भारतीय राजनीति में राजनैतिक दलों का स्वरूप
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सारांश: भारतीय राजनीति में राजनैतिक दलों का स्वरूप अत्यंत जटिल, विविधतापूर्ण एवं गतिशील है। यह स्वरूप भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय और भाषाई विविधताओं को प्रतिबिंबित करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत में बहुदलीय प्रणाली का विकास हुआ, जिसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों प्रकार के दलों ने सक्रिय भूमिका निभाई। प्रारंभ में कांग्रेस का प्रभुत्व रहा, किंतु समय के साथ अन्य दलों जैसे भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी दलों, वाम दलों तथा क्षेत्रीय दलों ने भी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। आज भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों, जातीय राजनीति, विचारधारा आधारित राजनीति और चुनावी रणनीतियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। राजनैतिक दल सरकार गठन में महत्त्वपूर्ण होते हैं, बल्कि जनमत निर्माण, नीति निर्धारण और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के संचालन में भी उनकी केंद्रीय भूमिका होती है। यह अध्ययन भारतीय राजनीति में दलों की भूमिका, संरचना, विकास और उनके प्रभावों का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
मुख्य शब्द: भारतीय राजनीति, राजनैतिक दल, बहुदलीय प्रणाली, गठबंधन सरकार, क्षेत्रीय दल, विचारधारा, लोकतंत्र, चुनावी रणनीति, जनमत निर्माण, नीति निर्धारण।
परिचय
आधुनिक युग में अधिकांश लोकतांत्रिक देशों ने 'सरकार के प्रतिनिधि लोकतांत्रिक रूपों' को अपनाया है जिसमें राजनीतिक दल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और 'मतदाताओं और निर्वाचित लोगों के बीच की कड़ी' के रूप में कार्य करते हैं। अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में यह कहा जा सकता है कि भारत में लोकतंत्र सफल रहा है, हालांकि आपातकाल ने लोकतांत्रिक प्रणाली को आघात पहुंचाया, लेकिन यह अस्थायी था, और लोकतांत्रिक प्रणाली बरकरार रही। आजादी के बाद 17 संसदीय और कई और विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक आयोजित किए गए हैं और भारत में राजनीतिक दलों ने इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारतीय राजनीति में राजनैतिक पार्टियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। ये पार्टियां देशवासियों की आवश्यकताओं, चुनौतियों और अनुभूतियों को समझती हैं और उनके हित में नीतियों को तय करने का कार्य करती हैं। “भारत में संवैधानिक ढंग से स्थापित लोकतंत्र में, राजनीतिक पार्टियों को जनता द्वारा चुने गए प्रतिष्ठान में सांसदों को चुनने का मौका मिलता है और उन्हें सरकार चलाने का अधिकार प्राप्त होता है। प्रत्येक राजनीतिक पार्टी के अपने दृष्टिकोण और सिद्धांत होते हैं, जो अकेले उस पार्टी को अन्यों से अलग बनाते हैं। ये पार्टियां विधान सभा और राज्य सभा में भी अपने प्रतिष्ठान को बनाए रखने के लिए प्रतिष्ठित होती हैं और अपने प्रतिष्ठान की रक्षा करने के लिए आम जनता के बीच सीधे संवाद और सहयोग का माध्यम बनाती हैं। राजनीतिक पार्टियों की विभिन्नता और पर्वाह करने का एक तरीका है कि ये अलग-अलग क्षेत्रों, जातियों, और समुदायों के हित में नीतियां बनाती हैं। इसके लिए वे चुनावों में भाग लेती हैं और अपने विचारों को लोगों के सामने रखती हैं ताकि जनता उन्हें अपने प्रतिष्ठान में चुन सके। यह सिस्टम एक उत्कृष्ट और प्रभावी लोकतंत्र की बुनियाद बनाता है जो जनता को सकारात्मक रूप से संबोधित करता है और उसे सरकार का हिस्सा बनाए रखता है।
