बुंदेलखंड के साहित्य जगत में महिला साहित्यकारों की भूमिका
 
Sonia Singh1*, Dr. Man Singh2
1 PhD Research Scholar, Shri Krishna University, Chhatarpur, M.P. India
Email ID: singhsonia7678@gmail.com
2 Assistant Professor, Shri Krishna University, Chhatarpur, M.P. India
सारांश --- भारतीय साहित्य जगत में बुंदेलखंड साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है। बुंदेलखंडी संस्कृति को सजाने संवारने में यहां के क्षेत्रीय रचनाकारों का अभूतपूर्व योगदान प्रत्यक्ष रुप से दृष्टिगत है। पुरुषों के समकक्ष ही महिला साहित्यकारों की एक बड़ी सूची साहित्य जगत में दर्ज है। जिन्होंने अनेकों भजन कीर्तन पद सवैया लेख उपन्यास आदि से साहित्य जगत को सुशोभित किया है। बुंदेलखंड की महिला साहित्यकारों ने घर के चार दिवारी से निकलकर अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है। 17वीं शताब्दी से लेकर राय प्रवीण , केशव पुत्र वधू, तीन तरंग , मीराबाई , डॉ माया सिंह और फिर मैत्रे पुष्पा तक महिला साहित्यकारों का सफर अनवरत जारी है।1
मुख्य शब्द --- बुंदेलखंड साहित्य महिलाएं पद सवैया सृजन
प्रस्तावना
बुंदेले शासकों द्वारा शासित आरक्षित क्षेत्र बुंदेलखंड अपनी सांस्कृतिक विलक्षणता उपलब्धियों की दृष्टि से सदैव सम्पन्न रहा है। किसी भी क्षेत्र का साहित्य उसकी संस्कृति का प्रतिबिंब होता है बुंदेलखंड की साहित्य संपदा भी सदैव ही उत्कृष्ट रही है। अनेक साहित्यिक मनीषियों ने बुंदेलखंड को अपनी रस धारा से सराबोर किया है। यहां की साहित्यिक प्रगति में पुरुष साहित्यकारों के साथ ही साथ महिला साहित्यकारों ने भी अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभाई है 16 वीं शताब्दी से वर्तमान तक अनवरत अनेक महिला साहित्यकारों ने अपनी साहित्य सेवा से बुंदेलखंड की साहित्य परंपरा को समृद्ध किया है। यद्यपि बुंदेली भाषा को काव्यभाषा के रूप में विकसित होने का सौभाग्य नही प्राप्त हुआ परंतु यह विकास पथ पर अनवरत चलायमान रही है। बुंदेलखंड में कवि परंपरा के लक्षण 16 शताब्दी से दृष्टिगोचर होते हैं 1 बुंदेलखंड में साहित्य के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण महिला साहित्यकारों का उल्लेख समीचीन प्रतीत होता है2
राय प्रवीण
बुंदेलखंड की प्रतिभा संपन्न तथा कवि केशव की शिष्या राय प्रवीण का नाम बुंदेलखंड की महिला साहित्यकारों में अग्रणी है। जो महाराज इंद्रजीत के काल के प्रमुख कवियित्री होने के साथ ही साथ उनकी प्रेयसी भी थी। विलक्षण प्रतिभा की धनी अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी राय प्रवीण बुद्धिमत्ता हाजिर जवाबी में भी निपुण थी। उनका जन्म 1642 विक्रम संवत में तथा निधन 1701 विक्रम संवत में हुआ था। वह छंद शास्त्र और नायिका भेद में अत्यंत पारंगत थीं। कवि केशव अपने ग्रंथ कविप्रिया में, जो उन्होंने राय प्रवीण के लिए ही लिखा था , उनका उल्लेख कुछ इस प्रकार करते हैं---
राय प्रवीण की शारदा, शुचि रुचि राजत अंग।
वीणा पुस्तक भारती, राजहंस युत संग।।
वृषभ वाहिनी अंग युत, वासुकि लसत प्रवीन।
सिव संग सोहे सर्वदा, सिवा की राय प्रवीन।।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी राय प्रवीण काव्य कला के साथ ही नृत्य कला में भी प्रवीण थी उनकी प्रसिद्धि से प्रभावित होकर मुगल शासक अकबर ने उन्हें अपने दरबार में आगरा बुलवाया, तथा कला प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया राय प्रवीण और अकबर के बीच काव्य संवाद की कुछ झलकियां इस प्रकार हैं--
