संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययनः सागर जिले के सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों के सन्दर्भ में
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सारांश: सामान्यतः यह समझा जाता है कि व्यक्ति की सफलता उसकी बुद्धिलब्धि पर आधारित होती है। सामान्यतः व्यक्ति की जिंदगी की उपलब्धियाँ भी इसी पर आधारित होती है। परन्तु आधुनिक शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि व्यक्ति को अपनी जिंदगी में जो भी सफलता प्राप्त होती है उसका मात्र 20 प्रतिशत ही बुद्धिलब्धि के कारण होती है और 80 प्रतिशत सांवेगिक बुद्धि के कारण होती है। प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य सागर जिले के सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों के सन्दर्भ में संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन करना है। शोध के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के 16 से 18 वर्ष के बीच 500 विद्यार्थियों का चयन किया गया है जिसमें 250 सवर्ण जाति के पुरूष छात्र एवं 250 अनुसूचित जाति के पुरूष छात्र सम्मिलित हैं। संवेगात्मक बुद्धि के मापन के लिए डॉ. एस.के. मंगलम् एवं मिसेज शुभ्रा मंगलम् द्वारा संरचित एवं मानकीकृत परीक्षण संवेगात्मक बुद्धि इन्वेन्ट्री का उपयोग किया गया है। संवेगात्मक बुद्धि परीक्षण के विभिन्न चरों का अलग-अलग अध्ययन, मानक विचलन एवं दोनों समूहों की तुलना का ‘टी’ परीक्षण द्वारा टी मूल्य ज्ञात किया गया। अध्ययन के परिणामों से यह निष्कर्ष प्राप्त हुए कि सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं की संवेगात्मक बुद्धि के स्तर पर सार्थक अंतर नहीं पाया गया।
मुख्य शब्द: संवेगात्मक बुद्धि, सागर , सवर्ण एवं अनुसूचित जाति , पुरूष विद्यार्थियों
परिचय
सांवेगिक बुद्धि के अंतर्गत व्यक्ति को प्रेरित किया जाता है कि वह किस प्रकार से दूसरे व्यक्ति के संवेगों को भली प्रकार समझकर उसी परिस्थितियों के अनुकूल अपनी बुद्धि का प्रयोग करके सही निर्णय ले सकता है।
जॉन डी. मेयर तथा पीटर सेलोवे (1997) के अनुसार ‘‘संवेगात्मक बुद्धि एक ऐसी क्षमता है जिससे चार विभिन्न रूपों में संवेगों को उचित दिशा देने में मदद मिले जैसे संवेग विशेष का प्रत्यक्षीकरण करना, उसका अपनी विचार प्रक्रिया में समन्वय करना, उसे समझना तथा उसका प्रबंधन करना।’’
यह परिभाषा हमें बताती है कि हम सभी में अपने संवेगों से निपटने हेतु अलग-अलग ढंग की क्षमता और योग्यता पाई जाती है और उसी के अनुरूप एक समूह में दूसरों की तुलना में किसी भी व्यक्ति विशेष की संवेगात्मक बुद्धि की दृष्टि से अधिक या कम बुद्धिमान माना जाता है।
एक व्यक्ति को उतना ही संवेगात्मक रूप से बुद्धिमान माना जाता है जितनी कि क्षमता और योग्यता वह निम्न रूपों में प्रदर्शित करता है।
1. दूसरों के संवेगां की ठीक प्रकार से जानकारी और उनका यथार्थ प्रत्यक्षीकरण (मुख मुद्रा, शारीरिक भाषा तथा बोलने के अंदाज आदि द्वारा)।
2. अपने स्वयं की भाषाओं तथा संवेगों के बारे में सही चेतना एवं जानकारी।
3. प्रत्यक्षीकरण संवेग का अपनी विचार प्रक्रिया में समन्वय करना (जैसे अपने संवेगों और भावनाओं का समस्या समाधान, विश्लेषण तथा निर्णय लेने में उपयोग करना)।
