असंगठित
क्षेत्र में बाल
श्रमिकों एवम मानवाधिकार
का समाजशास्त्रीय
अध्ययन
श्वेता
सैनी¹, डॉ. रुचि²
1 शोधार्थी
समाजशास्त्र विभाग, वनस्थली
विद्यापीठ, राजस्थान
Sainishweta6376@gmail.com
2 सहायक
प्रोफेसर, समाजशास्त्र
विभाग, वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान
सारांश: असंगठित
क्षेत्र में बाल
श्रमिकों एवं मानवाधिकारों
का विश्लेषण सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं
के अंतर्गत एक
जटिल और बहुआयामी
प्रक्रिया है, जिसमें गरीबी, अशिक्षा, पारिवारिक विघटन
और कमजोर कानूनी
प्रवर्तन प्रमुख
कारक हैं। यह क्षेत्र
सामाजिक असमानताओं
का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब
है, जहां बाल
श्रम का प्रचलन
मानवाधिकारों
का गंभीर उल्लंघन
है, विशेषकर
शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन के अधिकारों
के संदर्भ में।
इस अध्ययन का मुख्य
उद्देश्य इन प्रवृत्तियों
के बीच अंतर्संबंधों
का विश्लेषण करना, और समाज में व्याप्त
इन जटिलताओं का
कारण एवं परिणाम
समझना है। साथ
ही, यह शोध
इन उल्लंघनों को
समाप्त करने हेतु
नीति-निर्माण, कानूनी प्रवर्तन, और सामाजिक जागरूकता
के प्रभावी उपायों
का मूल्यांकन करता
है। इस परिप्रेक्ष्य
में, बाल श्रम
को एक मानवीय एवं
सामाजिक समस्या
के रूप में निरूपित
करते हुए, यह
अध्ययन समाज में
न्याय एवं समानता
के प्रति जागरूकता
एवं संवेदनशीलता
विकसित करने का
प्रयास करता है, जो समकालीन समाजशास्त्र
में बाल श्रम एवं
मानवाधिकारों
के अंतर्संबंधों
को समझने का एक
आवश्यक और सूक्ष्म
विश्लेषण है।
मुख्य शब्द - असंगठित
क्षेत्र, मानवाधिकार, बाल श्रमिकों |
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प्रस्तावना
असंगठित
क्षेत्र में बाल
श्रमिकों और मानवाधिकारों
का मुद्दा आधुनिक
समाज के समक्ष
एक जटिल और बहुआयामी
चुनौती के रूप
में उभर कर आया
है। यह समस्या
न केवल आर्थिक
और सामाजिक विघटन
का परिणाम है, बल्कि
यह मानवाधिकारों
के उल्लंघन का
भी प्रतीक है, जो
विश्व मानवाधिकार
संधि और सवैधानिक
अधिकारों के विपरीत
है। असंगठित क्षेत्र
वह क्षेत्र है, जहां
श्रमिकों का संगठन
न के बराबर होता
है, जिसके कारण
इन क्षेत्रों में
कार्यरत श्रमिकों
के अधिकारों की
रक्षा करना कठिन
हो जाता है। विशेष
रूप से बाल श्रमिकों
का शोषण, शारीरिक
और मानसिक दुरुपयोग, शैक्षिक
अवसरों से वंचना
और स्वास्थ्य सेवाओं
का अभाव ऐसी जटिलताओं
को जन्म देते हैं, जो
मानवाधिकारों
के संरक्षण की
दिशा में गंभीर
अवरोध हैं। बाल
श्रम का यह स्वरूप
सामाजिक, आर्थिक
और राजनैतिक कारकों
का परिणाम है।
गरीबी, अशिक्षा, पारिवारिक
विघटन, श्रम कानूनों
का कमजोर प्रवर्तन, और
