प्रस्तावना

वर्तमान में समूचे विश्व के लोग अत्याधिक तनावग्रस्त व मानसिक असंतुलित जीवन जी रहे हैं| मानसिक शांति उनसे कोसों दूर है | आर्थिक, शारीरिक एवं पारिवारिक समस्याएं दुःख, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष तथा भय आदि उन्हें निरंतर बेचैन बनाए रखते हैं। अर्वाचीन सभ्यता ने सुख सुविधाओं एवं मनोरंजन के अनेक संसाधन मनुष्य के सेवा में उपलब्ध किए हैं, परंतु खेद है कि मनुष्य इन सुख सुविधाओं का उपभोग करने में अपने को असमर्थ महसूस कर रहा है। उनका मन अशान्त, बेचैन, बीमार तथा तनाव ग्रस्त है। इसी कारण जीवन के प्रति एक ठोस स्वास्थ्य तथा संतुलित दृष्टिकोण का अभाव सा दिखता है।

भारतीय सेना के परिवेश में सभ्य, अति अनुशासित, सामाजिक व राष्ट्र प्रेमी मानवीय संवेदना से ओतप्रोत वीर, परम वीर योद्धा भारतीय सेना को सुशोभित करते आ रहे हैं। भारतीय सेना के इन आदर्श वीर योद्धाओं ने समय-समय पर अपने जीवन का बलिदान देकर अपने देश की रक्षा की है। इतने कठिन जीवनचर्या तथा भारत देश कि विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों व अति दुर्गम स्थानों पर अपनी सेवा देते आ रहे हैं। जिस कारण आज प्रत्येक भारतवासी सेना पर गर्व करता है। कठिन सेवाओं में रहते हुए एवं परिवार व समाज से दूर रहने के कारण उनमें भी विभिन्न मानसिक क्षोभ उत्पन्न होते हैं| फलस्वरुप उनमें चिंता, कुंठा एवं भावनात्मक अस्थिरता व मानसिक दबाव बढ़ जाता है और उनका जीवन असंतुलन होने लगता है। इससे सैनिकों में हताशा, निराशा,व शारीरिक एवं मानसिक दबाव बढ़ जाता है जिससे वे अस्वस्थ हो जाते हैं।

इन समस्याओं के निवारण हेतु योग की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया जा सकता है। योग निद्रा को अपना कर उपरोक्त समस्याओं से बचा जा सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य

मानसिक स्वास्थ्य का तात्पर्य पहले मानसिक बीमारी की अनुपस्थिति समझा जाता था किन्तु आधुनिक नैदानिक मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक स्वास्थ्य को समायोजनशीलता की क्षमता की मुख्य कसौटी मान कर इसे परिभाषित किया है।

मानसिक स्वास्थ्य संतुलित व्यक्तित्व की क्रियाशीलता है, जिसका उद्देश्य मनुष्य को अधिक से अधिक संतोष, सुख और शांति प्रदान करता है।

योग की अवधारणा

महर्षि वेदव्यास योग शब्द का अर्थ 'समाधि' के रूप में करते हैं। व्याकरण शास्त्र में 'धातु से भाव ' घण् ' में प्रत्यय करने पर योग शब्द उत्पन्न होता है। महर्षि पाणिनि के धातुपाठ के (युज समाधों), (युजीर योगे) तथा (युज संयमने) अर्थ में आती है। संक्षेप में हम कह सकते है की संयमपूर्वक साधना करते हुए आत्मा का परमात्मा के साथ योग करके (जोड़कर) समाधि का आनंद लेना योग है।