“राजनीतिक दल आधुनिक लोकतांत्रिक सरकार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन उनके कार्य, संगठन और संख्या में पर्याप्त भिन्नता दिखाई देती है। किसी भी देश में पार्टी प्रणाली कई कारकों से आकार लेती है जैसे कि इसकी राजनीतिक प्रणाली, और चाहे वह संघीय हो या संसदीय। भारतीय दल प्रणाली को इसकी विशिष्ट राजनीतिक और सामाजिक विशेषताओं ने भी आकार दिया है। स्वतंत्रता के बाद संघ स्तर पर एक निर्वाचित प्रतिनिधि संसद और भारत के राज्यों में विधान सभाओं की स्थापना इसी तर्ज पर की गई है। एक संसदीय स्वरूप की स्थापना का उद्देश्य एक जवाबदेह सरकार की स्थापना करना था क्योंकि सरकार के इस रूप में, कार्यपालिका का लगातार विपक्ष द्वारा निरीक्षण और नियंत्रण किया जाता है। संसदीय प्रणाली के इतिहास के विश्लेषण के बाद यह देखा जा सकता है कि इसने भारतीय दल प्रणाली को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एकल-दलीय प्रभुत्व के अंत और गठबंधन युग के उदय के साथ, राजनीतिक दलों का विखंडन अधिक तेजी से हुआ, जिससे देश में बहुदलीय व्यवस्था बनी।
भारतीय राजनीति का इतिहास
भारतीय राजनीति का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसमें विविधता और परिवर्तन की अद्वितीय छवियां हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले, भारतीय सुप्रधारी का अधीन एक व्यापक साम्राज्य था, जिसमें विभिन्न राजाओं और सामंतों ने अपने-अपने क्षेत्रों में अपनी शासनकारी प्रणालियां स्थापित की थीं। स्वतंत्रता से पहले के समय में महात्मा गांधी के नेतृत्व में, भारतीय राजनीति ने अपने लोगों को एक समृद्ध और सामाजिक न्याय के माध्यम से स्वतंत्रता की दिशा में एकजुट किया। इसके बाद, स्वतंत्रता के बाद, नेहरूवी काल में भारत ने आपसी सहमति, गणराज्य, और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित एक मजबूत राजनीतिक तंत्र का निर्माण किया। आज के आधुनिक युग में, भारतीय राजनीति ने गतिविधियों के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर चुनौतियों का सामना किया है और देश को एक विकासशील, एकता भरी, और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ावा दिया है। भारतीय राजनीति का इतिहास बहुत विविध और घटित हुआ है, जिसमें कई महत्वपूर्ण घटनाएं और समयांतर बदलाव शामिल हैं। यहां भारतीय राजनीति के कुछ महत्वपूर्ण घटकों का संक्षेप दिया गया है:
ब्रिटिश साम्राज्य का अंत (1947)
· भारतीय राजनीति का आदिकाल संयुक्त ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था, जो 1947 में स्वतंत्र होकर समाप्त हुआ।
· महात्मा गांधी के नेतृत्व में आपसी सहमति और आम जनता के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को प्रभावित किया।
नेहरूवी काल (1947-1964)
· पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता के बाद पहले प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।
· उनके नेतृत्व में भारतीय समाज में आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की गईं।
भूखंड विभाजन (1947)
स्वतंत्रता के समय, भारत में हिन्दू-मुस्लिम भूखंड विभाजन हुआ, जिससे भारत और पाकिस्तान नामक दो अलग-अलग राष्ट्र बने।
शाशकीय उपाधी (1950)
· भारत ने 1950 में गणराज्य का स्थापना किया, जिससे यह दुनिया का एक सशक्त लोकतंत्र बन गया।
· भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से अपनाया गया।
आर्थिक विकास (1950-1990)
भारत ने आर्थिक विकास की दिशा में कई योजनाएं शुरू की, जैसे पंचवर्षीय योजना और ग्रामीण विकास योजना।
आर्थिक उदारीकरण (1991)
1991 में, प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में आर्थिक उदारीकरण और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए नई नीतियों की घोषणा की गई।
भारतीय राजनीति में गठबंधन (1990-से लेकर आज तक)
1990 के दशक से लेकर आज तक, भारतीय राजनीति में गठबंधन और दलित, आदिवासी, ओबीसी समुदायों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दों पर विवाद हुआ है।
आधुनिक युग (2000 से लेकर आज तक)
2000 के बाद, भारत ने आधुनिक और विकासशील युग में अपनी गतिविधियों को बढ़ाया है, जिसमें तकनीकी विकास, विदेशी निवेश, और साइबर युद्ध का महत्वपूर्ण योगदान है।
इसके अलावा, भारतीय राजनीति में कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनौतियां और गतिविधियां हुई हैं, जिनसे देश का नेतृत्व और राजनीतिक परिदृश्य स्थायी रूप से बदला है।
भारत की राजनीति
