प्रस्तावना

विकलांगता एक ऐसा सामाजिक, शारीरिक, मानसिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौती है जो समाज में विशेष ध्यान और समझ की आवश्यकता उत्पन्न करती है। विशेष रूप से बच्चों के संदर्भ में, विकलांगता शिक्षा, विकास, और समाज में समावेशन की दिशा में कई बाधाओं का कारण बनती है। भारत में विकलांगता से प्रभावित बच्चों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, और यह बच्चों के शैक्षिक अधिकारों के संरक्षण और उनके समुचित विकास के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन चुका है।

प्राथमिक शिक्षा में विकलांग बच्चों की समस्याएँ जटिल और विविध हैं। इनमें शारीरिक, मानसिक, और संवेदनशील समस्याएँ शामिल हैं जो इन बच्चों को सशक्त बनाने और उनके शिक्षा में सफलता प्राप्त करने में बाधक बनती हैं। मथुरा जनपद जैसे कुछ क्षेत्रों में, जहां शिक्षा के अवसर सीमित हैं, विकलांग बच्चों के लिए समर्पित शैक्षिक कार्यक्रमों की कमी और शिक्षकों के प्रशिक्षित न होने जैसी समस्याएँ और बढ़ जाती हैं। यह अध्ययन विशेष रूप से मथुरा जिले की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में विकलांग बच्चों के सामने आने वाली शैक्षिक समस्याओं को विश्लेषित करेगा और उन समस्याओं के संभावित समाधान की दिशा में सटीक जानकारी प्रदान करेगा।

समावेशी शिक्षा की नीति, जो विकलांग बच्चों के लिए समान शैक्षिक अवसर प्रदान करने का लक्ष्य रखती है, ने पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं, लेकिन मथुरा जनपद में इसके प्रभावी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं। इस शोध में, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या वर्तमान शिक्षा नीतियाँ विकलांग बच्चों के लिए उपयुक्त हैं और किन सुधारों की आवश्यकता है, ताकि वे अपनी शिक्षा में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकें।

यह अध्ययन विकलांग बच्चों के लिए शिक्षा के मार्ग को सुगम बनाने के लिए सुझाए गए उपायों और समाधान पर केंद्रित होगा। इसके माध्यम से, हम उन बाधाओं को पहचानने का प्रयास करेंगे जो विकलांग बच्चों की शिक्षा में हस्तक्षेप करती हैं और उन्हें दूर करने के उपायों पर चर्चा करेंगे। इस शोध का उद्देश्य मथुरा जनपद में विकलांग बच्चों की शिक्षा के सुधार के लिए एक ठोस रूपरेखा प्रस्तुत करना है, ताकि वे अपने अधिकारों का सही तरीके से लाभ उठा सकें और समाज में सशक्त योगदान दे सकें।

विकलांगता, विशेष रूप से शारीरिक और मानसिक विकलांगता, बच्चों की शैक्षिक यात्रा में कई प्रकार की समस्याओं और चुनौतियों का कारण बनती है। भारत में, जहाँ समावेशी शिक्षा की दिशा में कई प्रयास किए गए हैं, विकलांग बच्चों की शिक्षा एक महत्वपूर्ण विषय बनकर उभरा है। विकलांगता के कारण शिक्षा प्राप्ति में रुकावटें उत्पन्न होती हैं, जो बच्चों के भविष्य और समाज में उनके योगदान को प्रभावित करती हैं।

मथुरा जनपद में, विकलांग बच्चों की शैक्षिक समस्याएँ और उनके समाधान को समझना अत्यधिक आवश्यक है, क्योंकि इस क्षेत्र में विकलांग बच्चों के लिए उचित शैक्षिक सेवाएँ और संसाधन उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इस अध्ययन का उद्देश्य मथुरा जनपद में विकलांग बच्चों की प्राथमिक शिक्षा में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का विश्लेषण करना है, साथ ही उन समस्याओं का समाधान ढूँढना है जो इन बच्चों को समुचित शिक्षा प्राप्त करने में सहायक हो सकें।

समावेशी शिक्षा और विशेष शिक्षा की नीतियों के अंतर्गत, यह शोध मथुरा जनपद में विकलांग बच्चों के लिए शिक्षा की स्थिति का मूल्यांकन करेगा और सुधार के लिए संभावित उपायों की सिफारिश करेगा

साहित्य समीक्षा

के.सी.ए. तथा जैन, एन. 1992 ने अपना अनुसंधान कार्य विकलांग बालकों तथा सामान्य बालकों की आवश्यकताओं के पदानुक्रमण का उनके खुश रहने की रणनीति पर किया । अध्ययन का मुख्य उद्देश्य विकलांग बालकों की आवश्यकताओं का निर्धारण तथा सूचकांक के अप में प्रयुक्त किये जाने वाले उपलब्धि, स्वामित्व, धैर्य, आदेश सम्बन्धता, प्रदर्शन एवं आक्रामकता का अध्ययन करना था । इसमें 25 विकलांग तथा 25 सामान्य बालकों का चयन किया गया जो कि 8 से 14 वर्मा के थे ।