समाज में मौजूद
असमानता इस समस्या
को जटिल बनाते
हैं। इन बच्चों
का शारीरिक शोषण, आर्थिक
शोषण, और शैक्षिक
व सामाजिक अधिकारों
का हनन संवैधानिक
मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय
मानवाधिकार मानकों
के विपरीत है।
इसके परिणामस्वरूप, ये
बच्चे शारीरिक, मानसिक
और भावनात्मक रूप
से विक्षिप्त हो
जाते हैं, जिससे उनका
समग्र विकास बाधित
होता है, और वे समाज
में अपनी पूर्ण
भागीदारी करने
में असमर्थ हो
जाते हैं। इस गंभीर
समस्या का समाधान
तभी संभव है जब
समाज के सभी स्तंभ — सरकार, न्यायपालिका, समाजिक
संस्थान, और नागरिक
समाज मिलकर एक
समर्पित कार्य
योजना बनाएं। कानूनी
उपायों को सशक्त
करना, श्रम कानूनों
का कठोर प्रवर्तन, बाल
श्रमिकों के शैक्षिक
और स्वास्थ्य संबंधी
अधिकारों का संरक्षण, और
सामाजिक जागरूकता
का प्रसार इस दिशा
में आवश्यक कदम
हैं। साथ ही, बाल
श्रम के विरुद्ध
नीति-आधारित
और दीर्घकालिक
कार्यक्रम विकसित
करने की आवश्यकता
है, जिनके माध्यम
से इन बच्चों को
पुनर्स्थापित
किया जा सके और
उन्हें एक सम्मानजनक
जीवन का अवसर प्रदान
किया जा सके। मानवाधिकार
का मूल सिद्धांत
है कि प्रत्येक
मानव, विशेषकर
बच्चों का जीवन, स्वतंत्रता, सुरक्षा, और
गरिमा का अधिकार
है। यह अधिकार
न केवल कानूनी
दस्तावेजों में
दर्ज हैं, बल्कि यह
नैतिक और सामाजिक
दायित्व भी हैं
तो हमें यह
सुनिश्चित करना
चाहिए कि बाल श्रम
जैसी प्रथाएं समाप्त
हों और मानवाधिकारों
का उल्लंघन करने
वाले तंत्र को
कठोरता से लागू
किया जाए। तभी
हम एक समान, न्यायसंगत
और मानवतावादी
समाज का निर्माण
कर सकते हैं, जहां
हर बच्चा अपने
अधिकारों के साथ
जीवन जिए और समाज
की प्रगति में
योगदान दे सके।
बाल श्रमिकों
से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
भारत के
सविधान का
अनुच्छेद 21(क)
जिसे 86 वाँ
सविधान संशोधन
के माध्यम
से संविधान में
शामिल किया गया
था, प्रत्येक
राज्य को छह से
चौदह वर्ष की आयु
के सभी बच्चों
को मुफ्त और अनिवार्य
शिक्षा प्रदान
करने का आदेश देता
है। भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 23(1)
मनुष्यों
में अवैध व्यापार
एवं जबरन मजदूरी
का निषेध
"मनुष्यों
में अवैध व्यापार
एवं 'बेगार तथा
जबरन मजदूरी के
इसी प्रकार के
अन्य स्वरूपों
का निषेध करता
है” भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 24 बाल
श्रम पर रोक लगाता
है, जिसमें
कहा गया है कि 14 वर्ष से
कम आयु के किसी
भी बच्चे को किसी
कारखाने, खदान, या किसी अन्य
खतरनाक रोजगार
में काम करने के
लिए नियुक्त नहीं
किया जाएगा। भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 39(ई) में कहा गया
है कि राज्य की
सार्वजनिक नीति, कम आयु
