प्रस्तावना

यह शोध हिन्दी भाषा की वर्तनी पर जो प्रभाव पडता है उसका व्यक्त किया गया है मानव जीवन में भाषा का विशेष महत्व है भाषिक योग्यता के आधार पर व्यक्ति अन्य जीव जन्तुओं से श्रेष्ठ है मानव जीवन में शरीर मन और भाषा के सम्मिलित योग द्वारा ही सभी व्यवहारों का सम्पादन होता है व्यक्ति प्रेषक और ग्राहक के रूप में भाषिक व्यवस्था में दोहरी भूमिका अदा करता है भाषिक व्यवस्था के द्वारा ही मानवीय सम्यता व संस्कृति का आदान प्रदान तथा मापन होता है भाषा के बल पर ही सामाजिक दृष्टिकोण, विचार, मूल्य, परम्परा और आदर्श निर्धारित होते हैं।

भाषा व्यवस्था में भाषा की शुद्धता कोउ विशेष महत्व दिया जाता है अशुद्ध भाषा के प्रयोग से एक ओर वांछित अर्थ के प्रकाशन में बाधा उपस्थित होती है तो दूसरी ओर इस अशुद्धि के कारण कई प्रकार की अवांछित समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं। भाषा का शुद्ध प्रयोग व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिचायक होता है। अशुद्ध प्रयोग द्वारा व्यक्ति अपनी शैक्षिक, मानसिक, बौद्धिक तथा सांस्कृतिक अक्षमता का परिचय अनायास ही दे देता है। भाषा के स्वरूप को आदर्श मानक बनाये रखने के लिए शुद्ध प्रयोग आवश्यक है।

भाषा में अशुद्धिः- हिन्दी की अध्येता व शिक्षिका के रूप मंें मैंने यह अनुभव किया है कि हिन्दी भाषा का पर्याप्त विकास होने, समृद्ध होने तथा उच्च शिक्षा व सरकारी कार्य में इसके उपयोग के उतरोतर बढने के बावजूद आज हिन्दी भाषा की अशुद्धियाँ असहनीय हैं। हिन्दी के नाम पर जिस खिचडी भाषा का प्रयोग आत सहज रूप से किया जा रहा है वह इस भाषा के उतरोतर विकास की दृष्टि से उत्साहप्रद संकेत नहीं हैं। न केवल आम आदमी द्वारा बल्कि शिक्षित वर्ग द्वारा भी भाषा में अत्यधिक अशुद्धियाँ की जा रही हैं। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं तथा प्रिन्ट मिडिया के द्वारा भी वर्तनी के स्तर पर अत्यधिक असंगत प्रयोग किये जा रहे हैं। हिन्दी के अध्यापन से जुडे लोगों की वर्तनीगत अशुद्धियाँ इस चिन्ता को व्यापक रूप प्रदान करती है।

म्लतः भाषा शिक्षक होने के नाते मैंने इस विषय में गम्भीर चिन्तन-मनन के पश्चात् यह निश्चय किया कि हिन्दी भाषा की इन अशुद्धियों के बारे में एक सर्वेक्षण और समीक्षात्मक अध्ययन करके भाषा के मानक स्वरूप को स्थिर रखने में सहयोग करके एक सामाजिक दायित्व का निर्वाह करूं।

हिन्दी भाषा की अशुद्धियों का सर्वेक्षण करने से पूर्व यह ज्ञात करना आवष्यक है कि अशुद्धि कहते किसे हैं इस संदर्भ में मानक हिन्दी कोष में अशुद्धि के बारे में लिखा है:- जो शुद्ध न हो, जिसमें पवित्रता आदि का अभाव हो, अपवित्र भाषा या लेख जिसमें नियम, विधि आदि का पूरा पालन न होने के कारण भूल रह गई हो, जो अपने मानक रूप से भिन्न और हीन प्रकार का हो। जैसे अशुद्ध आचरण, अशुद्ध प्रतिलिपि, अशुद्ध प्रयोग आदि जिसका शोधन का संस्कार न हुआ हो।

