Bina Koi Uttam Shiksha Nikle Jo Naatak Khela Gaya Gaya Iska Parihaspriya Phal

बिना किसी काव्य कल्पना के उत्तम शिक्षा निकले नाटक

by Vandana*, Dr. Ishwar Singh,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 3, Issue No. 5, Jan 2012, Pages 0 - 0 (0)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

बनारस में बंगालियों और हिन्दुस्तानियों ने मिलकर एक छोटा सा नाटक समाज दशाश्वमेध घाट पर नियत किया है, जिसका नाम हिंदू नैशनल थिएटर है। दक्षिण में पारसी और महाराष्ट्र नाटक वाले प्रायः अन्धेर नगरी का प्रहसन खेला करते हैं, किन्तु उन लोगों की भाषा और प्रक्रिया सब असंबद्ध होती है। ऐसा ही इन थिएटर वालों ने भी खेलना चाहा था और अपने परम सहायक भारतभूषण भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र से अपना आशय प्रकट किया। बाबू साहब ने यह सोचकर कि बिना किसी काव्य कल्पना के व बिना कोई उत्तम शिक्षा निकले जो नाटक खेला ही गया तो इसका फल क्या, इस कथा को काव्य में बाँध दिया। यह प्रहसन पूर्वोक्त बाबू साहब ने उस नाटक के पात्रों के अवस्थानुसार एक ही दिन में लिख दिया है। आशा है कि परिहासप्रिय रसिक जन इस से परितुष्ट होंगे।

KEYWORD

उत्तम शिक्षा, नाटक, बांध, पूर्वोक्त, परिहासप्रिय, सहायक, भारतभूषण, खेला, बंगालियों, हिन्दुस्तानियों