परिचय

शिक्षा किसी भी राष्ट्र की प्रगति का आधार होती है। यह मानव के विकास की मूलभूत आवश्यकता है। समाज एवं देश के उत्थान एवं पतन का उत्तरदायित्व इसी के कंधे पर होता है। नींव में जितनी गहराई होगी, उसमें भार ग्रहण करने की सुदृढ़ता व क्षमता उतनी ही अधिक होगी, किसी राष्ट्र की भौतिक एवं नैतिक स्तर की उच्चता को शिक्षा के महत्व द्वारा ही स्वीकारा गया है।

एक ओर तकनीकी युग ने जहाँ अनेक असंभावनाओं को संभव बना सकने की सामथ्र्य दी है, वहीं दूसरी ओर अनेक समाजों में आधुनिकीकरण की होड़ ने व्यक्तियों को तनाव और संघर्ष की स्थिति में ला दिया है। ऐसा इसलिए हुआ है कि तेजी से होने वाले सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन जो भौतिक व तकनीकी उपलब्धि के कारण हो रहे हैं, व्यक्तियों को संघर्ष व तनाव की स्थिति में डाल रहे हैं। व्यक्ति तेजगति परिवर्तनों से लाभान्वित होने के लिए संघर्षरत होता है और असफलताओं के साथ उसे तनाव की स्थिति का सामना करना पड़ता है। आज का युग पूरी तरह से भौतिकवाद के पाश में बंधा है एवं चारों ओर स्वार्थपरता, बेरोजगारी, भूखमरी, शिक्षा जगत में अनुशासनहीनता, अनियमितता एवं अनिश्चितता है इस समाज में आत्म निरीक्षण के लिए समय नहीं है।

वर्तमान समय में यह समस्या और भी अधिक है। भारतीय समाज बहुधर्मीय, बहुजातीय तो है ही साथ ही इसकी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा अनुसूचित जाति का है। 2011 की जनगणना के आधार पर भारत की कुछ आबादी का 16.6 प्रतिशत है।

अनुसूचित जाति जो सदियों से सामाजिक शोषण, उपेक्षा की शिकार रही है और समानता, स्वतंत्रता और न्याय की परिधि से बाहर रही है। समाज को पंगु बना रही है क्योंकि आर्थिक संवृद्धि के लिए आवश्यक है कि समाज के मानवीय संसाधन और प्राकृतिक संसाधन का समुचित व न्यायोचित उपयोग हो। अनुसूचित जाति संपूर्ण भारत के आबादी का 16.6 प्रतिशत है। 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग में इस समुदाय का 47 प्रतिशत है। देश की आबादी का इतना बड़ा भाग यदि समाज की मुख्यधारा से कटा हो तो सामाजिक उत्थान और आर्थिक विकास की योजनाओं की सफलता में एक अवरोध उत्पन्न होता है।

अनुसूचित जाति को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से आरंभ हुए है। किन्तु इतने वर्षों के बाद भी इस वर्ग का न्यायोचित व समुचित प्रतिनिधित्व समाज की विभिन्न विकासात्मक योजनाओं व कार्यक्रमों की पूर्ति में नहीं हो पाया है। अनुसूचित जाति वर्ग के छात्र-छात्राओं में सामान्यतः शाला त्याग की प्रवृत्ति अधिक है। अधिकांश शालेय आयु के बालक-बालिकाऐं शालेय अनुभवों को प्राप्त ही नहीं कर पाते। शिक्षा के अवसरों की समानता और इन अवसरों से समुचित ढंग से लाभान्वित हो सकने हेतु प्रेरणा शासन की ओर से पर्याप्त मात्रा में प्रदान किए जाने पर भी इस वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को हितग्राही नहीं बना पा रहे हैं।

संवेगात्मक बुद्धि हमें यह बताती है कि विपरीत परिस्थितियों में किस प्रकार संयमित रहा जाये तथा साथ ही साथ अपनी भावनाओं को नियंत्रण करने की प्रेरणा भी देती है। संवेगात्मक बुद्धि व्यक्ति के अंदर यह अच्छा या खराब तथा किस प्रकार खराब अनुभव को अच्छे अनुभव कीे ओर अग्रसर किया जा सके जिससे उनमें निराशा की भावना न आ सके। संवेगात्मक बुद्धि के धनी लोग अच्छे सकारात्मक सामाजिक संबंध इसके साथ आसानी से बना लेते है। लड़ाई-झगड़े वैमनस्यता आदि से अपने आपका बचाव करने में सक्षम होते है तथा समाज में अपने को आसानी से समायोजित कर लेते हैं।