अकबर - जुवन चलत तिर देह की,
चटक चलत केहि हेत।
राय प्रवीन- मन्मथ वारि मसाल को,
सांति सिहारे लेत।
अकबर- ऊंचै ह्वै सुर बस किए,
सम ह्वै नर बस कीन्ह।
राय प्रवीण- अब पाताल बस करन को,
ढरक पयानो कीन्ह।3
जब मुगल शासक अकबर राय प्रवीण के सौंदर्य प्रतिभा पूर्ण काव्य रचनाओं से प्रभावित होकर उनसे प्रेम का प्रदर्शन करते हुए आगरे में ही निवास करने का अनुरोध करते हैं, तब बड़ी चतुराई से राय प्रवीण अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए निम्न पंक्तियों से अकबर को निरुत्तर कर देती हैं----
विनती राय प्रवीण की, सुनिए शाह सुजान।
जूठी पातर भखत है, बारी, बायस, श्वान।।
इतना सुनते ही अकबर अपनी कामुक भावना पर लज्जित होते हुए बुंदेलखंड की रत्न प्रसविनी भूमि को धन्य मानते हुए राय प्रवीण से बहुत प्रभावित हुए तथा, अनेक बहुमूल्य पुरस्कारों से सम्मानित करके उन्हें बुंदेलखंड वापस जाने की ससम्मान स्वीकृति देते हैं।3
केशव पुत्र वधू
इनका जन्म संवत 1640 विक्रम संवत में हुआ तथा इनका कार्यकाल 1670 विक्रम संवत माना जाता है। इनके पति वैद्य थे जिन्होंने "वैद्य मनोत्सव" नामक ग्रंथ की रचना की। कहते हैं जब वे क्षय रोग से ग्रसित हुए उस समय उनके उपचार हेतु आंगन में एक बकरा बंधा रहता था। एक दिन आंगन बुहारते समय उनके पैर पर बकरे ने पैर रख दिया तो वह अपने पति को उन्मुख हो बकरे को लक्ष्य करके बोली--
जैहे सबै सुधि भूलि तबै ,जब नैकत दृष्टि दे मोते चिते हैं।
भूमि में आक बनावत मेटत, पोथी लिए सबरो दिन जैहैं।
दोहाई केको जी की सांची कहै, गति प्रीतम कि तुम
हूं को दैहें।
मानो तो मानो अलै अजिया सुत, केहो ककाजू सो तोहि पठैहैं।।
इस छंद में बुंदेली भाषा की संप्रेषणीयता दर्शनीय है तथा वक्रता एवं लालित्य की मनोहारी छटा है।4
तीनतरंग
बुंदेलखंड की प्रतिभा संपन्न कवियित्री तीनतरंग का जन्म विक्रम संवत 1610 में ओरछा में हुआ था। ये ओरछा नरेश मधुकर शाह के दरबार की प्रमुख कवियित्री थी। उन्होंने "संगीत अखाड़ा" नामक ग्रंथ की रचना की। इनका कार्यकाल सं 1640 विक्रम माना जाता है।
त्रिलोचनयना
कवियत्री त्रिलोचनयना का जन्म संवत 1612 विक्रम में ओरछा में हुआ ,जो ओरछा दरबार की प्रमुख कवयित्री थी इनका कार्यकाल 1640 विक्रम के आसपास माना जाता है, इनके प्रमुख ग्रंथ का नाम कोक शास्त्र है।
पजन कुंवरि
श्री कृष्ण चरित्र पर काव्य रचना रचने वाली कवियत्री पजन कुंवरि का प्रसिद्ध ग्रंथ "बारहमासी" है जिसमें उन्होंने श्रीकृष्ण के उद्धव के माध्यम से गोपियों को दिए गए संदेश का अत्यंत कलापूर्ण मार्मिक चित्रण किया है।
प्रेमसखि
बुंदेलखंड की प्रतिभा संपन्न कवियित्रियों में शुमार प्रेमसखि का जन्म संवत 1800 में हुआ था इनका कविता काल 1840 के आसपास माना जाता है, जिन्होंने सिखनख , स्फुट पद, सवैया आदि की रचना की।
कलप लता के सिद्धि दायक कल्पतरु,
कामधेनु कामना के पूरन करन है
तीन लोक चाहत कृपा कटाक्ष कमला की ,
कमला सदाई जाकै सेवक चरन है
चिंतामणि चिंता के हरन हारे प्रेमसखि,
तीरथ जनक बर बनिक बरन है
नख बिंदु पूषन समन सब सूदन ये,
रघुवंश भूषण के राजत चरन है।5
प्रियासखि
इनका मूल नाम बखत कुमारी था प्रिया सखी इन का उपनाम था इनका जन्म बुंदेलखंड के दतिया क्षेत्र में संवत 1800 में हुआ। इनका प्रमुख ग्रंथ "बानी" है ,तथा इनका काव्य काल भी 1840 के लगभग माना जाता है।6 / 22
