https://doi.org/10.29070/ne1a6c25
वैश्विक ज्ञान-धारा में पिछड़ता भारत
सहायक प्राध्यापक (हिन्दी), राजकीय महिला महाविद्यालय, शहजादपुर (अम्बाला), हरियाणा, भारत
Email: charandass.mtssa@gmail.com
सारांश : निश्चित रूप से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में आज विश्व तीव्र गति से प्रगतिमान है| प्रतिदिन नये-नये आविष्कार हो रहे हैं| वैश्वीकरण के दौर में विश्व के एक कोने में होने वाले आविष्कार की चमक केवल उस कोने तक सीमित ना रहते हुए सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर जाती है| सबसे पिछड़े देश भी अगर धन-धान्य सम्पन्न हैं तो नव-आविष्कृत उपकरणों को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लेते हैं| भारत की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है जो विश्व की प्रगतिशील ज्ञान-धारा में नगण्य योगदान देकर आधुनिकता की सभी सुविधाओं को भोग रहा है और अपने प्राचीन गौरव का बखान कर अपना आत्म-सम्मान बचाने की असफल कोशिश कर रहा है|
मुख्य शब्दावली : शिक्षा, ज्ञान, गौरव, मिथक, पिछड़ापन, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकी|
प्रस्तावना
प्राचीन काल से ही मनुष्य अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने और दैनिक जीवन को सुगम बनाने के लिये प्रयासरत रहा है| इस क्रम में मनुष्य ने कुछ अनसुलझे रहस्यों को सुलझाया है और अनेक रहस्यों को सुलझाने के करीब है| मनुष्य की विकास-यात्रा के आरंभिक चरण में मनुष्य ने दैनिक जीवन को सरल बनाने हेतु कुछ नई चीजों की खोज की| मनुष्य की आरंभिक खोजें उसकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की चाह से प्रेरित थी| मध्यकाल में जब मनुष्य अधिक सुव्यवस्थित रूप से सामुदायिक जीवन जीने लगा और व्यापार, वाणिज्य विकसित होने लगा तो सुदूर प्रदेशों से उसका सम्पर्क स्थापित होने लगा| इस प्रकार चीजों के पारस्परिक आदान-प्रदान के साथ-साथ ज्ञान का आदान-प्रदान भी होने लगा| फलस्वरूप मानव-सभ्यता का तेजी से विकास होने लगा| दुनिया के किसी कोने से गीत-संगीत, चित्रकारी, और वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण मिले तो कोई अपेक्षाकृत तकनीकी रूप से श्रेष्ठ मिला| मानव-विकास के आरंभिक चरण में भारत न केवल कला के क्षेत्र में बल्कि कौशल व तकनीकी ज्ञान के मामले में भी दुनिया के शीर्ष देशों में से एक था| परन्तु जैसे-जैसे मानव-सभ्यता समग्र रूप से आगे बढ़ती गई उसमें भारत का योग घटता गया| शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा जैसे प्रत्येक क्षेत्र में भारत आज शीर्ष देशों की सूची में बहुत पीछे खड़ा है|
आलेख
बरसों से भारतीयों को प्राचीन इतिहास के स्वर्णिम दिनों की याद दिलाकर वर्तमान पिछड़ेपन को भुलाने का नकारात्मक प्रयास किया जा रहा है| अच्छा होता कि वर्तमान स्थिति को छुपाने की बजाय असलियत को सामने लाने का प्रयास किया गया होता, कम से कम सैंकड़ों बरस पहले ही भारतीय अपने पिछड़ेपन को जानकार उससे उबरने का प्रयास तो करते| सच तो यह है कि वर्तमान वैश्विक उपलब्धियों में भारत का स्थान इतना पीछे है कि अपनी जनसंख्या और उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए उस पायदान पर खुद को देखना शर्मनाक लगता है|
प्राचीन काल में जब पूरे विश्व में विज्ञान और तकनीकी के स्थान पर जीवनोपयोगी व्यावहारिक ज्ञान व कौशल को महत्त्व दिया जाता था, भारत निःसंदेह बेहतर स्थिति में था | तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय के समय भारत अपने चरम पर था| लेकिन जैसे ही वैज्ञानिक परिवर्तन होने लगे भारत लगातार पिछड़ता चला गया|
