प्रस्तावना

विश्व में आज प्रत्येक क्षेत्र में भागदौड़ तनाव, चिंताओं, मानसिक असंतुलन और स्पर्धात्मक वातावरण होने से मनुष्य का जीवन इसी भागदौड़ के चारों तरफ घूम रहा है | परिणाम स्वरुप वह तनावग्रस्त हो रोगी बनता जा रहा है | वर्तमान मशीनी क्रांति के परिपेक्ष्य में वर्षों पूर्व मनोवैज्ञानिकों ने यह भविष्यवाणी की थी कि आगामी वर्षों में मानवता को बहुविध मानसिक और शारीरिक समस्याओं का सामना करना होगा | हम देखते हैं उनकी भविष्यवाणी वर्तमान में सच साबित हो रही है |

भारतीय सेना के परिवेश में सभ्य, अति अनुशासित, सामाजिक व राष्ट्र प्रेमी मानवीय संवेदना से ओतप्रोत वीर, परम वीर योद्धा भारतीय सेना को सुशोभित करते रहे हैं। भारतीय सेना के इन आदर्श वीर योद्धाओं ने समय-समय पर अपने जीवन का बलिदान देकर अपने देश की रक्षा की है। इतने कठिन जीवनचर्या तथा भारत देश कि विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों अति दुर्गम स्थानों पर अपनी सेवा देते रहे हैं। जिस कारण आज प्रत्येक भारतवासी सेना पर गर्व करता है। कठिन सेवाओं में रहते हुए एवं परिवार समाज से दूर रहने के कारण उनमें भी विभिन्न मानसिक क्षोभ उत्पन्न होते हैं| फलस्वरुप उनमें चिंता, कुंठा एवं भावनात्मक अस्थिरता मानसिक दबाव बढ़ जाता है और उनका जीवन असंतुलन होने लगता है। इससे सैनिकों में हताशा, निराशा, शारीरिक एवं मानसिक दबाव बढ़ जाता है जिससे वे अस्वस्थ हो जाते हैं।

इन समस्याओं के निवारण हेतु योग की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया जा सकता है। यौगिक दिनचर्या को अपना कर उपरोक्त समस्याओं से बचा जा सकता है।

कुंठा का अर्थ: मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कुण्ठा को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है -

सरल भाषा में कुंठा का अर्थ हताशा और निराशा है।

कुंठा की परिभाषा:

कुंठा को परिभाषित इस प्रकार किया जा सकता है।

1. साइमन्डस के अनुसार - ‘‘जब कोई आवश्यकता उत्पन्न होती है और फिर उसकी पूर्ति किसी बाधा अथवा रूकावट के कारण नहीं हो पाती, तब इसका परिणाम कुंठा होता है।’’

2. डी.बी. क्लाइन के अनुसार -’’लक्ष्य निर्देशित प्रयास की पूर्ति में बाधा ही कुंठा है।

3. जेम्स जी कालमेन ने कुंठा की एक सरल परिभाषा इन शब्दों में की हैकुंठा किसी आवश्यकता अथवा इच्छा की पूर्ति का होना।’’

