भारतीय मुक्ति संग्राम और बिहार में क्रांतिकारी आंदोलन का अध्ययन
उन्नीसवीं सदी के आर्थिक और कृषि संबंधी आंदोलनों का अवलोकन
by Vikash Kumar*, Dr. Pushpa Kumari,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 5, Issue No. 9, Jan 2013, Pages 0 - 0 (0)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
सहकारी ढाँचे की औपचारिक शुरुआत से पहले देश के अनेक हिस्सों में मुक्ति का विचार और सहकारी गतिविधियां छुटपुट रूप से चलती रहती थीं। ग्रामीण समुदाय मिलजुल कर पानी के जलाशय बनाने और ग्रामीण वन लगाने में दिलचस्पी लेते थे। गांव के लोग फसल तैयार होने के बाद जरूरतमंदों को अगली फसल की बुआई से पहले अनाज उपलब्धा कराते थे या सामूहिक रूप से बीज की व्यवस्था करते थे। उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में किसानों के लिए संस्थागत आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं थी। सबसे पहले 1858 में और फिर 1881 में अहमदनगर के जिला जज विलियम वैडरवर्न ने जस्टिस राना डे के साथ विचार कर कृषि बैंक की स्थापना का प्रस्ताव रखा। मद्रास के गवर्नर ने फ्रेंडरिक निकलसन को मार्च 1892 में इस प्रस्ताव की संभावना की जांच का काम सौंपा, जिन्होंने 1895 और 1897 में दो खंडों में अपनी रिपोर्ट सौंपी।
KEYWORD
भारतीय मुक्ति संग्राम, बिहार, क्रांतिकारी आंदोलन, सहकारी गतिविधियां, ग्रामीण समुदाय