के श्रमिकों, पुरुषों, महिलाओं
और बच्चों के स्वास्थ्य
और शक्ति को सुरक्षित
रखने के लिए होगी, ताकि यह
सुनिश्चित किया
जा सके कि उनके
साथ दुर्व्यवहार
न हो और आर्थिक
आवश्यकता के कारण
उन्हें ऐसा काम
करने के लिए मजबूर
न किया जाए जो उनकी
आयु के लिए उपयुक्त
न हो।भारतीय संविधान
का अनुच्छेद 39(एफ) में
प्रावधान है कि
बच्चों को अवसर
दिए जाएंगे और
उन्हें उचित सुविधाएं
प्रदान की जाएंगी
ताकि उनका स्वस्थ
विकास हो सके तथा
उन्हें स्वतंत्रता
और सम्मान की स्थिति
प्रदान की जाएगी
ताकि उनके बचपन
की रक्षा की जा
सके और युवावस्था
को भौतिक और नैतिक
रूप से परित्यक्त
होने से बचाया
जा सके। भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 45 में
प्रावधान है कि
राज्य यह सुनिश्चित
करेगा कि भारत
के संविधान के
प्रारंभ से 10 वर्ष की
अवधि के भीतर वह 14 वर्ष की
आयु तक के सभी बच्चों
के लिए निःशुल्क
और अनिवार्य शिक्षा
उपलब्ध कराएगा।
भारतीय संविधान
का अनुच्छेद 47 यह
अनुच्छेद राज्य
को यह सुनिश्चित
करने के लिए कहते
हैं कि बच्चों
में उचित पोषण
और स्वास्थ्य सेवाएं
उपलब्ध हों। भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 51 के
अनुसार माता, पिता और
अभिभावक का ये
कर्तव्य है की
वे अपने बच्चों
को, जिनकी
आयु 6 से 14 वर्ष के
बीच के है, उनको शिक्षा
प्राप्त करने का
अवसर प्रदान करे |
बाल श्रमिकों
से संबंधित वैधानिक प्रावधान
स्वंतत्रता
से पूर्व अधिनियम
कारखाना
अधिनियम, 1881 इस अधिनियम
में बाल श्रमिकों
की उम्र 7 वर्ष से कम मानी
गयी है। कारखाना (संशोधन) अधिनियम् 1891 न्यूनतम
आयु बढाकर 9 वर्ष कर दी गयी।
खान अधिनियम, 1901 खान अधिनियम
में 12 वर्ष से
कम उम्र के बच्चों
का नियोजन प्रतिषेध।
कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1922 बालश्रमिक
की आयु 15 वर्ष
निश्चित की गयी।
कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1934 12 से 15 वर्ष के बालको
को नियोजन सामान्यतः
प्रतिसिद्ध किया
गया। भारतीय खनन
कानून 1935 खनन
उद्योग में कार्यरत
बालश्रमिको के
संरक्षण हेतु उनकी
आयु सीमा बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी
गई।
स्वतंत्रता
से पश्चात अधिनियम
न्यूनतम
मजदूरी अधिनियम, 1948 इसके अंतर्गत
बाल श्रमिकों की
उम्र 14 वर्ष
तय की गई। कारखाना
अधिनियम, 1948 इस अधिनियम
में बाल श्रम की
आयु 14 वर्ष निर्धारित
की है बागान श्रमिक
अधिनियम, 1951 इस अधिनियम
में बालश्रम की
उम्र 15 वर्ष
माना गया है। खान
अधिनियम, 1952 खान अधिनियम
भी बालश्रम को
किसी खान में बच्चे
की स्थिति या खुली
खदानों में जहा
खुदाई संबंधित
कार्य चल रहा हो
उनको प्रतिबंधित