योग निद्रा

योग निद्रा का इतिहास: योग निद्रा का अभ्यास योगियों, ऋषिमुनियों द्वारा चिरकाल से किया जाता रहा है। वर्तमान में योग निद्रा विधि, अध्यात्म योगी स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज ने सरल रूप से प्रस्तुत किया है। यह पद्धति योग निद्रा समस्त मानव जाति के लिए एक अमूल्य अभ्यास है। यह संपूर्ण व्यक्तित्व विकास एवं भाव परिवर्तन तथा शिथिलीकरण की कला है। योग निद्रा एक प्रभावशाली विधि है जिसमें हम चेतन स्वरूप से शिथिल होना सीखते हैं। योग निद्रा में नींद को विश्रांति नहीं समझा जाता। पूर्ण विश्रांति के लिए हमको सजग रहना चाहिए यही योग निद्रा है। क्रियात्मक निद्रा की अवस्था, योग निद्रा पूर्ण शारीरिक मानसिक और भावनात्मक विश्रांति लाने का एक व्यवस्थित तरीका है। योग निद्रा शब्द संस्कृत के दो शब्दों की उत्पत्ति से है। योग का अर्थ है- मिलना या एकाग्र सत्ता और निंद्रा का अर्थ है- नींद(गहन विश्राम)| योग निद्रा के अभ्यास के दौरान ऐसा लगता है कि व्यक्ति सोया हुआ है परंतु चेतना सजगता के अधिक गहरे स्तर पर कार्य कर रही होती है। इस कारण से योग निद्रा प्रायः अतींद्रिय निंद्रा या आंतरिक सजगता के साथ गहरी विश्रांति समझी जाती है। निंद्रा और जागरण की इस दहलीज पर अवचेतन और अचेतन आयामों के साथ संपर्क स्वतः घटित होता है। महर्षि 'पतंजलि जी' के 'राजयोग' में एक अंग का वर्णन है जिसे प्रत्याहार कहते हैं। जिसमें मन और मानसिक सजगता का इंद्रियों से संबंध विच्छेद कर दिया जाता है। योग निद्रा प्रत्याहार का एक अभ्यास है। जो गहन एकाग्रता एवं समाधि की उत्तर अवस्था तक जाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

योग के विभिन्न घटकों का मानवीय व्यवहार के विभिन्न पक्षों पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित कई शोध कार्य हो चुके हैं। उनमें से कुछ प्रमुख शोध कार्यों का विवेचन हम आगे कर रहे हैं।

जोशी, गौड़ एवं माथुर (1987) ने भावतीत ध्यान के अभ्यास से विद्यार्थियों की कुंठाओ की प्रतिक्रियाओं में मूल्यों में तथा उनके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र व स्वनियंत्रित तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली पर सार्थक एवं सकारात्मक प्रभाव देखा।

गौड़ (1989) ने अपने शोध के अध्ययन में भावातीत ध्यान करने वाले कैदियो के मस्तिष्क के अग्र-भाग एवं पश्च-भाग में अल्फा विद्युत तरंगों की विपुलता तथा उनकी हृदय की धड़कन की दर एवं श्वसन दर में कमी देखी | उन्होंने कैदियों की कुंठा एवं तनाव में भी सार्थक कमी देखी | उनके शोध अध्ययन के अनुसार इन बंदियों के 2 माह के निरंतर अभ्यास से उनके अहम और पराहम, बल एवं स्व-प्रत्यय निर्माण क्षमता में सकारात्मक रूप से सुदृढ़ता आई

गौड़ एवं दायमा (2006) ने खिलाड़ियों की चिंताओं कुंठाओं के प्रति प्रतिक्रिया में प्रेक्षा ध्यान का सकारात्मक प्रभाव देखा।

कुमार (2008) ने 80 विद्यार्थियों पर जिनमें छात्र और छात्राएं थी उनके तनाव और दुश्चिंता पर योग निद्रा का प्रभाव देखा | जिसमें उन्होंने पाया कि योग निद्रा से महाविद्दयालय जाने वाले छात्र और छात्राओं के तनाव में कमी आई है और इनकी दुश्चिंता में भी सुधार हुआ है |

ली., और अन्य (2012) ने अपने विभिन्न शोधक्रियाओं में यह पाया कि योग से कुण्ठा एवं तनाव का अच्छा उपचार हो सकता है, और इसके साथ उन्होंने यह भी माना है कि इस विषय पर एक बड़ी सुपरिभाषित, नियंत्रित एवं लंबी शोध करने के पश्चात् ही योग को एक चिकित्सकीय उपचार कहा जाना चाहिए|

