परिचय

एक ओर तकनीकी युग ने जहाँ अनेक असंभावनाओं को संभव बना सकने की सामथ्र्य दी है, वहीं दूसरी ओर अनेक समाजों में आधुनिकीकरण की होड़ ने व्यक्तियों को तनाव और संघर्ष की स्थिति में ला दिया है। ऐसा इसलिए हुआ है कि तेजी से होने वाले सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन जो भौतिक व तकनीकी उपलब्धि के कारण हो रहे हैं, व्यक्तियों को संघर्ष व तनाव की स्थिति में डाल रहे हैं। व्यक्ति तेजगति परिवर्तनों से लाभान्वित होने के लिए संघर्षरत होता है और असफलताओं के साथ उसे तनाव की स्थिति का सामना करना पड़ता है। आज का युग पूरी तरह से भौतिकवाद के पाश में बंधा है एवं चारों ओर स्वार्थपरता, बेरोजगारी, भूखमरी, शिक्षा जगत में अनुशासनहीनता, अनियमितता एवं अनिश्चितता है इस समाज में आत्म निरीक्षण के लिए समय नहीं है।

वर्तमान समय में यह समस्या और भी अधिक है। भारतीय समाज बहुधर्मीय, बहुजातीय तो है ही साथ ही इसकी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा अनुसूचित जाति का है। 2011 की जनगणना के आधार पर भारत की कुछ आबादी का 16.6 प्रतिशत है।

अनुसूचित जाति जो सदियों से सामाजिक शोषण, उपेक्षा की शिकार रही है और समानता, स्वतंत्रता और न्याय की परिधि से बाहर रही है। समाज को पंगु बना रही है क्योंकि आर्थिक संवृद्धि के लिए आवश्यक है कि समाज के मानवीय संसाधन और प्राकृतिक संसाधन का समुचित व न्यायोचित उपयोग हो। अनुसूचित जाति संपूर्ण भारत के आबादी का 16.6 प्रतिशत है। 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग में इस समुदाय का 47 प्रतिशत है। देश की आबादी का इतना बड़ा भाग यदि समाज की मुख्यधारा से कटा हो तो सामाजिक उत्थान और आर्थिक विकास की योजनाओं की सफलता में एक अवरोध उत्पन्न होता है।

किशोरावस्था के दौरान नैराश्य और चिंता का अनुभव करनाए संक्रमण और आवरण के एक महत्वपूर्ण समय के रूप मेंए गंभीर बहुमुखी परिणाम हो सकते हैंए जिनमें से कुछ वयस्कता में सहन किए जा सकते हैं (क्लेबोर्न एट अलण्ए 2019)। हाल के मेटा.विश्लेषण के नतीजे बताते हैं कि किशोर अवसाद नकारात्मक व्यक्तिगत विकास और रिश्ते के परिणामों से जुड़ा हुआ है जैसे माध्यमिक स्कूल पूरा करने में विफलताए बेरोजगारीए और गर्भावस्था और पालन.पोषण के साथ चुनौतियां (क्लेबोर्न एट अल।ए 2019)। इसके अतिरिक्तए किशोरों की नैराश्य के साथ आत्महत्याए पदार्थ.संबंधी और नशे की लत संबंधी विकारए पैथोलॉजिकल जुआ और अन्य विकारों के जटिल अंतर.संबंध लगातार साहित्य में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय रहे हैं (कॉनवे एट अलण्ए 2016, हिल एट अलण्ए 2018, जौरगुएट अलण् 2016)। साथ मेंए ये निष्कर्ष समय पर मूल्यांकन और हस्तक्षेप प्रदान करने के लिए योगदान देने वाले कारकों के साथ.साथ किशोरों के बीच चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण अवसाद और चिंता के लक्षणों की पहचान करने के महत्व पर जोर देते हैं।