प्रेम कुमारी--- कवियत्री प्रेम कुमारी बुंदेलखंड के दतिया क्षेत्र के महाराजा गोविंद सिंह की पत्नी थी। यह भी कृष्ण उपासक थी इनका श्री राधा कृष्ण से संबंधित अनेक पदों का एक संग्रह "चंद्रप्रकाश" नाम से प्रकाशित हुआ--
 
तन मन के आधीन है,
मन प्रभु के आधीन।
राधा और श्रीकृष्ण जू,
प्रेम भक्ति तल्लीन।।
वृषभानु कुंवरि
राम भक्ति रस की उपासिका वृषभानु कुंवरि का जन्म 1912 विक्रम में हुआ था ,जो सवाई महेंद्र राजा श्री प्रताप सिंह जूदेव बहादुर ओरछा नरेश की पत्नी थी उनका उपनाम "रामप्रिया सहचरी" था इन्होंने भक्ति रस से ओतप्रोत रचनाएं लिखी---
जिह धरत संकर ध्यान हिय, श्रुति नेति कहि जग
गावहीं।
मुनि सिद्ध वर जोगीस, सेष गनेश पार ना पावहीं।
यह कन्यका वर हेत जब, मिथिलेश धन मुख बिस्तरै।
तब राम कौसिक साथ लक्ष्मण, सहित इत आनंद भरै।।6
कनक लता
इनका जन्म संवत 1925 वि में सेहुडा़ के खवास (नाई) परिवार में हुआ था। दतिया के महाराज भवानी सिंह राज व्यवस्था और शिकार के लिए प्राय: कन्हरगढ़ आया करते थे। यही कवयित्री कनक लता को खवासीन का पद रनिवास में सम्मान सहित दिया गया--
कन्हर गढ़ स्थान पै, जुरों संजोग सुदेश
पासवान की खिलत ,मोहि लोकेंद्र नरेश।।
इनकी प्रमुख रचनाएं हित चरित्र, तीर्थ यात्रा, जुगल सनेह, प्रकाश रसिक, विनोद वनमाला, बृजभूषण तथा धन पच्चीसी आदि हैं उन्होंने बुंदेली भाषा में लावणी, झूला, बधाई, गारी, पद, गजल, कविता दोहा, सोरठा, छंद आदि का प्रयोग किया वे अच्छी साहित्यकार होने के साथ ही साथ अत्यंत मधुर स्वर की स्वामिनी भी थीं
मोर मुकुट सिर विराजे बलदाऊ के भैया
करत चरित सकल गोकुल में कंसै मार गिरैया।
जमुना तीर कदम चढ़ बैठो गोपी चीर हरैया।
पासवान सेंहुड़े वारी को दर्शन देव कन्हैया।7
रानी कमल कुंवरि
सरीला रियासत की रानी कमल कुंवरि बुंदेलखंड की मीरा कहीं जाती हैं। उन्होंने मुख्य रूप से बधाइयां लिखी हैं। इनके साहित्य ने बुंदेलखंड की नारियों को बहुत प्रभावित किया। कुंडलिया छंद में इनका प्रसिद्ध ग्रंथ "करुणा चौंतीसी" है -
प्रथम बधाई लाल की, पुनः प्यारी की गाय।
करुणा चौतीसी कही, गुरु गोविंद मनाय।।
येक सहस नौ सै बरस, सैंतालीस गुरुवार
भादो सुद गनपत तिथि, पूरी भई सुखसार।।
जाके मुख से कैसहूं , निकसे राधा श्याम
जाको पग की पांवड़ी, मेरे तन की चाम।।
महारानी रूप कुंवरि
चरखारी नरेश मलखान सिंह की पत्नी महारानी रूप कुंवरि बुंदेलखंड की उल्लेखनीय साहित्यकारों में है। इनका जन्म सलैया जिला दतिया में विक्रम 1933 के लगभग हुआ और प्राणांत विक्रम 2008 में चरखारी में हुआ। इनका वैधव्य जीवन भक्ति और साधना का जीवन रहा है। उनकी पुस्तक का नाम "भजन माला" है जिसमें लोक जीवन से जुड़ी फागें हैं---
रसना राम कौ नाम नगीना मन मुंदरी में दीना
निराकार निर्वाण से खोहै ऐसी थान कही ना
नहि दिवाल देह कर दीपक कबहुं परन मलीना
रूप कुंवर की मान सिखावन तन मन धन सब दीना
फूलमती
इनका जन्म विक्रम 1963 में हुआ। नारियों के लिए विभिन्न अवसरों के बहुत ही मनमोहक गीतों की रचना उन्होंने की जो अंचल में महिलाओं के द्वारा आज भी गाए जाते हैं। कृष्ण के विरह में ब्रज की दशा का उल्लेख करते हुए कहती हैं---
ऊधौ जब से श्याम सिधारें, बरसत नैन हमारे।
अंजन थिर रहत अखियन मे, कर कपोल भए कारे।
उर की अंगिया कबहु ना सूखत, बै रयै नैन पनारे। डूब रओ ब्रज फूलमती अब, काये ना आन उबारे।
 
हीराबाई
कवयित्री हीराबाई का जन्म 1959 विक्रम में महोबा के प्रसिद्ध रईस मुकुंद लाल तिवारी के घर हुआ था। विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले अगणित मनमोहन गीतों के साथ कृष्ण भक्ति की रस में सराबोर इनकी रचनाएं अद्भुत है---