योगनिद्रा

योगनिद्रा का इतिहास: योगियों,ऋषिमुनियों द्वारा चिर काल से किया जाता रहा है। वर्तमान में योगनिद्रा विधि, अध्यात्म योगी स्वामी सत्यानंद सरस्वती महाराज ने सरल रूप से प्रस्तुत किया है। यह पद्धति योगनिद्रा समस्त मानव जाति के लिए एक अमूल्य अभ्यास है। यह संपूर्ण व्यक्तित्व विकास एवं भाव परिवर्तन तथा शिथिलीकरण की कला है। योगनिद्रा एक प्रभावशाली विधि है जिसमें हम चेतन स्वरूप से शिथिल होना सीखते हैं। योगनिद्रा में नींद को विश्रांति नहीं समझा जाता। पूर्ण विश्रांति के लिए हमको सजग रहना चाहिए यही योगनिद्रा है। क्रियात्मक निद्रा की अवस्था, योगनिद्रा पूर्ण शारीरिक मानसिक और भावनात्मक विश्रांति लाने का एक व्यवस्थित तरीका है। योगनिद्रा शब्द संस्कृत के दो शब्दों की उत्पत्ति से है। योग का अर्थ है- मिलना या एकाग्र सत्ता और निंद्रा का अर्थ है- नींद (गहन विश्राम) | योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान ऐसा लगता है कि व्यक्ति सोया हुआ है परंतु चेतना सजगता के अधिक गहरे स्तर पर कार्य कर रही होती है। इस कारण से योगनिद्रा प्रायः अतींद्रिय निंद्रा या आंतरिक सजगता के साथ गहरी विश्रांति समझी जाती है। निंद्रा और जागरण की इस दहलीज पर अवचेतन और अचेतन आयामों के साथ संपर्क स्वतः घटित होता है। महर्षि 'पतंजलि जी' के 'राजयोग' में एक अंग का वर्णन है जिसे प्रत्याहार कहते हैं। जिसमें मन और मानसिक सजगता का इंद्रियों से संबंध विच्छेद कर दिया जाता है। योगनिद्रा प्रत्याहार का एक अभ्यास है। जो गहन एकाग्रता एवं समाधि की उत्तर अवस्था तक जाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

योग के विभिन्न घटकों का मानवीय व्यवहार के विभिन्न पक्षों पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित कई शोध कार्य हो चुके हैं। उनमें से कुछ प्रमुख शोध कार्यों का विवेचन हम आगे कर रहे हैं:- गौड़, सैनी एवं शर्मा (2001) ने कैदियों के मनोदैहिक स्वास्थ्य व्यक्तित्व कारकों में प्रेक्षा-ध्यान के अभ्यास से सकारात्मक प्रगति देखी |

भारद्वाज और सिंह (2006) ने अपने शोध में यह पाया गया कि योगाभ्यास से विद्यार्थियों के आत्मविश्वास में सकारात्मक रूप से वृद्धि होती है, साथ ही मानसिक स्वास्थ्य में सकारात्मक रूप से सुधार होता है

बेनाविडेस और काबल्लेरो (2009) ने टेक्सेस विश्वविद्यालय में किये शोध अध्ययन में पाया कि अष्टांग योग से बच्चों के भार में सार्थक कमी आई तथा मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि हुई |

गौड़ एवं रंजना (2009) ने महाविद्यालयीन छात्राओं में मन:स्तापी समस्याओं, मानसिक स्वास्थ्य और समायोजन पर यौगिक क्रियाओं और प्रेक्षा ध्यान का सकारात्मक प्रभाव देखा ।

कुमार और अधिकारी (2016) ने भारतीय सैनिकों के तनाव पर योगाभ्यास का प्रभाव देखा जिसमे उन्होंने आसन, प्राणायाम, योगनिद्रा, द्वारा सैनिकों के तनाव में सकारात्मक कमी देखी |

उद्देश्य

इस शोध कार्य में निम्न मुख्य उद्देश्य हैं

1. सैनिकों के मानसिक स्वास्थ्य का अध्ययन करना |

२. मानसिक स्वास्थ्य पर योगनिद्रा का प्रभाव देखना।

३. वैज्ञानिक एवं सांख्यिकी विश्लेषण से इन प्रभावों की व्याख्या करना।

परिकल्पनाएं

1. योगनिद्रा के 2 माह के अभ्यास के पश्चात प्रायोगिक समूह के प्रयोज्यों में नियंत्रित समूह (दैनिक चर्या वाले सैनिकों) के प्रयोज्यों की अपेक्षा मानसिक स्वास्थ्य में सार्थक वृद्धि होने की संभावना है

2. योगनिद्रा के 2 माह के अभ्यास के पश्चात सैनिकों के मानसिक स्वास्थ्य में पूर्व-परीक्षण की तुलना में पश्च-परीक्षण में सार्थक वृद्धि होने की संभावना है

3. नियंत्रित समूह (दैनिक चर्या वाले सैनिकों) जिनको योगनिद्रा का कोई अभ्यास नहीं कराया जाएगा, अतः 2 माह के पश्चात उनके मानसिक स्वास्थ्य सार्थक वृद्धि होने की कम संभावना है|

