प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था

A study on the varna system and social inequality in ancient India

by Dr. Shriphal Meena*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 1, Issue No. 2, Apr 2011, Pages 1 - 7 (7)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

वर्ण शब्द का प्रयोग रंग के अर्थ में होता था और प्रतीत होता है कि आर्य लोग गौर वर्ण के थे और मूलवासी लोग काले रंग के थे। सामाजिक वर्ग - विन्यास में रंग से परिचायक चिह्न का काम लिया गया, लेकिन रंगभेद दर्शी पश्चिमी लेखकों ने रंग की धारणा को बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत किया है। वास्तव में समाज में वर्गों के सृजन का सबसे बड़ा कारण हुआ आर्यों की मूलवासियों पर विजय। आर्यों द्वारा जीते गए दास और दस्यु जनों के लोग दास और शूद्र हो गए। जीती गयी वस्तुओं में कबीले के सरदारों और पुरोहितों को अधिक हिस्सा मिलता था और वे सामान्य लोगों को वंचित करते हुए अधिकाधिक सम्पन्न होते गए इससे कबीले में सामाजिक असमानता का सृजन हुआ। धीरे - धीरे कबायली समाज तीन वर्गों में बंट गया - योद्धा, पुरोहित और सामान्य लोग (प्रजा)। चौथा वर्ग जो शूद्र कहलाता था ऋग्वेद काल के अन्त में दिखाई पड़ता है, क्योंकि इसका सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद के दशम् मंडल में है, जो सबसे बाद में जोड़ा गया है। वर्ण शब्द का प्रयोग आजकल हम अपने दैनिक जीवन मे कर सकते है।

KEYWORD

वर्ण, व्यवस्था, रंग, आर्य, विजय, सामाजिक असमानता, कबायली समाज, ऋग्वेद, शूद्र, धीरे - धीरे