इसी प्रकार न्यू बेब्सटर्स डिक्शनरी ने अशुद्धि का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा हैः- भाषा की अशुद्धि पर विचार करते हुए डा. पूरनचन्द टंडन ने लिखा है:- भाषा एक व्यवस्था है और इस व्यवस्था के अपने कुछ महत्वपूर्ण नियम हैं। जो भी प्रयोग इन नियमों को तोडता है वही अशुद्ध है। अर्थात जो अमानक है वही अशुद्ध है।

कालांतर में भी संस्कृत के विद्वानों ने भाषा के शुद्ध स्वरूप को बचाये रखने हेतु सफल उद्योग किये हैं। अशुद्धियों के स्वरूप के बारे में भाषा वैज्ञानिकों, व्याकरण के विद्वानों तथा अन्य विद्वानों के विचारों का समन्वित स्वरूप ग्रहण करते हुए निम्नानुसार अशुद्धियों का वर्गीकरण प्रस्तुत कर प्रस्तुत विषय के आलोक में परिचय प्रस्तुत किया गया है।

1.    संरचनात्मक अशुद्धियाँ

2.    अर्थपरक अशुद्धियाँ

3.    वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ

भाषा शिक्षण में अशुद्धि का प्रयोग

भाषा में शुद्ध प्रयोग का महत्व निर्विवाद है। अशुद्ध प्रयोग से उचित अर्थ की प्राप्ति में बाधा आती है तथा अनेक प्रकार की सामाजिक विसंगतियां पैदा होती हैं। अतः भाषा के उच्चारण एवम् लेखन में शुद्ध प्रयोग आवश्यक है। भाषा के शुद्ध एवम् मानक स्वरूप को जानकर ही व्यक्ति उचित प्रयोग कर सकता है अतः भाषा शिक्षण में भाषा के तत्वों एवम् उसके साहित्यिक प्रयोग में मान्य पद्धति या शैली का निर्वाह करना आवश्यक होता है। भाषा के विभिन्न पक्षों के उचित प्रयोग के शिक्षण में अशुद्धियो की उल्लेखनीय भूमिका है। भाषा के प्रयोग में वर्तनी, वाक्य संरचना एवम् अर्थ की दृष्टि के किये जाने वाले अशुद्ध प्रयोग की पहचान करना भाषा शिक्षण का महत्वपूर्ण अंग है चूंकि उपचार से पूर्व उचित निदान आवश्यक है। भाषा के सभी पक्षों की उचित जानकारी प्राप्त होने पर ही अशुद्धियों का निदान किया जाता है अतः भाषा शिक्षण में भाषा के विभिन्न पक्षों में होने वाली अशुद्धियों को उदाहरण के रूप में पहचान कर शुद्ध अशुद्ध का अन्तर स्पष्ट करण महत्वपूर्ण कार्य है। छात्रों एवम् आम जनता से प्रयोग के स्तर पर होने वाली अशुद्धियों पर सजग दृष्टि रख कर उनके परिहार हेतु सार्थक प्रयास करना भाषा शिक्षक एवम् भाषाविद् का दायित्व है।

हिन्दी भाषा की तात्विक आधार पर अशुद्धि विवेचना तेा समय समय पर विद्वानों द्वारा होती रहती है लेकिन क्षेत्र विशेष में हिन्दी भाषा की अशुद्धियों पर ध्यान केन्द्रित कर बहुत कम काम हुआ है।

लम्बे समय से स्नातक स्तर की छात्राओं को हिन्दी अध्यापन कराते हुए मेरे क्षेत्र शेखवाटी अंचल की छात्राओं द्वारा की जा रही वर्तनीगत अशुद्धियों को जानने का अवसर मिला है मैंने इस विषय में जिज्ञासा बढा कर पाया कि इस दिशा में कोई व्यक्तिगत शोध अध्ययन तक नहीं हुआ है। अतः मैंने इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। अशुद्धियों को पहचान कर सामने प्रस्तुत करने से प्रयोगकर्ता को अशुद्धि एवम् शुद्धि में अन्तर समझ कर भाषा के सही स्वरूप को समझने में सहयोग मिंलता है। प्रस्तुत अध्ययन में अशुद्धि के कारण तलाशने का प्रयास किया गया है चूंकि वर्तनीगत अशुद्धियाँ मुख्यतः उच्चारण की अशुद्धियों के कारण होती हैं अतः उच्चारण से संबंधी अशुद्धियों के निन्मनांकित कारण उल्लेखित हैंः-

