प्रस्तावना

किसी भी राष्ट्र की समावेशी और संतुलित प्रगति समाज की मुख्यधारा में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है। महिलाएं समाज का एक महत्वपूर्ण अंग हैं उनके अस्तित्व के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती (मिश्रा, नमिता, 2018)। देश की प्रगति में ‘सशक्त महिला एवं सशक्त समाज’ पारस्परिक रूप से एक दूसरे के पूरक है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ महिलाओं को उनके सर्वांगीण विकास हेतु अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए अनेक संवैधानिक प्रावधान किये गये हैं। भारतीय संविधान स्त्री-पुरुषों में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं करता (रावत एवं जोशी 2024)। वर्ष 2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार 1.21 अरब से अधिक लोगों के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसँख्या वाला देश है, जो वैश्विक जनसँख्या के छठे हिस्से से अधिक है। जिसमें देश के कुल जनसँख्या में महिलाओं का हिस्सा 48 प्रतिशत है। विभिन्न विद्वानों का मत है कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति व सम्पन्नता वहां की महिलाओं की स्थिति से अनुमान लगाया जा सकता है (यादव एवं प्रसाद 2015)। इसलिए राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति की नींव के लिए देश के आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करने के लिए महिलाओं की क्षमता को अधिकतम करके और उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करके उन्हें सशक्त बनाना आवश्यक है। महिलाएं राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करतीं हैं। जब तक महिलाएं राष्ट्रीय प्रगति की मुख्यधारा में जागरूक, सशक्त और सक्रिय रूप से शामिल न होंगी तब तक किसी देश का व्यापक विकास संभव नहीं है। किसी भी एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज की स्थापना के लिए महिलाओं की भागीदारी आवश्यक है। जो की यह प्राकृतिक नियमों के दृष्टिकोण से और पर्यावरणीय असंतुलन को दूर करने के लिए आवश्यक है (सुनीता राय, 2022)। यदि समाज में महिलाओं के योगदान के महत्व को नजरअंदाज किया जाए तो विकास रणनीतियाँ अपने लक्ष्यों को प्राप्त नही किया जा सकता हैं।

केवल जब महिलाओं को पुरुषों के साथ प्रगति में समान भागीदार माना जाएगा तभी व्यापक विकास और संतुलित विकास संकल्पना को साकार कर सकते है। इसलिए, महिलाओं की आर्थिक उन्नति एवं सामाजिक परिवर्तन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। प्रो. अमत्र्य सेन ने अपनी पुस्तक “इंडिया: इकनोमिक डेवलपमेंट एण्ड सोसिअल अपार्चुनिटी” में लिखा है “महिला सशक्तीकरण से न केवल महिलाओं के जीवन में निश्चित रूप से सकारात्मक असर पड़ेगा बल्कि पुरूषों और बच्चों को भी इससे लाभ मिलेगा। इसलिए राष्ट्र का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विकास शासन की गुणवत्ता एवं महिलाओं की सक्षमता दोनों पर निर्भर करता है।’’ भारत जैसे विकासशील देशों के लिए महिलाओं को विकास प्रक्रिया में एकीकृत करना प्रमुख चुनौतियों में से एक है। सरकार ने समय-समय पर महिलाओं के उत्थान के उद्देश्य से विभिन्न कार्यक्रम एवं योजनाओं को क्रियान्वयन करती रही है, जिससे महिलाएं सशक्त हों, अधिकार सम्पन्न हों, विकास की प्रक्रिया में समानता का अवसर मिले। इसी क्रम में सरकार नें  विकास के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 1975 को ‘महिला दिवस’ के रूप में एवं वर्ष 2001 को श्राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण वर्षश् के रूप में नामित किया (रिंकी आर्या, 2021)। भारत सरकार द्वारा स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई), जिसे बाद में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के रूप में पुनर्गठित किया गया। जो स्वयं सहायता समूह को विकसित करने के लिए केंद्रीय रही है, जो कि विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करती है। जो ये समूहों को सूक्ष्म वित्त तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने में सहायक रहे हैं, जिससे गांवों के महिलाएं को अपना व्यवसाय गतिविधि की शुरुआत करने के लिए समूहों को सरकार से सब्सिडी आधारित बैंक ऋण के माध्यम से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करने में सहायता प्रदान कर रही है। (राहुल सरानिया, 2015)। देश में “एसएचजी-बैंक लिंकेज” कार्यक्रम को ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधार करके उनको स्वरोजगार के क्षेत्र में सक्षम एवं शक्तिशाली बनाना है। इसका मुख्य लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं को अपनी आंतरिक शक्ति के बारे में जागरूक करना, स्वतंत्रता और समूह आधारित कार्य को प्रोत्साहित करना और पारस्परिक और पारस्परिक संबंध कौशल विकसित करना है, अंततः सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन करना है। ये मजबूत महिलाएं समूहों के माध्यम से, न केवल अपने जीवन में सुधार कर रही हैं, बल्कि उनके परिवारों और समुदायों को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर लाभ पंहुचा रही हैं। वर्तमान में एसएचजी कार्यक्रम ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग के रूप में ग्रामीण महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा हैं।