करता है। कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1954 इस संशोधन
द्वारा रात्रि
में 17 वर्ष से
कम उम्र के बालको
को नियोजन पर प्रतिबंध
लगाया गया है।
वाणिज्यक जहाजरानी
अधिनियम, 1958 किसी जहाज
में 15 वर्ष से
कम उम्र के बालक
को लगाया जाना
प्रतिबंधित किया
गया है। मोटर परिवहन
कर्मकार अधिनियम, 1961 जिसने 14 वर्ष की आयु
को पूर्ण कर लिया
हो किन्तु 18 साल की आयु पूर्ण
नहीं की हो उसे
मोटर परिवहन के
कार्यों में नहीं
लगाया जा सकता।
बीडी एवं सिगार
कारगार (नियोजन की शर्ते) अधिनियम, 1966 14 से 18 वर्ष के बालक
को रात के 7 बजे से सुबह के 6 बजे तक काम
पर नहीं लगाया
जा सकता। भारत
की राष्ट्रीय बाल
निधि 1974 इस
नीति में माना
है की सभी बच्चो
को समान अवसर मिलने
चाहिए। 14 वर्ष से कम उम्र
के बालक को किसी
जोखिम भरे काम
पर नहीं लगाया
जाएगा। भारत में 14 वर्ष तक बच्चों
को निःशुल्क शिक्षा
प्रदान करेगा।
बाल नियोजन (संशोधन) अधिनियम 1978 15 वर्ष के कम
उम्र के बालक को
रेलवे परिसर के
कार्यों में नियुक्त
नहीं किया जाएगा।
खतरनाक मशीन (विनियम) अधिनियम, 1983 बालश्रम
की आयु 14 वर्ष
निर्धारित की गई
है। बालश्रम (प्रतिषेध
एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 के अनुसार
'किसी
उद्योग, खान, कारखानों
आदि वे बालक जिसने
अपनी आयु का 14 वर्ष पूरा
नहीं किया हो वह
बालश्रमिक कहलाते
हैं। राष्ट्रीय
बालश्रम नीति 1987 इसमें यह
महसूस किया गया
कि गांवो और शहरों
में रोजगारमुखी
विकास को बढावा
देने औपचारिक एवं
अनौपचारिक शिक्षा
की सुविधा उपलब्ध
कराना व्यावसायिक
प्रशिक्षण प्रदान
करना एवं सामाजिक
एवं परिवार कल्याण
के उपायो से बालश्रम
के कारणों को हल
किया जा सके। किशोर
न्याय अधिनियम, 2000 इसमें किए
गए प्रावधानो को
बच्चो के अनुकूल
बनाए जाने हेतु
किशोर अपराधियो
के नाम विद्यालय
या कोई अन्य विवरण
प्रकट नहीं किया
जाएगा जो किशोरों
की पहचान करवा
सकती हो और ना ही
कोई ऐसी फोटो प्रकाशित
होगी। निःशुल्क
और अनिवार्य बाल
शिक्षा विधेयक 2009 यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष के बालको
को निःशुल्क शिक्षा
प्रदान करता है।
किशोर न्याय (देखभाल एवं
संरक्षण) अधिनियम, (जेजे
एक्ट) 2000, जिसे वर्ष 2006 में संशोधित
किया गया था एवं
इसमें उल्लेख किया
गया है कि बच्चों
के सर्वोत्तम हित
में बाल अनुकूल
दृष्टिकोण अपनाकर
और किशोरों पुनर्वास
के लिए एक न्याय
प्रणाली प्रदान
करना है। 18 वर्ष से कम आयु
का कोई भी कामकाजी
बच्चा देखभाल एवं
संरक्षण की आवश्यकता
वाला बच्चा है।
POCSO अधिनियम, 2012 (बच्चों
को यौन अपराधों
से संरक्षण अधिनियम) भारत सरकार
द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र
के बच्चों को यौन