4. संवेगों की प्रकृति, उनकी तीव्रता तथा उनके परिणामों से भली-भांति अवगत रहना।
5. संवेगों की अभिव्यक्ति और उन्हें उपयोग में लाने के संदर्भ में उन पर भली-भांति नियंत्रण कर सकना तथा उन्हें अपने स्वयं के तथा दूसरों के हित चिन्तन, आपसी मेल-जोल तथा भाईचारे तथा भाईचारे हेतु प्रयोग में लाने की क्षमता का प्रदर्शन करना।
गोलमैन (1998) के अनुसार, ‘‘सांवेगिक बुद्धि अपने एवं दूसरों के भावों को पहचानने की क्षमता तथा अपने आप को अभिप्रेरित करके एवं अपने-अपने संबंधों मंे संवेग को प्रबंधित करने की क्षमता है। संवेगात्मक बुद्धि द्वारा उन क्षमताओं का वर्णन होता है जो शैक्षिक बुद्धि या बुद्धिलब्धि द्वारा मापे जाने वाले पूर्णतः संज्ञानात्मक क्षमताओं से भिन्न परन्तु उसके पूरक होते हैं।’’
बार-आन के अनुसार (2001), ‘‘संवेगात्मक बुद्धि द्वारा वह क्षमता परावर्तित होती है जिसके माध्यम से दिन-प्रतिदिन के पर्यावरणीय चुनौतियों के साथ निपटा जाता है और जो व्यक्ति की जिंदगी में, जिसमें पेशेवर तथा व्यक्तिगत धन्धा भी सम्मिलित है, सफलता प्राप्त करने में मदद करती है।’’
पेटा, लेन्टेनश्लेगर के अनुसार, ‘‘संवेगात्मक रूप से बुद्धिमान होने हेतु संवेगात्मक बुद्धि से संबंधित 4 क्षेत्रों (संवेगों से अवगत होना, उन्हें स्वीकारना, उनके प्रति सही दृष्टिकोण या अभिवृत्ति रखना तथा उनके प्रति उचित अनुक्रिया करना) में निपुणता अर्जित करें। संवेगों से अवगत होने से तात्पर्य है कि जब आपको किसी संवेग की अनुभूति हो रही हो तो आप यह जाने कि आपको किस प्रकार की अनुभूति हो रही है। स्वीकारने का अर्थ है कि आप यह माने कि संवेगोसे तात्पर्य उस जैविक प्रक्रिया से है जो आपके शरीर और मस्तिष्क में हो रही हैं और उसका सदैव तार्किक या आधारयुक्त होना आवश्यक नहीं है। अतः संवेग विशेष के औचित्य की ओर ध्यान न देकर उसकी अनुभूति करने की योग्यता आप में होनी चाहिए। दृष्टिकोण या अभिवृत्ति से तात्पर्य उस विश्वास से है जो किसी संवेग विशेष से जुड़ा होता है ऐसा उस समय भी होता है जब किसी अभिवृत्ति विशेष के कारण किसी संवेग का आगमन होता है अथवा उसके प्रदर्शन में किसी अभिवृत्ति की गहरी छाया रहती है। जब तक अभिवृत्ति या दृष्टिकोण में परिवर्तन लाया जाए, संवेगात्मक अनुभूति की दशा वैसी ही रहती है। अनुक्रिया करना से तात्पर्य यहाँ उस व्यवहार क्रिया से है जिसे आप किसी संवेग तथा अभिवृत्ति विशेष की प्रतिक्रिया स्वरूप करते हैं।’’
बक के अनुसार (1985), ‘‘संवेगात्मक बुद्धि के द्वारा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के मन के भावों को पढ़ सकता है तथा इसी प्रकार उसे किसी कार्यों हेतु उत्प्रेरणा दे सकता है।’’
कापर तथा स्वफ के अनुसार, ‘‘संवेगात्मक बुद्धि एक क्षमता है, इन्द्रियों को समझने की तथा एक शक्ति है जिसे हम भली प्रकार से प्रयोग कर सकते हैं। मानवीय ऊर्जा हेतु सूचनाऐं एकत्र करने हेतु, किसी व्यक्ति को दूसरे से जोड़ने हेतु तथा किसी को प्रभावित करने हेतु।’’
हाइन के अनुसार, ‘‘संवेगात्मक बुद्धि संवेगों को अनुभव करने, प्रयोग करने, उन्हें सम्प्रेषित करने, स्मरण करने, उससे सीखने, उसके प्रबंधन एवं अवरोध का जन्मजात सामथ्र्य है।’’
