सत्याग्रह और महात्मा गांधी (एक विष्लेषणात्मक अध्ययन)
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सारांश: <strong>‘</strong>साहित्यिक दृष्टि से सत्याग्रह एक संयुक्त शब्द है - जो सत्य <strong>+ </strong>आग्रह शब्द से मिलकर बना है।’ गांधी ने अपने सम्पूर्ण जीवन को ‘सत्य के साथ प्रयोगों की संज्ञा दी । आधुनिक विश्व के इतिहास में संभवतः वे एकमात्र ऐसे विचारक हैं<strong>, </strong>जिन्होंने व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन के दोनों क्षेत्रों में समान रूप से ‘सत्य को कर्म की कसौटी माना । उनके लिए सत्य न तो पूर्ण रूप से अमूर्त है न ही मात्र भौतिक एवं तत्कालीन वस्तुस्थिति द्वारा परिसीमित। उनकी दृष्टि में सत्य एक स्तर पर शाश्वत जीवन मूल्यों का पर्याय है तथा दूसरे स्तर पर सामाजिक<strong>, </strong>सामयिक<strong>, </strong>वैयक्तिक और राजनीतिक सरोकारों को समझने का अर्थपूर्ण माध्यम सत्याग्रह के माध्यम से गांधी ने हिंसक जगत को अहिंसा की शिक्षा दी।
मुख्य शब्द: महात्मा गांधी, सत्याग्रह, निष्क्रिय प्रतिरोध, रचनात्मक कार्यक्रम, असहयोग, सविनय अवज्ञा, हड़ताल, बहिष्कार, धरना, उपवास
सत्याग्रह
‘‘सत्याग्रही अपने विरोधी के सम्मुख अपना आध्यात्मिक व्यक्तित्व स्थापित करता है और उसके हृदय में यह भावना जगा देता है कि अपने व्यक्तित्व को हानि पहुँचाए बिना उसे हानि न पहुँच सके।’’
- महात्मा गांधी
गांधी का सत्याग्रह दर्शन सत्य के सर्वोच्च आदर्ष से उत्पन्न हुआ है। सत्य के पुजारी का यह पवित्र कर्तव्य हैं कि सत्य की कसौटी तथा उसके आधारों की रक्षा करें।1
गांधी इस तथ्य को भली - भाँति जानते थे कि वर्तमान समाज में हिंसा की जिस घातक प्रवृत्ति ने विस्तार पाया है, उससे मानव जाति के बचाव का एकमात्र मार्ग सत्य और अहिंसा की शरण लेना है। हिंसा का उत्तर यदि हिंसा से दिया जाता है तो वह गांधी की दृष्टि में उचित नहीं है क्योंकि अहिंसा में ही ऐसी शक्ति है कि वह हिंसा को समाप्त कर सकती है। अतः गांधी ने हिंसा का मुकाबला करने की जिस अहिसक प्रविधि का विकास किया है उसे सत्याग्रह कहा जाता है।
सत्याग्रह का अर्थ है - सत्य पर अड़िग रहना। सत्याग्रह शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गांधी ने दक्षिणी - अफ्रीका में किया था। गांधी ने एक पोस्टर निकाला जिसमें उन्होंने अन्याय के विरूद्ध जिस शैली का जिक्र किया उसे ही बाद में सत्याग्रह कहा गया। गांधी ने इसमें लिखा ‘‘दक्षिण अफ्रीका में हमारी शैली घृणा का प्रेम से जीतने की है। हम व्यक्तिों को दण्डित करना नहीं चाहते बल्कि सिद्धान्तः उनके हाथों यातनाएँ भोगना चाहते हैं।’’ इसे गांधी ने प्रारम्भ मे पेसिव रेसिस्टेन्स’ कहा लेकिन उन्हें लगा कि यह शब्द ठीक नहीं है। अतः उन्होंने इसके लिए इण्डियन ओपिनियन में सुझाव माँगे। मगन लाल गांधी ने ‘सत्याग्रह’ शब्द का सुझाव दिया था जिसे गांधी ने सत्याग्रह में रूपान्तरित कर दिया।