अध्ययन की प्रासंगिकता एवं महत्व

भारत एक ग्रामीण प्रधान देश है। देश की दो-तिहाई आबादी गांवों में रहती है। गांवों में आमदनी का मुख्य साधन खेती एवं उससे संबंधित गतिविधियाँ हैं। गांवों में अधिकतर आबादी की हिस्सेदारी लघु सीमान्त कृषक एवं दिहाड़ी मजदूरो की है। गांवों में गरीबी के कारण लोगों की आय अभी भी काफी कम है। बचत, पूंजी की कमी के कारण निवेश के साधनों का पूर्णतया अभाव है। इन परिस्थितियों को देखते हुए, एसएचजी गांवों में गरीबों की जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। “एसएचजी-बैंक लिंकेज” कार्यक्रम ग्रामीण गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजक का प्रमुख कार्यक्रम है। केंद्र और राज्य सरकारें गांवों के महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक उन्नति में निवेश करती हैं। जिससे गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले ग्रामीण निर्धन परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया जा सके एवं ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया जा सकें। देश र्में आय सृजन के साधन प्रदान करके निर्धनता मिटाने के लिए, स्वरोजगार की दिशा मे ग्रामीण महिलाओं को मजबूत बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह की अवधारणा ग्रामीण गरीबी उन्मूलन एवं ग्रामीण विकास के लिए एक सार्थक योजना है या नहीं। प्रस्तुत शोध के माध्यम से उक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखकर मूल्यांकन करने का प्रयत्न किया गया है। उपर्युक्त संदर्भ में पता लगाना है कि अनूपपुर जिले में ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम के द्वारा व्यावहारिक रूप में ग्रामीण महिलाओं को इस योजना का लाभ मिल रहा है या नहीं। एसएचजी के गठन व क्रियान्वयन से ग्रामीण महिला सदस्यों को कितनी अतिरिक्त आय प्राप्त हो रही है। और कितनी ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं। तथा उनके सामाजिक और आर्थिक स्थिति में कितना बदलाव आया है। इसकी वास्तविक जानकारी हेतु इस योजना के नारी उत्थान एवं ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में योगदान का मूल्यांकन करना प्रासंगिक है।

सशक्तिकरण की अवधारणा:

सशक्तिकरण एक विस्तृत प्रक्रिया है, जो किसी व्यक्ति या समूह की उनके जीवन को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों और घटनाओं को प्रभावित करने और नियंत्रित करने की क्षमता को दर्शाता है। जिसमें शक्ति प्राप्त करना, आत्म-नियंत्रण, आत्मविश्वास, दृढ़ संकल्प और मूल्यों और मानव अधिकारों के साथ मानवीय गरिमा का संरक्षण शामिल है। इसमें जीवन के समस्त पहलुओं में अपनी पूरी क्षमता और ताकत को पहचानना शामिल है। इसमें अधिकार प्राप्त करना, संसाधनों का प्रबंधन करना, प्रभावशाली निर्णय लेना और व्यक्तियों को अप्रासंगिक सांस्कृतिक मानदंडों, विश्वासों और प्रथाओं से मुक्त करना भी शामिल है। इसलिए, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में उन्हें प्रभावित करने वाली आर्थिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने या नियंत्रित करने की उनकी क्षमता शामिल है।

स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं की गतिशीलता को नीति निर्माताओं और सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा विकास को आगे बढ़ाने और नारी शक्ति को अधिक सशक्त बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण के रूप में व्यापक रूप से माना गया है। इस संदर्भ में, आर्थिक सशक्तीकरण को महिलाओं के आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण के रूप में समझा जाता है। यह अध्ययन स्वयं सहायत समूह में संलग्न ग्रामीण महिलाओं के घरेलू आय में महिलाओं के योगदान, उनकी बचत, ऋण स्तर और संपत्ति के स्वामित्व जैसे संकेतकों का उपयोग करके आर्थिक उन्नति को मापता है।

स्वयं सहायता समूह की अवधारणा:

स्वयं सहायता समूह की अवधारणा वर्ष 1976 में बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक के तहत पायलट परियोजना के शुरुआत के साथ शुरू हुई, जिसकी स्थापना प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने की थी। उन्होंने देश में ग्रामीण साख (ऋण) का विस्तार करने के लिए एक अभिनव विधि पेश की थी। ग्रामीण बैंक ऑफ बांग्लादेश ने उधारकर्ताओं को या तो संपाश्र्विक प्रदान करने या उचित काम में संलग्न होने के लिए ऋण दिया। प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस द्वारा सूक्ष्म ऋण की पहल और महिला-केंद्रित समूह का नेतृत्व किया। इस दृष्टिकोण ने गरीब महिलाओं को सशक्त बनाकर बांग्लादेश में गरीबी उन्मूलन में एक शांत क्रांति को जन्म दिया। मुख्यतः समूह स्थायी सामाजिक-आर्थिक विकास को प्राप्त करने के उद्देश्य से सामान्य लक्ष्यों द्वारा एकजुट महिलाओं का एक संघ है। ये समूह अपनी चुनौतियों को साझा करते हैं और भागीदारी के साथ निर्णय-प्रक्रिया के माध्यम से समाधान खोजने के लिए एक साथ काम करते हैं। भारत में नाबार्ड ने वर्ष 1986-87 में एसएचजी की शुरुआत की, लेकिन वास्तविक प्रयास 1991-92 में एसएचजी-बैंक के लिंकेज के साथ आया। एक समूह में आम तौर पर समान पृष्ठभूमि और क्षेत्रों के 10 से 20 महिलाएं होती हैं, जो एक बचत और ऋण समूह बनाने के लिए एक साथ आते हैं। वे बचत की स्वरूप को बढ़ावा देते हुए समूह के सदस्यों को न्यूनतम ब्याज दर में ऋण की सौगात के लिए अपने संसाधनों को एकत्रित करते हैं। समूह के सदस्य ऋण की शर्तें तय करते हैं और पुनर्भुगतान का प्रबंधन करते हैं। स्वयं सहायता समूह का मुख्य उद्देश्य निर्णय लेने में भागीदारी के माध्यम से सामाजिक अलगाव को कम करके और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके सदस्यों को सशक्त बनाना है। स्वयं सहायता समूह की प्रमुख विशेषताओं में नियमित बचत, लगातार बैठकें, अनिवार्य उपस्थिति, समय पर भुगतान और संरचित प्रशिक्षण आदि शामिल हैं। भारत में, लगभग आठ करोड़ से अधिक ेेसमूह कार्यरत हैं, जिनमें 85 मिलियन महिलाओं की सदस्यता शामिल है।

साहित्य की समीक्षा

यादव, कुलदीप एवं प्रसाद, जितेन्द्र (2015), ने अपने अध्ययन ‘महिलाओं के आर्थिक विकास में स्वयं सहायता समूह की भूमिका: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन’ में पाया कि एक पिछड़े क्षेत्र में गरीबी उन्मूलन के लिए एक नयी ताकत के रूप में उभरा है और ग्रामीण क्षेत्रों में अनपढ़ महिलाओं की रूढ़िवादी परम्पराओं की सोच में बदलाव लाने में कारगर साबित हो रहा है जो महिला सशक्तीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। विशेष रूप से महिलाओं की आर्थिक व सामाजिक स्थिति में सुधार करने व ग्रामीण क्षेत्र में असमानता कम करने में तथा वंचित कमजोर और गरीब महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास के तेजी लाने के लिए एक समाधान घटक के रूप में कार्य कर रहा है। समूह से जुडी महिलाओं में आपसी लेन-देन तथा ऋण लेकर रोज़गार से जुड़े प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने अर्थात सशक्तिकरण की प्रक्रिया को सुदृढ़ करने में मील का पत्थर साबित हो रहा है।

सोनूपुरी (2015), ने अपने ‘स्वयं सहायता समूह एवं महिला सशक्तीकरणः एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण’ के अध्ययन में पाया कि स्वयं सहायता समूहों ने गरीबी समाप्त करने एवं महिला सशक्तीकरण प्रक्रिया में ग्रामीण महिलाओं की परिवार में निर्णय लेने की क्षमता का विकास, परिवार में महिलाओं की आर्थिक सहभागिता बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाई है। समूह द्वारा जमा किये गये धन से अपने बच्चों को उचित शिक्षा एवं अच्छी सुविधायें प्रदान करने में महिलाएं सक्षम हुई हैं जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है। महिलाओं को बैकिंग प्रणाली के माध्यम से ब्याज दर, बैंक में खाता खोलना, ऋण संबंघी किश्तों आदि के ज्ञान में वृद्धि, स्वास्थ्य, शिक्षा के प्रति जागरूकता एवं कार्यकुशलता में भी वृद्धि हो रही है। जिससे महिलायें अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में व्यक्तिगत रूप सक्षम हुई है।

वर्मा, दीपाली (2017), ने अपने अध्ययन निर्धनता उन्मूलन में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका परियोजना का प्रभाव के अध्ययन के परिणामों में पाया कि शासन की यह बहुद्देशीय परियोजना जनजातीय गरीब, पिछडे क्षेत्र के लोगो एवं महिलाओं के सामाजिक आर्थिक उत्थान के साथ स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिए परियोजना से जुड़ने एवं सक्रिय सहभागिता के द्वारा हितग्राहियों के आय व बचत करने क्षमता में वृद्धि, कौशल उन्नयन, व्यक्तित्व विकास, आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता तथा संवाद की दशाओं को सकारात्मक बल मिला है जिससे निर्धनता उन्मूलन में सहायता प्राप्त हुई।