किशोरावस्था में बालक की प्रमुख समस्या समायोजन की होती है। समायोजन घर तथा स्कूल में होना अत्यंत आवश्यक है। किशोरों की व्यक्तिगत भिन्नता पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। क्योंकि किशोरों की व्यक्तिगत समस्याओं को हल नहीं किया गया और व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर उसका विकास नहीं किया तो उनकी शिक्षा अपूर्ण रहती है और इससे उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। अतः उनकी व्यक्तिगत रूचियाँ, योग्यताएँ आदि को उनकी शिक्षा में प्रमुख आधार बनाया जाना चाहिए। इससे उनमें किसी वैयक्तिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में उचित मार्गदर्शन की भी व्यवस्था हो सके। इस अवस्था में अनेक प्रकार के संवेगों की अनुभूति होती है इन अच्छे संवेगों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए स्कूलों में वाद विवाद, खेलकूद अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन कर उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए। जिसमें वे एक निश्चितता की ओर उन्नति कर सकेंगे और समायोजन की समस्या घर, स्कूल, शैक्षिक एवं अन्य क्षेत्रों में कम हो सकेंगी।

विद्यार्थियों की पूर्व किशोरावस्था की तुलना में भौतिक दृष्टि से संवेगात्मक एवं सामाजिक दृष्टि से बड़े पैमाने पर परिवर्तन होते है। इन परिवर्तनों का प्रभाव किशोरावस्था के विद्यार्थियों की रूचियों पर उपलब्धि अभिप्रेरणा एवं समायोजन पर सर्वाधिक रूप से पड़ता है। शैक्षणिक प्रगति की राह में एक नवीन मोड़ आ जाता है यह किशोरावस्था के शैक्षिक महत्व को सिद्ध करती है।

संवेगात्मक बुद्धि

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में संवेगात्मक बुद्धि का प्रयोग सबसे पहले 1990 में दो अमेरिकन प्रोफेसरो डॉं. जॉन मेयर तथा पीटर सेलोवे द्वारा एक ऐसा वैज्ञानिक प्रमाप तैयार करने हेतु किया गया था, जिससे लोगों की संवेगात्मक क्षेत्र में विद्यमान वैयक्तिक योग्यताओं में विभेदीकरण किया जा सके। परन्तु जिस रूप में आज संवेगात्मक बुद्धि की सर्वत्र चर्चा की जाती है, उसे इस तरह से लोकप्रिय बनाने का श्रेय एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन को जाता है। डेनियल गोलमेन ने अपनी 1995 में प्रकाशित एक पुस्तक ‘‘संवेगात्मक बुद्धि: बुद्धिलब्धि से अधिक महत्वपूर्ण क्यों’’ के माध्यम से इसे चर्चा का विषय बनाया।

