ध्रुव और शुक्ला, राम और सिद्धू, हरिंदर। (2016)
किशोरों में अधिक वजन और मोटापे की दर क्रमशः 2.2 से 25.8% और 0.73 से 14.6% तक थी। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में यह दर तुलनात्मक रूप से अधिक थी और अधिक वजन/मोटापे के मामले में पुरुष अधिक प्रबल थे। निष्कर्ष: अध्ययन से पता चला है कि अधिक वजन और मोटापे की दर में वृद्धि हुई है, खासकर शहरी क्षेत्र के पुरुष किशोरों में, जिससे किशोरों के लिए तत्काल और व्यापक लक्षित हस्तक्षेप प्रदान करने की आवश्यकता का संकेत मिलता है।
4
बचपन और किशोरावस्था में मोटापे का महत्व, कारण और प्रभाव
ज़ारोटिस, जॉर्ज एफ. (2018)
मोटापे के कारण कई अन्योन्याश्रित कारकों के कारण होते हैं। इसलिए ऐसे उपचारात्मक प्रस्ताव तैयार करना मुश्किल है जिनकी सामान्य वैधता हो। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त बच्चों और किशोरों की बढ़ती संख्या के लिए चिकित्सा कारक कम महत्वपूर्ण हैं। कारणों को कुछ सामाजिक समूहों की सामाजिक स्थितियों और व्यवहारों में खोजा जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे और युवा लोग पोषण और गतिविधि के विषय में स्थायी रूप से शामिल हों, और यह जुड़ाव उनके पूरे विकास में उनके साथ रहे। भले ही राजनीति समर्थन करे, डॉक्टर प्रोत्साहित करें, स्वास्थ्य निधि, किंडरगार्टन और स्कूल जागरूकता बढ़ाएँ, खेल क्लब प्रेरित करें, मीडिया जानकारी दे, माता-पिता पहचानें और प्रोत्साहन दें, काम का सबसे कठिन हिस्सा व्यक्तिगत सफलता प्राप्त करने के लिए लक्ष्य समूह द्वारा किया जाना चाहिए; वह है "स्वस्थ" बने रहना या बनना।
5
मोटापे से ग्रस्त किशोर: उपचार के लिए क्या दृष्टिकोण हैं?
निकोलुची ए, माफ़ीस सी (2022)
लिराग्लूटाइड के साथ सबसे अधिक बार रिपोर्ट की गई गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल घटनाएँ थीं। बैरिएट्रिक सर्जरी गंभीर मोटापे से ग्रस्त किशोरों के लिए एक और प्रभावी उपचार का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें वजन घटाने और कार्डियोमेटाबोलिक जोखिम कारकों पर निरंतर लाभ होता है। हालाँकि, किशोरों में दीर्घकालिक सुरक्षा और प्रभावशीलता के आंकड़े अभी भी दुर्लभ हैं। बैरिएट्रिक सर्जरी के जोखिमों में अतिरिक्त पेट की शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं और विशिष्ट सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की आवश्यकता शामिल है। उम्मीद है कि जीवनशैली हस्तक्षेपों के अलावा नए औषधीय उपचार सफलता की अधिक संभावनाएँ प्रदान करेंगे।
6
भारत की किशोर आबादी में अधिक वजन और मोटापे की घटना, व्यापकता और योगदान देने वाले कारक: एक स्कोपिंग समीक्षा प्रोटोकॉल
सामंत, लोपामुद्रा और परिदा, जयश्री और बदामली, जगतदर्शी और प्रधान, अविनाश और सिंह, प्रशांत और मिश्रा, बिजया और पात्रा, प्रसन्ना और पति, संघमित्रा और कौर, हरप्रीत और आचार्य, सुभेंदु। (2022).
किशोर आबादी में अधिक वजन और मोटापा दुनिया भर में महामारी के रूप में उभर रहा है। भारत में इसकी बढ़ती घटनाएं अत्यधिक चिंताजनक हैं। कुपोषण के बोझ के बीच, जहाँ कुपोषण एक दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या है, बचपन में अधिक वजन/मोटापे को लेकर बढ़ती चिंताओं के कारण इस आबादी पर कई तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं। इस स्कोपिंग समीक्षा का उद्देश्य भारतीय आबादी में किशोरों (10 से 19 वर्ष) में अधिक वजन और मोटापे की व्यापकता और योगदान करने वाले कारकों के साक्ष्य का मानचित्रण करना है।
7
किशोरावस्था में मनोसामाजिक कारक और मोटापा: एक केस-कंट्रोल अध्ययन
एंड्री, एलिजाबेथ और मेलिसोर्गौ, मरीना और ग्रिपरिस, एलेक्जेंड्रोस और व्लाचोपापोपोलौ, एल्पिस और मिचलाकोस, स्टेफानोस और रेनॉफ, अनाइस और सर्जेंटानिस, थियोडोरोस और बैकोपोलौ, फ्लोरा और करवानाकी, काइरियाकी और त्सोलिया, मारिया और त्सित्सिका, आर्टेमिस। (2021).
किशोर आबादी में अधिक वजन और मोटापा दुनिया भर में महामारी के रूप में उभर रहा है। भारत में इसकी बढ़ती घटनाएं अत्यधिक चिंताजनक हैं। कुपोषण के बोझ के बीच, जहाँ कुपोषण एक दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या है, बचपन में अधिक वजन/मोटापे को लेकर बढ़ती चिंताओं के कारण इस आबादी पर कई तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं। इस स्कोपिंग समीक्षा का उद्देश्य भारतीय आबादी में किशोरों (10 से 19 वर्ष) में अधिक वजन और मोटापे की व्यापकता और योगदान करने वाले कारकों के साक्ष्य का मानचित्रण करना है।
 