पुराने धर्म ग्रंथों में भले ही विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में भारत अग्रणी दिखाया गया है, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं मिलता| अनेक पौराणिक कहानियों में शल्य-चिकित्सा और अंग-प्रत्यारोपण का उल्लेख मिलता है लेकिन उन कहानियों को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता| वे कहानियाँ जिनका सहारा लेकर हम अपनी वर्तमान स्थिति को ढाँपने का प्रयास करते हैं अन्य धर्मों के साथ जुड़ी कहानियों की तरह मिथक मात्र हैं| वैसे भी समय के साथ-साथ ज्ञान बढ़ता जाता है, कम नहीं होता| विशेषत: वह ज्ञान जो हमारे व्यवहार में आ जाता है पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होता जाता है| जैसे एक बार टी वी, मोबाइल व कंप्यूटर का आविष्कार होने के बाद उनमें लगातार सुधार हो रहा है| महाभारत के अनुसार संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का जो आँखों देखा हाल सुनाता है उसे वैज्ञानिक उपलब्धि तभी माना जा सकता है जब वह योग्यता हस्तांतरित होकर अगली पीढ़ी तक जाती और आगे जाकर उसमें कुछ सुधार देखने को मिलता ; ऐसा ना होने की स्थिति में उसे केवल कहानी या मिथक ही कहा जा सकता है| यदि वेदों को भारत के प्राचीनतम धर्म-ग्रन्थ ना मानकर साहित्यिक ग्रन्थ माना जाये और उनके साथ जुडी हुई सभी अतार्किक बातें को नकार दिया जाये तो भी उनका महत्त्व कम नहीं होता| पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी पुस्तक ‘Discovery of India' में कहते हैं, “बहुत से हिन्दू वेदों को प्रकाशित धर्म-ग्रन्थ मानते हैं| यह बात मुझे विशेष दुर्भाग्यपूर्ण लगती है क्योंकि यह मान लेने पर उनका महत्त्व हमारी नजर से ओझल हो जाता है| उनका असली महत्त्व इस बात का उद्घाटन करने के कारण है कि विचारों की आरंभिक अवस्था में मानव-मस्तिष्क ने कैसे अपने को व्यक्त किया था |” (भारत की खोज, जवाहरलाल नेहरू)
प्राचीन संस्कृत साहित्य इतिहास-ग्रन्थ न होकर विशुद्ध साहित्य होते हुए भी भारत के तत्कालीन जीवन की बहुत सी प्रामाणिक जानकारी दे जाता है लेकिन पुरातत्विक स्रोतों के समान विश्वसनीय नहीं| सैंधव सभ्यता के पुरातात्विक अवशेष भारत के प्राचीन गौरव की पुष्टि करते हैं| यदि सैंधव-लिपि को पढ़ा जाता तो स्थिति और स्पष्ट होती| सिंधु घाटी की नागरिक सभ्यता आर्यों की ग्रामीण सभ्यता से उत्कृष्ट थी परन्तु उसके खंडहरों में संस्कृत महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित अतिशयोक्तिपरक उपलब्धियों जैसी बातों का संकेत नहीं मिलता| वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल, महाजनपद काल और यहाँ तक की मौर्य काल की पुरातत्विक सामग्री भी संस्कृत महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित बातों से मेल नहीं खाती| महाजनपद काल में कुछ शहरों का उदय एवं विकास अवश्य हुआ लेकिन संस्कृत महाकाव्यों में वर्णित भव्यता तब भी नहीं मिलती| गुप्त काल में शिक्षा के क्षेत्र में भारत एशिया का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा| नालंदा उस समय का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था जिसमें बौद्ध धर्म व दर्शन के साथ-साथ हिन्दू धर्म और वेदांत, खगोल, गणित, चिकित्सा, कला, साहित्य व देशी-विदेशी भाषाओं की शिक्षा दी जाती थी| लेकिन 19वीं सदी तक आते-आते जब पाश्चात्य जगत वैज्ञानिक क्रांति के बल पर कृषि, उद्योग व चिकित्सा के क्षेत्र में आसमान छू रहा था भारत शिक्षा के उसी परम्परागत ढाँचे से चिपका था| अंग्रेजों के काल में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत अवश्य हुई लेकिन उसका केवल वह पक्ष भारतीयों के सामने परोसा गया जो ब्रिटिश शासन के लिये उपयोगी हो| स्वतंत्रता के बाद स्थिति में परिवर्तन आया| इस दौरान भारत ने उन्नति के मार्ग पर अपने कदम बढ़ाये लेकिन इतनी धीमी गति से कि बुलेट ट्रेन की भांति भागते इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, रूस, चीन, जापान,अमेरिका जैसे देश उससे इतने आगे निकल गये की अगर आज वे आगे बढ़ना छोड़कर एक स्थान पर खड़े हो जायें तो भी उन तक पहुँचने में भारत को कई दशक लग जायेंगे|