गांधी ने स्वयं लिखा है, ‘‘इसका (सत्याग्रह) अंग्रेजी में पर्याय ट्रुथ फोर्स होता है और मैं होता है और मैं समझता हॅू कि टॉल्सटॉय ने इसे आत्मशक्ति या प्रेम शक्ति भी कहा है और यह ऐसा ही है।2
सत्याग्रह गांधी के राजनीतिक सिद्धान्तों का एक आधारभूत तत्व है। जिसमें निहित स्वार्थों द्वारा की जाने वाली शक्ति की प्रतिस्पर्धा में व्यक्ति स्वनिर्णय द्वारा सत्य तथ सम्यकता का पक्ष पोषण करता है। व्यक्तिगत असहयोग से लेकर व्यापक स्तर पर संगठित सविनय अवज्ञा तक सत्याग्रह के अनेक रूप हैं।
गांधी द्वारा प्रतिपादित सत्याग्रह की तकनीक ‘दान’ की निष्क्रिय कार्यविधि की अपेक्षा गतिशील है। विनोबा भावे की यह मान्यता थी कि भूदान स्वयं एक प्रकार का सत्याग्रह है। वे समझौते में विष्वास करते थे और साथ ही शांतिमय संघर्ष के विरोधी नहीं थे।3
गांधी का सत्याग्रह दर्शन सत्य के सर्वोच्च आदर्ष से उत्पन्न हुआ है। यदि सत्य ही परम तत्व है तो उसके पुजारी का यह पुनीत कर्तव्य हो जाता है कि वह सत्य की कसौटी और उसके आधारों की रक्षा करे। गांधी के मन में सभी प्रकार के अन्याय उत्पीड़न और शोषण के विरूद्ध आत्मबल का प्रयोग ही सत्याग्रह है। कष्ट सहन तथा विश्वास आत्मबल के गुण हैं। सत्याग्रही विरोधी को जोखिम में नहीं डालना चाहता, बल्कि वह उसे अपनी निर्दोषिता की प्रचण्ड शक्ति से अभिभूत कर देना चाहता है।4
गांधी लिखते हैं - ‘‘अहिंसा के साथ जुड़े हुए सत्य के बल से आप सारे संसार को अपने पैरों पर झुका सकते हैं अपने अधीन बना सकते हैं। सत्याग्रह का सार इसके सिवा और कुछ नहीं है कि राजनीतिक अर्थात राष्ट्रीय जीवन में सत्य और प्रेम को दाखिल किया जाए।5
सत्याग्रही भय का अन्तिम नमस्कार कर देता है, इसलिए वह अपने विरोधी पर विश्वास करने में कभी डरता नहीं है। यदि विरोधी बीस बार भी असत्य का व्यवहार करके उसके साथ दगा करे, तो सत्याग्रही इक्कीसवीं बार उस पर विष्वास करने को तैयार रहता है, क्योंकि मानव स्वभाव में पूर्ण विश्वास उसके अहिंसा धर्म का सार है। 6
सत्याग्रह ऐसी शक्ति है, जिसका व्यक्ति और समाज दोनों उपयोग कर सकते हैं। जिस प्रकार उसका उपयोग घर - गृहस्थी के व्यवहारों में भी हो सकता है, सत्याग्रह का सर्वत्र प्रयोग किया जा सकता है। यही उसके स्थायित्व का और उसकी अजेयता का प्रबल प्रमाण है। पुरूष, स्त्रियां और बालक सब कोई उसका एकसा उपयोग कर सकते हैं। यह कहना बिल्कुल झूठ है कि सत्याग्रह केवल निर्बलों द्वारा उपयोग में ली जाने वाली शक्ति है और इसका उपयोग वे तभी तक करते हैं जब तक वे हिंसा का सामना हिंसा से करने की क्षमता प्राप्त नहीं कर लेते। 7