“भारत की राजनीति देश के संविधान के दायरे में काम करती है। भारत एक संसदीय धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है जिसमें भारत के राष्ट्रपति राज्य के प्रमुख और भारत के प्रथम नागरिक हैं और भारत के प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख हैं। यह सरकार के संघीय ढांचे पर आधारित है, हालांकि इस शब्द का उपयोग संविधान में ही नहीं किया गया है। भारत दोहरी राजनीति प्रणाली का पालन करता है, प्रकृति में संघीय, जिसमें केंद्र में केंद्रीय प्राधिकरण और परिधि में राज्य शामिल होते हैं। संविधान केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की संगठनात्मक शक्तियों और सीमाओं को परिभाषित करता है; यह अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है, तरल (संविधान की प्रस्तावना कठोर है और संविधान में आगे संशोधनों को निर्देशित करने के लिए) और सर्वोच्च माना जाता है,। राष्ट्र के कानूनों को इसके अनुरूप होना चाहिए। एक द्विसदनीय विधानमंडल का प्रावधान है जिसमें एक ऊपरी सदन, राज्यसभा (राज्यों की परिषद) जो भारतीय संघ के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है, और एक निचला सदन, लोकसभा (लोगों का सदन) जो समग्र रूप से भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। ”
भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका
भारत का राजनीतिक परिदृश्य एक जीवंत बहुदलीय प्रणाली की विशेषता है, जो इसके विविध भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने का प्रतिबिंब है। समय के साथ, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल देश के लोकतांत्रिक ढांचे के अभिन्न अंगों के रूप में विकसित हुए हैं। जबकि कई दलों के प्रभाव पर बहस जारी है, संसदीय लोकतंत्र के भीतर उनकी भूमिकाओं को समझना महत्वपूर्ण है। प्रत्येक राजनीतिक दल अपनी अनूठी दृष्टि और विचारधारा लाता है, जो अक्सर उस राज्य या क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप होती है जिसका वह प्रतिनिधित्व करता है। चुनावी समर्थन पर, ये दल भारत की कार्यकारी और विधायी दोनों शाखाओं को नियंत्रित करने की शक्ति रखने वाले वैध शासकों की कमान संभालते हैं।
“राष्ट्र की सेवा के व्यापक लक्ष्य के अलावा, राजनीतिक दल छोटे उद्देश्यों को अपनाते हैं जो सामाजिक कल्याण में योगदान करते हैं। इसमें राजनीतिक और सामाजिक चेतना को बढ़ावा देना, सार्वजनिक चिंताओं को कम करना, सामाजिक संकेतकों का पक्ष लेना और भ्रष्टाचार का मुकाबला करना शामिल है। गठबंधन सरकारों के उदाहरणों में, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल सहयोग करते हैं, नागरिकों को राष्ट्रीय स्तर पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए एक एकीकृत मंच प्रदान करते हैं। वे शासन के उच्चतम स्तरों पर विविध हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों की सामूहिक आवाज बन जाते हैं।
उद्देश्य
1. भारतीय दल प्रणाली की विशिष्ट विशेषताओं को समझने पर जोर देने के साथ सामान्य रूप से पार्टी प्रणाली के विभिन्न चरणों का अध्ययन करना।
2. विभिन्न सिद्धांतों के ढांचे में क्षेत्रीय और राज्य आधारित पार्टियों की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन करना।
अध्ययन का कार्यक्षेत्र
इस अध्ययन का उद्देश्य एकल सैद्धांतिक ढाँचे के संदर्भ में राजनीतिक दलों की उत्पत्ति और विस्तार का पता लगाना कठिन है क्योंकि विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में असमान राजनीतिक व्यवस्थाएँ होती हैं और उनके अपने राजनीतिक विकास होते हैं। राजनीतिक दलों की उत्पत्ति का अध्ययन करने के लिए कई विद्वानों के प्रयास हुए हैं, जो राजनीतिक दल के विकास को ज्यादातर पश्चिमी लोकतांत्रिक व्यवस्था से संबंधित देखते हैं। मौरिस डुवर्गर राजनीतिक दलों के उद्भव और निर्माण को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं- पार्टियों का चुनावी और संसदीय मूल। बाहरी रूप से सृजित पार्टियां वे हैं जो विधायिका के बाहर उभरती हैं और लगातार शासक समूह को चुनौती देती हैं और प्रतिनिधित्व की मांग करती हैं।