हमरो संकट काट मुरारी, तुमरी है बलिहारी।
सुरपत कोप कियो ब्रज ऊपर, सब तुब सरन पुकारी।
बृजवासिन तुम लियो है, गोवर्धन गिरधारी
ज्यों गज टेर सुनी जदुनंदन, त्यौं हीरा की बारी।
कंचन कुंवरि
महारानी कंचन कुंवरि का जन्म 1951 विक्रम में दतिया में हुआ था ।इनका काव्यकाल 1970 विक्रम के आसपास माना जाता है ।इन्होंने कांचन कुसुमांजलि नामक पुस्तक में 260 भक्ति पद ,भजन, एवं दादरों की रचना की।8
जशोदा
गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित इस महान रचनाकारा ने विवाह के अवसर पर गाए जाने वाली गारी की तर्ज पर अनेक गीतों की रचना की---
डांड़े पे लंका लागो री ...डांड़े पे लंका...
भारतवासी सोय रये सब सारी दुनिया जागै री
हिंदू मुसलमान दोऊ सोय रये गांधी गुनिया जागै री धनी सोय पै परो गली में भूखों भिक्षुक जागै री संतोषी सब सोय रये धन को इच्छुक जागै री
मांते और महाजन सोय रये खेतिहर रिनिया जागै
री
बूढ़ों वर सोय रये पै उनकी नई दुल्हनिया जागै री घर के सो रये खटका में घर को मुखिया जागै री
कहे जसोदा सधवा सोय रये दुखिया विधवा जागै री
डाड़े पे लंका लागो री...डांड़े पे...
कमल कुमारी जुगल प्रिया---
बुंदेलखंड की प्रसिद्ध कवियत्री कमल कुमारी जू देवी टीकमगढ़ की राजकन्या तथा छतरपुर नरेश विश्वनाथ जू देव की धर्मपत्नी थी। काव्य क्षेत्र में इनका उपनाम जुगल प्रिया था इन्होंने वैष्णव मत की परंपराओं तथा बौद्ध मत के सिद्धांतों का अनुशीलन किया। इनका प्रमुख ग्रंथ जुगल प्रिया की पदावली है इनके काव्य में भी श्री कृष्ण भक्ति धारा के दर्शन होते हैं---
नहि धन की नहि मान की, नहि विद्या की चाह।
जुगल प्रिया चाहे सदा, जुगल स्वरूप अथाह।।9
बुंदेल वाला
बुंदेलखंड की कवयित्री श्रीमती बुंदेली वाला का जन्म छतरपुर में संवत 1940 विक्रम में हुआ था। इनका काव्य काल संवत 1960 विक्रम के लगभग है। यह हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक एवं कवि लाला भगवानदीन की पत्नी थी।
राजकुंवरि
बुंदेलखंड के दतिया क्षेत्र के जागीरदार तथा दीवान श्री कमल सिंह की पत्नी श्रीमती राजकुमारी का नाम बुंदेलखंड की प्रसिद्ध कवयित्रियों में उल्लेखनीय है। संवत 1995 में इनका मुख्य ग्रंथ प्रेमसागर प्रकाशित हुआ।
सुभद्रा कुमारी चौहान
बुंदेलखंड की सुप्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म संवत 1961 विक्रम में प्रयाग में हुआ था। ये खंडवा निवासी प्रतिष्ठित वकील डॉ लक्ष्मण सिंह चौहान की पत्नी थी। अपने पिता पति के साथ उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भाग लिया तथा ,अनेकों बार जेल भी गयी तथा मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए कांग्रेस की ओर से सदस्य भी निर्वाचित हुई थी। सुभद्रा कुमारी चौहान बुंदेलखंड की पावन भूमि जबलपुर की निवासिनी थी , उन्होंने बुंदेलखंड के साहित्यिक विकास में अपना अपूर्व योगदान दिया है हिंदी साहित्य जगत की नूतन चेतना एवं संप्रेरणा प्रदान करने वाली "झांसी की रानी" नाम की कविता ने इन्हें साहित्यिक इतिहास में अभूतपूर्व स्थान दिलाया---
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
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इन्होंने यथार्थवाद को अपनाया तथा अपनी कविताओं में राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रधानता दी। पारिवारिक जीवन की सरलता, वात्सल्य प्रेम तथा कोमलता का अंकन इनकी रचनाओं का अद्भूत सौंदर्य है। इनकी प्रमुख रचनाएं-- काव्य ग्रंथ मुकुल त्रिधारा,बाल रचना सभा के खेल,तथा कहानी संग्रह- बिखरे मोती, सन्मादिनी, सीधे-साधे चित्र आदि हैं10