अनुकरण:- अशिक्षित या कम पढे लिखें लोगों के बीच रहने से बच्चा अनुकरण द्वारा सहज रूप से अशुद्ध उच्चारण अपना लेता हैः-

शुद्ध - अशुद्ध

समुद्र - समदर

युद्ध - जुद्ध

विद्यालय - विधालय

स्थानीय बोली का प्रभाव:- स्थान विशेष की बोली के प्रभाव से उच्चारण में पडने वाले प्रभाव

शुद्ध - अशुद्ध

मेरा - मेरो

आधा - आधो

खाना - खाणो

अन्य भाषा का प्रभावः- एक से अधिक भाषा बोलने की स्थिति में दूसरी भाषा की ध्वनि व्यवस्था का अनुकरण कर व्यक्ति उच्चारण संबंधी अशुद्धि करता है

शुद्ध - अशुद्ध

योग - योगा

कृष्ण - कृष्णा

राम - रामा

शारीरिक विकार:- कुछ लोगों के वाक् यंत्र में विकार आने से हकलाहट या तुतलापन आने लगता है जिससे वे कई ध्वनियो का अशुद्ध उच्चारण करते हैं।

अज्ञान:- कुछ ध्वनियों के उच्चारण के सम्बन्ध में सही स्थिति की जानकारी नहीं होनेसे भी अशुद्धियाँ होती हैं। ऐसे में व्यक्ति उन ध्वनियों का उच्चारण अपनी समझ के अनुसार करने लगते हैं जैसेः-

शुद्ध - अशुद्ध

सृष्टि - श्रृष्टि

उज्ज्वल - उज्ज्वल

संन्यासी - संयासी

मनोवैज्ञानिक कारण

शिक्षक द्वारा अशुद्ध उच्चारण

उपर्युक्त औच्चारिक अशुद्धियों के अतिरिक्त भाषा में वर्तनी की अशुद्धियों के निम्नांकित कारण भी उल्लेखनीय हैं।

(क) लिपि भ्रम:- कुछ जटिल शब्दों को लिखने में इसलिए अशुद्धि कर देते हैं क्योंकि उन्हें लिपि का उचित ज्ञान नहीं होता है

शुद्ध - अशुद्ध

शैक्षणिक - शैक्षणीक

चारित्रिक - चारीत्रक

(ख) लेखन में असावधानीः- लिखते समय थोडी सी असावधनी के कारण कुछ शब्दों की वर्तनी अशुद्ध लिखने लगते हैं। अनुकरण के आधार पर यह अशुद्धि व्यापक स्तर पर होने लगती हैं जैसेः-

शुद्ध - अशुद्ध

ध्वनि - ध्वनी

निर्भीक - निर्भिक

(ग) व्याकरण का अपर्याप्त ज्ञान:- व्याकरण का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण लोग वर्तनी में अशुद्धि करते हैं जैसेः-

शुद्ध - अशुद्ध

उपर्युक्त - उपरोक्त

अवगुण - अगुण

(घ) बौद्धिक अक्षताः- कुछ लोग अपनी बौद्धिक न्यूवता के कारण शब्द का उचित बिम्ब स्मरण नहीं रख पाते अतः धारणा व प्रत्यास्मरण की कमजोरी के कारण ऐसे लोग दुरूह शब्दों की वर्तनी को अशुद्ध लिखते हैं जैसेः-

शुद्ध - अशुद्ध

सान्निध्य - सानिध्य

अंत्याक्षरी - अंताक्षरी

वर्तनी की अशुद्धियों के और भी कारण हैं जिनका समावेष उपर्युक्त संक्षिप्त उल्लेख में नहीं हो पाया है परन्तु महती आवश्यकता है कि उन अशुद्धियों के स्वरूप को तथा उनके कारणों को पहचान कर भाषा के आदर्श - मानक स्वरूप को शुद्ध बनाये रखने के लिए गंभीर प्रयास किये जायें तथा वर्तनीगत अशुद्धियों का पहचान कर उनका समाज भाषा विज्ञान तथा मनोभाषा विज्ञान के सिद्धान्तों के आलोक में पर्याप्त विवेचन किया जाना चाहिए।

