बॉयल मिलों का सामाजिक आर्थिक व पर्यावरणीय प्रभाव
 
अशोक चौधरी*
शोधार्थी, भूगोल विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, राजस्थान, भारत
Email: ashok007d@gmail.com
सार - किसी भी क्षेत्र में तेज आर्थिक विकास, नई नौकरियों के सृजन, निवासियों के लिए संसाधनों और सेवाओं तक पहुँच के लिए उद्योग अत्यंत आवश्यक है। कुल मिलाकर उद्योगों का व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ता है। साथ ही पर्यावरणीय प्रभाव भी होता है। मनुष्य भी इन उद्योगों की मार से अछूता नहीं रहा है। इस शोध पत्र में अजमेर जिले के बॉयल मिल उद्योग के सामाजिक-आर्थिक, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य सम्बंधी प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।
की वर्ड: स्वास्थ्य, सामाजिक प्रभाव, सिलिकोसिस, क्वार्ट्ज, फेल्सपार
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
अजमेर जिले में क्वार्ट्ज और फेल्सपार बॉयल मिल उद्योग यहां के निवासियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को उपर उठा रहा है। बॉयल मिलें विभिन्न कौशल वाले व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रोजगार और भिन्न व्यवसाय वाले लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार दे रही है। इन बॉयल मिलों में काम करने वाले लोग आसपास के गांवों और शहरों के स्थानीय लोग है। बॉयल मिलों द्वारा प्रदान किये गए रोजगार से श्रमिकों और उनके परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
अजमेर जिले में बॉयल मिलों द्वारा क्वार्टज और फेल्सपार की घोषित उत्पादन क्षमता 140 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष से अधिक है। साथ ही इन बॉयल मिलों में लगभग 1000 करोड़ से भी अधिक का निवेश हुआ है। इन बॉयल मिलों में 10000-12000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त हो रहा है। साथ ही 20000 से भी अधिक व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त हो रहा है, जिनमें ट्रक चालक, ट्रेक्टर चालक, जे.सी.बी. चालक, इलेक्ट्रीशियन, होटल, चाय, ढ़ाबे, कम्प्युटर ऑपरेटर, बौंक कर्मचारी, बीमा एजेंट आदि है। अधिकांश बॉयल मिलें एकल सेटअप वाली होती है जिनमें 20 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त होता है।
पर्यावरणीय प्रभाव
बॉयल मिल उद्योगों के द्वारा वायु, जल, भूमि व ध्वनि प्रदुषण उत्पन्न किया जाता है जिसका वर्णन आगे किया है-
वायु प्रदूषण
क्वार्ट्ज और फेल्सपार खनिजों में सिलिका होती है। इन खनीजों के बारीक पाउडर तैयार करने के दौरान सिलिका धूल निकलती है जो मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। यह श्रमिकों के फेफड़ों में गंभीर संक्रमण उत्पन्न करती है। साथ ही इन बॉयल मिलों की हवा की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है।
तालिका 1. सिलिका धूल के उत्सर्जन के स्रोत
चित्र 1. बॉयल मिल उद्योग द्वारा वायु प्रदुषण
भूमि अवनयनः
बॉयल मिल उद्योग द्वारा क्वार्ट्ज और फेल्सपार उद्योग द्वारा अत्यधिक मात्रा में अपशिष्ट निकलता है क्योंकि क्वार्ट्ज और फेल्सपार का पाउडर बनाने की प्रक्रिया में इनका भार 25 से 35 प्रतिशत कम हो जाता है। इन बॉयल मिलों द्वारा इस 25 से 35 प्रतिशत अपशिष्ट कचरे का निपटान खाली पड़ी भूमि पर कर दिया जाता है जिससे बड़े-बड़े स्लरी के टीले दिखाई देने लग जाते है। जिन्हे हम चित्र 2 में देख सकते हैं। इससे आस-पास की खाली पडी भूमि काअवनयन हो रहा है।