गुप्ता,लक्ष्मी (2017), ने ग्रामीण महिलाओं के उत्थान में स्वयं सहायता समूह की भूमिका के अध्ययन के अनुसार महिलाएं ग्राम संगठनों का निर्माण कर समूहों में शामिल होकर सभी महिलाएं सामाजिक एवं सामुदायिक कार्यों में आगे आकर भाग ले कर नए उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं। जिसमें ग्राम को शराबमुक्त बनाने, साक्षर बनाने, महिलाएं अपने नियमित गतिविधियों के साथ अनाज समूह का संचालन कर आवश्यकता के आधार आजीविका चलाने में अक्षम परिवारों को इसका वितरण करने का सफल प्रयास किया है। समूह में शामिल परिवारों की महिलाओं ने स्वयं आगे आकर अपने घरों में शौचालय निर्माण का निर्णय लिया और एक जुट होकर बोरी बंधान का निर्माण कर नाले के आसपास के लगभग 260 परिवार अपने खेत में पानी सिंचाई का कार्य किया हैं। जिले में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाए लगभग 20 ग्रामों सरपंच निर्वाचित हुई हैं।

तिवारी, राकेश कुमार (2018), ने अपने अध्ययन ‘महिला सशक्तीकरण एवं स्वयं सहायता समूह: एक समाजशास्त्रीय विमर्श’ में पाया कि अध्ययन क्षेत्र में स्वयं सहायता समूह कि ग्रामीण महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं मनोवैज्ञानिक पक्ष को दृढ़ करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। जिससे ग्रामीण महिलाओं के जीवन पर व्यापक एवं महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। स्वयं सहायता समूह स्थानीय स्तर पर आर्थिक गतिविघियों का सृजन कर महिलाओं के स्वावलम्बन एवं आत्मविश्वास में वृद्धि के साथ-साथ परिवार एवं समाज में निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बढ़ वृद्धि किया है। महिलाओं को बैंकों की भूमिका सकारात्मक बनाये जाने तथा पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण में परिवर्तन की दिशा में अभी व्यापक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

अध्ययन क्षेत्र

प्रस्तुत अध्ययन में मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के जैतहरी विकासखण्ड में कुल 80 एवं अनूपपुर विकासखण्ड में 52 ग्राम पंचायत है। दोनों विकासखण्ड के 05- 05 ग्राम पंचायतों कुल 10 ग्राम पंचायतों को शामिल किया गया है।  जिले के दोनों विकासखण्ड में संचालित स्वयं सहायता समूह का चयन किया गया है।

अध्ययन के उद्देश्य

1.         अनूपपुर जिले में स्वयं सहायता समूहों में कार्यरत महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना।

2.         अनूपपुर जिले में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में स्वयं सहायता समूह की प्रभावशीलता का आकलन करना।

3.         अनूपपुर जिले में स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों के जुड़ने के पूर्व और बाद में उनके प्रभाव का अध्ययन करना।

शोध प्रविधि

प्रस्तुत अध्ययन मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के जैतहरी एवं अनूपपुर  विकासखण्ड के कुल 10 ग्राम पंचायत में संचालित स्वयं सहायता समूह पर आधारित है। अध्ययन में प्राथमिक का प्रयोग किया गया है। प्राथमिक आंकड़ों के संकलन साक्षात्कार अनुसूची एवं अवलोकन पद्धति का उपयोग किया गया है। अनूपपुर जिले में कोतमा, अनूपपुर, जैतहरी, पुष्पराजगढ़ चार विकास खण्ड है। जिले के चार विकासखंडों में से अनूपपुर और जैतहरी दो विकासखण्ड का चयन सक्रिय स्वयं सहायता समूह की स्थिति के आधार पर किया गया है। प्रत्येक विकासखंड से, 25 ग्रामीण स्वयं सहायता समूह को यादृच्छिक रूप से चुना गया है, जिसके परिणामस्वरूप पांच- पांच ग्राम पंचायतों में संचालित स्वयं सहायता समूह को चयन किया गया है। जिसमें जैतहरी विकासखण्ड के क्योंटार, टकहुली, सिवनी, चोरभठी, झाईताल एवं अनूपपुर विकासखण्ड के धुरवासिन, छोहरी, लतार, पयारी नं. 01, दैखल ग्राम पंचायत के 50 ग्रामीण स्वयं सहायता समूह के कुल 120 महिला सदस्यों को शामिल किया गया है।

आकड़ों का एकत्रीकरण एवं विश्लेषण

प्रस्तुत अध्ययन हेतु प्राथमिक समंकों का उपयोग किया गया है। आंकड़ों के एकत्रीकरण हेतु साक्षात्कार अनुसूची का उपयोग किया गया है। अनूपपुर जिले में संचालित स्वयं सहायता समूह में संलग्न महिलाओं से सामान्य जानकारी, आयु-वार वर्गीकरण, पारिवारिक स्वरुप, शैक्षणिक स्थिति, भवन की स्थिति,रोजगार की स्थिति, मासिक आय-व्यय की स्थिति, व्यवसायिक, ऋण, ऋण की उपयोगिता आदि से संबंधित जानकारी एकत्र की गई।