गांधी को सत्याग्रह की अवधारणा को विकसित करने में 10 वर्षों से भी अधिक का समय लगा। इनकी सत्याग्रह की अवधारणा विभिन्न विचारकों से प्रभावित थी। उन्होंने ईसा मसीह को देवदूत माना 8 तथा सेंटपाल के मानव प्रेम की अवधारणा को वे सत्याग्रह का समरूप मानते थे। 9 सर्वप्रथम उन्होंने अपने निकट सम्पर्क में आए ईसाई पादरियों से ही यह षिक्षा ग्रहण की कि मानव समाज की समस्याओं का समाधान प्रतिषोध की भावना से कभी नहीं किया जा सकता है। 10 टॉल्सटॉय की इस विचारधारा ने उनके मनोमस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। अतएव उन्होंने कभी - भी अपने सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान विरोधी पक्ष से घृणा अथवा शत्रुता नहीं की बल्कि बुराई और अन्याय का प्रतिरोध किया।
सत्याग्रह और निष्क्रिय प्रतिरोध
सत्याग्रह को अधिक अच्छी तरह समझने के लिए निष्क्रिय प्रतिरोध से उनका अन्तर समझ लेना उपयुक्त है। यद्यपि दक्षिणी अफ्रीका में स्वयं गांधीजी ने निष्क्रिय प्रतिरोध शब्द का प्रयोग सत्याग्रह के अर्थ में किया था, लेकिन बाद में वे सत्याग्रह और निष्क्रिय प्रतिरोध में स्पष्ट भेद करने लगे। इन दोनों में मूलभूत अन्तर निम्नांकित है -
(1) निष्क्रिय प्रतिरोध कामचलाऊ राजनीतिक शास्त्र है, जबकि सत्याग्रह नैतिक अस्त्र है जिसका आधार है शारीरिक शक्ति की अपेक्षा आत्मशक्ति की श्रेष्ठता।
(2) निष्क्रिय प्रतिरोध दुर्बल का शस्त्र है जबकि सत्याग्रह का प्रयोग वे वीर ही कर सकते हैं जिनमें बिना मारे मरने का साहस है।
(3) निष्क्रिय प्रतिरोध में उद्धेष्य होता है प्रतिपक्ष को इतना परेषान करना कि वह हार मान ले जबकि सत्याग्रह का उद्धेष्य है प्रेम और धैर्यपूर्वक कष्ट सहन करके विरोधी का हृदय परिवर्तन करना और उसकी भूल सुधारना।
(4) निष्क्रिय प्रतिरोधी के लिए प्रेम की गुंजाइष नहीं, जबकि सत्याग्रह में घृणा, दुर्भावना आदि के लिए कोई स्थान नहीं। इस प्रकार ‘‘सत्याग्रह गत्यात्मक है, निष्क्रिय है, निष्क्रय प्रतिरोध स्थियात्मक है।’’ निष्क्रिय प्रतिरोध निषेधात्मक रूप से कार्य करता है और उसका कष्ट - सहन अनिच्छापूर्वक और निष्फल होता है जबकि सत्याग्रह विधायक रूप से कार्य करता है, प्रेम के कारण प्रसन्नता से कष्ट सहन करता है और कष्ट सहन को फलप्रद बनाता है।
(5) निष्क्रिय प्रतिरोध में हिंसा से सामान्य रूप से दूर रहा है, क्योंकि दुर्बल व्यक्ति हिंसा का प्रयोग नहीं कर सकता। फिर भी यह उचित अवसर पर हिंसात्माक उपायों के विरूद्ध नहीं है। दूसरी ओर सत्याग्रह किसी भी रूप में, अनकूलतय परिस्थिति में भी हिंसा के प्रयोग की आज्ञा नहीं देता।
(6) निष्क्रिय प्रतिरोध में आन्तरिक शुद्धता का अभाव है। सत्याग्रह की तरह वह साधना की शुद्धता का आवष्यक नहीं मानता और प्रयोग करने वाले व्यक्तियों के चरित्र की नैतिकता की उपेक्षा करता है। दूसरी ओर सत्याग्रह में उद्धेष्य-सिद्धि और सत्याग्रही के आन्तरिक सुधार में घरिष्ठ सम्बन्ध है।