1.         सिंह, प्रसाद गोयल 1998 में अपना शोधकार्य अपंग बालकों की परिवार में मनोसामाजिक समस्याओं का अध्ययन किया। अध्ययन में भौतिक विकलांग बालकों में 50 मानसिक मन्दतम बालकों तथा 50 स्वस्थ बालकों का चयन किया गया । अध्ययन में पाया गया कि अवपादात्मक बालकों के परिवारों में आर्थिक नैराश्य, दैनिक गतिविधियों में असन्तुलन है । नैतिक एवं मानसिक स्वास्थ्य नियंत्रित परिवारों की तुलना में अधिक पाया गया ।

2.         पाल एवं चैधरी 1998 ने अपना शोधकार्य भारत में ग्रामीण विकलांग बच्चों हेतु प्रयुक्त समायोजनशीलता मापनी का प्रारम्भिक सत्यापन चर पर किया । अध्ययन में पाया गया कि अभिभावक समायोजन बाल विकलांगता उपायों में एक महत्वपूर्ण कारक है । माताओं ने आत्म सम्मान में अपनी अस्वीकृति की भावना का प्रदर्शन किया । अध्ययन में पाया गया कि सामाजिक सहयोग तथा निर्देशन की आवश्यकता विकलांग बच्चों को महसूस की गयी ।

3.         चिनचालिकर 2006 ने अपना शोधकार्य दृमिटबाधित व्यक्तियों के मनोसामाजिक कारक का एक महामारी के अप में अध्ययन किया । अध्ययन के उद्देश्य के अप में दृमिटबाधित लोगों ने व्यावसायिक परीक्षण में मनो सामाजिक कारकों के जोखिम का अध्ययन करना था। उपरोक्त विवरण के परिणाम यह दर्शाते हैं कि पुअमाों में समायोजन तथा मनोअग्णता एक सार्थक कारक है । विकलांग निम्न आर्थिक स्तर, ग्रामीण निवास, अविवाहित स्थिति के कारण उक्त प्रभाव को दर्शाते हैं ।

4.         लास्कर, गुप्ता कुमार सिंह एवं शर्मा 2006 ने अपना शोधकार्य विकलांग बालकों और महामारी के बीच विकास के सम्बन्ध में अध्ययन किया । इसमें मनोसामाजिक परिवर्तन एवं इसके कारकों का विकलांग बच्चों तथा स्वस्थ बच्चों हेतु निर्मित योजनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया गया । इसको शरीर विकलांग संस्थान, नई दिल्ली द्वारा 01 अप्रैल, 2005 से मार्च 2006 तक पूर्ण किया गया ।

5.         मोदी एवं थिगराजन 2006 ने अपना शोधकार्य अल्पशारीरिक विकलांग विवाहितों के क्रोध एवं तर्कहीन चिन्तन की भूमिका पर किया । अध्ययन में क्रोध और तर्कहीन चिन्तन के सहसम्बन्ध का अध्ययन एवं इसकी विवाहित विकलांगों की स्वास्थ्य समस्या पर प्रभाव हेतु सम्पूर्ण भारत के विभिन्न हिस्सों से किया गया । अध्ययन में यह पाया गया कि क्रोध और तर्कहीन चिन्तन जो कि विवाहित विकलांगों में पायी गयी है उनको बेहतर प्रबन्ध के द्वारा दूर किया जा सकता है ।

6.         रवीन्द्रन और राजू 2008 ने अपना शोधकार्य मानसिक मन्द बालकों के माता पिता की समायोजनशीलता तथा मनोभावों के अध्ययन पर किया । निदर्श में 50 माता पिताओं जिसमें माता या पिता कोई भी का चयन किया गया । इसमें 25 से 50 साल के निदर्श को सम्मिलित किया गया । अध्ययन के परिणाम दर्शाते हैं कि धर्म, आय, शिक्षा के समायोजनशीलता चर में सार्थक सम्बन्ध पाया जाता है ।

डॉ. कमल शर्माशिक्षा में दिव्यांगता: समस्याएं और समाधान” (2021)ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांग बच्चों को विशेष स्कूलों की बजाय सामान्य स्कूलों में शिक्षा दी जानी चाहिए।सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन और विशेष शिक्षकों की संख्या में वृद्धि जरूरी है।