तालिका 1: उत्तरदाताओं का आयु-वार वर्गीकरण

आयु वर्ग

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

25 वर्ष से कम

4

3

25-35

33

27

35-45

45

37

45-55

31

28

55 वर्ष से अधिक

7

5

कुल

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

प्रस्तुत तालिका क्रमांक 01 के अनुसार स्वयं सहायता समूह में संलग्न ग्रामीण महिला सदस्यों की आयु-वार वर्गीकरण को दर्शाया गया है। जिसमें 25 वर्ष से कम आयु वर्ग की भागीदारी 3 प्रतिशत हैं। 25-35 वर्ष आयु वर्ग के उत्तरदाता की भागीदारी  27 प्रतिशत हैं। जबकि 45-55 वर्ष आयु वर्ग के 28 प्रतिशत, 55 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की 5 प्रतिशत है। आयु वार वर्गीकरण में  35-45 आयु वर्ग के उत्तरदाताओं सर्वाधिक भागीदारी है जो 37 प्रतिशत का हिस्सा है।, जो इस समूह की मुख्य कार्यशील ग्रामीण महिला उत्तरदाताओं को की भागीदारी को प्रदर्शित करता है।

तालिका 2: स्वयं सहायता समूह की महिला उत्तरदाताओं का शैक्षणिक स्थिति का वर्गीकरण

शैक्षणिक स्थिति

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

निरक्षर

35

29.16

प्राथमिक

27

22.5

माध्यमिक

32

26.66

हाई स्कूल/ उच्चतर माध्यमिक

21

17.5

स्नातक

02

1.66

स्नातकोत्तर

03

2.5

कुल

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

उपर्युक्त तालिका क्र. 02 में अध्ययन क्षेत्र में महिला उत्तरदाताओं के शैक्षणिक स्थिति का वर्गीकरण से स्पष्ट होता है कि इनमें से अधिकांश की शिक्षा स्तर अपेक्षाकृत निम्न है। कुल 120 उत्तरदाताओं में से 29.16 प्रतिशत महिलाएँ निरक्षर हैं, जबकि 22.5 प्रतिशत ने प्राथमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त की है। माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या 26.66 प्रतिशत है। हाई स्कूल या उच्चतर माध्यमिक स्तर तक शिक्षित महिलाओं का प्रतिशत 17.5 प्रतिशत है। स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या बहुत कम है, क्रमशः 1.66 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत है। जिससे यह ज्ञात होता है कि अधिकांश महिलाएँ बुनियादी या माध्यमिक शिक्षा तक ही सीमित हैं, और उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या बेहद कम है। यह आंकडें महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। सूक्ष्म वित्त कार्यक्रम शिक्षित, अशिक्षित और साक्षर सभी महिलाओं को स्वयं सहायता समूह का सदस्य बनने का अवसर किया हैं जिससे महिलाएं समूह से जुड़कर एक आर्थिक अभिकर्ता के रूप में कार्य कर रहीं हैं।

तालिका 3: स्वयं सहायता समूह के ग्रामीण महिला उत्तरदाताओं की वैवाहिक स्थिति का वर्गीकरण

वैवाहिक स्थिति

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

अविवाहित

02

1.6

विवाहित

110

91.7

विवाहित

110

91.7

विधवा/ तलाकशुदा

08

6.7

कुल

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

प्रस्तुत तालिका क्र. 03 में स्वयं सहायता समूह के ग्रामीण महिला उत्तरदाताओं की वैवाहिक स्थिति का वर्गीकरण को दर्शाया गया है। इसमें सबसे बड़ी संख्या विवाहित महिलाओं की है, जो कुल उत्तरदाताओं का 91.7 प्रतिशत हैं। अविवाहित महिलाओं की संख्या केवल 1.6 प्रतिशत है, जबकि विधवा या तलाकशुदा महिलाओं का प्रतिशत 6.7 प्रतिशत है। इस प्रकार, यह आंकड़े यह दर्शाता है कि अधिकांश महिलाएं विवाहित हैं, जबकि विधवा या तलाकशुदा महिलाओं का अनुपात अपेक्षाकृत कम है। कुल मिलाकर, 120 महिलाओं की स्थिति का यह आंकलन ग्रामीण समाज में महिलाओं के पारंपरिक परिवारिक ढांचे की झलक प्रदान करता है। यह कार्यक्रम अपने को परिवार पर बोझ मानने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में से तलाकशुदा और विधवा महिलाओं जैसे निराश्रितों को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका है।