शोध के उद्देश्य

इस शोध कार्य में निम्न मुख्य उद्देश्य हैं

1.  सैनिकों की कुंठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करना |

2.  कुंठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं पर योग निद्रा का प्रभाव देखना।

3.  वैज्ञानिक एवं सांख्यिकी विश्लेषण से इन प्रभावों की व्याख्या करना।

परिकल्पनाएं

इस शोध के लिए निम्न परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया है, जो इस प्रकार हैं-

1. योग निद्रा के 2 माह के अभ्यास के पश्चात प्रायोगिक समूह के प्रयोज्यों में नियंत्रित समूह (दैनिक चर्या वाले सैनिकों) के प्रयोज्यों की अपेक्षा कुंठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं के स्तर में सार्थक सुधार होने की संभावना है।

 2. योग निद्रा के 2 माह के अभ्यास के पश्चात (प्रायोगिक) सैनिकों की कुंठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं के स्तर में पूर्व परीक्षण की तुलना में पश्च परीक्षण में सार्थक कमी होने की संभावना है ।

3. नियंत्रित समूह (दैनिक चर्या वाले सैनिकों) जिनको योग निद्रा का कोई अभ्यास नहीं कराया जाएगा अतः 2 माह के पश्चात उनकी कुंठाओ के प्रति प्रतिक्रियाओं में सार्थक सुधार होने की संभावना कम है |

अनुसंधान अभिकल्प

इस शोध कार्य के लिए क्षेत्रीय प्रयोगात्मक (field experimental) अनुसंधान विधि तंत्र का उपयोग किया गया | इस शोध कार्य में दो समूहों का निर्माण किया गया तथा- प्रायोगिक समूह (योग निद्रा करने वाले सैनिक) नियंत्रित समूह (दैनिक चर्या करने वाले सैनिक) प्रत्येक समूह 60 सैनिको का होगा। जैसाकि सारणी सं.-1 में दर्शाया गया है |

तालिका 1: शोध अभिकल्प का विवरण


प्रतिदर्श

प्रयोज्यों का चुनाव (Selection of Subjects):- इस शोध कार्य के लिए उद्देश्यात्मक प्रतिदर्श का चयन किया गया | इसमें 120 भारतीयों सैनिकों का चयन किया गया , जिनको दो समूहों में विभक्त किया गया | प्रत्येक समूह मे 60 - 60 प्रयोज्य थे । प्रयोज्यों की आयु (25 -30) वर्ष की थी, तथा शैक्षिणिक स्तर इंटरमीडिएट स्तर का था | चुंकि सभी सैनिक एक वर्ग के थे अत: उनका आर्थिक स्तर समान था | सभी सैनिक पुरुष वर्ग के थे (सारिणी संख्या -2 )|


परीक्षण एवं उपकरण

प्रस्तुत शोध कार्य के लिए निम्न मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उपयोग किया गया |

1. कुंठा के प्रति प्रतिक्रिया मापनी - द्वारा बी.एम. दीक्षित एवं डी.एन. श्रीवास्तव (2018)

2. कुंठा के प्रति प्रतिक्रिया मापनी की निर्देशिका - द्वारा बी.एम. दीक्षित एवं डी.एन. श्रीवास्तव (2018)