भाषा की शुद्धता और अशुद्धता का निर्णय उसके सामाजिक व्यवहार के पक्ष पर निर्भर करता है। भाषा की अशुद्धि के प्रेरक तत्वों की पहचान करते हुए क्रमशः समाज भाषा वैज्ञानिक तत्व, मनोभाषा वैज्ञानिक तत्व तथा शैक्षणिक भाषा मनोभाषा तत्व, उप बिन्दुओं के अतिरिक्त निम्नानुसार अध्ययन विश्लेषण किया जा रहा है

समाज भाषा वैज्ञानिक तत्व

भाषा और समाज का अटूट सम्बन्ध है। भाषा की उत्पति उसका अस्तित्व तथा विकास सामाजिक व्यवहार पर ही आधारित होता है समाज के नाना प्रकार के भेदों तथा उसकी स्थितियों के आधार पर भाषा में बदलाव घटित होते हैं। भाषा विज्ञान के अन्तर्गत एक अपेक्षाकृत नवीन शाखा समाज भाषा विज्ञान का विकास हुआ है। समाज भाषा विज्ञान के अन्तर्गत प्रोक्ति को आधार बनाकर समाज के परिप्रेक्ष्य में भाषा का यथार्थपरक अध्ययन किया जाता है इस संदर्भ में भाषा के प्रयोग करने वाले व्यक्तियों की मानसिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक, सामाजिक, पारिवारिक आर्थिक स्थिति के आधार पर उसके व्यवहार का विश्लेषण करते हुए उसकी भाषा के माध्यम से निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। समाज भाषा विज्ञान के द्वारा एक ओर किसी भाषा के विकास क्रम का सामाजिक संदर्भ में अध्ययन किया जाता है तो दूसरी तरफ समाज भाषा विज्ञान के द्वारा प्रतिपादित निष्कर्षों के आधार पर किसी भाषा को व्यवहार में लाने वाले समाज की ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तथा शैक्षिक स्थिति का उचित मूल्यांकन हो पाता है। समाज द्वारा प्रयुक्त भाषा का गहन विश्लेषण करने पर उस समाज में जुडी बहुत सी उपयोगी जानकारिया मिलती हैं। सामाजिक भेद के अनुसार सम्पन्न और गरीब तथा कथित ऊॅंची और नीची जाति की भाषा में पर्याप्त अन्तर देखा जा सकता है। स्त्री पुरूष की भाषा मे पर्याप्त भेद देखने को मिलता है।

मनोभाषा वैज्ञानिक तत्व

भाषा व्यवहार में मन का केन्द्रीय महत्व है। प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार हम अपने व्यवहारों के सम्पादन के क्रम में शरीर, मन, और भाषा का सहयोग लेते हैं। गीता में मन की विभिन्न स्थितियों और उसकी क्षमता पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। भारतीय दर्षन के सन्दर्भ में भी ग्यारह इन्द्रियों में से मन का विस्तार से विवेचन हुआ है। जैन साधना में भी मन के विशुद्ध स्वरूप का महत्व स्वीकार किया गया है। आधुनिक काल में भाषा विज्ञान के अध्ययन के अन्तर्गत मनोभाषिकी नामक एक अपेक्षाकृत नवीन विषय पर शोध कार्य प्रारम्भ हुआ है। इसके अन्तर्गत भाषा के विभिन्न पक्षों का मनोविज्ञान के आधार पर अध्ययन विश्लेषण किया जाता है भाषिक व्यवस्था अनेक प्रकार के नियमों तथा चिन्हों में आबद्ध है, इन नियमों के पालन में यदि किंचित असावधानी रह जाती है तो भाषा में विकार आ जाता है । भाषा के उच्चारण, संवाद एवम् अर्थ ग्रहण में मन की आधारभूत भूमिका है। हिन्दी भाषा की वर्तनी की अशुद्धियों का समाजशास्त्रीय एवम् मनोवैज्ञानिक अध्ययन के आलोक में मनोभाषिकी के व्यक्तित्व, चरित्र, काम भावना, नारसीवाद, उदासी, स्वार्थ चेतना, मनोविकार, फोबिया, मानसिक दोष, उद्विगन्ता, एकाकीपन, विज्ञापन, मनोपक्षपात, मेधा, पूर्वाग्रह आदि प्रमुख तत्वों पर विस्तृत अध्ययन करना आवष्यक है।