ऐसे कई कारक हैं जो किशोरों में नैराश्य के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाते हैंए जिनमें अधिक उम्र (घंडौर एट अलण्ए 2019, मोहम्मदी एट अलण् 2020, सैंडल एट अलण् 2017, तांग एट अलण् 2019द्), खराब शारीरिक स्वास्थ्य होना (अबूद्ध शामिल हैं। अब्बास और अलबुहैरनए 2017, घंडौर एट अलण्ए 2019) उच्च शैक्षणिक दबाव (शर्मा और चौलागईए 2019) और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन (लतीफ एट अलण्ए 2016, टैंग एट अलण्ए 2019)। इसके अतिरिक्त महिला किशोरियाँ विशेष रूप से हैं। मानसिक स्वास्थ्य विकारों के प्रति संवेदनशील। पिछले अध्ययनों से पता चला है कि अवसादए चिंता (कैनाल्स एट अलण्ए 2019, मोहम्मदी एट अलण्ए 2020, प्रीति एट अलण्ए 2017, सैंडल एट अलण्ए 2017) और सामान्य तनाव (प्रीति एट अलण्ए 2017य रज़ियाद्ध की व्यापकता ए 2016) पुरुष किशोरों की तुलना में महिला किशोरों में अधिक है। किशोर नैराश्य की प्रारंभिक पहचान के साथ.साथ उन कारकों की पहचान जो नैराश्य की शुरुआत और गंभीरता को प्रभावित कर सकते हैंए इस कमजोर आयु वर्ग में गुणवत्ता और प्रारंभिक हस्तक्षेप प्रदान करने के लिए पहला कदम हैं (घंडौर एट अल।ए 2019)।

साहित्य समीक्षा

भारती, जी. (2000) - ‘‘ए स्टडी ऑफ एचीवमेंट मोटीवेशन एण्ड फ्रस्ट्रेशन ऑफ टैरली एडोलसेन्ट’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य प्रायमरी किशोरावस्था की उपलब्धि अभिप्रेरणा एवं नैराश्य का तुलनात्मक अध्ययन करना था। निष्कर्ष - 12 से 16 वर्ष के छात्रों में अधिक निराशा पाई गई। छात्रों की अपेक्षा छात्राओं में नैराश्य का स्तर उच्च पाया गया।

वशिष्ट, के.के. (2007) - ‘‘पर्सनाल्टी इन्टेलीजेंस एण्ड फ्रस्टेशन वेल एडस्टेस्ट एण्ड मालाडुरटेड एडोलेसेन्ट ऑफ पियुपिल इट काम्प्रेटिव स्टडी’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य किशोरों के सुसमायोजन एवं कुसमायोजन का व्यक्तित्व बुद्धि पर नैराश्य का तुलनात्मक अध्ययन करना था। निष्कर्ष -  सुसमायोजन के किशोरों पर नैराश्य का कोई प्रभाव नहीं पाया गया। कुसमायोजन के किशोरों पर नैराश्य के स्तर पर सार्थक अंतर पाया गया। सुसमायोजित किशोरों की अपेक्षा कुसमायोजित किशोरों के नैराश्य के स्तर पर सार्थक अंतर पाया गया।

पाठक, ए.बी. (2009) - ‘‘ए स्टडी ऑफ फ्रस्टेªशन एजेरसन एण्ड एचीव मोरलीवेशन ट्रायबल एडोलसेन्ट ऑफ राजस्थान’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य राजस्थान के आदिवासी किशोरों के निराशा, आकांक्षा एवं उपलब्धि अभिप्रेरणा का तुलनात्मक अध्ययन करना था। निष्कर्ष- शहरी एवं ग्रामीण आदिवासी किशोरों का निराशावादी स्तर समान पाया गया।

पाण्डेय, अनिरूद्ध (2010) - ‘‘ए स्टडी ऑफ फ्रस्टेªशन पर्सनाल्टी एण्ड वोकेशनल इन्टेªस्ट ऑफ द सुपर नार्मल एण्ड नार्मल एडोलेन्स’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य सामान्य किशोरों एवं उच्च किशोरों के व्यक्तित्व महत्व एवं व्यावसायिक रूचि से संबंधित निराशा का अध्ययन करना था। निष्कर्ष सामान्य किशोरों की तुलना में उच्च सामान्य किशोरों की निराशा में सार्थक अंतर पाया गया। उच्च सामान्य किशोरों में प्रतिगमन स्तर सामान्य किशोरों की अपेक्षा उच्च पाया गया। उच्च सामान्य किशोरों का आक्रमकता स्तर सामान्य किशोरों में कोई अंतर नहीं था।