भारतीय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में, औपनिवेशिक शासन की विरासत के रूप में एक लंबे आंदोलन और राजनीतिक संस्थानों के बाद भारत को आजादी मिली। भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक, संसदीय, संघीय और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की नींव रखता है। प्रारंभ में, भारत में एकल-दलीय प्रभुत्व प्रणाली या कांग्रेस प्रणाली होती है। कांग्रेस पार्टी अपने शुरुआती दौर में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करती है और 1952 से 1967 तक पहले चार संसदीय चुनावों के दौरान देश की अग्रणी पार्टी में बदल जाती है। 1967 में हुए संसदीय चुनाव तेजी से प्रतिस्पर्धी राजनीति और पार्टी प्रतिस्पर्धा की दिशा में एक प्रमुख कदम का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो मुख्य रूप से राज्य स्तर पर होता है। 1977 में पहली गठबंधन सरकार बनने तक राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का दबदबा बना रहता है। 1989 में क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय स्तर पर अपनी वृद्धि दर्ज करते हैं।
डेटा विश्लेषण
राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भूमिका
1989 के बाद से गठबंधन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भूमिका का अध्ययन निम्नलिखित तालिका में दिखाया गया है:
क्षेत्रीय दलों का योगदान
1989 के बाद से गठबंधन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भूमिका का विश्लेषण महत्वपूर्ण है। 1989 में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार में अकाली दल और शिवसेना जैसे क्षेत्रीय दलों ने गठबंधन की मजबूती और स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2004 में यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार में डीएमके और एनसीपी जैसे क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय मुद्दों पर महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया। 2014 में एनडीए सरकार में टीडीपी और शिवसेना ने राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन और गठबंधन की भूमिका निभाई।
क्षेत्रीय दलों ने गठबंधन सरकारों के निर्माण और स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दों पर समर्थन दिया और विभिन्न समयों में सरकारों को स्थिरता प्रदान की। यह गठबंधन राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जहां क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तालिका 1: राष्ट्रीय गठबंधन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भागीदारी
वर्ष |
गठबंधन सरकार |
प्रमुख क्षेत्रीय दल |
भूमिका |
1989 |
एनडीए |
अकाली दल, शिवसेना |
गठबंधन की मजबूती और स्थिरता |
2004 |
यूपीए |
डीएमके, एनसीपी |
राष्ट्रीय मुद्दों पर महत्वपूर्ण समर्थन |
2014 |
एनडीए |
टीडीपी, शिवसेना |
राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन और गठबंधन |
क्षेत्रीय और राज्य दलों की घटती भूमिका
चुनावों के बाद क्षेत्रीय और राज्यीय दलों की भूमिका का विश्लेषण निम्नलिखित तालिका में प्रस्तुत किया गया है:
चुनावी परिणामों का विश्लेषण
2014 के आम चुनावों के बाद क्षेत्रीय और राज्यीय दलों की भूमिका में कमी आई है। 2014 के चुनावों में भाजपा का प्रभुत्व बढ़ा और राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो गई। यह बदलाव भारतीय दल प्रणाली में नए परिवर्तनों को दर्शाता है, जहां राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ा और क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो गई।
2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत की और क्षेत्रीय दलों की भूमिका को कम कर दिया। यह परिवर्तन राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की प्रभावशीलता को कम करता है और राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व को बढ़ाता है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो गई है और राष्ट्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ा है।
तालिका 2: 2014 और 2019 के आम चुनावों में प्रमुख क्षेत्रीय दलों की सीटें
दल का नाम |
2014 सीटें |
2019 सीटें |
परिवर्तन (%) |
तृणमूल कांग्रेस |
34 |
22 |
-35.29% |
समाजवादी पार्टी |
5 |
3 |
-40.00% |
बीजू जनता दल |
20 |
12 |
-40.00% |
चित्र 1: 2014 और 2019 के आम चुनावों में प्रमुख क्षेत्रीय दलों की सीटें
2014 के आम चुनावों के बाद क्षेत्रीय और राज्यीय दलों की भूमिका का विश्लेषण निम्नलिखित तालिका में प्रस्तुत किया गया है:
तालिका 3:राज्यीय दलों की भूमिका का विश्लेषण
वर्ष |
चुनाव परिणाम |
राष्ट्रीय दल |
क्षेत्रीय दल |
क्षेत्रीय दलों की भूमिका |
2014 |
भाजपा का प्रभुत्व |
भाजपा |
निचली भूमिका |
राष्ट्रीय राजनीति पर सीमित प्रभाव |
2019 |
भाजपा की वापसी |
भाजपा |
निचली भूमिका |
राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावहीन |
परिणामों का विवरण और व्याख्या
इस अध्ययन के आधार पर भारतीय दल प्रणाली की विशेषताएँ स्पष्ट रूप से सामने आती हैं। भारतीय दल प्रणाली का विकास विभिन्न चरणों में हुआ है, जिसमें प्रमुख रूप से कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व, प्रतिस्पर्धी राजनीति का उदय और क्षेत्रीय दलों का महत्वपूर्ण उदय शामिल है। 1952 से 1967 तक कांग्रेस पार्टी ने अपने संगठनात्मक ढाँचे और स्वतंत्रता संग्राम की विरासत के बल पर भारतीय राजनीति में अपना एकछत्र राज्य कायम किया। इस अवधि में कांग्रेस पार्टी ने चार संसदीय चुनावों में विजय प्राप्त की और राष्ट्रीय राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित किया। यह वह समय था जब विपक्षी दल कमजोर थे और कांग्रेस पार्टी का मुकाबला करने में असमर्थ थे। इसके बाद 1967 में भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया जब राज्य स्तर पर विभिन्न क्षेत्रीय दलों ने उभरना शुरू किया। इस समय विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत की और प्रतिस्पर्धी राजनीति की शुरुआत की। यह अवधि 1989 तक चली, जिसमें राज्य स्तर पर क्षेत्रीय दलों का उदय और कांग्रेस का धीरे-धीरे पतन हुआ। 1989 में क्षेत्रीय दलों की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गई जब राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ। 1989 के बाद गठबंधन सरकारों के गठन में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ गई और उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विभिन्न भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों के आधार पर क्षेत्रीय दलों की उत्पत्ति और विकास हुआ। तमिलनाडु में डीएमके का गठन 1949 में हुआ, जो भाषा और सांस्कृतिक पहचान पर आधारित था। इसी प्रकार महाराष्ट्र में शिवसेना का गठन 1966 में मराठी अस्मिता और स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखकर हुआ। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का गठन 1998 में कांग्रेस पार्टी से विभाजन के बाद हुआ, जो राज्य के मुद्दों पर केंद्रित था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठन क्रमशः 1992 और 1984 में हुआ, जो जातीय और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर आधारित थे। गठबंधन सरकारों के निर्माण और स्थिरता में क्षेत्रीय दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1989 के बाद एनडीए और यूपीए जैसी गठबंधन सरकारों में क्षेत्रीय दलों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1989 में एनडीए सरकार में अकाली दल और शिवसेना ने गठबंधन की स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2004 में यूपीए सरकार में डीएमके और एनसीपी ने राष्ट्रीय मुद्दों पर महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया। 2014 में एनडीए सरकार में टीडीपी और शिवसेना ने राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन और गठबंधन की भूमिका निभाई। हालांकि, 2014 के बाद से राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका में कमी आई है। 2014 के आम चुनावों में भाजपा का प्रभुत्व बढ़ा और राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो गई। यह बदलाव भारतीय दल प्रणाली में नए परिवर्तनों को दर्शाता है, जहां राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ा और क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो गई। 2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत की और क्षेत्रीय दलों की भूमिका को कम कर दिया। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो गई है और राष्ट्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ा है।