राम कुमारी चौहान
हिंदी साहित्य जगत की मौन आराधिका, वेदना की सहचरी, बुंदेलखंड का गौरव तथा सेकसरिया पुरस्कार की विजयिनी श्रीमती राम कुमारी चौहान का जन्म 23 नवंबर सन 1899 ईस्वी को कानपुर में हुआ था, तथा उनका विवाह 1914 में झांसी के सूबेदार मेजर कुबेर सिंह चौहान के पुत्र कुंवर रतन सिंह चौहान वकील के साथ हुआ बहुमुखी प्रतिभा की धनी राम कुमारी चौहान ने अपनी साहित्य साधना का क्षेत्र झांसी को ही बनाया। सन 1935 में इन्हें सर्वोत्तम कृति- "निश्वास" पर ₹500 का अखिल भारतीय सेकसरिया पुरस्कार प्रदान किया गया 11 उन्होंने अत्यंत सरल एवं भावपूर्ण भाषा में रचनाएं लिखी है---
विरह में व्याकुलता का राग,
सप्त उच्छवासों का अवसाद
पिघल कर बह जाने दो यही,
विरहिणी का जीवन उन्माद
अब तक जिन आशाओं ने ,
मानस में किया उजाला।
अब भाग्य चक्र ने उनको,
हा चूर चूर कर डाला।
राजरानी चौहान
बुंदेलखंड की साहित्य साधिका कवयित्री श्रीमती राजरानी चौहान का जन्म संवत 1967 विक्रम बसंत पंचमी को हुआ था। इनकी रचनाएं वीरता भक्ति तथा वेदना से ओतप्रोत हैं इनकी रचनाओं में विरह एवं संवेदना की उत्कृष्ट झलक के साथ आध्यात्मिक चिंतन एवं छायावादी प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। देश प्रेम से सराबोर उनकी रचनाएं साहित्य जगत की अमूल्य निधि है---
बन उठी बलि वेदिका है ,
आज जीवन की कहानी
जल उठी है ह्रदय ज्वाला,
प्रेम की जलती निशानी।
विमला सक्सेना
अनूठी प्रतिभा की धनी बुंदेलखंड के कवयित्री कुमारी विमला सक्सेना का जन्म सन 1929 में हुआ था ।वे उरई नगर के भूत पूर्व पालिका अध्यक्ष बाबू रमाशंकर सक्सेना की पुत्री थी। आहुति नामक इन के काव्य संग्रह में हृदय की कसक... वेदना... तथा दूसरे के हृदय को स्पर्श करने वाली टीस ..अद्भुत रूप से विद्यमान है---
सुन सकेगा वह सदय,
जिसने सदा ही कष्ट झेला।
सह रहा है यातनाएं,
जो खड़ा मग में अकेला
कर सकेगा एक वह ही,
आत्मवत सम्मान मेरा
निहित जिसमें युग युगांतर ,
का रुदन आख्यान मेरा।
चंद्र रेखा सिंह
अनूठी प्रतिभा की धनी बुंदेलखंड की प्रसिद्ध कवयित्री चंद्र रेखा सिंह झांसी निवासी डॉ मनमोहन सिंह की पत्नी है। अपनी सरल सरस परिमार्जित ओजस्विनी भाषा में साहित्यिक साधना द्वारा हिंदी साहित्य के विकास में इनका योगदान अविस्मरणीय है----
तुम करो विद्रोह नवनिर्माण की खातिर,
मैं तुम्हारे साथ अंतिम सांस तक हूं
ज्वार सागर के कभी बंधते ना बांधों में,
तथ्य झुठलाए नहीं जाते विवादों में
दो स्वरों की गूंज को सरगम नहीं कहते,
जिंदगी सीमित नहीं गमगीन यादों में।
नयन मोती सृजे सुख सोपान की खातिर,
मैं तुम्हारे साथ अंतिम सांस तक हूं।
रेनू तिवारी
बुंदेलखंड की सुप्रसिद्ध रचनाकार रेनू तिवारी का जन्म 9 मई 1960 को उरई में हुआ था। मनोविज्ञान से परास्नातक, तत्पश्चात एलएलबी एवं डिप्लोमा इन मैनेजमेंट तक की शिक्षा इन्होंने प्राप्त की हिंदी मासिक मृगपाल की सह संपादिका तथा अनुकरण बुद्धिजीवी वैचारिक मंच ज्ञानदीप मंडल दूरदर्शन झांसी की सदस्य भी रही इन्होंने अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संचालन भी किया
सपनों के सुरभित उपवन में ,
बस एक कुमुद सा सुमन खिला
चिरकालिक व्याकुल जीवन में,
ये क्षणिक मिलन फिर आज मिला।
डॉक्टर कामिनी
