दास प्रथा का इतिहास
दास प्रथा के इतिहास में दासता का भूमिका एवं प्रभाव
by Jamuna Lal Meena*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 4, Issue No. 7, Jul 2012, Pages 1 - 7 (7)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
मानव समाज में जितनी भी संस्थाओं का अस्तित्व रहा है उनमें सबसे भयावह दासता की प्रथा है। मनुष्य के हाथों मनुष्य का ही बड़े पैमाने पर उत्पीड़न इस प्रथा के अंर्तगत हुआ है। दासप्रथा को संस्थात्मक शोषण की पराकाष्ठा कहा जा सकता है। एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमरीका आदि सभी भूखंडों में उदय होने वाली सभ्यताओं के इतिहास में दासता ने सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक व्यवस्थाओं के निर्माण एवं परिचालन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। जो सभ्यताएँ प्रधानतया तलवार के बल पर बनी, बढ़ीं और टिकी थीं, उनमें दासता नग्न रूप में पाई जाती थी। पश्चिमी सभ्यता के विकास के इतिहास में दासप्रथा ने विशिष्ट भूमिका अदा की है। किसी अन्य सभ्यता के विकास में दासों ने संभवत: न तो इतना बड़ा योग दिया है और न अन्यत्र दासता के नाम पर मनुष्य द्वारा मनुष्य का इतना व्यापक शोषण तथा उत्पीड़न ही हुआ है। पाश्चात्य सभ्यता के सभी युगों में यूनानी, रोमन, मध्यकालीन तथा आधुनिक दासों ने सभ्यता की भव्य इमारत को अपने पसीने और रक्त से उठाया है।
KEYWORD
दास प्रथा, मानव समाज, दासता, दासता निर्माण, पाश्चात्य सभ्यता