तालिका 4: स्वयं सहायता समूह में संलग्न महिला उत्तरदाताओं के पारिवारिक स्वरुप

परिवार का स्वरुप

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

एकल

50

41.7

संयुक्त परिवार

70

58.3

कुल

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

प्रस्तुत तालिका क्र. 04 में स्वयं सहायता समूह में संलग्न ग्रामीण महिला उत्तरदाताओं के पारिवारिक स्वरूप को दर्शाती है। 120 उत्तरदाताओं में से 41.7 प्रतिशत महिलाओं का परिवार एकल है, जबकि 58.3 प्रतिशत महिलाओं का परिवार संयुक्त है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि अधिकांश महिलाओं के परिवार संयुक्त हैं, जो पारंपरिक भारतीय परिवार संरचना को दर्शाता है। ग्रामीण महिलाएं अपने परिवार के साथ मिलकर रहते हुए पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को निर्वहन करते हुए स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपने आर्थिक सशक्तिकरण के लिए अग्रसर हैं। इस प्रकार, दोनों प्रकार के पारिवारिक स्वरूप एकल और संयुक्त समाज में विभिन्न जीवनशैली और परिवारिक संरचनाओं का प्रतीक हैं।

तालिका 5: स्वयं सहायता समूह में संलग्न महिलाओं के परिवार के सदस्यों के आधार पर उत्तरदाताओं का वर्गीकरण

परिवार का आकार

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

02 -04 सदस्य

20

16.6

05-06 सदस्य

72

60

07-08  सदस्य

17

14.2

08 से अधिक सदस्य

11

9.2

कुल

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

प्रस्तुत तालिका क्र. 05 स्वयं सहायता समूह में संलग्न ग्रामीण परिवारों के सदस्यों के आधार पर उत्तरदाताओं का वर्गीकरण दर्शाया गया है। जिसमें अधिकांश उत्तरदाता 60 प्रतिशत के परिवारों में 5 से 6 सदस्य हैं, जबकि 16.6 प्रतिशत परिवारों में 2 से 4 सदस्य हैं। 14.2 प्रतिशत उत्तरदाता ऐसे परिवारों से हैं जिनमें 7 से 8 सदस्य हैं, और 9.2 प्रतिशत उत्तरदाता 8 से अधिक सदस्य वाले परिवारों से हैं। इस प्रकार, कुल 120 उत्तरदाताओं में से अधिकांश का परिवार आकार 5-6 सदस्य के बीच है, जो समूह में प्रमुख श्रेणी को अधिकता दर्शाता है, जबकि छोटे और बड़े परिवारों की संख्या कम है।

तालिका 6: स्वयं सहायता समूह में संलग्न महिला उत्तरदाताओं के भवन का वर्गीकरण

भवन का प्रकार

 

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के पूर्व

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

कच्चा घर

63

52.5

26

21.6

अर्ध पक्का घर

30

25

38

31.7

पक्का भवन

27

22.5

56

46.7

कुल

120

100

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

तालिका क्र. 06 में स्वयं सहायता समूह में संलग्न ग्रामीण महिला उत्तरदाताओं के समूह से जुड़ने से पूर्व एवं जुड़ने के बाद भवन का वर्गीकरण को दर्शाया गया है जिसमें स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से पहले, 52.5 प्रतिशत उत्तरदाताओं के पास कच्चा घर था, जबकि 25 प्रतिशत उत्तरदाताओं के पास अर्ध पक्का और 22.5 प्रतिशत के पास पक्का भवन था। वहीं, समूह में जुड़ने के बाद कच्चा घर रखने वाली महिलाओं की संख्या घटकर 21.6 प्रतिशत हो गई, जबकि अर्ध पक्का घर रखने वालों की संख्या बढ़कर 31.7 प्रतिशत और पक्का घर रखने वालों की संख्या बढ़कर 46.7 प्रतिशत हो गई। आंकड़ों का परिवर्तन यह दर्शाता है कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद महिलाओं के आवासीय स्थिति में सकारात्मक बदलाव आया है, जिससे उनकी जीवनशैली में सुधार हुआ है जो आर्थिक और सामाजिक स्थिति में बदलाव को दर्शाता है।

तालिका 7: स्वयं सहायता समूह में संलग्न महिला उत्तरदाताओं के मासिक आय का वर्गीकरण

मासिक आय का वर्गीकरण

 

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के पूर्व

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

3000 रुपये से कम

73

60.8

11

9.2

3000 से 6000 रुपये तक

45

37.5

68

56.7

7000 से 10000 रुपये तक

2

1.7

36

30

10000 से अधिक

निरंक

निरंक

5

4.1

कुल

120

100

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

तालिका क्र. 07 में स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद महिलाओं की मासिक आय में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। 3000 रुपये से कम कमाने वाली महिलाओं की संख्या 60 प्रतिशत से घटकर 9.2 प्रतिशत रह गई, जबकि 3000-6000 रुपये आय वाली महिलाओं का अनुपात 37.5 प्रतिशत से बढ़कर 56.7 प्रतिशत हो गया। 7000-10000 रुपये कमाने वाली महिलाओं की संख्या भी 1.7 प्रतिशत से 30 प्रतिशत हो गई, और 10,000 रुपये से अधिक आय वाली 4.1 प्रतिशत महिलाएँ शामिल हो गईं। यह समूह महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक सिद्ध हुआ। उक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, जिससे उनकी मासिक आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