डॉ कामिनी का जन्म 22 जुलाई 1952 को दतिया के सेवड़ा मे हुआ था। इनका जीवन संघर्ष से भरा रहा शिक्षा के लिए उन्हें बचपन से ही संघर्ष करना पड़ा। नगर में स्थित लड़कियों के एकमात्र सरकारी विद्यालय से माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात इंटर कॉलेज में लड़कियों की संख्या नाममात्र की होने के कारण वहां भी संघर्ष का सामना करना पड़ा। विवाह उपरांत उनके समक्ष ससुराल में इतना तीव्र विरोध हुआ कि उनसे कहा गया... या तो शिक्षा छोड़ दे या ससुराल ऐसे में शिक्षा के लिए अद्भुत जुनूनी डॉक्टर कामिनी ने ससुराल छोड़ने का निर्णय लिया। अतुल हौसले की धनी डॉक्टर कामिनी ने शारीरिक मानसिक संघर्षों से जूझते हुए अपनी शिक्षा प्राप्ति की धुन में लगी रही ।और स्नातक परास्नातक की उपाधि के बाद पीएचडी डी लिट की उपाधि प्राप्त करने वाली प्रदेश की पहली महिला बनी 12 श्रेष्ठ कृतित्व एवं साहित्य सेवा में पूर्णता समर्पित डॉक्टर कामिनी की महत्वपूर्ण पुस्तकों में- दतिया एक परिचय, बुंदेलखंड की पत्र पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, स्थान नाम बोलते हैं ,आदि,है। उन्होंने अनेक कहानी संग्रहों की रचना की ,जिनमें -- गुलदस्ता ,बिखरे हुए मोर पंख, हाशिए पर , सिर्फ रेत ही रेत, उरैन तथा आलेख आदि अविस्मरणीय हैं उन्होंने बुंदेली भाषा और साहित्य सीता किशोर स्मृति कलश तथा दतिया राजवंश मार्गदर्शन का संपादन भी किया। निरंतर संघर्ष दृढ़ इच्छाशक्ति अटूट प्रयासों से अपने व्यक्तित्व को निखारने वाली डॉक्टर कामिनी
70 से अधिक जिला, राज्य राष्ट्रीय सम्मानों से सुशोभित हो चुकी हैं।13 पुरातन परंपराओं जड़ मानसिकता से लड़ पाना एक स्त्री के लिए सहज नहीं है परंतु झंझावातों से जूझते अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर डॉ कामिनी ने यह सिद्ध कर दिया कि असंभव कुछ भी नहीं और यदि लगन पक्की हो तो एक दिन संघर्ष सफलता में अवश्य परिवर्तित होता है।
डॉ माया सिंह
बुंदेलखंड के उरई जिले की निवासी डॉ माया सिंह का बुंदेलखंड के साहित्यकारों में विशेष स्थान है। हिंदी साहित्य को अपनी अनेक रचनाएं भेंट करने वाली डॉक्टर माया सिंह इनाल्को यूनिवर्सिटी फ्रांस की ओर से पेरिस के सभागार में वैश्विक पर्यावरण विषय पर आयोजित कार्यक्रम में भाग ले चुकी हैं जिसमें कश्मीर सहित विश्व के 70 से अधिक देशों के साहित्यकार सम्मिलित हुए विश्व हिंदी सेवी सम्मान से भी उन्हें फ्रांस द्वारा सम्मानित किया जा चुका है 14 उन्हें साहित्य, समाज सेवा, और राष्ट्रीय एकता के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्था विमेंस वर्ल्ड रिकॉर्ड गुड़गांव द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला आइकॉन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।15 डॉक्टर माया सिंह हिंदी साहित्य जगत की सशक्त हस्ताक्षर के रूप में देश दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी हैं। वे साहित्य सृजन के साथ स्वास्थ्य विभाग में रहकर दीन दुखियों की सेवा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
सरोज कुमारी गौरिहार
रानी सरोज कुमारी का जन्म सन् 1929 में उत्तर प्रदेश के आगरा के घाट क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता जगन प्रसाद रावत एक स्वतंत्रता (सेनानी ) तथा माता सत्यवती रावत थी इनकी शिक्षा एम एवं एलएलबी थी ।इनका विवाह बुंदेलखंड की एक छोटी रियासत गौरिहार के राजा प्रताप सिंह भूदेव के साथ हुआ था उन्होंने सन् 1967 से 1972 तक चंदला विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया 16 वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हुए एक बार जेल भी गयीं विधायक के पद पर रहते हुए निरंतर अपने क्षेत्र के विकास के लिए सरोज कुमारी गौरी हार प्रयासरत रही 28 अगस्त 2022 को 93 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी प्रमुख कृतियां है -