उत्पीडन, शोषण और
अश्लीलता जैसे
अपराधों से कानूनी
सुरक्षा देने हेतु
बनाया गया विशेष
कानून है |
असंगठित
क्षेत्र में बाल
श्रम का सैद्धांतिक
परिप्रेक्ष्य
नव पुरातनवादी
सिद्धांत
इस सिद्धान्त
का प्रतिपादन करने
वाले टी. डब्ल्यू. शुट्रज, आर. विलिस, जी. एक्स. बेकर एवं
एच. जी. लेविस आदि हैं।
इस सिद्धान्त के
अनुसार किसी परिवार
द्वारा बालश्रम
की आपूर्ति अपनी
वर्तमान आय को
बढ़ाने के लिए
की जाती है। परिवार
के समक्ष दो विकल्प
है- प्रथम, वह अपने बच्चे
को किसी काम पर
रखकर परिवार की
आय का स्रोत बढ़ाए; द्वितीय, वह अपने बच्चों
को विद्यालय में
पढ़ाने के लिए
उस पर खर्च करे।
इन दोनों विकल्पों
में से वह परिवार
विवेकपूर्ण ढंग
से निर्णय लेकर
प्रथम विकल्प चुनता
है और इसी अपने
बच्चों को श्रम
बाजार में भेजकर
उससे आय प्राप्त
करता है।
बाल-श्रम के समाजीकरण
सिद्धांत
बाल-श्रम के समाजीकरण
सिद्धांत का प्रतिपादन
जी. रोजर्स
एवं जी. स्टैंडिंग
ने किया है। उनके
अनुसार, जब बच्चे असंगठित
क्षेत्र में बाल-श्रम में
संलग्न होते हैं, तो उनका समाजीकरण
मुख्य रूप से परिवार, समुदाय और
कार्यस्थल के माध्यम
से होता है। इस
प्रक्रिया में
बच्चे अपने समाज
की मान्यताओं, परंपराओं
और व्यवहारों का
सीखते हैं। यदि
उनके परिवार और
समुदाय में बाल-श्रम को सामान्य
और स्वाभाविक माना
जाता है, तो बच्चे भी इसे
अपने जीवन का हिस्सा
मानते हैं और इसी
आधार पर अपने सामाजिक
मान्यताओं का निर्माण
करते हैं।
क्षेत्रीय
वैधता या श्रम-बाजार की
विखण्ड का सिद्धान्त
क्षेत्रीय
वैधता सिद्धांत
के अनुसार, विशेषकर अविकसित
देशों में संगठित
और असंगठित क्षेत्रों
का सह-अस्तित्व
होता है, जैसा कि डी.एम. गार्डन और आर.सी. एडवर्ड्स का
मानना है। इस सिद्धांत
के तहत विकासशील
देशों की आर्थिक
व्यवस्था मुख्यतः
असंगठित क्षेत्र
पर निर्भर होती
है। पूंजीवाद के
उदय के साथ, विभिन्न क्षेत्रों
में मशीनीकरण और
श्रम विभाजन की
प्रक्रिया शुरू
होती है, जिससे परिवारों
को अपनी जीविका
के लिए बच्चों
का श्रम भुगतान
या बिना भुगतान
करना आवश्यक हो
जाता है। इस स्थिति
में, बाल श्रम
एक अनिवार्य विकल्प
बन जाता है।
असंगठित
क्षेत्र में बाल
श्रम के कारण
1.गैरकानूनी
और अनौपचारिक श्रम
व्यवस्था:-
असंगठित
क्षेत्र में श्रम
कानूनों का पालन
न होना और मजदूरी
का अनियमित स्वरूप
बाल श्रम को आसान
बनाता है। यह क्षेत्र
अधिकतर अनौपचारिक
होता है, जहां बाल श्रम
प्रतिबंधित होने
के बावजूद अवैध
रूप से चलता रहता
है।
2.गरीबी और
आर्थिक जरूरतें:-
गरीब
परिवारों के बच्चे
अपनी आर्थिक जरूरतों
को पूरा करने के
लिए मजदूरी करते
हैं। गरीबी के
कारण परिवार बच्चों
को स्कूल भेजने
की बजाय मजदूरी
करने के लिए मजबूर