डॉ. सीमा तिवारी (सामाजिक अध्ययन विशेषज्ञ)दिव्यांग बच्चों के शिक्षा की सामाजिक समस्याएं” (2020) दिव्यांग बच्चों की सामाजिक स्थिति और उनके परिवारों की सामाजिक जागरूकता,दिव्यांग बच्चों के प्रति समाज में जागरूकता की कमी है।सामाजिक भेदभाव, परिवारों की मानसिकता और शिक्षा की गुणवत्ता पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

शोध समस्याऐं

वर्तमान परिवेश में विकलांगों की समस्या एक महत्वपूर्ण समस्या है। इस समस्या के लिये आवश्यक है कि हम किस प्रकार इस समस्या का हल खोजकर इस समस्या के समाधान का प्रयास करें । विकलांगों के सामने उत्पन्न समस्याओं एवं बाधक कारणों के निस्तारण हेतु किस प्रकार के तरीके अपनाये जाने चाहिए इस पर विचार किया जाना चाहिये ताकि विकलांगों की समस्या का 3 निराकरण किया जा सके तथा वे समाज में एक सार्थक भूमिका का निर्वहन कर सकें।

शैक्षिक समस्या

1.         क्या प्राथमिक स्तर पर विकलांग बालकों की शिक्षा पर विकलांगता का प्रभाव पड़ता है ?

2.         क्या पारिवारिक वातावरण का विकलांग बालकों की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है ?

3.         क्या विकलांग बालकों की शिक्षा में उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बाधक है ?

4.         क्या वर्तमान सामाजिक वातावरण का उनकी शिक्षा पर प्रभाव प्रड़ता है ?

5.         अध्यापकों के दृष्टिकोण का उनकी शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

6.         क्या उनके मित्रों या सहपाठियों के व्यवहार का उनकी शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ?

7.         क्या माता-पिता के दृष्टिकोण का उनकी प्राथमिक शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ?

8.         क्या वर्तमान शिक्षा प्रणाली के अनिश्चित उद्देश्य उनकी शिक्षा को प्रभावित कर सकते हैं ?

9.         सरकार की नीतियों का भी उनकी शिक्षा पर प्रभाव पडता है?

अध्ययन का उद्देश्य

आज का युग पूर्णतः वैज्ञानिक युग है, विज्ञान अपने चरम पर है, प्रत्येक समस्या का समाधान करना आज के वैज्ञानिक युग में सम्भव हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति आज स्वावलम्बी है । विकलांगों की समाज में स्थिति पर विचार किया जाये तो आज अनेकों समस्याऐं इनकी देखने को मिलती हैं जिनका निराकरण करने पर ही विकलांगों को समाज का उपयोगी सदस्य बनाया जा सकता है तथा इसके लिये सर्वप्रथम उनकी समस्याओं का अध्ययन करके उनका समाधान करना आवश्यक है ।

अतः विकलांगों के प्रति पहले के दृष्टिकोण से वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन हो गया है । वर्तमान परिवेश में उन्हें दया का पात्र न समझकर समाज के उपयोगी सदस्य बनाना है । इस कार्य हेतु शिक्षा का होना नितान्त आवश्यक है। अतः प्राथमिक स्तर पर विकलांगों की शिक्षा सही ढंग से होना आवश्यक है इसीलिये विकलांगों के बारे में अध्ययन के निम्नांकित उद्देश्य हैं-

1.         विकलांगों के बौद्धिक स्तर, योग्यताओं, जीवन स्तर के आधार पर उनको सही दिशा निर्देशन प्राप्त करने की कठिनाइयों के बारे में जानकारी प्राप्त करना।

2.         विकलांग बालकों की प्राथमिक स्तर पर ही शिक्षा पर परिवार, समाज एवं विद्यालयी वातावरण का पता लगाना है ।

3.         सामान्य बालकों के साथ विकलांग बालकों की शिक्षा में उत्पन्न समस्याओं एवं समाधान के प्रयास ।

4.         विकलांग बालकों के लिये उपलब्ध साधनों के बारे में जानकारी प्राप्त करना

अध्ययन का क्षेत्र

प्रस्तुत लघु शोध प्रबन्ध को शोधकर्ता समय और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जनपद मथुरा के प्राथमिक विद्यालयों को अपने अध्ययन का क्षेत्र निर्धारित किया गया है ।

मथुरा एक छोटा किन्तु ऐतिहासिक एवं पर्यटन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण जनपद है । यहा की जनसंख्या लगभग 2475816 है । मथुरा जनपद की साक्षरता का प्रतिशत 74.55 प्रतिशत है । यहा पर विकास खण्डों की संख्या 10 है । यहा पर बहुत सी शिक्षण संस्थायें है, प्राथमिक स्कूल की इस जनपद में संख्या 1396 है ।

इन सभी विद्यालयों में जाकर सर्वेक्षण करना सम्भव नहीं है, इसीलिये शोधकर्ता ने 25 विद्यालयों का चयन किया है । इन्हीं 25 विद्य़ालयों को शोध के लिये सीमित किया गया है।