(7) निष्क्रिय प्रतिरोध का प्रयोग सार्वभौम नहीं हो सकता। सत्याग्रह की तरह उसका प्रयोग अपने घनिष्ठ सम्बन्धियों के विरूद्ध नहीं किया जा सकता। दुर्बलता और निराषा की भावना से प्रयुक्त निष्क्रिय प्रतिरोध नैतिक दुर्बलता को बढ़ाता है। दूसरी ओर सत्याग्रह सदैव आन्तरिक शक्ति पर जोर देता है और वास्तव में उसका विकास करता है।
(8) निष्क्रिय प्रतिरोध की अपेक्षा सत्याग्रह अन्याय और अत्याचार का अधिक प्रभावषाली और निष्चित विरोध है, लेकिन निष्क्रिय प्रतिरोध वास्तव में निष्क्रिय नहीं होता, क्यांकि प्रतिरोध सदैव सक्रिय होता है।
गांधी के मत में ‘‘सत्याग्रह ऐसी तलवार है जिसके सभी और धार है, उसे जैसे चाहे काम में ला सकते हैं। उससे काम लेने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाय दोनों सुखी होते हैं। वह खून नहीं बहाती पर काट गहरी करती है। उस पर जंग नहीं लगता, न कोई उसे चुरा ही सकता है। सत्याग्रही की तलवार को म्यान की जरूरत नहीं होती। उसे कोई छीन भी नहीं सकता।’’ 11
सत्याग्रह की तकनीक: सत्याग्रह सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष में विशेष रूप से गांधीवादी दृष्किोण को सूचित करता है। सत्याग्रह केवल सामुहिक संघर्ष और प्रतिकार की पद्धति नहीं है। वह व्यक्तिगत और घरेलु संघर्ष का भी आत्म संयम द्वारा समाधान प्रस्तुत करता है। श्रीमती बान्डुराम के अनुसार, ‘‘यह केवल विशेष प्रकार की क्रिया का ही सूचक नहीं बल्कि एक खोज पद्धति है जिसमें सापेक्ष सत्य अहिंसा, मानवतावाद और आत्मपीड़न का समन्वय है। 12
गांधी ने सत्याग्रह की परिकल्पना कायरता और हिंसा के एक विकल्प के रूप में की थी क्योंकि वे यह चाहते थे कि किसी भी समस्या का समाधान संघर्ष से नहीं हो अतएव उन्होंने यह कहा कि सत्याग्रह का प्रयोग करने से पूर्व सभी प्रकार के संवैधानिक उपायों का प्रयोग किया जाना चाहिए। गांधी ने अपने सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान निम्न संवैधानिक उपायों का प्रयोग किया। 13
सत्याग्रह आन्दोलन की सफलता एवं अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गांधी द्धारा मुख्यतः निम्न तकनीक अथवा साधन बताए गए हैं -
(1) असहयोग:
गांधी के मत में असहयोग असत्य एवं बुराई का प्रतिरोध करता है ताकि सत्य और अच्छाई उत्पन्न हो सके। असहयोग का उद्धेष्य विपक्ष के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न करना है जिससे उसे प्रेमपूर्वक स्थापित किया जा सके। असहयोग में विपक्ष के प्रति घृणा का भाव नहीं होता बल्कि उसे स्वयं अपनी बुराई देखने के तैयार किया जाता है। गांधी के मत में सरकार का आधार उसकी शक्ति या जनता की निष्क्रिय सम्मति नहीं बल्कि उसका सक्रिय सहयोग है। यदि राजनीतिक व्यवस्था को जनता का सहयोग नहीं मिलेगा तो वह पूरी तरह से पषु और शक्तिहीन हो जाएगी और उसका अंत हो जाएगा। यदि सरकार जनता की भावनाओं के प्रतिकूल चलती है तो सरकार के साथ जनता द्वारा असहयोग करना उसका अधिकार है और कर्तव्य भी। गांधी के अनुसार अन्याय पर आधारित कानून को हमें किसी भी कीमत पर नहीं मानना चाहिए क्योंकि यह गुलामी की निषानी है और धर्म के खिलाफ है। जनता के आपसी सहयोग के बिना न तो असहयोग व्यापक हो सकता है न ही वह अहिंसक हो सकता है।