किसी व्यक्ति की किसी बुद्धि परीक्षण से जब बुद्धि मापी जाती है तो उसके मापन परिणामों को बुद्धिलब्धि द्वारा व्यक्त किया जाता है इस तरह बुद्धिलब्धि को बुद्धि मापन की एक इकाई के रूप में जाना जाता है। यही बात संवेगात्मक लब्धि के संप्रत्यय पर भी खरी उतरती है। संवेगात्मक बुद्धि के मापन परिणामों को व्यक्त करने के लिए हम जिस इकाई विशेष का प्रयोग करते हैं उसे ही संवेगात्मक लब्धि और संक्षेप में ईक्यू कहा जाता है सामान्य बुद्धि के बारे में यह अच्छी तरह कहा जा सकता है कि यह वंशक्रम और वातावरण दोनों की ही उपज है। एक बालक अपने जन्म के समय कुछ न कुछ बुद्धि लेकर ही इस धरती पर आता है जिसे आगे चलकर अनुभव और परिपक्वन की प्रक्रिया द्वारा अपेक्षित ऊँचाईयों पर पहुँचाने के प्रयत्न किये जाते रहते हैं इसी रूप में सभी बालकों में अपने जन्म के समय कुछ न कुछ संवेगात्मक बुद्धि भी पाई जाती है और इसे भी अनुभव प्रशिक्षण और परिपक्वन के माध्यम से आगे विकास की दिशा प्राप्त होती रहती है परन्तु यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि जहाँ सामान्य रूप से सामान्य बुद्धि में अनुभव, प्रशिक्षण और परिपक्वन के माध्यम से सदैव आगे बढ़ोत्तरी होते रहने की ही संभावना रहती है। वहीं संवेगात्मक बुद्धि के लिए ऐसे होते रहना आवश्यक नहीं है। जितनी संवेगात्मक बुद्धि बालक विशेष में आज है वह कल भी उतनी ही मात्रा में विद्यमान रहेगी ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता और यह भी जरूरी नहीं है कि आयु के बढ़ने के साथ-साथ या अनुभवों में वृद्धि हो जाने के कारण संवेगात्मक बुद्धि के स्तर में आगे वृद्धि ही होती रहेगी। विपरीत दिशा में भी यह बात कही जा सकती है कि किसी भी संवेगात्मक बुद्धि का स्तर पहले की अपेक्षा कम भी हो सकता है और दूसरी ओर इसमें परिस्थिति विशेष के संदर्भ में भी गिरावट आ सकती है। जहां अनुकूल परिस्थितियाँ किसी के संवेगात्मक बुद्धि स्तर में बढ़ोत्तरी कर सकती है वहीं प्रतिकूल परिस्थितियों में इसमें भारी क्षय और गिरावट आ सकती है। यही कारण है कि जब किसी के संवेगात्मक बुद्धि स्तर की बात की जाती है तो यह बात उस समय विशेष या परिस्थिति विशेष के संदर्भ में ही कही जाती है जिसमें व्यक्ति की संवेगात्मक संबंधी व्यवहार क्रियाओं के आधार पर उसके संवेगात्मक बुद्धि की जाँच संबंधी कार्य को सम्पन्न किया जा रहा हो।

सामान्यतः यह समझा जाता है कि व्यक्ति की सफलता उसकी बुद्धिलब्धि पर आधारित होती है। सामान्यतः व्यक्ति की जिंदगी की उपलब्धियाँ भी इसी पर आधारित होती है। परन्तु आधुनिक शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि व्यक्ति को अपनी जिंदगी में जो भी सफलता प्राप्त होती है उसका मात्र 20 प्रतिशत ही बुद्धिलब्धि के कारण होती है और 80 प्रतिशत सांवेगिक बुद्धि के कारण होती है।

साहित्य समीक्षा

श्रीवास्तव, आर.के. एण्ड चैटियाल (2016) - ‘‘रोल ऑफ इमोशनल इंटेलीजेंस इन एचीविंग लाइफ सैटीसफैक्शन’’। इस अध्ययन में स्कूली पुरूष शिक्षकों की संतुष्टि स्थिति और संवेगात्मक बुद्धि के मध्य संबंधों को ज्ञात किया गया। निष्कर्ष - पुरूष शिक्षकों में आशावादी जीवन संतुष्टि पाई गई। शिक्षकों की संवेगात्मक बुद्धि और जीवन संतुष्टि की स्थिति औसत से उच्च पाई गई। शिक्षकों की संवेगात्मक बुद्धि आयु के साथ बढ़ती पाई गई। संवेगात्मक बुद्धि और जीवन संतुष्टि स्थिति के मध्य सकारात्मक और सार्थक सहसंबंध पाया गया।

क्रेन्स (2015) - ‘‘इमोशनल इंटेलीजेंस एण्ड ऐकेडमिक सक्सेज इन हाईस्कूल स्टूडेन्ट’’। इस अध्ययन का उद्देश्य संवेगात्मक बुद्धि और शैक्षिक उपलब्धि के मध्य संबंध ज्ञात करना था। निष्कर्ष - विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि और संवेगात्मक बुद्धि के मध्य सकारात्मक सहसंबंध पाया गया।