शैक्षणिक भाषा वैज्ञानिक तत्व

भाषा विज्ञान और शिक्षा का गहरा संबंध है भाषा विज्ञान के अध्ययन में भाषा के सीखने से संबंधित सामाजिक व्यवहार का विभिन्न आयाम से व्यापक अध्ययन किया जाता है भाषा शिक्षण व्यवस्था और उसमें शिक्षक के व्यवहार का अध्ययन विश्लेषण कर शिक्षक क¨ अधिक प्रभावित तथा गुणात्मक बनाने तथा कम समय में अल्प परिश्रम से भाषा में दक्षता प्राप्त करने के संदर्भ में शिक्षक के लिए व्यावहारिक सिद्धांत प्रदान करना शैक्षणिक भाषा विज्ञान का क्षेत्र है शिक्षक के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पशुओं के संदर्भ में भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से काफी उपय¨गी अध्ययन हुआ है उन निष्कर्ष के आल¨क में भाषा शिक्षण क¨ नहीं संदेह अधिक उद्देश्य पारक बनाया जा सकता है प्रय¨ग भाषा विज्ञान के अंतर्गत विकसित उपकरण¨ं एवं प्रणालिय क¨ अपनाकर भाषा शिक्षण के औपचारिक पक्ष क¨ अपेक्षाकृत अधिक सूर्यास्त किया जा सकता है अन्य भाषा शिक्षण के संदर्भ में भी भाषा वैज्ञानिक अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर शिक्षण व्यवहार द्वारा अन्य भाषा या द्वितीय भाषा के शिक्षण क¨ अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है

शैक्षणिक भाषा विज्ञान का कार्य क्षेत्र यद्यपि शैक्षणिक भाषा विज्ञान नाम नया है परंतु शैक्षणिक भाषा विज्ञान के अंतर्गत जिस कार्य व्यापार का बोध होता है उसका प्रारंभ भाषा और शिक्षा में प्राचीन काल से ही हो चुका है भारत में इस विषय में बहुत कार्य हो चुका है भाषा के विभिन्न पक्षों का हो व्यवस्थित विश्लेषण करते हुए हमारे मनुष्यों ने जिन विलक्षण वैज्ञानिक सिद्धांतों की प्रस्तुति कर दी थी वह सिद्धांत आज भी अपनी मौलिक पहचान के बल पर शैक्षणिक भाषा विज्ञान को लाभान्वित कर रहे हैं शैक्षणिक भाषा विज्ञान के क्षेत्र में पश्चिमी विद्वानों ने भी अब महत्वपूर्ण कार्य किया है शैक्षणिक भाषा विज्ञान के अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों में कार्य किया जाता है

संरचनात्मक अध्ययन

1. ध्वनि विज्ञान

2. व्याकरण अध्ययन

3. अर्थ विज्ञान

4. लिपि

5. मातृभाषा शिक्षक

6. अन्य भाषा शिक्षण

7. मूल्यांकन

8. दृश्य श्रव्य प्रौद्योगिकी

निष्कर्ष

प्रस्तुत अध्ययन के अंतर्गत अशुद्धि की परिभाषा अनेक भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों के मत के आधार पर स्थिर की है तथा अशुद्धियां का संक्षिप्त वर्गीकृत परिचय प्रस्तुत किया गया है भाषा शिक्षण में अशुद्धि के विभिन्न आयामों का विस्तृत विवेचन किया गया है इस दिशा में अभी पर्याप्त कार्य नहीं हुआ है अतः इस अध्ययन की उपयोगिता को स्थापित किया गया है भाषा शिक्षण के क्षेत्र में शोध प्रबंध लघु शोक प्रबंध एवं आलोचनात्मक निबंध आदि रूपों में प्रस्तुत शोध अध्ययन को वर्गीकृत रूप में वर्णित किया जाता है