तालिका 8: स्वयं सहायता समूह के उत्तरदाताओं का व्यवसाय-वार वर्गीकरण

व्यवसाय की प्रकृति

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

कृषि श्रमिक

32

26.6

गृहणी

43

35.8

बकरी पालन

03

2.5

विद्यालय में रसोईया

16

13.3

सिलाई कार्य

02

1.7

दुग्ध उत्पादन

03

2.5

आटा चक्की

02

1.7

किराना दुकान

05

4.2

मुर्गी/ मछली पालन

12

10

अन्य

02

1.7

कुल

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

तालिका क्र. 08 में स्वयं सहायता समूह के उत्तरदाताओं का व्यवसाय-वार वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में लगे महिलाओं की संख्या और उनके प्रतिशत का विवरण दिया गया है। आंकड़ों में सबसे बड़ी श्रेणी गृहणियों की है, जो कुल 43 उत्तरदाताओं के साथ 35.8 प्रतिशत  हैं।, कृषि श्रमिक 26.6 प्रतिशत और विद्यालय में रसोईया 13.3 प्रतिशत का स्थान है। अन्य व्यवसायों में बकरी पालन, दुग्ध उत्पादन, आटा चक्की, सिलाई कार्य, किराना दुकान, और मुर्गी/ मछली पालन आदि में शामिल हैं, जो कम प्रतिशत में हैं। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि अधिकांश उत्तरदाता कृषि और घरेलू कार्यों से जुड़े हुए हैं, जबकि कुछ लोग छोटे व्यवसायों में भी संलग्न हैं।

तालिका 9: स्वयं सहायता समूह के उत्तरदाताओं का प्रति वर्ष रोजगार दिवसों में परिवर्तन

(समूह में जुड़ने से पूर्व और बाद की स्थिति)

रोजगार दिवस की स्थिति (प्रति वर्ष)

 

समूह में जुड़ने से पूर्व

समूह में जुड़ने के बाद

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

50 दिवस से कम

58

48.3

26

21.6

50 से 100 दिवस

50

41.7

41

34.2

100 से 150 दिवस

6

05

19

15.8

150 से 200 दिवस

4

3.3

23

19.2

200 दिवस से अधिक

2

1.7

11

9.2

कुल

120

100

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

तालिका क्र. 09 में स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से पूर्व और बाद के रोजगार दिवसों में बदलाव को दर्शाता है। उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद उत्तरदाताओं के रोजगार दिवसों में सकारात्मक परिवर्तन हुआ है। 50 दिवस से कम रोजगार करने वाले उत्तरदाताओं का प्रतिशत 48.3 प्रतिशत से घटकर 21.6 प्रतिशत हेो गया, जबकि 200 दिवस से अधिक रोजगार करने वालों का प्रतिशत 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 9.2 प्रतिशत हो गया। इसी प्रकार, 150 से 200 दिवस और 100 से 150 दिवस रोजगार करने वालों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह बदलाव दर्शाता है कि स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से उत्तरदाताओं को अधिक रोजगार के अवसर मिले, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

तालिका 10: स्वयं सहायता समूह के उत्तरदाता सदस्यों की औसत मासिक आय में परिवर्तन का वर्गीकरण

(समूह में जुड़ने से पूर्व और बाद की स्थिति)

मासिक आय

 

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के पूर्व

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

3000 रुपये से कम

73

60.8

11

9.2

3000 से 6000 रुपये तक

45

37.5

68

56.7

7000 से 10000 रुपये तक

2

1.7

36

30

10000 से अधिक

निरंक

निरंक

5

4.1

कुल

120

100

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

तालिका क्र. 10 में सर्वेक्षण के अनुसार, स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से पहले अधिकांश उत्तरदाता 60.8 प्रतिशत की मासिक आय 3000 रुपये से कम थी, जबकि इस समूह में जुड़ने के बाद 9.2 प्रतिशत लोग ही इस श्रेणी में थे। इसके विपरीत, 3000 से 6000 रुपये तक आय वाले उत्तरदाताओं की संख्या पहले 37.5 प्रतिशत थी, जो बाद में बढ़कर 56.7 प्रतिशत हो गई। 7000 से 10000 रुपये तक आय वाले उत्तरदाताओं की संख्या जुड़ने के बाद 30 प्रतिशत हो गई, जो पहले केवल 1.7 प्रतिशत थी। वहीं, 10000 रुपये से अधिक आय वाले उत्तरदाताओं का प्रतिशत 4.1 प्रतिशत हो गया, जबकि समूह में जुड़ने से पहले इस श्रेणी का कोई उत्तरदाता नहीं था। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद उत्तरदाताओं की मासिक आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, और अधिकांश लोग अब उच्च आय श्रेणियों में आते हैं।

तालिका 11: स्वयं सहायता समूह उत्तरदाताओं औसत मासिक व्यय में परिवर्तन का वर्गीकरण

मासिक व्यय

 