मोहम्मद, महमूद आलम (2014) - ‘‘इमोशनल इंटेलीजेंस एफीसेंसी एण्ड कैरियर मैच्योरिटी अमंग द स्टूडेन्ट्स ऑफ हैदराबाद सिटी’’। इस अध्ययन का उद्देश्य किशोरों की स्वयं की कार्यकुशलता, वृत्तिक परिपक्वता और संवेगात्मक बुद्धि के मध्य संबंधों को ज्ञात करना था। निष्कर्ष - किशोरों की वृत्तिक परिपक्वता, संवेगात्मक बुद्धि और स्वयं की कार्यकुशलता के मध्य सार्थक संबंध पाया गया। सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों और पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों की वृत्तिक परिपक्वता, संवेगात्मक बुद्धि और स्वयं की कार्यकुशलता उच्च पाई गई।

पासी, सुमित एण्ड देशपांडे, सुनील (2013) - ‘‘प्री-मेडिकल टेस्ट (पी.एम.टी.) एवं प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट (पी.ई.टी.) परीक्षा देने वाले छात्रों की सांवेगिक बुद्धि स्तर का अध्ययन’’- इस अध्ययन में पी.एम.टी. एवं पी.ई.टी. की तैयारी करने वाले छात्रों की सांवेगिक बुद्धि को ज्ञात किया गया। निष्कर्ष - पी.एम.टी. की तैयारी करने वाले छात्रों की तुलना में पी.ई.टी. की परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों में सांवेगिक बुद्धि का स्तर उच्च पाया गया।

बानो, रेशमा एण्ड सिंह बोरमती (2012) - ‘‘माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि एवं शैक्षिक उपलब्धि’’। इस शोध अध्ययन का उद्देश्य माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि तथा शैक्षिक उपलब्धि के मध्य संबंधों का पता लगाना था। निष्कर्ष - माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि में कोई अंतर नहीं पाया गया। माध्यमिक स्तर के उच्च संवेगात्मक बुद्धि के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि, उच्च पाई गई एवं निम्न संवेगात्मक बुद्धि के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि निम्न पायी गई।

महाजन मोनिका (2011) - ‘‘एकेडमिक एचीवमेंट इन रिलेशन टू इमोशनल इंटेलीजेंस एण्ड स्पीरिचुअल इंटेलीजेंस’’। इस अध्ययन का उद्देश्य संवेगात्मक बुद्धि और आध्यात्मिक बुद्धि का शैक्षिक उपलब्धि से संबंध का अध्ययन करना था। निष्कर्ष - छात्र और छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि में सार्थक अंतर नहीं पाया गया। छात्र और छात्राओं की आध्यात्मिक बुद्धि में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया गया। छात्र और छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि और शैक्षिक उपलब्धि में सकारात्मक और सार्थक संबंध पाया गया। छात्र-छात्राओं की आध्यात्मिक बुद्धि और शैक्षिक उपलब्धि में सकारात्मक और सार्थक संबंध पाया गया।

तोमर, ऋचा (2010) - ‘‘उच्चतर माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि तथा समस्या समाधान योग्यता का अध्ययन’’। इस अध्ययन में विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि और समस्या समाधान योग्यता के प्रभाव के बीच संबंधों की जाँच की गई थी। निष्कर्ष - विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि और समस्या समाधान योग्यता के बीच अधिक सकारात्मक संबंध पाया गया।

शोध अध्ययन के उद्देश्य

1. सवर्ण छात्रों एवं सवर्ण छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन करना।

2. अनुसूचित जाति के छात्रों एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन करना।

शोध अध्ययन की परिकल्पनाऐं

1. सवर्ण छात्रों एवं सवर्ण छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि के स्तर पर कोई सार्थक अंतर नहीं है।

2. अनुसूचित जाति के छात्रों एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि के स्तर पर कोई सार्थक अंतर नहीं है।