गोकुलनाथ एवं मेहता (2010) - ‘‘फ्रस्ट्रेशन इन ट्रायबल एण्ड नाॅन ट्रायबल सेकेण्डरी स्कूल एडोलेन्स’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य आसाम के माध्यमिक स्कूलों के आदिवासी एवं गैर आदिवासी युवाओं के नैराश्य का अध्ययन करना था। निष्कर्ष - गैर आदिवासी छात्रों में निराशा का स्तर आदिवासी छात्रों की तुलना में निम्न पाया गया। आदिवासी एवं गैर आदिवासी छात्रों के प्रतिगमन का स्तर समान पाया गया।

जैन, मृदिला (2010) - ‘‘द इम्पैक्ट ऑफ एडजस्टमेंट फ्रस्ट्रेशन एण्ड लेवल ऑफ एस्पीरेशन आॅन द चिल्ड्रेन ऑफ वर्किंग एण्ड नान-वर्किंग मदर्स’’

इस शोध अध्ययन का उद्देश्य कामकाजी एवं गैर कामकाजी महिलाओं के बच्चों के समायोजन निराशा एवं आकांक्षाओं के स्तर के प्रभाव का अध्ययन करना था। निष्कर्ष - कामकाजी महिलाओं के बच्चों में निराशा का स्तर गैर कामकाजी महिलाओं के बच्चों में निम्न पाया गया।गैर कामकाजी महिलाओं के बच्चों का आकांक्षा का स्तर उच्च पाया गया। कामकाजी महिलाओं के बच्चों में समायोजन एवं निराशा का स्तर निम्न पाया गया। 

मालवीय, आई. (2011) - ‘‘ए स्टडी ऑफ रिएक्शन टू फ्रस्ट्रेशन’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य नैराश्य के कारण होने वाली क्रियाओं का अध्ययन करना था।

निष्कर्ष - शहरी युवाओं का नैराश्य का स्तर ग्रामीण युवकों की अपेक्षा उच्च पाया गया। ग्रामीण युवकों के नैराश्य के घटक आक्रमकता का स्तर शहरी युवाओं की तुलना में अधिक पाया गया।

सिंह, आर.पी. (2012) - ‘‘ए स्टडी ऑफ क्रिएटीविटी इन रिलेशन टू एडजस्टमेंट फ्रस्ट्रेशन एण्ड लेवल ऑफ एस्पीरेशन’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य सृजनात्मकता के संबंध में समायोजन, निराशा एवं आकांक्षा का अध्ययन करना था। निष्कर्ष -उच्च सृजनात्मक छात्रों के स्तर पर निराशा का स्तर निम्न पाया गया। उच्च सृजनात्मक एवं निम्न सृजनात्मक के स्तर पर छात्रों के समायोजन एवं निराशा पर सार्थक अंतर पाया गया।

प्रसाद, बृजेन्द्र (2012) - ‘‘ए स्टडी ऑफ फ्रस्टेªशन हायर सेकेण्डरी स्कूल स्टूडेन्ट इन रिलेशन टू लोकेलिटी’’ इस अध्ययन का उद्देश्य उच्चतर माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के स्थानीय संबंधों में नैराश्य का अध्ययन करना था। निष्कर्ष - शहरी छात्रों का नैराश्य का स्तर ग्रामीण छात्रों की अपेक्षा उच्च पाया गया। शहरी छात्राओं में ग्रामीण छात्राओं की अपेक्षा नैराश्य के घटक समर्पण का स्तर उच्च पाया गया।

मित्तल, एस.एल. (2014) - ‘‘ए स्टडी ऑफ फ्रस्ट्रेशन एण्ड मैन फ्रस्टेªशन स्टूडेन्ट: रिएक्शन टू वर्डस डिफरेन्ट लाइफ सिचुएशन’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य निराशावादी एवं अनिराशावादी छात्रों एवं उनकी विभिन्न जैविक परिस्थितियों के प्रति अध्ययन करना था। निष्कर्ष -  दो समूहों निराशावादी एवं अनिराशावादी के मध्य आक्रमकता के स्तर में अंतर पाया गया। निराशावादी छात्र अधिक आक्रमक जबकि अनिराशावादी वाले छात्रों में कम आक्रमकता पाई गई।