अनुसंधान अभिकल्प

इस शोध कार्य में दो समूहों का निर्माण किया गया यथा- प्रायोगिक समूह (योगनिद्रा करने वाले सैनिक) नियंत्रित समूह (दैनिक चर्या करने वाले सैनिक) प्रत्येक समूह 60 सैनिको का है। जैसाकि सारणी सं.-1 में दर्शाया गया है -

तालिका 1: शोध अभिकल्प का विवरण

प्रतिदर्श

प्रयोज्यों का चुनाव: इस शोध कार्य के लिए उद्देश्यानुसार (purposive) 120 सैनिकों का चयन किया गया। जिनको दो समूहों में विभक्त किया गया | प्रत्येक समूह मे 60 - 60 प्रयोज्य है। सभी प्रयोज्यों का दो स्तरों पर परीक्षण किया गया। प्रयोज्यों की आयु (25-35) वर्ष, लिंग- पुरुष वर्ग, शैक्षणिक स्तर, आर्थिक स्तर जहां तक सम्भव हो, समान रखे गए | जैसाकि सारणी सं. 2 में दर्शाया गया है-

परीक्षण एवं उपकरण

1. मानसिक स्वास्थ्य जांच सूची - द्वारा डॉ प्रमोद कुमार (2018)

2. मानसिक स्वास्थ्य जांच सूची की निर्देशिका - द्वारा डॉ प्रमोद कुमार (2018)

मानसिक स्वास्थ्य जांच सूची: यह जांच सूची डॉ प्रमोद कुमार के द्वारा निर्मित है | इस मानकीकृत जांच में स्वास्थ्य के कुल 11 लक्षण दिए गए हैं, जिनमें से 6 लक्षण मानसिक 5 लक्षण शारीरिक है यह परीक्षण उच्चस्तर पर विश्वसनीय और वैद्य हैं |

प्रक्रिया

इस कार्य के लिए उद्देश्यानुसार 120 सैनिक प्रयोज्यों के न्यादर्श का चुनाव किया गया | जिनको दो समूहों में विभक्त किया गया यथा प्रायोगिक समूह एवं नियंत्रित समूह | प्रत्येक समूह में 60 प्रयोज्य है। प्रायोगिक समूह के प्रयोज्यों को योगनिद्रा का अभ्यास प्रतिदिन 2 माह तक कराया गया | नियंत्रित समूह को किसी भी प्रकार की कोई योगनिद्रा नहीं कराई गयी अपितु यह अपनी दैनिक चर्या स्वाभाविक क्रम से करते रहें | दोनों समूहों के प्रयोज्यों को दिए जाने वाले विभिन्न उपचारों से पहले मनोवैज्ञानिक परीक्षण से उनके मानसिक स्वास्थ्य का मापन किया गया। प्रयोग की यह स्थिति पूर्व-परीक्षण अवस्था है | तत्पश्चात प्रायोगिक समूह को 2 माह तक योग निद्रा का अभ्यास कराया गया जबकि नियंत्रित समूह के प्रयोज्य अपनी नियमित दिनचर्या में प्रवृत्त रहें | यह परीक्षण पश्च-परीक्षण हैजैसा कि सारणी सं.1 में बताया गया है |

अंत: समूह तुलना

1. मानसिक स्वास्थ्य पर योग निद्रा का प्रभाव

i.पूर्व-प्रायोगिक स्तर एवं पश्च- प्रायोगिक स्तर की तुलना:- सारिणी -3 में प्रायोगिक समूह (योग निद्रा) के प्रयोज्यों के पूर्व-प्रायोगिक स्तर के मानसिक स्वास्थ्य की तुलना पश्च-प्रायोगिक स्तर (दो माह) पश्चात् से की गई है | प्रयोज्यों की दोनों स्थितियों के मध्यमानों एवं सैण्ड़लर्स ‘A’ का उल्लेख इसमें किया गया है|

तालिका 2: दो महीने के योग निद्रा अभ्यास के बाद प्रायोगिक समूह (N=60) का मानसिक स्वास्थ्य

