मुगलकालीन उत्तर भारतीय समाज में मनोरंजन, त्यौहार एवं शिक्षा

उत्तर भारतीय समाज में मुगलकाल का मनोरंजन, त्यौहार और शिक्षा

by Ashok Kumar*, Dr. Sanjay Kumar,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 4, Issue No. 7, Jul 2012, Pages 0 - 0 (0)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

मनोरंजन सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों एवं समय समय पर मनाये जाने वाले त्यौहारों की दृष्टि से मुगलकाल को आनन्द व खुशी का काल कहा जा सकता है। इस काल के मनोरंजन के साधनों की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इनमें से अनेक युग की प्रवृत्तियों के अनुरूप अपने स्वरूप में सैनिक व साहसिक गुणों से प्रभावित लगते हैं। ऐसे मनोरंजनों में चैगान, घुड़दौड़, शिकार, पशु या पक्षियों की लड़ाई आदि प्रमुख है जिनका सम्बन्ध मुख्यतः अभिजात वर्ग से था। कुछ अन्य यथा चैपड़, ताश, कबूतर व पतंग उड़ाना, कुश्ती आदि का सम्बंध समाज के धनी, निर्धन सभी वर्गों से था। समाज में विशेषकर उच्च वर्ग में समृद्धि का प्राचुर्य वैभव विलास, विभिन्न प्रकार के मनोरंजन और क्रियाएं विद्यमान थी। सम्पन्न वर्गों में शान-शौकत की अधिकता थी और उसी के अनुरूप अनेक मनोरंजन के साधनों का प्रचलन हो गया था। इस तरह सभी सुख सुविधाओं से युक्त प्रासादों में दास-दासियाँ सदैव सेवा के लिए तत्पर रहती थी। मनोविनोद के लिए नट-नर्तक क्रीड़ाएं, विहार और विभिन्न रंगस्थलियों की कमी नहीं थी। केशव ने वीरसिंहदेव चरित में दिल्ली के सुल्तान के विनोद के साधनों का वर्णन दिया है प्रायः यह सामग्री सुल्तान से लेकर छोटे सरदार, सामन्त, रईस सभी को सुलभ थी।

KEYWORD

मुगलकाल, मनोरंजन, त्यौहार, शिक्षा, विशेषता, शान-शौकत, नट-नर्तक क्रीड़ाएं, विभिन्न रंगस्थलियाँ, सुल्तान