दलीप सिंह (2003), ‘‘संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य व्यक्ति विशेष की उस समग्र क्षमता (सामान्य बुद्धि से संबंधित होते हुए भी अपने आप में स्वतंत्र) से है जो उसकी विचार प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अपने तथा दूसरों के संवेगों को जानने, समझने तथा उनकी उचित अनुभूति करने में मदद करे।
संवेगात्मक बुद्धि के तत्व
संवेगात्मक बुद्धि के तत्वे को मूलतः दो भागों में बांटा जाता है-
(अ) वैयक्तिक तत्व
(ब) अन्तर्वैयक्तिक तत्व
(अ) वैयक्तिक तत्व - संवेगात्मक बुद्धि का आधार आत्मज्ञान होता है इसमें व्यक्ति अपने संवेग से तो अवगत होता ही है साथ ही साथ इसमें वह दूसरों के संवेग को प्रबंधित भी करता है। तथा इसमें आत्म-अभिप्रेरण भी सम्मिलित होता है। अतः सांवेगिक बुद्धि के 3 वैयक्तिक तत्व बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं-
1. अपने संवेगों से अवगत होना - संवेगात्मक बुद्धि का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि इसमें व्यक्ति अपने संवेगों से खुद अवगत होता है। दूसरे शब्दों में वह अपने भावों एवं संवेगों से जिस रूप में वे उत्पन्न होते हैं, अवगत होता है। इसका मतलब यह हुआ कि इसमें व्यक्ति सिर्फ अपनी मनोदशा से अवगत ही नहीं होता है बल्कि उन मनोदशा के बारे में उत्पन्न चिंतन से भी वह अवगत होता है जो लोग इन भावों को माॅनीटर करने में सफल हो जाते हैं, वे उनके वश में नहीं होते हैं।
2. अपने संवेगों को प्रबंधित करना - संवेगात्मक बुद्धि का दूसरा तत्व अपने संवेगों को प्रबंधित करना होता है। संवेगों को प्रबंधित करने से तात्पर्य यह नहीं होता है कि संवेगों को दबाकर रखा जाए बल्कि इससे तात्पर्य यह होता है कि उन संवेगों को उचित ढंग से अभिव्यक्त किया जाए और उन्हें नियंत्रण से बाहर न होने दें।
3. आत्म अभिप्रेरण - संवेगात्मक बुद्धि का एक अन्य तत्व आत्म अभिप्रेरण है। आत्म अभिप्रेरण से तात्पर्य ऐसे संवेगात्मक आत्म-नियंत्रण से होता है जो व्यक्ति को उत्तम लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रखता है, कुंठित होने पर भी व्यक्ति को कार्यरत रखता है तथा तात्कालिक पुष्टि के लिए प्रलोभन को रोकने में मदद करता है। इससे यह पता चलता है कि आवेगशील व्यवहार को रोकना या नियंत्रित करके रखना सभी तरह के सांवेगिक आत्म नियंत्रण की जड़ होता है। आत्म अभिप्रेरण का यह तत्व का संबंध जीवन के विभिन्न क्षेत्र में प्राप्त होने वाली सफलता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
(ब) अन्तःर्वैयक्तिक तत्व - सांवेगिक बुद्धि के इस तत्व में दूसरों के संवेगों को समझना तथा उसके प्रति संवेदनशीलता दिखलाना तथा संवेगों को उचित ढंग से संचालित करना आदि सम्मिलित होता है। इसमें दो तत्व प्रधान हैं-
1. परानुभूति-दूसरों के संवेगों की पहचान करना - परानुभूति संवेगात्मक बुद्धि का एक अन्य तत्व है जिसमें व्यक्ति दूसरों के अभिप्रेरण एवं संवेगों को समझता है और उनकी पर्याप्त पहचान करता है। परानुभूति का आधार आत्मबोध होता है। अगर व्यक्ति को अपने संवेगों में सूझ नहीं होती है तो बहुत उम्मीद इस बात की है कि वह दूसरों के संवेग को न तो ठीक ढंग से समझेगा और न ही उसके प्रति संवेदनशीलता विकसित करेगा।