उपरोक्त सारिणी से स्पष्ट होता है कि योग निद्रा के दो माह के अभ्यास से इस समूह के प्रयोज्यों में मानसिक स्वास्थ्य के सभी कारकों में सकारात्मक व् सार्थक (.0005) के स्तर पर सुधार हुआ है | इन सभी कारकों के मध्यमानों में पूर्व-प्रायोगिक स्तर की अपेक्षा पश्च-प्रायोगिक स्तर पर कमी देखी गई है | मानसिक स्वास्थ्य कारकों यथा चिंता, बैचेनी, शक्तिहीनता, अकेलापन, निराशा, क्रोध, सिरदर्द, थकान, निद्रा-व्यतिक्रम, अपच एवं अम्लता में पूर्व-प्रायोगिक स्तर के मध्यमानों की अपेक्षा पश्च-प्रायोगिक स्तर के मध्यमानों में सार्थक कमी देखी गई है|

ii.पूर्व नियंत्रित समूह एवं पश्च नियंत्रित समूह में तुलना :- सारिणी 4 में नियंत्रित समूह (दैनिक- चर्या) के प्रयोज्यों के पूर्व-प्रायोगिक स्तर की तुलना पश्च-प्रायोगिक स्तर (दो माह पश्चात) से की गई है |

तालिका 3: दो महीने की सामान्य गतिविधि के बाद नियंत्रण समूह का मानसिक स्वास्थ्य (N=60)

उपरोक्त सारिणी से स्पष्ट होता है कि मानसिक स्वास्थ्य कारकों यथा चिंता, बैचेनी, शक्तिहीनता, अकेलापन, निराशा, क्रोध, सिरदर्द, थकान, निद्रा-व्यतिक्रम, अपच एवं अम्लता के पूर्व प्रायोगिक स्तर के मध्यमानों की अपेक्षा पश्च-प्रायोगिक स्तर के मध्यमानों में कोई सार्थक कमी नहीं हुई है | अत: परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि दैनिक चर्या से मानसिक स्वास्थ्य में कोई प्रगति नहीं हुई है अपितु सार्थक स्तर पर क्षति हुई है |

अंतर्समुह तुलना:- इसमें दोनों समूह के प्रयोज्यों के मानसिक स्वास्थ्य के स्तरों की तुलना प्रयोग पूर्व-स्थिति में करने के लिए टी’ द्विपक्षीय (‘t’ two tail) परीक्षण का उपयोग किया गया | जबकि पश्च- प्रयोग स्थिति की तुलना करने के लिए एक पक्षीय ‘टी’(t’one tail) का उपयोग किया गया | इनकी सार्थक कसौटी α=या p<0.05 की रखी गई |

iii.पूर्व-प्रायोगिक स्तर

प्रायोगिक समूह एवं नियंत्रित समूह की तुलना :-सारिणी 5 में प्रायोगिक समूह एवं नियंत्रित समूह के मध्यमानों (M), मानक विचलनों (S.D. ) और ‘टी’ (t) मूल्यों को दिखाया गया है |

पूर्व-प्रायोगिक स्तर पर प्रायोगिक एवं नियंत्रित समूह के प्रयोज्यों के मानसिक स्वास्थ्य के कारकों के मध्यमानों में कोई सार्थक भिन्नता नहीं है अर्थात इन दोनों समूहों के प्रयोज्यों की मानसिक स्थितियां समान है |

तालिका 4: प्रायोगिक और नियंत्रण समूह के लिए पूर्व-प्रायोगिक चरण में मानसिक स्वास्थ्य के औसत, एस.डी. और 'टी' मान (एन=60)

 

मानसिक स्वास्थ्य जांच सूची की निर्देशिका के मानक अंकों से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि दोनों समूहों की मानसिक स्वास्थ्य की समस्या स्तर से अधिक है | अर्थात पूर्व-प्रायोगिक स्तर पर दोनों समूहों के सैनिकों का मानसिक स्वास्थ्य सामान्य स्तर का नहीं है |

iv.पश्च-प्रायोगिक स्तर (दो महीने पश्चात)

मानसिक स्वास्थ्य पर योग निद्रा का प्रभाव : दैनिक-चर्या की तुलना में

प्रयोग के पश्च-प्रायोगिक स्तर (दो माह पश्चात) पर प्रायोगिक समूह तथा नियंत्रित समूह को सारिणी-5 में दिखाया गया है | इनके मानसिक स्वास्थ्य के 11 कारकों के मध्यमानों, मानक विचलनों तथा ‘टी’ मूल्यों को इसमें प्रस्तुत किया गया है | 

तालिका 5: प्रायोगिक और नियंत्रण समूह के लिए प्रायोगिक-पश्चात चरण में मानसिक स्वास्थ्य के माध्य, एस.डी. और ‘टी’ मान (प्रत्येक के लिए N=60)