समाधान का विश्लेषण

समावेशी शिक्षा के प्रयास: जिन विद्यालयों ने समावेशी शिक्षा में सफलता पाई है, उनके उदाहरण प्रस्तुत करें।

सरकारी योजनाओं का प्रभाव: मथुरा जनपद में चल रही सरकारी योजनाओं का आकलन करें, जैसे "समग्र शिक्षा अभियान" और "आरटीई एक्ट"।

स्थानीय समाधान: मथुरा के विशेष संदर्भ में सामुदायिक प्रयासों, एनजीओ की भूमिका, और स्थानीय संस्थानों के योगदान की चर्चा करें।

तुलना और अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

अन्य अध्ययनों से तुलना: अपने निष्कर्षों की तुलना राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए समान अध्ययनों से करें।

अंतर्राष्ट्रीय समाधान: विकलांग बच्चों के लिए वैश्विक स्तर पर अपनाई गई सफल नीतियों और प्रथाओं का उल्लेख करें।

उदाहरण: फिनलैंड और जापान में समावेशी शिक्षा मॉडल।

सुझाव और सिफारिशें

शिक्षकों का प्रशिक्षण: शिक्षकों को विशेष शिक्षा और समावेशी कक्षाओं के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित करने का महत्व।

अवसंरचना सुधार: स्कूलों में भौतिक सुविधाओं को विकलांग बच्चों के अनुकूल बनाने के सुझाव।

नीति निर्माण: सरकारी योजनाओं के बेहतर कार्यान्वयन के लिए सिफारिशें।

सामाजिक जागरूकता: विकलांग बच्चों के प्रति समाज का दृष्टिकोण बदलने के लिए जागरूकता अभियान।

निष्कर्ष

प्रमुख निष्कर्ष:

भौतिक समस्याएं: मथुरा के अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में विकलांग बच्चों के लिए अनुकूल सुविधाएं, जैसे रैंप, व्हीलचेयर की पहुंच, और विशेष शौचालय उपलब्ध नहीं हैं।

शिक्षा में बाधाएं: शिक्षकों को विशेष शिक्षा के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया है, जिससे वे विकलांग बच्चों की आवश्यकताओं को समझने और उन्हें संबोधित करने में अक्षम हैं।

सामाजिक मानसिकता: विकलांग बच्चों के प्रति समाज और सहपाठियों का नकारात्मक दृष्टिकोण उनके आत्मविश्वास और शिक्षा के प्रति रुचि को प्रभावित करता है।

सरकारी योजनाओं का प्रभाव: मथुरा जनपद में समग्र शिक्षा अभियान और आरटीई अधिनियम के अंतर्गत चल रही योजनाओं का कार्यान्वयन प्रभावी नहीं है।

पाठ्य सामग्री और तकनीकी सहायता: विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम और तकनीकी संसाधनों की कमी पाई गई।

समाधान के प्रमुख सुझाव

अवसंरचना सुधार: सभी स्कूलों में रैंप, विशेष शौचालय, और अन्य आवश्यक सुविधाओं का निर्माण किया जाए।

शिक्षकों का प्रशिक्षण: शिक्षकों को समावेशी शिक्षा और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।

समावेशी नीतियों का कार्यान्वयन: सरकारी योजनाओं और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रशासनिक निगरानी और सामुदायिक भागीदारी बढ़ाई जाए।

सामाजिक जागरूकता अभियान: विकलांग बच्चों के प्रति समाज की मानसिकता बदलने के लिए स्कूलों और स्थानीय समुदाय में जागरूकता अभियान चलाए जाएं।

तकनीकी और शैक्षिक सहायता: विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए उपयुक्त पाठ्य सामग्री, डिजिटल उपकरण, और सहायक तकनीकें उपलब्ध कराई जाएं।

शोध के सामाजिक और शैक्षिक महत्व

यह अध्ययन न केवल मथुरा जनपद में विकलांग बच्चों की शिक्षा की समस्याओं को उजागर करता है, बल्कि उन्हें दूर करने के लिए ठोस और व्यावहारिक समाधान भी प्रस्तुत करता है। इसके निष्कर्ष नीतिनिर्माताओं, शिक्षकों, और समाज को समावेशी शिक्षा की दिशा में प्रोत्साहित करेंगे।

भविष्य के लिए सुझाव

मथुरा जनपद के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी समान अध्ययन किए जाने चाहिए, ताकि विकलांग बच्चों की शिक्षा में आने वाली बाधाओं का व्यापक समाधान तैयार किया जा सके।

सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को साथ मिलकर विकलांग बच्चों के लिए अधिक प्रभावी और स्थायी समाधान लागू करने चाहिए।