मुगलकालीन सांस्कृतिक जीवनः एक अध्ययन

खान-पान, भोजन, और व्यंजन: मुगलकालीन सांस्कृतिक जीवन का अध्ययन

by Ashok Kumar*, Dr. Sanjay Kumar,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 4, Issue No. 7, Jul 2012, Pages 0 - 0 (0)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

खान-पान एवं भोजन जीवन की उन मूलभूत आवश्यकताओं में से हैं। जिसमें संशोधन-परिवर्धन के प्रयास प्रत्येक युग में किए जाते रहे हैं। खान-पान, एवं भोजन व्यवस्था भी किसी युग के रहन-सहन, अथवा संस्कृति के स्तर का सूचक होता है। यूँ जहां प्रारम्भ में मानव ने कच्चे फल और कन्दमूल को खान-पान के रूप में उपयोग किया था परिस्थितियों में बदलाव के साथ-साथ कालान्तर में भोजन के प्रति दृष्टिकोण भी बदला और मानव का ध्यान इन आवश्यकताओं से बढ़ कर विलास और स्वादिष्ट व्यंजनों की तरफ गया और खान-पान में विभिन्न तरह के व्यंजनों का समावेश बढ़ता चला गया। इसी प्रकार मुगलकाल में यह व्यवस्था और भी अधिक विकसित हुई। इसमें समय-समय पर आए परिवर्तनों में न केवल हिन्दू तथा मुसलमानों के विभिन्न वर्गों की भूमिका रही अपितु तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक स्थिति तथा जलवायु ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जहाँ भारतीय आदर्शों और परम्पराओं के अनुसार शाकाहार को सात्विक और उत्तम माना गया है, वहीं मुगलकाल में मांसाहार का प्रचलन पर्याप्त मात्रा में होने लगा था।

KEYWORD

मुगलकालीन सांस्कृतिक जीवन, खान-पान, भोजन, व्यंजन, मांसाहार