पश्च-प्रायोगिक स्तर पर प्रायोगिक समूह योग निद्रा के प्रयोज्यों को मानसिक स्वास्थ्य के सभी कारकों में नियंत्रित समूह (दैनिक-चर्या) के प्रयोज्यों की अपेक्षा स्तर पर सकारात्मक लाभ हुआ है | दो माह के योग निद्रा के अभ्यास से प्रायोगिक समूह के प्रयोज्यों के अकेलेपन तथा सिरदर्द कारक में p<.005 के सार्थक स्तर पर सुधार हुआ है एवं चिंता, बैचेनी, शक्तिहीनता, निराशा, क्रोध, थकान, निद्रा-व्यतिक्रम, अपच तथा अम्लता कारकों में p<.0005 के सार्थक स्तर पर सुधार हुआ है | इन परिणामों से स्पष्ट होता है कि नियंत्रित समूह (दैनिक-चर्या) के प्रयोज्यों की तुलना में प्रायोगिक समूह (योग निद्रा) के प्रयोज्यों में मानसिक स्वास्थ्य के सभी कारकों में व्यापक सुधार हुआ है |

 चर्चा

चाइल्ड, ब्लुफील्ड, फर्ग्युसन, ब्रुकस व् स्केरनों एवं डेविस ने अपने शोध-कार्यों में भावातीत ध्यान के अभ्यास से मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि देखी | चाइल्ड (1973) ने भावातीत ध्यान से बाल अपराधियों की चिंताओं में कमी देखी वहीँ ब्लूफील्ड ने (1975) ने पाया की भावातीत ध्यान के नियमित अभ्यास से मानसिक संघर्ष कम होते है | फर्ग्युसन (1978) ने कैदियों में भावातीत ध्यान के अभ्यास से मानसिक स्तर में सुधार देखा | ब्रूकस व् स्केरनों (1986) ने भावातीत ध्यान के अभ्यास से बीमार व्यक्तियों में अवसाद, तनाव, चिंता कारकों में सार्थक सुधार पाया | डेविस (1986) ने अपने शोध में पाया की भावातीत ध्यान के अभ्यास से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है | जोशी, गौड़ एवं गुप्ता (1987) ने भावातीत ध्यान के अभ्यास से विद्यार्थियों में मानसिक दबाव की स्थिति को कम होते हुए पाया | चौधरी (1999) ने किशोर कैदियों पर विपश्यना का उनकी तनाव स्थितिजन्य चिंताओं और व्यक्त चिंताओं पर सार्थक परिवर्तन देखें | उपरोक्त शोध-कार्य के परिणाम इस शोध-कार्य के परिणामों का समर्थन करते है |

गौड़ एवं शर्मा, गौड़ एवं श्रीवास्तव, गौड़ एवं जैन तथा गौड़ एवं समणी मल्लीप्रज्ञा ने अपने शोध-कार्यों में प्रेक्षाध्यान से मानसिक स्वास्थ्यमें वृद्धि देखी | गौड़ एवं शर्मा (2003) ने पुरुष कैदियोंके मनोदैहिक स्वास्थ्य पर प्रेक्षाध्यान का सार्थक सकारात्मक प्रभाव देखा | गौड़ एवं श्रीवास्तव (2005) ने महिला कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य में प्रेक्षाध्यान के अभ्यास के सार्थक सकारात्मक प्रभाव देखे |

उपरोक्त शोध-अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि ध्यान और योग निद्रा का अभ्यास करने से व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि होती है |

निष्कर्ष

योगनिद्रा समस्त मानव जाति के लिए एक अमूल्य अभ्यास है। यह संपूर्ण व्यक्तित्व विकास एवं भाव परिवर्तन तथा शिथिलीकरण की कला है। योगनिद्रा एक प्रभावशाली विधि है जिसमें हम चेतन स्वरूप से शिथिल होना सीखते हैं। योगनिद्रा में नींद को विश्रांति नहीं समझा जाता। पूर्ण विश्रांति के लिए हमको सजग रहना चाहिए यही योगनिद्रा है। क्रियात्मक निद्रा की अवस्था, योगनिद्रा पूर्ण शारीरिक मानसिक और भावनात्मक विश्रांति लाने का एक व्यवस्थित तरीका है। योग निद्रा का अभ्यास करने से मनुष्य के मानसिक दबाव, चिंता, अकेलेपन, थकान आदि में सुधार आता है उनके मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि होती है | इसलिए योगनिद्रा का अभ्यास करने से सैनिकों के मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि हुई है |