2. संबंधों को संचालित करना - दूसरों के साथ उत्तम संबंध को संचालित करना भी संवेगात्मक बुद्धि का एक महत्वपूर्ण तत्व है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों के साथ उत्तम एवं संतोषजनक संबंध बनाए रखने में सक्षम होते हैं। अतः इनमें संवेगात्मक बुद्धि का यह तत्व मौजूद रहता है।
अभी हाल में किए गए शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि सांवेगिक बुद्धि के इन 5 तत्वों जिन पर सैलोमी एवं मेयर ने मूलतः बल डाला था, के अलावा भी एक और तत्व है जिसे संवेगात्मक बुद्धि का तत्व माना जा सकता है और वह कारक है- आशावादिता जो लोग आशावादी होते हैं उन्हें यह काफी विश्वास होता है कि एक दिन जरूर ही सभी चीजें ठीक हो जायेंगी। आशावादिता को व्यक्ति अपने जीवनकाल में सीख सकता है या विकसित कर सकता है।
शोध अध्ययन के उद्देश्य
सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों का संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन करना
शोध अध्ययन की परिकल्पनाऐं
सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों का संवेगात्मक बुद्धि के स्तर पर कोई सार्थक अंतर नहीं है।
उपकरण
शोधकर्ता ने सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के किशोरवय विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि के मापन के लिए डॉ एस.के. मंगलम् एवं मिसेज शुभ्रा मंगलम् द्वारा संरचित एवं मानकीकृत परीक्षण संवेगात्मक बुद्धि इन्वेन्ट्री का उपयोग अपने शोध अध्ययन में किया है।
न्यादर्श
प्रस्तुत शोध प्रबंध में यादृच्छिक न्यादर्श के द्वारा सागर जिले के शहरी एवं ग्रामीण स्कूलों के 16 से 18 वर्ष के बीच 500 विद्यार्थियों का चयन किया गया है जिसमें 250 सवर्ण जाति के पुरूष छात्र एवं 250 अनुसूचित जाति के पुरूष छात्र सम्मिलित हैं।
प्रदत्त विश्लेषण विधि
प्रदत्त विश्लेषण में सांख्यिकीय गणनाओं का प्रयोग किया गया है। सर्वप्रथम परिणामों की प्राप्ति एवं व्याख्या तथा विश्लेषण करने हेतु अव्यवस्थित प्रदत्तों को व्यवस्थित क्रम में रखा गया तथा आवृत्ति वितरण की गणना की। इसके पश्चात् छात्रों की संवेगात्मक बुद्धि परीक्षण के विभिन्न चरों का अलग-अलग अध्ययन, मानक विचलन एवं दोनों समूहों की तुलना का ‘टी’ परीक्षण द्वारा टी मूल्य ज्ञात किया गयाा।
तालिका 1: सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन
क्र. |
वेगात्मक बुद्धि के घटक |
N1-250 |
N2-250 |
सी.आर. का मान |
सार्थकता स्तर |
|||
सवर्ण पुरूष छात्र |
अनुसूचित जाति के पुरूष छात्र |
|||||||
मध्यमान |
मानक विचलन |
मध्यमान |
मानक विचलन |
0.05 |
0.01 |
|||
1 |
आत्म वैयक्तिक जागरूकता (स्वयं के संवेग) |
17.40 |
3.20 |
17.80 |
3.32 |
1.38 |
सार्थक अंतर नहीं है। |
सार्थक अंतर नहीं है। |
2 |
अन्तःवैयक्तिक जागरूकता (दूसरों के संवेग) |
18.20 |
3.80 |
17ण्20 |
4.56 |
2.67 |
सार्थक अंतर है। |
सार्थक अंतर है। |
3 |
आत्म वैयक्तिक प्रबंधन (स्वयं के संवेग) |
19.15 |
3.82 |
18.61 |
3.70 |
1.61 |
सार्थक अंतर नहीं है। |
सार्थक अंतर नहीं है। |
4 |
अन्तः वैयक्तिक प्रबंधन (दूसरों के संवेग) |
19.62 |
4.25 |
18.50 |
3.40 |
3.26 |
सार्थक अंतर है। |
सार्थक अंतर है। |
5 |