हिंदी भाषा में होने वाली अशुद्धियां का अध्ययन करते हुए यह स्थापित किया गया है कि मातृभाषा के प्रभाव के रूप में शेखावाटी बोली इस अंचल की हिंदी वर्तनी में अशुद्धियों की दृष्टि से विशेष प्रभाव डालती है राजस्थानी उपभाषा की शेखावाटी बोली के ध्वनि वैज्ञानिक एवं अन्य पशुओं का संक्षिप्त अध्ययन करते हुए इसका शेखावाटी की हिंदी वर्तनी पर पड़ने वाला प्रभाव विस्तार से विवेचित किया गया है अन्य भाषा के प्रभाव के अंतर्गत बांगडू बोली पंजाबी गुजराती ब्रजभाषा आदि के प्रभाव को विश्लेषित करते हुए विदेशी भाषा के रूप में अरबी फारसी तुर्की एवं अंग्रेजी भाषा के प्रभाव का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है हिंदी भाषा की वर्तनी अशुद्ध में ध्वनि वैज्ञानिक प्रभाव का विश्लेषण करने के अलावा यांत्रिक प्रभाव के अंतर्गत टंकण मुद्रण यंत्र एवं कंप्यूटर आदि उपकरणों के उपयोग संदर्भ में आने वाले भाषिक विकार की विवेचना प्रस्तुत अध्ययन में की गई है अशुद्ध कारक अन्य प्रभावों के अंतर्गत रेडियो टीवी एवं पिंरट मीडिया के प्रभाव का आकलन किया गया है

अशुद्धि लेखन के प्रेरक तत्वों की विवेचना करते हुए समाज भाषा वैज्ञानिक तत्वों का अध्ययन विश्लेषण किया है समाज भाषा वैज्ञानिक अध्ययन शेखावाटी के संदर्भ में करते हुए ध्वनि विज्ञान रूप विज्ञान वाक्य विज्ञान अर्थ विज्ञान शब्द विज्ञान आदि के आधार पर विश्लेषण किया गया है इस अध्ययन के अंतर्गत शेखावाटी के मुहावरों एवं लोकोक्तियां का विशेष विश्लेषण किया गया है मनोभाषा वैज्ञानिक तत्वों के आधार पर होने वाली अशुद्धियों पर विस्तृत विवेचना की गई है शैक्षिक भाषा वैज्ञानिक तत्वों के अंतर्गत अशुद्ध कारकों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है

मानो भाषा विज्ञान को परिभाषित करते हुए मानो भाषा विज्ञान के कार्य क्षेत्र का विस्तार से विवेचन किया गया है अशुद्धियों के कारक के रूप में मनोवैज्ञानिक तत्वों की भूमिका का विश्लेषण किया गया है

समाज भाषा विज्ञान की परिभाषा देते हुए इसके कार्य क्षेत्र का विश्लेषण किया गया है इसके अंतर्गत हिंदी शिक्षण के संदर्भ में समाज मनोविज्ञान के प्रभाव का उदाहरण विवेचन किया गया है अशुद्ध लेखन में समाज भाषा विज्ञान के योगदान का भी विश्लेषण किया गया है

शैक्षणिक भाषा विज्ञान की परिभाषा तथा कार्य क्षेत्र का विस्तृत परिचय दिया गया है हिंदी भाषा शिक्षण के संदर्भ में शैक्षणिक भाषा विज्ञान के प्रभाव की समीक्षा की गई है अशुद्ध लेखन में शैक्षणिक भाषा विज्ञान के प्रभाव की विवेचना की गई है

निष्कर्ष रूपेण कहा जा सकता है कि हिंदी भाषा की अशुद्धियों में मातृभाषा अन्य भाषा का प्रभाव समाज भाषा वैज्ञानिक प्रभाव मानो भाषा विज्ञान तत्व एवं शैक्षिक भाषा वैज्ञानिक तत्व विशेष प्रभावित रहे हैं भाषा शिक्षण को प्रभावी एवं गुणात्मक दृष्टि से शुद्ध मानक स्वरूप की तरफ अग्रसर करने के लिए शैक्षणिक भाषा वैज्ञानिक सिद्धांतों के आलोक में विशेष प्रयास करके भाषा के स्वरूप को स्वस्थ बनाए रखने की आवश्यकता है