आनंद छलिया और मांडवी एक विस्मृता सरोज कुमारी आगरा में नागरी प्रचारिणी की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं तथा लंबे समय तक साहित्य सेवा तथा जन सेवा में समर्पित रही मामुलिया तथा बुंदेली साहित्य जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं से भी वे जुड़ी रही है।17
मैत्रेई पुष्पा
हिंदी साहित्य जगत तथा बुंदेलखंड की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर मैत्रेई पुष्पा के नाम से कौन साहित्य प्रेमी अनभिज्ञ होगा। 30 नवंबर 1944 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के सकुर्रा नामक गांव में जन्मी मैत्रेई पुष्पा के पिता हीरालाल पांडे तथा माता कस्तूरी पांडे थी। गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मी पुष्पा का बचपन अनेक दुश्वारियों से भरा रहा मां के द्वारा पुकारे गए नाम पुष्पा तथा पिता द्वारा दिए गए नाम मैत्रेयी को जोड़कर उन्होंने अपना साहित्यिक नाम मैत्रेई पुष्पा रखा।18 अपनी मां से बेहद प्रभावित पुष्पा को वैचारिक जागरूकता, उदारता आधुनिकता अपनी मां से विरासत में मिली। जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा कस्तूरी कुंडल बसै में किया है। उनकी मां कस्तूरी अकाल वैधव्य के प्रहार के बाद टूटने की अपेक्षा शिक्षा को अपना लक्ष्य बनाकर एक प्रशिक्षित ग्राम सेविका के रूप में स्थापित हुई। तथा बेटी को पढ़ा लिखा कर स्वावलंबी बनाना ही उनके जीवन का लक्ष्य था मात्र 18 वर्ष की उम्र में मोतीझला की बीमारी के चलते पिता को खो देने, तथा माता आई हुई जिम्मेदारियों के कारण माता से भी दूर होने के कारण मैत्रेई पुष्पा बालपन के स्नेह से वंचित रही। कन्या संस्कृत विद्यालय से अपनी शिक्षा प्रारंभ करने वाली मैत्रेई पुष्पा ने दर्शनशास्त्र और मनोविज्ञान से बीए की उपाधि प्राप्त कर बुंदेलखंड झांसी से हिंदी साहित्य से एम की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने विवाह उपरांत अपनी संतान के बड़े हो जाने पर अपनी जिम्मेदारियों के कम होने के बाद बड़ी बेटी के परामर्श पर लेखन कार्य प्रारंभ किया हिंदी कथा साहित्य में उनका पदार्पण 1990 में उपन्यास स्मृति दंश के साथ हुआ। उनकी रचनाओं में समाज के प्रति सजगता सहज ही परिलक्षित होती है। उन्होंने स्वतंत्र रूप से उपन्यास कहानियां आत्मकथा तथा वैचारिक साहित्य आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। स्मृति दंश, बेतवा बहती रही, इदन्नमस चाक,झूला, नट ,अगनपाखी, विजन, त्रियहठ ,फरिश्ते निकले आदि उनके कालजयी उपन्यास है तथा चिन्हारस ललमनिया, गोमा हंसती है, छांह, पियरी का सपना, फैसला आदि उनके अविस्मरणीय कहानी संग्रह हैं उन्होंने कस्तूरी कुंडल बसे तथा गुड़िया भीतर गुड़िया नाम से दो भागों में अपनी आत्मकथा भी लिखी। खुली खिड़कियां, सुनो मालिक सुनो, चर्चा हमारा,
तब्दील निगाहें, तथा आवाज आदि के माध्यम से स्त्री विमर्श पर भी उन्होंने बेबाक लेख लिखें उन्होंने- वह सफर था कि मुकाम( संस्मरण), फाइटर की डायरी (रिपोर्ताज ), तथा लकीरे नाम से काव्य संग्रह भी लिखा 19