उपकरण

शोधकर्ता ने सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के किशोरवय विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि के मापन के लिए डॉ.  एस.के. मंगलम् एवं मिसेज शुभ्रा मंगलम् द्वारा संरचित एवं मानकीकृत परीक्षण संवेगात्मक बुद्धि इन्वेन्ट्री का उपयोग अपने शोध अध्ययन में किया है। उपकरण की प्रकृति व्यक्तिगत है। संवेगात्मक बुद्धि मापनी 4 क्षेत्रों में विभाजित है, जो तालिका क्र.1 में दर्शित है।

तालिका 1:  संवेगात्मक बुद्धि के क्षेत्र


न्यन्यादर्श

प्रस्तुत शोध प्रबंध में यादृच्छिक न्यादर्श के द्वारा सागर जिले के शहरी एवं ग्रामीण स्कूलों के 16 से 18 वर्ष के बीच 1000 विद्यार्थियों का चयन किया गया है जिसमें 500 छात्र एवं 500 छात्राऐं सम्मिलित हैं।

प्रदत्त विश्लेषण विधि

प्रदत्त विश्लेषण में सांख्यिकीय गणनाओं का प्रयोग किया गया है। सर्वप्रथम परिणामों की प्राप्ति एवं व्याख्या तथा विश्लेषण करने हेतु अव्यवस्थित प्रदत्तों को व्यवस्थित क्रम में रखा गया तथा आवृत्ति वितरण की गणना की। इसके पश्चात् छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि परीक्षण के विभिन्न चरों का अलग-अलग अध्ययन, मानक विचलन एवं दोनों समूहों की तुलना का टीपरीक्षण द्वारा टी मूल्य ज्ञात किया गया।

तालिका 2: सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन

 

 


चित्र 1: सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन का रेखाचित्र।

तालिका क्र.2 में सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि की तुलना को दर्शाया गया है। आत्म वैयक्तिक जागरूकता (स्वयं के संवेग) में सवर्ण छात्र-छात्राओं का मध्यमान (13.60) एवं अनसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का मध्यमान  (15.20) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है। अतः अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का आत्म वैयक्तिक जागरूकता का स्तर सवर्ण छात्र-छात्राओं से उच्च है। अतः वैयक्तिक जागरूकता (दूसरे के संवेग) में सवर्ण छात्र-छात्राओं का मध्यमान (18.50) एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का मध्यमान  (17.80) है। 0.05 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का अंतः वैयक्तिक जागरूकता का स्तर समान है। आत्म वैयक्तिक प्रबंधन (स्वयं के संवेग) में सवर्ण छात्र-छात्राओं का मध्यमान (17.25) एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का मध्यमान (18.15) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है। अतः अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का आत्म वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर सवर्ण छात्र-छात्राओं से उच्च है। अंतः वैयक्तिक प्रबंधन (दूसरों के संवेग) में सवर्ण छात्र-छात्राओं का मध्यमान (19.60) एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का मध्यमान (19.20) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का अंतः वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर समान है।

कुल संवेगात्मक बुद्धि में सवर्ण छात्र-छात्राओं का मध्यमान (68.95) एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का मध्यमान (70.35) है। 0.05 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं का कुल संवेगात्मक बुद्धि का स्तर समान है।

तालिका 3:  सवर्ण छात्रों एवं छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन


चित्र 2: सवर्ण छात्र एवं छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन का रेखाचित्र

तालिका क्र.3 में सवर्ण छात्रों एवं छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि की तुलना को दर्शाया गया है। आत्म वैयक्तिक जागरूकता (स्वयं के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (17.40) एवं सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (18.55) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है। अतः सवर्ण छात्राओं का आत्म वैयक्तिक जागरूकता का स्तर सवर्ण छात्रों से उच्च है। अंतः वैयक्तिक जागरूकता (दूसरों के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (18.20) एवं सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (19.20) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है।

अतः सवर्ण छात्राओं का अंतः वैयक्तिक जागरूकता का स्तर सवर्ण छात्रों से उच्च है। आत्म वैयक्तिक प्रबंधन (स्वयं के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (19.15) एवं सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (18.52) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्रों एवं छात्राओं का आत्म वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर समान है। अंतः वैयक्तिक प्रबंधन (दूसरों के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (19.62) एवं सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (19.18) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्रों एवं छात्राओं का अंतः वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर समान है। कुल संवेगात्मक बुद्धि में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (74.37) है एवं सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (75.45) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्रों एवं छात्राओं की कुल संवेगात्मक बुद्धि का स्तर समान है।

तालिका 4: अनुसूचित जाति के छात्रों एवं छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन

क्र.