प्रक्रिया

इस कार्य के लिए उद्देश्यात्मक 120 सैनिक प्रयोज्यों के न्यादर्श का चुनाव किया गया | जिनको दो समूहों में विभक्त किया गया यथा प्रायोगिक समूह एवं नियंत्रित समूह | प्रत्येक समूह में 60 प्रयोज्य थे | प्रायोगिक समूह के प्रयोज्यों को योग निद्रा का अभ्यास प्रतिदिन 30 मिनट 2 माह तक कराया गया | नियंत्रित समूह को किसी भी प्रकार की कोई यौगिक क्रिया नहीं कराई गई अपितु यह अपनी दैनिक चर्या स्वाभाविक क्रम से करते रहें | दोनों समूहों के प्रयोज्यों को दिए जाने वाले उपचारों से पहले मनोवैज्ञानिक परीक्षण से उनकी कुंठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं का मापन किया गया | प्रयोग की यह स्थिति पूर्व-परीक्षण अवस्था थी । तत्पश्चात प्रायोगिक समूह को 2 माह तक योग निद्रा का अभ्यास कराया गया जबकि नियंत्रित समूहों के प्रयोज्य अपनी नियमित दिनचर्या में प्रवृत्त रहें | दो माह पश्चात् सभी प्रयोज्यों का पुन:परीक्षण किया गया, यह परीक्षण पश्च- परीक्षण था |

परिणाम एवं व्याख्या

परीक्षणों से प्राप्त आकड़ों का विश्लेषण इस प्रकार किया गया -

1. अंतर्समुह तुलना- इसमें दोनों समूह के प्रयोज्यों की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं के स्तरों की तुलना प्रयोग पूर्व स्थिति तथा पश्च प्रयोग स्थिति में करने के लिए ‘t’ (द्विपक्षीय) ‘two tailed’ परीक्षण का उपयोग किया गया | जिसकी सार्थक कसौटी α= या p<0.005 की रखी गई|

(i).पूर्व प्रायोगिक स्थिति

प्रायोगिक समूह एवं नियंत्रित समूह के सैनिकों के मध्यमानों (M), मानक विचलनों (SD) एवं ‘t’ मूल्यों को सारणी सं 3. में प्रस्तुत किया गया है | प्रयोग पूर्व अवस्था में दोनों समूहों के सैनिकों की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं की अभिव्यक्ति समान है अर्थात् कुण्ठाओं के चारों प्रति –प्रतिक्रिया यथा –आक्रामकता ,विसर्जन, स्थिरीकरण, प्रतिगमन की क्रियाएं समान है परन्तु ये सभी सामान्य एवं औसत स्तर से अधिक है|

तालिका 2: निराशा के प्रति प्रतिक्रियाएँ: पूर्व-प्रायोगिक चरण में प्रायोगिक और नियंत्रण समूह के माध्य, मानक विचलन (SD) और 't' मान

ii. दो माह योग निद्रा के अभ्यास का प्रभाव सामान्य क्रियाओं की तुलना में (पश्च –प्रायोगिक स्थिति)

प्रायोगिक समूहों के प्रयोज्यों में दो माह के योग निद्रा के अभ्यास के पश्चात् होने वाले परिवर्तनों तथा नियंत्रित समूह के प्रयोज्यों में दो माह की सामान्य गतिविधियों से होने वाले परिवर्तनों की तुलना की गई | दोनों समूहों के प्रयोज्यों की कुण्ठाओं की प्रतिक्रियाओं में सार्थक भिन्नता पाई गई अर्थात् प्रयोग –पूर्व स्थिति में इन प्रयोज्यों की कुण्ठाओं के प्रति –प्रतिक्रियाओं के मध्यमानों में कोई सार्थक अंतर नहीं था | परन्तु इस स्थिति पर (दो माह पश्चात् ) कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं की चारों प्रतिक्रियाएं यथा – आक्रामकता, प्रतिगमन, स्थिरीकरण तथा अधिकार –विसर्जन के मध्यमानों में सार्थक कमी देखी गई | अर्थात दो माह के योग निद्रा के अभ्यास से नियंत्रित समूह की तुलना में प्रायोगिक समूह के प्रयोज्यों की आक्रामकता में p <0.005, प्रतिगमन में p<0.005 ,स्थिरीकरण में p<0.05 तथा अधिकार विसर्जन में p<0.005 सार्थक कमी पाई गयी है |

तालिका 3: निराशा के प्रति प्रतिक्रियाएँ प्रायोगिक समूह नियंत्रण समूह प्रायोगिक और नियंत्रण समूह के माध्य, मानक विचलन (SD) और 't' मान, प्रयोगोत्तर चरण में