मूर्ति, वेंकटेशा सी.जी. एवं राव टी.आर. (2015) - ‘‘ए स्टडी ऑन द एफेक्ट ऑफ जप योगा ऑन रिएक्शन टू फ्रस्ट्रेशन एण्ड पर्सनाफल्‍टी डायमेन्सन’’ इस शोध अध्ययन का उद्देश्य निराशा व व्यक्तित्व के आयामों पर जप योग के प्रभाव की प्रतिक्रिया का अध्ययन करना था।निष्कर्ष - जप एवं योग के स्तर पर निराशा के स्तर पर अंतर पाया गया। जप एवं योगा के छात्रों में निराशा के घटक स्थिरता में सार्थकता पाई गई जप एवं योगाभ्यास करने वाले छात्रों में निराशा के घटक आक्रमकता का स्तर निम्न पाया गया।

शोध अध्ययन के उद्देश्य

सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के नैराश्य का तुलनात्मक अध्ययन करना।

शोध अध्ययन की परिकल्पना

सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के नैराश्य के स्तर पर कोई सार्थक अंतर नहीं है।

उपकरण

शोधकर्ता ने सवर्ण एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के नैराश्य के मापन के लिए डॉ. एन.एस. चैहान एवं डॉ. गोविन्द तिवारी द्वारा संरचित एवं प्रमाणीकृत नैराश्य परीक्षण मापनी का प्रयोग किया है।

न्यादर्श

प्रस्तुत शोध प्रबंध में यादृच्छिक न्यादर्श के द्वारा सागर जिले के शहरी एवं ग्रामीण स्कूलों के 16 से 18 वर्ष के बीच 500 विद्यार्थियों का चयन किया गया है जिसमें 250 सवर्ण जाति की छात्राओं एवं 250 अनुसूचित जाति की छात्राओं को सम्मिलित किया गया है।

प्रदत्त विश्लेषण विधि -

प्रदत्त विश्लेषण में सांख्यिकीय गणनाओं का प्रयोग किया गया है। सर्वप्रथम परिणामों की प्राप्ति एवं व्याख्या तथा विश्लेषण करने हेतु अव्यवस्थित प्रदत्तों को व्यवस्थित क्रम में रखा गया तथा आवृत्ति वितरण की गणना की। इसके पश्चात् छात्राओं के नैराश्य परीक्षण के विभिन्न चरों का अलग-अलग अध्ययन, मानक विचलन एवं दोनों समूहों की तुलना का ‘टी’ परीक्षण द्वारा टी मूल्य ज्ञात किया गया।

तालिका 1 सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के नैराश्य का तुलनात्मक अध्ययन

 


चित्र 1 सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के नैराश्य का तुलनात्मक अध्ययन का रेखाचित्र

तालिका क्र. 1 में सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के नैराश्य की तुलना को दर्शाया गया है। प्रतिगमन के स्तर पर सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (33.80) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (33.51) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के प्रतिगमन का स्तर समान है।  स्थिरता के स्तर पर सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (30.34) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (31.10) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का स्थिरता का स्तर समान है। समर्पण के स्तर पर सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (32.48) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (32.78) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का समर्पण का स्तर समान है। आक्रमकता के स्तर पर सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (31.52) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (30.24) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का आक्रमकता का स्तर समान है।

समग्र नैराश्य के स्तर पर सवर्ण छात्राओं का मध्यमान (128.14) एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का मध्यमान (127.63) है। 0.05 एवं 0.01 स्तर पर ‘टी’ मूल्य पर सार्थक अंतर नहीं है। अतः सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के समग्र नैराश्य का स्तर समान है।

निष्कर्ष

1. सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के प्रतिगमन का स्तर समान है।

2. सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का स्थिरता का स्तर समान है।

3. सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का समर्पण का स्तर समान है।

4. सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं का आक्रमकता का स्तर समान है।

5. सवर्ण छात्राओं एवं अनुसूचित जाति की छात्राओं के समग्र नैराश्य का स्तर समान है।