चिकित्सा के क्षेत्र में भारत कुछ बेहतर स्थिति में है लेकिन विश्वगुरु जैसी कोई बात नहीं| लगभग हर प्रकार की दवाईयों का निर्माण भारत में होने लगा है लेकिन अधिकांश आधुनिक चिकित्सा उपकरण भारत आज भी आयात करता है| लाईलाज समझी जाने वाली बिमारियों की दवाई खोजने के मामले में भी भारत अभी बहुत पीछे है| इतिहास रचने वाली शल्य-क्रियाओं और नई वैक्सीन के निर्माण में भारत बहुत दूर नजर आता है| प्रथम हृदय प्रत्यारोपण क्रिस्चियान बर्नार्ड (दक्षिण अफ्रीका) ने किया| डॉ जेनर (इंग्लैंड) ने चेचक का सदा के लिये उन्मूलन कर दिया| अमेरिकी चिकित्सक जोनाक साल्क ने पोलियो वैक्सीन की खोज की| अभी हाल ही में रूस ने कैंसर की वैक्सीन खोजी है जिसके द्वारा दावा किया गया है कि यह कैंसर को दोबारा होने से रोकेगी| रूस द्वारा इसके शुरूआती परिणाम संतोषजनक बताये जा रहे हैं|
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न ग्रहों की खोज के बारे में प्रायः कहा जाता है कि भारतीय इनसे पहले से परिचित थे लेकिन मंगल, शुक्र और शनि का उल्लेख आज भी भारतीय केवल लड़के-लड़कियों की शादी या किसी शुभ कार्य में बाधा डालने वाले तत्व के रूप में करते रहते यदि पाश्चात्य जगत अंतरिक्ष में न पहुंच जाता| आज चन्द्रमा और मंगल पर मानव-बस्ती बसाने के लिये प्रयास किए जा रहे हैं| स्पेस-टूरीज्म का चलन शुरू हो गया है| इस दिशा में भारत ने भी अपने प्रयास शुरू कर दिये हैं जो प्रशंसनीय है| लेकिन प्रयास करने और बाजी मारने में बहुत अंतर होता है| सबसे बड़ी बाधा यह है कि भारत की कोई भी सूचना आज अमेरिका, चीन जैसे देशों से छुपी नहीं| गूगल, ऑपरा मिनी, माइक्रोसॉफ्ट एज जैसे सभी सर्च इंजिन विदेशी हैं| भारत द्वारा उठाने वाले हर अगले कदम से विदेशी परिचित हो जाते हैं|
संख्या के दृष्टिकोण से आज सबसे अधिक मोबाइल, टी वी, कार, मोटर साइकिल व अन्य इलेक्ट्रॉनिक गजेट्स भारत में बनते हैं लेकिन इसमें भारत में स्थापित विदेशी कम्पनियों का योगदान है न कि भारतीय कंपनियों का| भारतीय कंपनियाँ जिन इलेक्ट्रॉनिक गजेट्स का निर्माण करती हैं उनके भी अधिकांश पार्ट्स विदेशों में बनते हैं|
विश्व के सर्वोत्तम शिक्षण संस्थानों में भारत की स्थिति फिसड्डी है| 2025 क्यू एस टॉप यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भारत की कोई भी यूनिवर्सिटी सर्वोच्च 100 की सूची में स्थान नहीं बना पाई| इस रैंकिंग में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे 118वें स्थान पर है|
World Economic Forum (WEF) की 2021 में जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत गुणवत्तापरक शिक्षा के दृष्टिकोण से विश्व में 90वें स्थान पर पर था जबकि आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान जैसे कौशलों में सबसे निम्न स्तर पर आँका गया|
बड़ी-बड़ी बातें करने से पूर्व आधारभूत ढाँचे में सुधार अपेक्षित है| भारत के शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, भारत के सभी सरकारी स्कूलों में से केवल 4.8 प्रतिशत के पास कक्षाएँ, पुस्तकालय और कंप्यूटर लैब सहित पर्याप्त बुनियादी ढाँचा है (स्रोत: भारतीय शिक्षा मंत्रालय, 2021)
देश में पहली नजर में ही शिक्षकों की कमी नजर आ जाती है| भारतीय शिक्षा मंत्रालय, 2021 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में शिक्षकों की भारी कमी है, देश भर में 1.2 मिलियन से ज़्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं। इस कमी के कारण कक्षाएँ भीड़भाड़ वाली हो गई हैं, कुछ स्कूलों में एक शिक्षक पर 50 से ज़्यादा छात्र हैं। (स्रोत: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, 2021)।
शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट ( ASER ) - 2023 के अनुसार कुल मिलाकर, 14-18 वर्ष के 86.8% बच्चे किसी स्कूल या कॉलेज में नामांकित हैं। जिनमें से लगभग 25% युवा अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 स्तर का पाठ धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं। अंग्रेजी भाषा में स्थिति इससे भी बदतर है|
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा भर्ती किए गए लगभग 40% शिक्षक योग्य नहीं हैं (स्रोत: NCERT, 2021) जिसके कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षण में कमी आई है| जबकि अधिकांश अध्यापकों ने उन सभी परीक्षाओं को पास किया है जो अध्यापक बनने के लिये न्यूनतम योग्यता के अंतर्गत आती हैं| इसके बाद भी अभ्यर्थी चयन परीक्षा और साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुजर कर अध्यापक बन पाता है| इससे लगता है कि भारत की मूल्यांकन पद्धति भी दोषपूर्ण है|
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट झलक मिल जाती है कि वर्तमान वैश्विक ज्ञान-धारा में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है| आज भारत जो विकास कर रहा है वह भी अन्य देशों के अनुकरण के परिणामस्वरूप है| यही कारण है कि अनेक सुविधाएं जो पाश्चात्य देश भोग रहे हैं, भारत के लिये अभी भविष्य की बातें हैं| भारतीय शिक्षा व्यवस्था के पिछड़ेपन का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत के लाखों छात्र अमेरिका, इंग्लैंण्ड, ऑस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड,कनाडा, चीन, जापान, रूस, यहाँ तक कि युद्ध प्रभावित युक्रेन, इजराइल जैसे देशों में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं|
शिक्षा मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 52.2% की वृद्धि हुई है। यह संख्या 2019 में 5,86,337 से बढ़कर 2023 में 8,92,989 हो गई है। (द वायर, हिन्दी) हालांकि, विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में विदेशों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की संख्या 13,35,878 तक पहुंच गई है| (स्रोत : Live Hindustan)
आत्ममुग्धता के शिकार और स्वयं को विश्व-गुरु कहने वाले भी अपने बच्चों को विदेशों में भेज रहे हैं| इसके विपरीत 'उपर्युक्त वर्णित देशों में से कितने छात्र भारत में पढ़ने आते हैं' आंकड़े को तलाशने से स्थिति और स्पष्ट हो जायेगी| बिना आंकड़े तलाशे आनुभाविक आधार पर आप अपने आसपास देखने पर पाते हैं कि शायद ही इन देशों से कोई भारत में शिक्षा ग्रहण करने आता हो|
संदर्भ सूची
- राय, बी.सी., हिस्ट्री ऑफ इंडियन एजुकेशन, आगरा, राम प्रकाश एन्ड संस |
- दिनकर, रामधारी सिंह, संस्कृति के चार अध्याय, इलाहाबाद, लोकभारती प्रकाशन (2011)
- नेहरू, जवाहरलाल, भारत की खोज (संक्षिप्त संस्करण), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद 1996
- भारद्वाज, निगम, नालंदा का पुरातात्विक वैभव, नई दिल्ली, सम्यक प्रकाशन ( 2011)
- क्यू एस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2025
https://www.topuniversities.com/qs-top-uni-wur
(6) दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट https://www.bhaskar.com/db-original/explainer/news/india-teacher-population-ratio-how-many-teacher-are-in-india-all-you-need-to-know-total-number-of-male-female-shiksha-127687249.html#:~:text=1
(7) वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट, 2021
(8) स्कूलों में बुनियादी ढांचा : एक महत्वपूर्ण बदलाव, भारतीय शिक्षा मंत्रालय (2021). https://pib.gov.in/PressRelease/PressRelease.aspx?opencat=11970
(9) शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट, 2023
https://asercentre.org/aser-2023-beyond-basics/
(10) भारत में शिक्षा की गुणवत्ता, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद, 2021.