5. निष्कर्ष

किशोरावस्था जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें बच्चे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से तेजी से विकास करते हैं। इस अवधि के दौरान, बच्चों का खान-पान और जीवनशैली उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती है। आधुनिक जीवनशैली और आहार संबंधी आदतों में हो रहे बदलावों के कारण किशोरावस्था में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इस लेख में, हम किशोरावस्था में बालक और बालिकाओं में मोटापे बढ़ने के विभिन्न कारणों का विश्लेषण करेंगे। बचपन और किशोरावस्था में मोटापा किसी एक आसानी से संशोधित कारक के लिए अनुकूल नहीं है। जैविक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कारक जैसे आसानी से उपलब्ध उच्च घनत्व वाले खाद्य विकल्प युवाओं के खाने के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। मीडिया डिवाइस और संबंधित स्क्रीन समय शारीरिक गतिविधि को बच्चों और किशोरों के लिए कम इष्टतम विकल्प बनाते हैं। यह समीक्षा एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि कार्रवाई का समय अब ​​है। खाद्य उद्योग और स्कूलों में नीतियों को स्थापित करके मोटापे को बढ़ावा देने वाले वातावरण को बदलने के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता को स्पष्ट किया जाना चाहिए। नैदानिक ​​परीक्षणों में GLP-1 एगोनिस्ट बच्चों में वजन घटाने में प्रभावी पाए गए हैं, लेकिन अभी तक FDA द्वारा अनुमोदित नहीं हैं। प्रोबायोटिक्स या फेकल ट्रांसप्लांटेशन के उपयोग के माध्यम से अधिक वजन/मोटापे के उपचार के रूप में आंत माइक्रोबायोटा को संशोधित करने के लिए उपचारों की खोज क्रांतिकारी होगी। वर्तमान में, फार्माकोथेरेप्यूटिक और बहु-विषयक जीवनशैली कार्यक्रमों के साथ मिलकर चल रहे नैदानिक ​​अनुसंधान प्रयास आशाजनक हैं। .किशोरावस्था में मोटापे के बढ़ने का प्रमुख कारण असंतुलित आहार है। आधुनिक युग में, जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड का सेवन बढ़ गया है। ये खाद्य पदार्थ उच्च कैलोरी और कम पोषण मूल्य वाले होते हैं, जो वजन बढ़ाने में सहायक होते हैं। उच्च शर्करा युक्त पेय पदार्थ, जैसे सोडा और एनर्जी ड्रिंक्स, भी मोटापे को बढ़ावा देते हैं। किशोरों में अनियमित भोजन का समय और भोजन छोड़ने की आदतें भी मोटापे का कारण बनती हैं। जब किशोर भोजन छोड़ते हैं, तो वे बाद में अधिक कैलोरी का सेवन करते हैं, जिससे वजन बढ़ता है। शारीरिक गतिविधियों की कमी किशोरावस्था में मोटापे का एक अन्य प्रमुख कारण है। तकनीकी प्रगति और डिजिटल युग ने किशोरों की जीवनशैली को निष्क्रिय बना दिया है। टेलीविजन देखना, वीडियो गेम खेलना, और मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग शारीरिक गतिविधियों की कमी का कारण बनते हैं। लंबे समय तक बैठे रहने की आदतें, जैसे कंप्यूटर पर काम करना या ऑनलाइन क्लासेज लेना, भी मोटापे को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा, स्कूल और समुदाय में शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित नहीं किया जाता, जिससे किशोर शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहते हैं।
किशोरावस्था में मोटापा दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। मोटापे के कारण हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। मोटे किशोरों में श्वसन समस्याएँ, जैसे अस्थमा और स्लीप एपनिया, अधिक होती हैं। मोटापे के कारण हड्डियों और जोड़ों पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे जोड़ों में दर्द और अन्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, मोटापा किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है, जिससे अवसाद, चिंता, और आत्मसम्मान की कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। किशोरावस्था में मोटापे की समस्या को हल करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाना शामिल है। स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन, खाद्य नीति में सुधार, और सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के माध्यम से मोटापे की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। पारिवारिक और सामाजिक समर्थन भी महत्वपूर्ण है। माता-पिता को स्वस्थ आहार और शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से किशोरों को शारीरिक गतिविधियों और खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
किशोरावस्था में मोटापे की समस्या एक गंभीर और जटिल मुद्दा है, जिसे समझने और समाधान निकालने की आवश्यकता है। मोटापे के कारणों में असंतुलित आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी, पारिवारिक आदतें, और सामाजिक-आर्थिक कारक शामिल हैं। मोटापे के प्रभाव न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाए। पारिवारिक समर्थन, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, और समाज में जागरूकता बढ़ाने से किशोरावस्था में मोटापे की समस्या को कम किया जा सकता है। इस दिशा में और अधिक अनुसंधान, नीति निर्माण, और समुदाय-आधारित हस्तक्षेप की आवश्यकता है, ताकि किशोरों का संपूर्ण विकास और कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।

संदर्भ

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