करते हैं।
3.शिक्षा का
अभाव और जागरूकता
की कमी:- बाल श्रम
के विरुद्ध जागरूकता
की कमी और शिक्षा
का अभाव इन बच्चों
को मजदूरी की ओर
आकर्षित करता है।
परिवारों में बाल
श्रम के नकारात्मक
प्रभावों के प्रति
जागरूकता का अभाव
भी एक बड़ा कारण
है।
4.सामाजिक
रूढ़ियाँ और परंपराएँ:-
कुछ
सामाजिक परंपराएँ
और रूढ़ियाँ बाल
श्रम को स्वाभाविक
मानती हैं, जिससे बच्चों
को घरेलू या व्यवसायिक
कार्यों में लगाया
जाता है।
5.कानूनी प्रवर्तन
में कमी:- बाल श्रम
पर प्रतिबंध लगाने
वाले कानूनों का
कड़ाई से पालन
न होना और उनके
प्रवर्तन की व्यवस्था
कमजोर होने से
बाल श्रम बढ़ता
है। यह असंगठित
क्षेत्र की अनियमित
प्रकृति और सीमित
निगरानी के कारण
होता है।
बालश्रम
के दुष्परिणाम
बालश्रम
व्यापक और गंभीर
समस्या हैं। यह
बच्चों का मानसिक, शारीरिक
और आर्थिक शोषण
करता है, जिससे उनके समग्र
विकास में बाधा
आती है। बालश्रम
के कारण बच्चे
शारीरिक और मानसिक
रूप से कमजोर हो
जाते हैं, उनका स्वाभाविक
विकास रुक जाता
है, और वे बीमारियों
का शिकार बनते
हैं। इन बच्चों
को उचित पोषण, शिक्षा, खेलकूद और
सामाजिकता का अवसर
नहीं मिलता है, जिससे उनका
व्यक्तित्व विकसित
नहीं हो पाता।
कार्यस्थल की खराब
परिस्थितियों
के कारण उनका स्वास्थ्य
प्रभावित होता
है, और उन्हें
अक्सर दुर्घटनाओं
का सामना करना
पड़ता है। इन्हें
कम मजदूरी दी जाती
है, और शोषण
का सामना करना
पड़ता है, जिससे उनका आत्मसम्मान
टूटता है। कई बार
वे गलत रास्ते
भी अपना लेते हैं, जैसे नशा
और अपराध की ओर
आकर्षित होना।
बालश्रम में लगे
बच्चे अक्सर गरीबी
की चपेट में रहते
हैं, और उनका
जीवन सतत गरीबी
और अशिक्षा के
चक्र में फंसा
रहता है। सामाजिक
और नैतिक दृष्टि
से भी यह बहुत खतरनाक
है, क्योंकि
इससे उनके मानवाधिकार
का उल्लंघन होता
है। वे अपनी उम्र
के अनुरूप शिक्षा
और मनोरंजन से
वंचित रह जाते
हैं, जिससे उनका
सम्पूर्ण व्यक्तित्व
विकसित नहीं हो
पाता। अंततः, बालश्रम
न सिर्फ बच्चों
का व्यक्तिगत जीवन
बर्बाद करता है, बल्कि समाज
और देश के विकास
में भी बाधक है।
इसलिए, बालश्रम
को रोकना आवश्यक
है ताकि बच्चे
स्वस्थ और उज्जवल
भविष्य की ओर बढ़
सकें।
उदेश्य
1. असंगठित
क्षेत्र में बाल
श्रमिकों एवं मानवाधिकारों
के बीच संबंधों
का विश्लेषण करना
ताकि इन दोनों
के बीच मौजूद जटिलताओं
और चुनौतियों को
समझा जा सके, और
उन्हें समाप्त
करने के लिए प्रभावी
नीतियों एवं प्रयासों
का विकास किया
जा सके।
2. बाल श्रमिकों
के मानवाधिकारों
का संरक्षण एवं
प्रवर्धन के लिए
जागरूकता एवं सामाजिक
सुधारों को प्रोत्साहित
करना ताकि असंगठित
क्षेत्र में कार्यरत
बच्चों के अधिकारों
का सम्मान किया
जाए और उनके जीवन