 

संवेगात्मक बुद्धि के घटक

 

N1-250

N2-250

सी.आर. का मान

 

सार्थकता स्तर

 

अनुसूचित जाति की छात्र

अनुसूचित जाति की छात्राऐं

मध्यमान

मानक विचलन

मध्यमान

मानक विचलन

0.05

0.01

1

आत्म वैयक्तिक जागरूकता (स्वयं के संवेग)

17.80

3.32

17.10

3.70

2.22

सार्थक अंतर है।

सार्थक अंतर नहीं है।

2

अन्तःवैयक्तिक जागरूकता (दूसरों के संवेग)

17.20

4.56

18.15

3.20

2.69

सार्थक अंतर है।

सार्थक अंतर है।

3

आत्म वैयक्तिक प्रबंधन (स्वयं के संवेग)

18.61

3.70

19.80

4.15

3.40

सार्थक अंतर है।

सार्थक अंतर है।

4

अन्तः वैयक्तिक प्रबंधन (दूसरों के संवेग)

18.50

3.40

19.40

4.18

2.64

सार्थक अंतर है।

सार्थक अंतर है।

5

कुल संवेगात्मक बुद्धि

72.11

10.10

74.45

11.25

2.44

सार्थक अंतर है।

सार्थक अंतर नहीं है।

 

df-498

 

 

 

 

 

1.96

2.58

 


चित्र 3: अनुसूचित जाति के छात्रों एवं छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन का रेखाचित्र

तालिका क्र. में अनुसूचित जाति के छात्र एवं छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि की तुलना को दर्शाया गया है। आत्म वैयक्तिक जागरूकता (स्वयं के संवेग) में अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (17.80) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (17.10) है। 0.05 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य में सार्थक अंतर नहीं है।

अतः अनुसूचित जाति के छात्रों एवं छात्राओं का आत्म वैयक्तिक जागरूकता का स्तर समान है। अंतः वैयक्तिक जागरूकता (दूसरों के संवेग) में अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (17.20) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (18.15) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है। अतः अनुसूचित जाति की छात्राओं का अंतः वैयक्तिक जागरूकता का स्तर अनुसूचित जाति के छात्रों से उच्च है। आत्म वैयक्तिक प्रबंधन (स्वयं के संवेग) में अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (18.61) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (19.80) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है। अंतः अनुसूचित जाति की छात्राओं का आत्म वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर अनुसूचित जाति के छात्रों से उच्च है। अंतः वैयक्तिक प्रबंधन (दूसरों के संवेग) में अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (18.50) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (19.40) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है। अतः अनुसूचित जाति की छात्राओं का अंतः वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर अनुसूचित जाति के छात्रों से उच्च है। कुल संवेगात्मक बुद्धि में अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (72.11) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (74.45) है। 0.05 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर है एवं 0.01 स्तर पर टीमूल्य पर सार्थक अंतर नही है। अतः अनुसूचित जाति के छात्रों एवं छात्राओं की कुल संवेगात्मक बुद्धि का स्तर समान है।

निष्कर्ष

इस शोध अध्ययन में सभी परिणामों से यह निष्कर्ष प्राप्त हुए है सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि के स्तर पर सार्थक अंतर नहीं पाया गया। उपरोक्त आधार पर यह कहा जा सकता है कि शोधकर्ता का अध्ययन विश्वसनीय है, कारण यह है कि विद्यार्थी अपने संवेगों एवं दूसरों के संवेगों में समानता क्रोध, घृणा, ईष्र्या की भावनाओं को नियंत्रित करने में सक्षम है। अतः दोनों की संवेगात्मक बुद्धि में अंतर नहीं पाया जाता है। सवेगात्मक बुद्धि समान होने के कारण विद्यार्थियों की जागरूकता के कारण उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आया इस कारण वे अपने संवेगों पर नियंत्रण करने में सक्षम है।