2. अन्तःसमूह की तुलना

इस तुलना के अंतर्गत प्रत्येक समूह के प्रयोज्यों की दो माह पश्चात आपसी तुलना की गई है यथा पूर्व एवं पश्च प्रायोगिक स्थिति में तुलना की गई है | अन्तः समूह की तुलना के लिए सांख्यकीय सैंडलर ‘A’ परीक्षण का प्रयोग किया गया | जिसकी सार्थक कसौटी α= या p<0.005 की रखी गई |

(i) प्रयोग पूर्व स्थिति पर कुण्ठा

प्रायोगिक समूह एवं नियंत्रित समूह के सैनिकों की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं की पूर्व स्थिति सामान्य स्तर से अधिक स्तर तक की है तथा इनकी कुल कुण्ठायें सामान्य स्तर से अधिक उच्च स्तर की है |

(ii) दो माह के योग निद्रा का प्रभाव (पूर्व –प्रायोगिक स्तर एवं पश्च प्रायोगिक स्तर)

प्रायोगिक समूह के प्रायोज्यों की पूर्व प्रायोगिक स्थिति की अपेक्षा पश्च प्रायोगिक स्थति में कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं में सकारात्मक कमी हुई है अर्थात् इन सैनिकों के चारों प्रकार की प्रतिक्रियाओं के मध्यमानों में सार्थक कमी हुई है | यथा आक्रामक व्यवहार में p<.02, विसर्जनात्मक क्रियाओं में p<.02, स्थिरीकरण प्रतिक्रियाओं में p<.01, तथा प्रतिगमनात्मक क्रियाओं में p<.02, सार्थक स्तर की कमी हुई है | इनकी कुल कुण्ठाओं में भी p<.02 की कमी हुई है इससे यह स्पष्ट होता है की पूर्व स्थिति की अपेक्षा दो माह की योगिक निद्रा के अभ्यास के पश्चात् ये सैनिक कम आक्रामक, कम लड़ने –झगड़ने वाले हुए है तथा इनमे अलग –अलग रहने, कार्य न करने की तथा किसी भी कार्य से पिछे हटने की भावना में भी कमी हुई है |

तालिका 4: निराशा के प्रति प्रतिक्रियाएँ प्रायोगिक समूह के पूर्व और उत्तर-प्रायोगिक चरणों में माध्य और सैंडलर्स के 'A' मान


नियंत्रित समूह जिनको योग निद्रा का अभ्यास नहीं कराया गया उनके पूर्व परीक्षण व दो माह पश्चात् पश्च परीक्षण में सैनिकों की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं में कोई सार्थक भिन्नता नहीं है| अर्थात् दोनों स्थितियों में कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं की मात्रा समान है | उक्त परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि सामान्य दैनिक क्रियाओं का कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है |

तालिका 5: निराशा के प्रति प्रतिक्रियाएँ प्रयोग-पूर्व और प्रयोग-पश्चात चरणों में नियंत्रण समूह के माध्य और सैंडलर के 'A' मान

परिणाम एवं निष्कर्ष

कुण्ठा एवं ध्यान को लेकर कुछ कार्य हुए है | भावातीत ध्यान एवं कुण्ठाओं को लेकर भी पर्याप्त शोध कार्य किये गए है | जोशी ,गौड़ एवं माथुर (1987) के शोधकार्य के परिणाम इस शोधकार्य के परिणाम से समतुल्य है | इन्होंने भावातीत ध्यान के नियमित अभ्यास से अभियार्थियों के कुण्ठाओं में सार्थक कमी देखी |