एवं शिक्षा के
अधिकारों की रक्षा
सुनिश्चित की जा
सके।
साहित्य
का पुनरावलोकन
संजय महापात्र
और मनुस्मिता दश (2011) के अनुसार, बाल
श्रम एक गंभीर
सामाजिक समस्या
है जो गरीबी, अशिक्षा
और कमजोर कानून
व्यवस्था के कारण
बढ़ रही है। इससे
बच्चों का शारीरिक, मानसिक
और शैक्षिक विकास
बाधित होता है, और
उनके अधिकारों
का उल्लंघन होता
है। इसे रोकने
के लिए कठोर कानूनी
कार्रवाई, सामाजिक
जागरूकता और गरीबी
उन्मूलन आवश्यक
हैं, ताकि बच्चों
का सुरक्षित और
बेहतर जीवन सुनिश्चित
किया जा सके।
डॉ. रघुवेन्द्र
हरमाडे और डॉ. लक्ष्मण
शिंदे (2014) के अध्ययन में
इंदौर के भंवरकुआं
और नवलखा क्षेत्रों
के 60 बाल श्रमिक
विद्यार्थियों
की शैक्षिक समस्याओं
का विश्लेषण किया
गया। इसमें पाया
गया कि आर्थिक
अभाव, संसाधनों
की कमी, विद्यालय
में उपस्थिति का
अभाव, रात की
मजदूरी, जागरूकता
की कमी और जिम्मेदारियों
के कारण बच्चे
पढ़ाई से वंचित
रह जाते हैं। अधिकांश
बच्चे केवल भोजनावकाश
तक स्कूल जाते
हैं और रात में
मजदूरी के कारण
पढ़ाई नहीं कर
पाते। बिजली की
सुविधाओं का अभाव
और सामाजिक जागरूकता
की कमी भी शिक्षा
में बाधक हैं।
इन समस्याओं के
समाधान के लिए
सामाजिक, आर्थिक
और नीतिगत प्रयास
आवश्यक हैं ताकि
बच्चों का समुचित
विकास सुनिश्चित
किया जा सके।
डॉ. गीत यादव(2015) यह विश्लेषण
बाल श्रम की जड़ों, प्रभावों
और समाधान पर केंद्रित
है। गरीबी, अशिक्षा
और सामाजिक असमानताओं
के कारण बाल श्रम
व्यापक है, जबकि कानूनों
के बावजूद उनका
प्रभावी क्रियान्वयन
चुनौतीपूर्ण है।
इसे समाप्त करने
के लिए सामाजिक-आर्थिक सुधार, शिक्षा
का विस्तार और
जागरूकता आवश्यक
है। केवल कानून
नहीं, बल्कि समाज
में मानवीय मूल्यों
और नैतिकता का
पुनर्स्थापन भी
जरूरी है। बाल
श्रम का स्थायी
अंत मानवाधिकारों
और सामाजिक न्याय
की प्राप्ति के
लिए समर्पित प्रयासों
से ही संभव है।
डॉ. किरण कुमारी (2018) के अनुसार, मुजफ्फरपुर
के मुशहरी प्रखंड
में गरीबी, शिक्षाहीनता
और पिछड़ी जातियों
से जुड़े परिवारों
में बाल श्रम की
समस्या व्याप्त
है। आर्थिक और
सामाजिक दबाव के
कारण बच्चे मजबूरन
काम करते हैं, जिससे
उनके शारीरिक और
मानसिक विकास पर
नकारात्मक प्रभाव
पड़ता है। वर्तमान
कानूनों और योजनाओं
का प्रभाव सीमित
होने के कारण, बाल
श्रम को रोकने
के लिए जागरूकता
अभियान, बेहतर शिक्षा, स्वरोजगार
विकल्प और कठोर
कानूनी कार्रवाई
जरूरी हैं। साथ
ही, पीड़ित परिवारों
को सहायता देकर
बच्चों के अधिकारों
की रक्षा करनी
चाहिए।
डॉ. साधना पांडेय (2022) बाल श्रम बच्चों
के अधिकारों का
उल्लंघन करता है
और उनके विकास
को बाधित करता
है, जो मुख्यतः
निर्धनता और अशिक्षा
के कारण होता है।
यह बच्चों को शिक्षा