यह अध्ययन भारतीय राजनीति में दल प्रणाली के विकास और क्षेत्रीय दलों की गतिशीलता को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। विभिन्न तालिकाओं, आंकड़ों और विश्लेषण के माध्यम से, यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय राजनीति में विभिन्न चरणों में दल प्रणाली का विकास हुआ है और क्षेत्रीय दलों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, 2014 के बाद से राष्ट्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ा है और क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो गई है, जो भारतीय राजनीति में एक नए परिवर्तन को दर्शाता है।
भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों का उदय
भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों का उदय और विकास, विभिन्न राज्यों में उनकी स्थापना, और उनके प्रमुख विशेषताओं का मूल्यांकन करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके पीछे कई कारण हैं जो इन पार्टियों को बनाने और बढ़ाने में सहायक हुए हैं।
1. भू-भौतिक विविधता
भारत में विभिन्न भौगोलिक, सांस्कृतिक, और भौतिक संरचनाएं हैं। अलग-अलग राज्यों में विशेष स्थानीयता, भाषा, और सांस्कृतिक अंशों की विविधता है जिसने क्षेत्रीय पार्टियों का उत्पत्ति किया।
2. भाषा और सांस्कृतिक अंतर
भाषा और सांस्कृतिक अंतर, जैसे कि भारत के विभिन्न हिस्सों में होने वाले भाषाई और सांस्कृतिक विभिन्नता, ने लोगों को एक-दूसरे से अलग किया और स्थानीय चिंताओं को प्रोत्साहित किया।
3. स्थानीय मुद्दे
विभिन्न राज्यों में उच्चतम विद्यार्थी और ग्रामीण समृद्धि के मुद्दे, जैसे कि जल, ऊर्जा, और कृषि, ने स्थानीय राजनीतिक पार्टियों को उत्पन्न करने में सहारा प्रदान किया है।
4. सामाजिक और आर्थिक असमानता
सामाजिक और आर्थिक असमानता ने राज्यों में उठे विशेष असमंजस को उजागर किया है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय राजनीतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
5. कास्ट और जाति विषय
कास्ट और जाति विषय भी राज्यों में अपनी बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कई बार इसने स्थानीय राजनीतिक दलों को उत्पन्न करने में मदद की है।
6. उच्चतम आर्थिक आधार
कुछ क्षेत्रों में अच्छा आर्थिक आधार होने के कारण, वहां की राजनीतिक दल आर्थिक विकास के मुद्दों पर अपने चयनकर्ताओं को समर्थन प्रदान कर सकते हैं।
7. नए दलों का उत्पत्ति
नए राजनीतिक दल उत्पन्न हो रहे हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशेष बातचीत कर रहे हैं और इनमें से कुछ क्षेत्रीय बन रहे हैं।
इस प्रकार, भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों का उदय विभिन्न कारणों से हुआ है और यह राजनीतिक प्रक्रिया में स्थानीय मुद्दों को उजागर करने का माध्यम बन गया है। इन पार्टियों का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है और यह राजनीतिक स्थिति को स्थानीय स्तर से सुधारने में मदद कर रहा है।
निष्कर्ष
भारतीय राजनीति में पार्टी प्रणाली का विकास और इसके विभिन्न चरणों का विश्लेषण भारतीय लोकतंत्र की जटिलता और विविधता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। इस अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि भारतीय दल प्रणाली ने कैसे अलग-अलग ऐतिहासिक युगों में विभिन्न प्रकार की राजनीतिक गतिशीलताओं और चुनौतियों का सामना किया है, और किस प्रकार विभिन्न राजनीतिक दलों ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं। इस निष्कर्ष में हम विभिन्न कालखंडों के माध्यम से भारतीय पार्टी प्रणाली के विकास को विस्तार से समझेंगे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय राजनीति में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का एकाधिकार स्थापित हो गया था। कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्राप्त लोकप्रियता और संगठनात्मक ताकत के आधार पर पहले चार आम चुनावों में शानदार जीत हासिल की। यह स्थिति उस समय के विपक्षी दलों की कमजोर स्थिति और राजनीतिक संगठन की कमी के कारण मजबूत थी। कांग्रेस ने केंद्र में बल्कि विभिन्न राज्यों में भी अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत की, जिससे एक केंद्रीकृत प्रणाली का निर्माण हुआ।