कुल संवेगात्मक बुद्धि |
74.37 |
9.75 |
72.11 |
10.10 |
2.54 |
सार्थक अंतर है। |
सार्थक अंतर नहीं है। |
|
df-498 |
|
|
|
|
|
1.96 |
2.58 |
चित्र 1 सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि का तुलनात्मक अध्ययन का रेखाचित्र
तालिका क्र. 2 में सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि की तुलना को दर्शाया गया है।आत्म वैयक्तिक जागरूकता (स्वयं के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (17.40) एवं अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (17.80) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्रों एवं अनुसूचित जाति के छात्रों का आत्म वैयक्तिक जागरूकता का स्तर समान है। अंतः वैयक्तिक जागरूकता (दूसरों के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (18.20) एवं अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (17.20) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर है। अतः सवर्ण छात्रों का अंतवैयक्तिक जागरूकता का स्तर अनुसूचित जाति के छात्रों से उच्च है। आत्म वैयक्तिक प्रबंधन (स्वयं के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (19.15) एवं अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (18.61) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्रों एवं अनुसूचित जाति के छात्रों का आत्म वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर समान है। अंतः वैयक्तिक प्रबंधन (दूसरों के संवेग) में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (19.62) एवं अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (18.50) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर है।
अतः सवर्ण छात्रों का अंतः वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर अनुसूचित जाति के छात्रों से उच्च है। कुल संवेगात्मक बुद्धि में सवर्ण छात्रों का मध्यमान (74.37) एवं अनुसूचित जाति के छात्रों का मध्यमान (72.11) है। 0.05 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर है एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्रों एवं अनुसूचित जाति के छात्रों की कुल संवेगात्मक बुद्धि का स्तर समान है।
निष्कर्ष
इस शोध अध्ययन में परिणामों से यह निष्कर्ष प्राप्त हुए है सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों की संवेगात्मक बुद्धि के स्तर पर सार्थक अंतर नहीं पाया गया। अतः सवर्ण छात्रों एवं अनुसूचित जाति के छात्रों की कुल संवेगात्मक बुद्धि का स्तर समान है।
1. सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों का आत्म वैयक्तिक जागरूकता का स्तर समान है।
2. सवर्ण का अंतवैयक्तिक जागरूकता का स्तर अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों से उच्च है।
3. सवर्ण एवं अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों का आत्म वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर समान है।
4. सवर्ण पुरूष विद्यार्थियों का अंतः वैयक्तिक प्रबंधन का स्तर अनुसूचित जाति के पुरूष विद्यार्थियों से उच्च है।
5. सवर्ण छात्रों एवं अनुसूचित जाति के छात्रों की कुल संवेगात्मक बुद्धि का स्तर समान है।