चित्र-2. ब्यावर क्षेत्र में रीको 11 की भूमि पर पड़े अपशिष्ट पाउडर के टीले
ध्वनि प्रदूषण
क्रेशर और बॉयल मिले तेज आवाज करती है। साथ ही ये बॉयल मिले 24 घंटे स्वचालित व अर्द्धचालित रुप से चलती है जिससे अत्यधिक तेज शोर करती होता है। हालांकि अधिकांश बॉयल मिलें बड़े आवरण से ढ़की हुई रहती है। परन्तु इसमें काम करने वाले श्रमिकों के द्वारा इनके लगातार सम्पर्क में रहने के कारण सुनने की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
जल प्रदुषण
बॉयल मिल उद्योग पूर्णतया शुष्क उद्योग है। इससे कोई हानिकारक घूलनशील रसायनों का निर्माण नहीं किया जाता है। लेकिन कुछ बॉयल मिलों द्वारा शुष्क अपशिष्टों का खुले में ही निपटान कर दिया जाता है जो बरसात के दिनों में पानी के साथ बह जाते है। जिससे तालाबों में अत्यधिक गाद भर जाती है। पानी का प्राकृतिक बहाव रूक जाता है।
चित्र-3. पाउडर के अपशिष्टों से निर्मित कृत्रिम झील
पारिस्थितिकी पर प्रभाव
बॉयल मिलों द्वारा अपशिष्ट निपटान उचित ढंग से नहीं होने के कारण आस-पास की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचता है। पेड़ पौधों की पत्तियों पर रेत की परत जम जाती है जिससे पेड़ों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में बाधा पहुँचती है। इन बॉयल मिलों के आस-पास हरित पट्टी का विकास करने से पारिस्थितिकीय विनाश से बचा जा सकता है।
मनुष्य पर प्रभाव
बॉयल मिलों में कार्य करने वाले श्रमिक सिलिका के सीधे सम्पर्क में रहने के कारण फेफड़ों के संक्रमण के शिकार हो रहे है। वर्तमान में अजमेर जिले में सिलिकोसिस से बीमार व्यक्तियों की संख्या लगभग 8735 व्यक्तियों की थी (स्रोतः सिलिकोसिस मरीज रिपोर्ट, राजस्थान सिलिकोसिस पोर्टल 2019) अतः श्रमिकों को भी पर्याप्त जानकारी व सुरक्षात्मक उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
वर्तमान में बॉयल मिलों द्वारा पर्यावरण सामाजिक आर्थिक प्रभावों का अध्ययन करने के उपरान्त यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि इन संयंत्रों को शहर के आबादी क्षेत्रों से दूर स्थापित किया जाना चाहिए। साथ ही इन बॉयल मिलों के अधिकांश उपकरण खुले में कार्य करते है जिनको ढ़क करके प्रयोग किया जाना चाहिए। साथ ही इन बॉयल मिलों के आस-पास हरित पट्टी का विकास करना चाहिए जिससे पारिस्थितिकी पर इनका न्यूनतम प्रभाव पड़े।
संदर्भ:
  1. खनिज पीसने में प्रदूषण को कम करने के लिए दिशानिर्देश। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड. http://www.indiaenvironmentportal.org.in/files/file/MG पर उपलब्ध, संशोधित मई 2012. पीडीएफ
  2. पार्क, के. (2015) अध्याय 15 व्यावसायिक स्वास्थ्य। पार्क पाठ्य पुस्तक निवारक एवं सामाजिक चिकित्सा 23वां संस्करण, पीपी 803-819। बनारसीदास भनोट प्रकाशक. शर्मा, आर. (2017) संशोधित कुप्पुस्वामी की सामाजिक आर्थिक स्थिति स्केल: समझाया और अद्यतन किया गया।
  3. भारतीय बाल रोग विशेषज्ञ. वॉल्यूम. 54 पृ. 867-70. 3. 22-01-2019 तक सिलिकोसिस रोगी सारांश रिपोर्ट। राजस्थान सरकार द्वारा सिलिकोसिस अनुदान वितरण। 22/01/2019 को http://silicose.rajasthan.gov.in/SummaryReport.aspx से लिया गया