साहित्य सेवा के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। हिंदी अकादमी द्वारा वर्ष 1991 में - साहित्य कृति सम्मान, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा - वीर सिंह जूदेव पुरस्कार, उपन्यास इदन्नम के लिए - कथाक्रम सम्मान पुरस्कार, प्रदेश साहित्य संस्थान द्वारा-बेतवा बहती रही के लिए 1995 में - प्रेमचंद सम्मान के साथ उन्हें अनेकों बार जिला, राज्य राष्ट्रीय स्तर पर अनेको बार सम्मानित किया गया। उनकी कहानी फैसला को कथा पुरस्कार से सम्मानित करने के साथ ही साथ इस पर वसुमति की चिट्ठी नाम से एक टेली फिल्म का निर्माण भी किया जा चुका है।20
लोक भजन लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बुंदेलखंड के अनेक कविताओं ने बुंदेली भाषा में अनेक भजनों की रचना कर साहित्य को समृद्ध किया है भक्ति काव्य की दृष्टि से बुंदेलखंड हिंदी जगत में शीर्ष पर है लोक की हलचल को लोक भाषा में ही महसूस किया जा सकता है बुंदेली का काव्य गद्य दोनों में ही अपना अमूल्य योगदान देकर इन रचनाकारों ने उसे सशक्त और प्रभावी बनाया है फाग साहित्य, फड़ साहित्य, गारियां , सैरे,राछरे आदि परंपरागत मूल्यवान कोश हैं।
क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण होता है अतः समय के साथ साहित्य सृजन के विषय भी परिवर्तित विकसित होते रहते हैं। अतः आधुनिक रचनाकारों ने समाज के उत्थान के लिए अनेक समस्या प्रधान विषयों पर अपनी बेबाक लेखनी चलाई है तथा शिक्षा के महत्व के साथ दलित उत्थान तथा स्त्रियों के सर्वांगीण विकास को सदैव प्राथमिकता दी इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से रूढ़िगत परंपराओं का खंडन करते हुए नारी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है इनका समाज के विकास साहित्य संपदा को सुदृढ़ बनाने में अमूल्य योगदान है।
संदर्भ ग्रंथ सूची
1- बुंदेली झलक बुंदेलखंड की महिला साहित्यकार फरवरी 27/ 2022
2- त्रिपाठी मोतीलाल अशांत, बुंदेलखंड का साहित्यिक इतिहास, लक्ष्मी प्रकाशन झांसी, पृष्ठ संख्या 282 - 83
3 - वही
4 - बुंदेली झलक बुंदेलखंड की महिला साहित्यकार फरवरी 27/ 2022
5 - त्रिपाठी मोतीलाल अशांत, बुंदेलखंड का साहित्यिक इतिहास, लक्ष्मी प्रकाशन झांसी, पृष्ठ संख्या 285
6 - त्रिपाठी मोतीलाल अशांत, बुंदेलखंड का साहित्यिक इतिहास, लक्ष्मी प्रकाशन झांसी, पृष्ठ संख्या 286
7- त्रिपाठी मोतीलाल अशांत, बुंदेलखंड का 20 / 22 साहित्यिक इतिहास, लक्ष्मी प्रकाशन झांसी, पृष्ठ संख्या 287
8- त्रिपाठी मोतीलाल अशांत, बुंदेलखंड का साहित्यिक इतिहास, लक्ष्मी प्रकाशन झांसी, पृष्ठ संख्या 288
9- त्रिपाठी मोतीलाल अशांत, बुंदेलखंड का साहित्यिक इतिहास, लक्ष्मी प्रकाशन झांसी, पृष्ठ संख्या 287
10 - भारत दर्शन हिंदी साहित्यिक पत्रिका (इंटरनेट)
11- त्रिपाठी मोतीलाल अशांत, बुंदेलखंड का साहित्यिक इतिहास, लक्ष्मी प्रकाशन झांसी, पृष्ठ संख्या 289
12 - बुंदेली झलक डॉ कामिनी बुंदेलखंड की साहित्यकार अगस्त 27 2021
13 - बुंदेली झलक डॉ कामिनी बुंदेलखंड की 21 / 22 साहित्यकार अगस्त 27 2021
14 - कवित्री माया सिंह को विश्व हिंदी सेवी सम्मान अमर उजाला ब्यूरो जालौन 27 जून 2016
15 - अंतर्राष्ट्रीय महिला आइकन अवार्ड से सम्मानित साहित्यकार माया सिंह जागरण संवाददाता उरई 14 अप्रैल 2022 
16- यूपी के आगरा में स्वतंत्रता सेनानी गौरिहार का निधन हिंदुस्तान टाइम्स 28 अगस्त 2022
17- वही
18- पांडे अनु मैत्रेई पुष्पा का जीवन परिचय, (साहित्य सृजन)
19 - डॉ सेन संतोष कुमार, मैत्रेई पुष्पा- जीवन परिचय साहित्य पति नेट वर्थ, हिस्ट्री क्लासेस 11 मार्च 2022