से वंचित करता
है और भविष्य में
बेरोजगारी को बढ़ावा
देता है। इसका
समाधान सरकार और
समाज की संयुक्त
जिम्मेदारी है।
ताकि बच्चों को
सुरक्षित और खुशहाल
भविष्य मिल सके।
शोध प्रारूप
इस अध्ययन
में द्वितीय आकंडों
का प्रयोग मुख्य
रूप से सरकारी
रिपोर्टों, गैर-सरकारी संगठनों
की प्रकाशित आंकड़ों
और संबंधित सांख्यिकीय
स्रोतों से किया
गया है। इन स्रोतों
से प्राप्त जानकारी
का विश्लेषण कर
असंगठित क्षेत्र
में बाल श्रमिकों
एवम मानवाधिकार
का समजशास्त्रीय
अध्ययन किया गया
है। आकड़ों का विश्लेषण
करने के लिए सांख्यिकीय
तकनीकों का उपयोग
करते हुए प्रवृत्तियों
की पहचान की गई
है। इसके अतिरिक्त, सामाजिक
कारकों की गहरी
समझ के लिए गुणात्मक
विश्लेषण भी किया
गया है।
निष्कर्ष
असंगठित
क्षेत्र में बाल
श्रम का विश्लेषण
करने से स्पष्ट
होता है कि यह समस्या
सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक
रूढ़ियों, और कमजोर कानूनी
प्रवर्तन जैसे
जटिल कारकों का
परिणाम है। बाल
श्रम न केवल बच्चों
के मानवाधिकारों
का उल्लंघन है, बल्कि यह
उनके संपूर्ण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवन
के अधिकारों को
भी प्रभावित करता
है। इन प्रवृत्तियों
का निराकरण करने
के लिए आवश्यक
है कि नीतिगत सुधार, कानूनी
प्रवर्तन को सुदृढ़
किया जाए, तथा सामाजिक
जागरूकता एवं शिक्षा
के माध्यम से इन
बच्चों के अधिकारों
का संरक्षण किया
जाए। दीर्घकालिक
समाधान सामाजिक
न्याय, समानता, और मानवाधिकार
के प्रति प्रतिबद्धता
से ही संभव है, ताकि बच्चों
का शोषण समाप्त
हो और उनका समुचित
विकास सुनिश्चित
हो सके।
संदर्भ
1.
हरमाडे, र.,और शिंदे, ल. (2014). बाल श्रमिक
विधार्थी का शैक्षिक
समस्याओ का अध्ययन.
2.
भारतीय भाषाओं
की अंतरााष्ट्रीय
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6.
Pandey, S.
(2023). इस लेख में श्रम को एक सामाजिक अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है। लेखक बताते हैं कि यह बच्चों के लिए कितनी हानिकारक है और इसे रोकने के लिए आवश्यक कदमों पर प्रकाश डालते हैं।
7.
Prakash, A.
(2022) इस अध्ययन में बच्चों के अधिकार और उनकी समस्याओं पर चर्चा की गई है। लेखक ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के महत्व को रेखांकित किया है और भारत में बच्चों को सामना करने वाली चुनौतियों का विश्लेषण किया है।
8.
N. Slundara
Ramaiah (n.d.) इस अध्ययन में भारत में श्रम के कारण, परिणाम, कानूनी प्रावधान और प्रयासों का अवलोकन किया गया है।
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मोहापात्रा, एस., & Dash, एम.
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