गांधी के अनुसार असहयोग ऐसी शिक्षा है जो जनमत को विकसित करती है, लेकिन बलपूर्वक असहयोग को विकसित करना भी एक प्रकार की हिंसा है। अतः स्वेच्छा पर निर्भर सहयोग ही जनता की भावनाओं और असन्तोष की कसौटी हो सकता है, अतः असहयोग अहिंसा की एक ऐसी गतिशील अवस्था है जिसमें आत्म-पीड़न की एक उच्च स्तरीय शक्ति निहित है। 14
घृणा भी नहीं है, विरोधी का नुकसान भी नहीं - केवल न्याय के लिए अन्याय के विरूद्ध अपने सारे समर्थन खींच लेना है जिससे अन्यायी का हृदय परिवर्तित हो जाए। विरोधी की असुविधा के कारण जो कष्ट उसे हो उससे सत्याग्रही को भी कष्ट होना चाहिए क्योंकि असहयोग व्यक्ति से नहीं किया जाता, जीवन से नहीं किया जाता, मानवता से नहीं किया जाता, वह तो अन्याय से किया जाता है। उसे चाहिए कि वह विपक्षी को यह अनुभव करा दे किय सत्याग्रही उसका मित्र और शुभचिन्तन है। 15
(2) सविनय अवज्ञा:
सविनय अवज्ञा सत्याग्रह का एक महत्वपूर्ण साधन है। आधुनिक काल में सविनय कानून भंग के सिद्धान्त का प्रतिपादन सर्वप्रथम अमेरिका के विचारक थोरों ने किया था जिसका उद्धेष्य राज्य के द्धारा निर्मित किए गए अनैतिक कानूनों का विनम्रतापूर्वक उल्लंघन करना है। अतः सविनय कानून भंग का गुलाम राज्य के नागरिकों को अनैतिक कानून के प्रतिरोध करने का एक अस्त्र प्रदान करता है। गांधी का सविनय - कानून - भंग सभी प्रकार के अनैतिक कानूनों का अहिंसक प्रतिरोध करता है। यह सत्याग्रह का एक अंग है। यह पूर्ण सत्याग्रह नहीं है। गांधी इसे सषस्त्र क्रांति का पूर्ण कारगर और रक्तहीन स्थापना बताते हैं। सविनय अवज्ञा के बारे में दक्षिण अफ्रीका में जनरल स्मट्स ने कहा था, ‘‘मैं तुम्हारे लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता हूँ और न ही उनकी रत्तीभर भी परवाह करता हूँ परन्तु मैं क्या करूँ। तुम लोग जरूरत के समय मेरी मदद करते हो। हम तुम पर कैसे हाथ उठा सकते हैं ? मैं अक्सर चाहता हूँ कि तुम लोग हिंसा करो ओर तब हम तुम्हें बताए हैं कि तुमसे कैसे निपटा जाता है परन्तु तुम तो अपने शत्रु को भी नुकसान नहीं पहुँचाते। तुम केवल आत्म - पीड़न द्वारा ही विजय चाहते हो और स्वयं अपने पर लगाई षिष्टाचार और बहादुरी की मर्यादाओं का भी उल्लंघन नहीं करते और यही चीजें हमें असहाय बना देती है। 16
(3) हड़ताल:
हड़ताल को भी गांधी सत्याग्रह का एक महत्वपूर्ण साधन मानते हैं। हड़ताल से अभिप्राय है कि विरोध प्रदर्षन के लिए अपने व्यवसाय को कुछ समय के लिए बन्द कर देना। हड़ताल का उद्धेष्य यह है कि अपने व्यवसाय को बंद करके उसके माध्यम से जनता और सरकार दोनों को प्रभावित करना, किंतु गांधी यह मानते हैं कि हड़ताल का निर्णय सोच समझकर किया जाना चाहिए तथा इसकी प्रथम शर्त अहिंसा है। गांधी ने लिखा है - लाभ की प्राप्ति हेतु हड़ताल करना मजदूरों का जन्मसिद्ध अधिकार है। परन्तु जैसे ही पूंजीपति पंच का सिद्धान्त लें, हड़ताल को अपराध समझना चाहिए। इसके अतिरिक्त जो सेवाऐं जनोपयोगी हैं और जीवन के लिए अनिवार्य हैं - जल, विद्युत, पुलिस, बैंक, प्रषासनिक सेवाओं आदि को हड़ताल का अधिकार नहीं होना चाहिए।
(4) बहिष्कार:
गांधी के बहिष्कार सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है गांधी ने यद्यपि बहिष्कार को सत्याग्रह का एक साधन माना है तथापि वे यह स्वीकार करते हैं कि बहिष्कार का प्रयोग बहुत कम किया जाना चाहिए। उन्होंने बहिष्कार को तभी समर्थन दिया है जब कोई एक या बहुत कम व्यक्ति बहुमत से न्यायोचित बात या मत को मानने से इंकार कर दे। लेकिन उसमें यह प्रतिबंध यह होना चाहिए कि बहिष्कार करने वालों की सहानुभूति होनी चाहिए। बहिष्कार का यह अर्थ कदापि नही है कि जिस व्यक्ति का बहिष्कार किया गया है, उसे जीवन की आवष्यक सेवाओं से वंचित कर दिया जाए। गांधी ने रौलेट एक्ट के विरोध में स्वयं को प्राप्त केसर-ए-हिन्द, बोअर युद्ध पदक और जुलू विद्रोह पदक का बहिष्कार किया। बहिष्कार के अन्तर्गत उपाधियों एवं सम्मानित पदों का त्याग सरकारी कार्यालयों में आने-जाने, सरकारी उत्सवों में भाग लेने का त्याग सम्मिलित है। इसके साथ विधान सभा के निर्वाचनों में मत देने और प्रत्याषी बनने तथा विदेषी सामान का बहिष्कार भी इसमें सम्मिलित था।
(5) धरना:
धरना भी अहिंसक प्रतिरोध का एक साधन है। धरने का उद्धेष्य यह होता है कि वह जनता को जागृत करें और समाज में वातावरण का निर्माण करे तथा प्रतिपक्षी को हृदय परिवर्तन के लिए विवष कर दे। गांधी ने सन् 1920-22 एवं सन् 1930-34 में अर्थात् असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान धरने का काफी प्रयोग किया था और शराब, अफीम एवं विदेषी कपड़ों की दुकान पर धरने दिए थे।
(6) उपवास:
गांधी की सत्याग्रह की रणनीति में उपवास को सबसे अन्तिम स्थान प्रदत्त किया गया है और इसे ही सर्वाधिक कारगर एवं प्रभावी साधन माना गया है। लेकिन गांधी के मत में उपवास का प्रयोग तभी करना चाहिए जबकि सत्याग्रह के सभी उपलब्ध साधन असफल हो जाएं। 17 इसका प्रयोग कम मात्रा में किया जाना चाहिए। उपवास की सफलता के लिए जरूरी है कि उपवास करने वाला व्यक्ति ऐसा हो जिसका समाज में नैतिक स्थान हो तथा वह उपवास करने में निपुण हो।
गांधी के अनुसार मात्र शारीरिक योग्यता ही इसके लिए कोई योग्यता नहीं है। ईष्वर में जीती - जागती श्रद्धा न हो, तो दूसरी योग्यताए निरूपयोगी है। वह निरा यांत्रिक प्रयत्न या अनुकरण कभी नहीं होना चाहिए। उसकी प्रेरणा अपनी अन्तरात्मा की गइराई से आनी चाहिए, इसलिए वह बहुत विरल होता है। 18
स्वयं गांधी ने अपने सर्वजनिक जीवन में कुल मिलाकर 138 दिन उपवास पर रहे।