गौड़ (1994) ने भावातीत ध्यान करने वाले कैदियों में कुण्ठाओं के प्रति तीनों प्रकार की प्रतिक्रियाओं में सार्थक कमी देखी ये प्रतिक्रियाएं है बाह्य दंडात्मक, अन्तः दंडात्मक एवं दंड के भय से युक्त | जबकि इस शोध कार्य में भी चारों प्रकार की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं में सार्थक कमी हुई है | जोशी, गौड़ एवं माथुर (1987) एवं गौड़ (1994) के परिणाम भी इस शोध कार्य के परिणामों की पुष्टि करते है | कुमार (2008) ने 80 विद्यार्थियों पर जिनमें छात्र और छात्राएं थी उनके तनाव और दुश्चिंता पर योग निद्रा का प्रभाव देखा | और उनके तनाव एवं दुश्चिंता में कमी देखी |

गौड़ एवं दायमा (2006) ने अपने शोध कार्य में प्रेक्षा ध्यान करने वाले खिलाडियों में कुण्ठाओं के प्रति चारों प्रकार की प्रतिक्रियाओं में सार्थक कमी देखी | गौड़ एवं शर्मा (2007) ने भी प्रेक्षाध्यान करने वाले कैदियों में प्रेक्षाध्यान के अभ्यास से कुण्ठा में सार्थक कमी देखी | उनके परिणाम भी इस शोध कार्य के अनुरूप है और इन परिणामों को बल प्रदान करते है | यह परिणाम भी इस शोध कार्य के परिणामों की संपुष्टि करते है |

योग निद्रा एक शिथिलीकरण की प्रक्रिया है जिसमे अभ्यासकर्ता को मन को एकाग्र नहीं करना पड़ता ;बल्कि मन को बारी –बारी से विभिन्न बिन्दुओं पर ले जाना होता है और उनका अनुभव करना होता है | जिससे अभ्यासकर्ता मानसिक और शारीरिक रूप से हल्का व शांत अनुभव करता है | इस प्रकार योग निद्रा भावनात्मक संवेदनशीलता की प्रतिक्रियाओं एवं उन्हें उभारने वाली स्वतंत्र क्रियाओं पर नियंत्रित रखना सिखाती है | यह क्रान्तिकारी प्रभाव व्यक्ति के जीवन को अति सजगता की स्थिति में लाकर भावनात्मक क्रियाओं के द्वारा उत्तेजना पर नियंत्रित रखना सिखलाती है | शोधकर्ता ने यह पाया है कि योग निद्रा के अभ्यास से सैनिकों की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं में उच्च सार्थक स्तर की कमी हुई है |

दोनों समूहों के प्रयोज्यों (सैनिकों) की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं की स्थिति प्रयोग पूर्व अवस्था में समान थी परन्तु मानक स्तर से अधिक मात्रा में थी |

दो माह के योग निद्रा के अभ्यास के पश्चात् योग निद्रा करने वाले सैनिकों की कुल कुण्ठाओं में योग निद्रा न करने वाले सैनिकों की अपेक्षा उच्च सार्थक स्तर p< 0.05 की कमी हुई है जो यह बताती है कि योग निद्रा कुण्ठाओं में कमी लाने में बहुत ही प्रभावी विधि है | योग निद्रा का अभ्यास करने वाले सैनिकों में प्रयोग पूर्व स्थिति से 2 माह बाद कुण्ठाओं की चारों प्रकार की प्रति क्रियाओं एवं कुल कुण्ठा में सार्थक कमी हुई |

योग निद्रा न करने वाले सैनिकों के समूह (नियंत्रित समूह ) की कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं में सार्थक परिवर्तन नहीं देखा गया है |

अत: इस शोध में शोधकर्ता ने पाया की भारतीय सैनिकों को प्रतिदिन 2 माह तक योग निद्रा का अभ्यास कराने से उनकी कुण्ठाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं में सार्थक कमी व् सुधार देखा गया | इसलिए योग निद्रा को योग का एक विशेष अंग माना है जिसका अभ्यास करने से मन व् शरीर स्वस्थ बनते है |