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के पूर्व

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

3000 रुपये से कम

102

85

43

35.8

3000 से 6000 रुपये तक

16

13.3

67

55.8

7000 से 10000 रुपये तक

02

1.7

06

5

10000 से अधिक

निरंक

निरंक

04

3.4

कुल

120

100

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

तालिका क्र. 11 में स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के पूर्व और बाद के उत्तरदाताओं के मासिक व्यय में होने वाले परिवर्तन को दर्शाया गया है। सर्वेक्षण में शामिल 120 उत्तरदाताओं में से, 85 प्रतिशत का मासिक व्यय 3000 रुपये से कम था जब वे स्वयं सहायता समूह से पहले थे, जबकि इस श्रेणी में संख्या घटकर 35.8 प्रतिशत हो गई है जब वे समूह से जुड़े। इसके विपरीत, 3000 से 6000 रुपये तक मासिक व्यय करने वालों का प्रतिशत पहले 13.3 प्रतिशत था, जो समूह में जुड़ने के बाद बढ़कर 55.8 प्रतिशत हो गया। इसी तरह, 7000 से 10000 रुपये तक और 10000 रुपये से अधिक खर्च करने वाले उत्तरदाताओं की संख्या भी बढ़ी है। यह बदलाव इस बात को दर्शाता है कि स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद उत्तरदाता आर्थिक दृष्टि से अधिक सशक्त हुए हैं और उनके व्यय में वृद्धि हुई है, जो उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार को संकेतित करता है।

तालिका 12: उत्तरदाताओं की मासिक बचत में परिवर्तन का वर्गीकरण

मासिक बचत

 

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के पूर्व

स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

उत्तरदाताओं की संख्या

प्रतिशत

500 रुपये से कम

93

77.5

06

05

500 से 1000 रुपये तक

18

15

98

81.7

1500 से 3000 रुपये तक

05

4.2

09

7.5

3000 से अधिक

04

3.3

07

5.8

कुल

120

100

120

100

स्रोत: सर्वेक्षित आंकडे।

तालिका क्र. 12 में आंकड़ों के अनुसार, स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से उत्तरदाताओं की मासिक बचत में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। स्वयं सहायता समूह में जुड़ने से पहले, अधिकांश उत्तरदाता 77.5 प्रतिशत 500 रुपये से कम बचत कर रहे थे, जबकि समूह में जुड़ने के बाद इस श्रेणी में बचत करने वालों की संख्या केवल 5 प्रतिशत रह गई। इसके विपरीत, 500 से 1000 रुपये तक बचत करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो समूह में जुड़ने से पहले केवल 15 प्रतिशत थी, लेकिन अब यह बढ़कर 81.7 प्रतिशत हो गई। इसी तरह, 1500 रुपये से 3000 रुपये और 3000 रुपये से अधिक बचत करने वाले उत्तरदाताओं की संख्या में भी थोड़ी वृद्धि देखी गई, हालांकि यह वृद्धि कम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वित्तीय अनुशासन और बचत की आदतों में सुधार हुआ है, जिससे अधिक उत्तरदाता उच्च बचत श्रेणियों में शामिल हो पाए हैं।

निष्कर्ष

प्रस्तुत अध्ययन में कुल 120 महिला उत्तरदाताओं के माध्यम से विश्लेषण किया गया है जिसमें महिला उत्तरदाताओं के आयु वर्ग जो कि सबसे बड़ा हिस्सा 35-45 वर्ष आयु वर्ग का है, जो इस समूह की मुख्य कार्यशील ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी को प्रदर्शित करता है। अध्ययन के तथ्यों से ज्ञात होता है कि समूहों के सदस्य आधारित समुदाय के आयु एक महत्वपूर्ण संकेतक है। और महिला उत्तरदाताओं के शैक्षणिक वर्गीकरण से स्पष्ट होता है कि इनमें से अधिकांश की शिक्षा स्तर अपेक्षाकृत निम्न है। कुल 120 उत्तरदाताओं में से 29.16 प्रतिशत महिलाएँ निरक्षर हैं, जबकि 22.5 प्रतिशत ने प्राथमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त की है। उत्तरदाताओं के पारिवारिक स्थिति में  41.7 प्रतिशत महिलाओं का परिवार एकल है, जबकि 58.3 प्रतिशत महिलाओं का परिवार संयुक्त है। प्रदर्शित करते है कि अधिकांश महिलाओं के परिवार संयुक्त हैं, जो पारंपरिक भारतीय परिवार संरचना को दर्शाता है। समूह से जुड़ने के बाद महिलाओं की मासिक आय में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। जिसमें 3000 रुपये से कम कमाने वाली महिलाओं की संख्या 60 प्रतिशत से घटकर 9.2 प्रतिशत रह गई, जबकि 3000-6000 रुपये आय वाली महिलाओं का अनुपात 37.5 प्रतिशत से 56.7 प्रतिशत हो बढ़ गया। एसएचजी में जुड़ने से पूर्व और बाद के रोजगार दिवसों में बदलाव को दर्शाता है। उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद उत्तरदाताओं के रोजगार दिवसों में सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।